कर्नाटक सर्व प्रथम उपलब्ध ग्रंथ कौन सा है? - karnaatak sarv pratham upalabdh granth kaun sa hai?

जो शक्ति हम में राग-द्वेष, प्रीति-अप्रीति, क्रोध-भय आदि आवेगों को उत्पन्न करती है उसे हम भावना-शक्ति कहते हैं। शक्ति मार्ग में यही भावना शक्ति-प्रधान अवलंबन है। बुद्धि-शक्ति और क्रिया-शक्तियाँ भी इस मार्ग में हमारी सहायता करेंगी। पर ये प्रधान शक्तियाँ नहीं हैं। परमात्मा के प्रति हमारी जो प्रेम-भावना है उसी के द्वारा हम भक्तिमार्ग में आगे बढ़ते हैं। सा परानुरक्तिरीश्वरे भक्तिः, परमात्मा से अनुरक्त होना ही भक्ति है, यों शांडिल्य-सूत्र में भक्ति का निरूपण किसी के प्रति रही हमारी परमप्रीति ही भक्ति है। अन्य विषयों को हमारी प्रीति को उन विषयों से अलग करके परमात्मा में ही केन्द्रित करना चाहिये और भक्त को मोक्ष की आशा भी किये बिना, हेतु-विहीन हो अपनी प्रेम-भावना को शुद्ध करना चाहिये। कीर्तन, श्रवण, सेवा आदि से इस भावना को संग्रहीन करना या बढ़ाना चाहिये, उस भावना को इधर से उधर, उधर से इधर बहने न देकर अपने वश में रखना चाहिये और उसे ईश्वर के चरणों में लगा देना और अंत को संपूर्णतः ईश्वक क अर्पण कर देना चाहिए। यह भक्ति-भावना की पराकाष्ठा है, भक्तियोग की चोटी है। इस भक्ति के कई नाम हैं जैसे अहेतुकी, मुख्या या रागात्मिका भक्ति। यह सात्विक भक्ति हैः इस प्रकार की भक्ति से युक्त व्यक्ति सबसे श्रेष्ठ ज्ञान की प्राप्ति कर लेगा। परम-पद उसको अनायास मिल जावेगा। किसी प्रकार की सकाम सहेतुक भक्ति, जिज्ञासु की या अर्थार्थी की भक्ति गौण समझी जाती है। ईश्वर सर्वश्रेष्ठ है, मैं कनिष्ठ हूँ, ईश्वर सर्वशक्तिमान है, मैं अल्पशक्तिमान् हूँ, आदि की कल्पना में भक्ति का बीज यद्यपि अंकुरति हुआ तथापि वह आगे चलकर भावोपभावों और भाव-छायाओं के रूप में पल्लवित हो, पुष्पित हो शाखोपशाखाओं में विकसित हो एक सुन्दर वृक्ष बन गया है। ज्यों ज्यों भक्ति को ईश्वर की ज्ञान-बल-क्रियायें सूझती जायंगी त्यों त्यों उसके हृदय में प्रेम भाव अंनत रूप धारण करेगा और कई बार कवि-प्रतिभा युक्त भक्तों के मुंह से दिव्य काव्य का वसन पहनकर बाहर उमड़ बहेगा। इसी कल्पना ने कि ईश्वर सर्वशक्तिमान है, विकसित हो इत तरह की कई विविध कल्पनाओंको जगह दी कि ईश्वर विश्व की सृष्टि-स्थिति-लय का कारण है, वही विश्व का आधार है, विभु है, सर्वांन्तर्यामी है। इस प्रकार होने से भी ईश्वर तो भक्त से दूर ही रहा। पर अवतार की कल्पना के जन्म से भक्तिमार्ग को एक तरह की विशिष्ट कांति मिली। इसके पूर्व भक्ति-मार्ग में शांत-भाव का ही प्राधान्य रहा और ईश-महिमा का वर्णन, ईश की कीर्ति का गान, परमात्मा के गुण कीर्तन, प्रचार में थे। इसके उपरांत ईश्वर को स्वामी के रूप में, स्नेही के रूप में, पिता के रूप में, प्रियतम के रूप में, पूजने के भाव रूढ़ि में आये। इनमे से अंतिम भाव को अर्थात् मधुर-भाव को अत्यंत उच्च-स्थान प्राप्त हुआ और वही सब तरह की भक्तियों का समन्वय माना गया। कई मुनियों ने इसी भाव के द्वारा परम-पद को प्राप्त कर लिया। अपने और अन्य साधकों के अनुभवों को एकत्रित कर उन्होंने भक्तिशास्त्र का निर्णय किया। शांडिल्य सूत्र और नारद के भक्ति-सूत्र भक्तिशास्त्र के सूत्रग्रंथ हैं। ये दोनों ग्रंथ भक्ति साहित्य के मध्य-बिंदु हैं। इन्हीं के आधार पर कई संतों ने अपने अपने अनुभवों और आराधना के तरीकों के अनुसार कई भक्ति-ग्रंथों की रचना की है। इन ग्रंथों के विषयों की संपूर्ण समालोचना इन छोटे से लेख में करना कठिन-सा है। इनता ही यहाँ कहना पर्याप्त होगा कि विष्णु, शिव और शक्ति इन तीन देवताओं की भक्ति लोकप्रिय हुई और सूर्य-भक्त, गणेश-भक्त, दत्तात्रेय-भक्त, शक्ति-भक्त, राम-भक्त, कृष्ण-भक्त आदि कई भक्ति संप्रदाय बने।

भारतीय शास्त्रीय संगीत की जड़ों को ईसा से पहले सहस्राब्दी तक खोजा जा सकता है। इसे दो स्कूलों में वर्गीकृत किया गया है- हिंदुस्तानी या उत्तर भारतीय स्कूल और कर्नाटक या दक्षिण भारतीय स्कूल। लेकिन दोनों विद्यालयों का आधार भारत मुनि की नाट्यशास्त्री (भारतीय शास्त्रीय संगीत पर महत्वपूर्ण ग्रंथ) है, जिसे 200 ईसा पूर्व- 400 ईस्वी के बीच संकलित किया गया था। इस लेख में हमने भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रसिद्ध ग्रंथों को सूचीबद्ध किया है जो UPSC, SSC, State Services, NDA, CDS और Railways जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है।

कर्नाटक सर्व प्रथम उपलब्ध ग्रंथ कौन सा है? - karnaatak sarv pratham upalabdh granth kaun sa hai?

List of Famous Treatises of Indian Classic Music HN

भारतीय शास्त्रीय संगीत की जड़ों को ईसा से पहले सहस्राब्दी तक खोजा जा सकता है। इसे दो स्कूलों में वर्गीकृत किया गया है- हिंदुस्तानी या उत्तर भारतीय स्कूल और कर्नाटक या दक्षिण भारतीय स्कूल। लेकिन दोनों विद्यालयों का आधार भारत मुनि की नाट्यशास्त्री (भारतीय शास्त्रीय संगीत पर महत्वपूर्ण ग्रंथ) है, जिसे 200 ईसा पूर्व- 400 ईस्वी के बीच संकलित किया गया था।

प्राचीन काल से आज तक, भारतीय संगीत मोटे तौर पर मार्गी और देसी में विभाजित है। मार्गी संगीत का शाब्दिक अर्थ है 'मार्ग का संगीत' जबकि देसी संगीत का अर्थ है 'पुरुषों के दिलों को खुश करने वाली संगीत'।

वेद प्रमाणित करता है की प्राचीन भारत में संगीत का अभ्यास किया जाता था। ऋग्वेद संगीत को आर्यन के मनोरंजन का साधन बताता है। यजुर्वेद में उन लोगों का उल्लेख है जिन्होंने पेशे के रूप में संगीत का अभ्यास किया था। सामवेद में गायन और मंत्रों के उच्चारण की विधि बताई गयी है।

भारतीय राज्यों के प्रमुख कठपुतली परंपराओं की सूची

भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रसिद्ध ग्रंथ

1. संगीत तरंग

रचयिता: राधामोहन सेन

2. राग बोध

रचयिता: सोमनाथ

3. श्रृंगार प्रकाश

रचयिता: राजा भोज

4. नारी शिक्षा

रचयिता: नरद

5. संगीत समय सार

रचयिता: पार्श्व देव

6. लोचन टीका

रचयिता: अभिनव गुप्ता

7. संगीत मकरंद

रचयिता: नरद

भारत के प्रसिद्ध पारंपरिक नाटक या लोकनाट्य की सूची

 8. श्रुति भास्कर

रचयिता: भाव भट्टा

9. अभिलाषीर्थ चिंतामणि

रचयिता: चालुक्य राजा सोमेश्वर

10. संगीत रत्नाकर

रचयिता: शारंग देव

11. रसिक प्रिय

रचयिता: राणा कुंभा

12. मंकुतुह

रचयिता: ग्वालियर रियासत के महाराजा मानसिंह तोमर

13. राग दरपन का फारसी अनुवाद

रचयिता: फ़क़ीर उल्लाह

14. संगीत रत्नाकर टिका

रचयिता: कल्लीनाथ

भारतीय स्वर्ण युग के प्रसिद्ध नाटककारों की सूची

15. संगीत दर्पण

रचयिता: दामोदर मिश्रा

16. अभिनव भारती

रचयिता: अभिनव गुप्ता

17. नरोत्तम विलास

रचयिता: नरहरी चक्रवर्ती

18. स्वरमील कलानिधि

रचयिता: नरद

19. गीत गोविन्द

रचयिता: जयदेव

20. श्रींगार ह़ार

रचयिता: शमन राजा हम्मीर देव

21. संगीत राज

रचयिता: महाराणा कुम्भा

भारतीय शास्त्रीय संगीत में दो मूलभूत तत्व हैं, राग और ताल। राग एक मधुर संरचना का निर्माण करता है, जबकि ताल समय चक्र को मापता है।

कन्नड़ का प्रथम उपलब्ध ग्रंथ कौन सा है?

"कविराजमार्ग", कन्नड का प्रथम उपलब्ध ग्रंथ है। चंपू शैली में लिखा हुआ यह रीतिग्रंथ प्रधानतया दंडी के "काव्यादर्श" पर आधरित है। इसका रचनाकाल सन् 815-877 के बीच माना जाता है।

कर्नाटक का प्राचीन नाम क्या है?

इस राज्य का गठन १ नवंबर, १९५६ को राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अधीन किया गया था। पहले यह मैसूर राज्य कहलाता था। १९७३ में पुनर्नामकरण कर इसका नाम कर्नाटक कर दिया गया।

कर्नाटक क्यों प्रसिद्ध है?

जी हां, कर्नाटक एक बहुत खूबसूरत टूरिस्ट प्लेस है जहां हर साल कई लोग घूमने आते हैं. इस शहर में मौजूद दो मशहूर शहर कुर्ग और मैसूर घूमने वाले लोगों के बीच बहुत प्रसिद्ध हैं. यहां जानें इस शहर की और शानदार चीज़ों के बारे में. अरब सागर से मिलने वाले इस झरने का पानी कर्नाटक में बिजली बनाने के काम में लाया जाता है.

खुरपी को कर्नाटक में क्या कहते हैं?

खूंटी मिट्टी को खोदने, ढीला करने और नरम बनाने के लिए लोहे की छड़ होती है। इसे उत्तर भारत में खुरपी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय राज्यों में इसे खूंटी कहा जाता है।