उपभोक्ता संरक्षण एक प्रकार का सरकारी नियंत्रण है जो उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करता है। Show
परिचय[संपादित करें]आज ग्राहक जमाखोरी, कालाबाजारी, मिलावट, बिना मानक की वस्तुओं की बिक्री, अधिक दाम, ग्यारन्टी के बाद सर्विस नहीं देना, हर जगह ठगी, कम नाप-तौल इत्यादि संकटों से घिरा है। ग्राहक संरक्षण के लिए विभिन्न कानून बने हैं, इसके फलस्वरूप ग्राहक आज सरकार पर निर्भर हो गया है। जो लोग गैरकानूनी काम करते हैं, जैसे- जमाखोरी, कालाबाजारी करने वाले, मिलावटखोर इत्यादि को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त होता है। ग्राहक चूंकि संगठित नहीं हैं इसलिए हर जगह ठगा जाता है। ग्राहक आन्दोलन की शुरूआत यहीं से होती है। ग्राहक को जागना होगा व स्वयं का संरक्षण करना होगा। उपभोक्ता आन्दोलन का प्रारंभ अमेरिका में रल्प नाडेर द्वारा किया गा था। नाडेर के आन्दोलन के फलस्वरूप 15 मार्च 1962 को अमेरिकी कांग्रेस में तत्काली राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी द्वारा उपभोक्ता संरक्षण पर पेश विधेयक को अनुमोदित किया था। इसी कारण 15 मार्च को अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। अमेरिकी कांग्रेस में पारित विधेयक में चार विशेष प्रावधान थे।
अमेरिकी कांग्रेस ने इन अधिकारों को व्यापकता प्रदान करने के लिए चार और अधिकार बाद में जोड़ दिए।
जहां तक भारत का प्रश्न है, उपभोक्ता आन्दोलन को दिशा 1966 में जेआरडी टाटा के नेतृत्व में कुछ उद्योगपतियों द्वारा उपभोक्ता संरक्षण के तहत फेयर प्रैक्टिस एसोसिएशन की मुंबई में स्थापना की गई और इसकी शाखाएं कुछ प्रमुख शहरों में स्थापित की गईं। स्वयंसेवी संगठन के रूप में ग्राहक पंचायत की स्थापना बीएम जोशी द्वारा 1974 में पुणे में की गई। अनेक राज्यों में उपभोक्ता कल्याण हेतु संस्थाओं का गठन हुआ। इस प्रकार उपभोक्ता आन्दोलन आगे बढ़ता रहा। 24 दिसम्बर 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर उपभोक्ता संरक्षण विधेयक संसद ने पारित किया और राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित होने के बाद देशभर में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू हुआ। इस अधिनियम में बाद में 1993 व 2002 में महत्वपूर्ण संशोधन किए गए। इन व्यापक संशोधनों के बाद यह एक सरल व सुगम अधिनियम हो गया है। इस अधिनियम के अधीन पारित आदेशों का पालन न किए जाने पर धारा 27 के अधीन कारावास व दण्ड तथा धारा 25 के अधीन कुर्की का प्रावधान किया गया है। उपभोक्ता[संपादित करें]उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुसार कोई व्यक्ति जो अपने उपयोग के लिये सामान अथवा सेवायें खरीदता है वह उपभोक्ता है। विक्रेता की अनुमति से ऐसे सामान/सेवाओं का प्रयोग करने वाला व्यक्ति भी उपभोक्ता है। अत: हम में से प्रत्येक किसी न किसी रूप में उपभोक्ता ही है। उपभोक्ता के अधिकार[संपादित करें]
शिकायतें क्या-क्या हो सकती हैं?[संपादित करें]किसी व्यापारी द्वारा अनुचित/प्रतिबंधात्मक पध्दति के प्रयोग करने से यदि आपको हानि/क्षति हुई है अथवा खरीदे गये सामान में यदि कोई खराबी है या फिर किराये पर ली गई/उपभोग की गई सेवाओं में कमी पाई गई है या फिर विक्रेता ने आपसे प्रदर्शित मूल्य अथवा लागू कानून द्वारा अथवा इसके मूल्य से अधिक मूल्य लिया गया है। इसके अलावा यदि किसी कानून का उल्लंघन करते हुये जीवन तथा सुरक्षा के लिये जोखिम पैदा करने वाला सामान जनता को बेचा जा रहा है तो आप शिकायत दर्ज करवा सकते हैं. कौन शिकायत कर सकता है?[संपादित करें]स्वयं उपभोक्ता या कोई स्वैच्छिक उपभोक्ता संगठन जो समिति पंजीकरण अधिनियम 1860 अथवा कंपनी अधिनियम 1951 अथवा फिलहाल लागू किसी अन्य विधि के अधीन पंजीकृत है, शिकायत दर्ज कर सकता है। शिकायत कहां की जाये[संपादित करें]शिकायत कहां की जाये, यह बात सामान सेवाओं की लागत अथवा मांगी गई क्षतिपूर्ति पर निर्भर करती है। अगर यह राशि 20 लाख रूपये से कम है तो जिला फोरम में शिकायत करें। यदि यह राशि 20 लाख रूपये से अधिक लेकिन एक करोड़ रूपये से कम है तो राज्य आयोग के समक्ष और यदि एक करोड़ रूपसे अधिक है तो राष्ट्रीय आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज करायें। वैबसाईट www.fcamin.nic.in पर सभी पते उपलब्ध हैं। शिकायत कैसे करें[संपादित करें]उपभोक्ता द्वारा अथवा शिकायतकर्ता द्वारा शिकायत सादे कागज पर की जा सकती है। शिकायत में शिकायतकर्ताओं तथा विपरीत पार्टी के नाम का विवरण तथा पता, शिकायत से संबंधित तथ्य एवं यह सब कब और कहां हुआ आदि का विवरण, शिकायत में उल्लिखित आरोपों के समर्थन में दस्तावेज साथ ही प्राधिकृत एजेंट के हस्ताक्षर होने चाहिये। इस प्रकार की शिकायत दर्ज कराने के लिये किसी वकील की आवश्यकता नहीं होती। साथ ही इस कार्य पर नाममात्र न्यायालय शुल्क ली जाती है। क्षतिपूर्ति[संपादित करें]उपभोक्ताओं को प्रदाय सामान से खराबियां हटाना, सामान को बदलना, चुकाये गये मूल्य को वापिस देने के अलावा हानि अथवा चोट के लिये क्षतिपूर्ति। सेवाओं में त्रुटियां अथवा कमियां हटाने के साथ-साथ पार्टियों को पर्याप्त न्यायालय वाद-व्यय प्रदान कर राहत दी जाती है। उपभोक्ता अधिकार सरंक्षण के कुछ कानून[संपादित करें]उपभोक्ता के साथ ही स्वैच्छिक उपभोक्ता संगठन, केंद्र या राज्य सरकार, एक या एक से अधिक उपभोक्ता कार्यवाही कर सकते हैं।
संक्षिप्त परिचय[संपादित करें]एम. आर . टी . पी . - आजकल भ्रमित करने वाले झूठे विज्ञापनों को आधार बनाकर उपभोक्ता का शोषण करने की प्रवृति कुछ व्यापारियों में पनपनती दिखाई दे रही है। कभी-कभी तो असंभव बातों को गारंटी की जाती है, जो पूरी नहीं हो पाती है। प्रचारित की गई वस्तुएं गुणवत्ता की नहीं होती है ओर उनका मूल्य अधिक लिया जाता है। कई बार एकाधिकारिता का लाभ उठाकर अधिक मुल्य लिया जाता है। इसी तरह के शोषण से उपभोक्ता को बचाने के लिए केंद्र सरकार से द्वारा बनाया गया मोनोपोलिस एंड रेस्ट्रिक्टिव ट्रेड प्रेक्टिसेस एक्ट, 1969 प्रभावशील है, जिसे संक्षेप में एमआरटीपी एक्ट कहा जाता है। ऐसी शिकायत होने पर उपभोक्ता को इसकी सूचना एमआरटीपी कमीशन को देनी चाहिए ताकि उसे शोषण से मुक्ति दिलाई जा सके ओर व्यापारी के विरूध्द आवश्यक कार्यवाही की जा सके। उपभोक्तागण ऐसे प्रकरण खाद्य विभाग को भी भेज सकते है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम - उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 व्यापार और उद्योग के शोषण से उन लोगों के अधिकारों और हितों को बचाने के लिए बनाया गया था जो किसी न किसी प्रकार से उपभोक्ता है। इस अधिनियम के अनुसार कोई भी व्यक्ति, जो अपने प्रयोग हेतु वस्तुएं एवं सेवाएं खरीदता है उपभोक्ता है। क्रेता की अनुमति से इन वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रयोगकर्ता भी उपभोक्ता है। इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम क्यों बनाया गया है?उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम - उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 व्यापार और उद्योग के शोषण से उन लोगों के अधिकारों और हितों को बचाने के लिए बनाया गया था जो किसी न किसी प्रकार से उपभोक्ता है। इस अधिनियम के अनुसार कोई भी व्यक्ति, जो अपने प्रयोग हेतु वस्तुएं एवं सेवाएं खरीदता है उपभोक्ता है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का उद्देश्य क्या है?उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (सीपीए) 1986 में पारित किया गया तथा यह 1 जुलाई 1987 से लागू हुआ। इस अधिनियम के मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं को श्रेष्ठ तथा सभी प्रकार का संरक्षण प्रदान करना तथा विभिन्न प्रकार के शोषणों से प्रभावी सुरक्षा प्रदान करना है जैसे दोषपूर्ण वस्तुएं, घटिया सेवाएं तथा अनुचित व्यापार व्यवहार ।
अधिनियम 1986 क्या है?पर्यावरण सुरक्षा एवं पर्यावरण में सुधार करने के उद्देश्य से पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम (Environment (Protection Act-EPA), 1986 भारत सरकार द्वारा अधिनियमित किया गया था। यह अधिनियम केंद्र सरकार को पर्यावरण प्रदूषण को रोकने और देश के विभिन्न हिस्सों में विशिष्ट पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने के लिये अधिकृत करता है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ता के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 में CCPA की स्थापना का प्रावधान है जो उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करने के साथ साथ उनको बढ़ावा देगा और लागू करेगा। यह प्राधिकरण अनुचित व्यापार प्रथाओं, भ्रामक विज्ञापनों और उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों को भी देखेगा।
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