कार्मिक क्षतिपूर्ति अधिनियम 1923 के मुख्य प्रावधानों का वर्णन - kaarmik kshatipoorti adhiniyam 1923 ke mukhy praavadhaanon ka varnan

www.lawyerguruji.com

नमस्कार दोसतों,

आज के इस लेख में आप सभी को " कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम, 1923 'के बारे में बताने जा रहा हु कि , कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम क्या है ? यह अधिनियम किस क्षेत्र तक लागु होता है ? इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य क्या है ? आपके इन हर सवालो के जवाब आज हम आपको इस लेख के माध्यम से देने जा रहा हु। 

कार्मिक क्षतिपूर्ति अधिनियम 1923 के मुख्य प्रावधानों का वर्णन - kaarmik kshatipoorti adhiniyam 1923 ke mukhy praavadhaanon ka varnan

कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम क्या है ?

कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है। भारत में कर्मचारियों को प्रतिकर दिलाने की बात सबसे पहले 1923 में लागु की गयी जो कर्मचारियों के पक्ष में था। 1923 से पहले भारत में औद्योगिक संस्थाओ में कार्य कर रहे लाखो मज़दूर प्रतिकर के अधिकार से पूरी तरह वंचित थे। यदि कार्य करते समय किसी मज़दूर की मृत्यु हो जाती या वह कार्य के दौरान हुई दुर्घटना में क्षति कारण विकलांग हो जाता है तो इसका दायित्व नियोजको के ऊपर नहीं होता था। तो ऐसे में यदि इन मज़दूरो को कार्य करते समय दुर्घटना से क्षति होती है तो क्या किया जाये इसके लिए  इन कमर्चारियों की दशा को सुधारने के लिए भारतीय सरकार ने कमर्चारी प्रतिकर अधिनयम को पारित किया जो की मजदूरों के लिए महत्वपूर्ण अधिनियम साबित हुआ है। इस अधिनियम के तहत कार्य कर रहे मजदूर किसी दुर्घटना के शिकार होते है जिसके कारण उनको क्षति पहुँचती है तो नियोजक का यह दायित्व होगा कि उसकी इस क्षति की पूर्ति के लिए प्रतिकर अवश्य दे ताकि उसके और उसके परिवार की आर्थिक मदद मिल सके। 

अधिनियम कहाँ लागु होगा ?

कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम 1923, भारत के हर क्षेत्र में लागु होगा। इसके तहत वे सभी श्रमिक जिनकी मासिक आय / मज़दूरी 500 रु प्रति माह अधिक नहीं है।  इस अधिनियम के तहत वे सभी श्रमिक सम्मिलित होंगे जो कारखानों, खानो, बागानी, निर्माण कार्य, यांत्रिक परिवहन और अन्य कठिन कार्यो में लगे है। 

कर्मचारी प्रतिकर अधिनयम का उद्देश्य क्या है ?

इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य कर्मचारियों के हित में कार्य करना है। श्रमिकों के कार्य करते दौरान दुर्घटना होने के कारण होने वाली स्थायी या अस्थायी क्षति या ऐसी अयोग्यता जो श्रमिकों को 3 दिनों से अधिक कार्य करने के अयोग्य कर देती है, तो ऐसी क्षति जो कार्य के दौरान हुई दुर्घटना के कारण हुई है उसकी क्षतिपूर्ति का दायित्व नियोजक का होगा। यह अधिनियम दुर्घटनाओं की जोखिम के लिए श्रमिकों के लिए एक प्रकार का बीमा है जो कि  श्रमिको की आर्थिक मदद करता है। 

"जहाँ दुर्घटना के कारण हुई क्षतिपूर्ति कपितय विशिष्ट वर्ग के नियोजकों द्वारा अपने कर्मचारियों के लिए मुहैया  अधिनियम पारित किया गया है "- 

  1. औद्योगिक दुर्घटनाओं के कारण क्षतिग्रस्त कर्मचारियों को नियोक्ता से निर्धारित क्षतिपूर्ति जल्द से जल्द दिलवाना। 
  2.  दुर्घटनाग्रस्त श्रमिकों के आश्रितों को आर्थिक मदद कर संकट के समय सहायता प्रदान करवाना। 
  3. दुर्घटनाग्रस्त श्रमिकों के आश्रितों की आर्थिक मदद करवा कर उनके द्वारा न्यायालय के दरवाजें को खटकाने से रोकना। 
  4. दुर्घटनाग्रस्त के कारण विकलांग श्रमिकों की भुखमरी एवं ग़रीबी से रक्षा करना। 
  5. कारखानों में होने वाली दुर्घटनाओं से रोकथाम के लिए श्रमिकों को सचेत करना। 
  6. कार्य करने वाले श्रमिको को व्यावसायिक रोगो से सुरक्षा प्रदान करवाना। 
  7. श्रमिकों की अनिश्चिंतता, आकस्मिकता और कष्टों से रक्षा करना। 
  8. लगन और निष्ठा से कार्य करने वाले श्रमिकों को शक्ति प्रदान करना। 
  9. कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना। 
  10. सामाजिक सुरक्षा को क्रियाशील बनाना। 

कार्मिक क्षतिपूर्ति अधिनियम 1923 के मुख्य प्रावधानों का वर्णन - kaarmik kshatipoorti adhiniyam 1923 ke mukhy praavadhaanon ka varnan

निर्माण क्षेत्र में खतरनाक काम और खतरनाक स्थितियाँ प्रायः देखने को मिलती हैं।

कमकर प्रतिकर या कामगार प्रतिकर (Workers' compensation) वह क्षतिपूर्ति है जो श्रमिक अथवा कमकर (कामगार) को उसके अंगभंग आदि हानियों के बदले मिला करती है। पहले यह पूर्ति श्रमिकों को अप्राप्य थी, पर आज विधित: यह स्वीकार कर ली गई है।

परिचय[संपादित करें]

वर्तमान समय में संसार के सभी देशों में औद्योगीकरण का प्रचार बड़ी तेजी से हुआ और हो रहा है। उत्पादन प्रणाली में मशीनों तथा यांत्रिक शक्तियों का प्रयोग उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है। आधुनिक औद्योगिक प्रक्रियाएँ बड़ी जटिल होती जा रही हैं। तापक्रम, स्वच्छ वायु, रोशनी, आर्द्रता आदि का चित प्रबंध न रहने से कारखाने के अंदर काम करना कष्टदायक होता है। औद्योगिक दुर्घटनाएँ मशीन-उत्पादन-प्रणाली की विशेष परिणाम हैं। यह ठीक है कि 'अपनी सुरक्षा पहले' (सेफ्टी फर्स्ट) जैसे नियमोंवाले इश्तहार लगाकर, अथवा आग बुझाने के साधन आदि रखकर सुरक्षा का प्रयत्न किया जाता है, तथापि सुरक्षा के पर्याप्त साधनों के अभाव और खतरनाक मशीनों के प्रयोग में वृद्धि के कारण सभी औद्योगिक देशों में ऐसी दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ती ही जा रही है। इन दुर्घटनाओं के कारणों में मशीनों का तेजी से चलना, श्रमिको की अकुशलता तथा जटिल मशीनों को चलाने की अनभिज्ञता, उनकी लापरवाही, काम करते-करते थक जाना, या आवश्यक सावधानी न बरतना, आदि गिनाए जा सकते हैं। वास्तव में दुर्घटनाओं की संभावना सदैव बनी रहती है क्योंकि एक ओर उत्पादन की गति दिन पर दिन तीव्र होती जा रही है और दूसरी ओर मशीनों का आकार और भी विशाल तथा उनकी रचना और भी जटिल होती जा रही है।

दुर्घटना होने का अर्थ है - आकस्मिक मृत्यु या स्थायी अस्थायी पंगुता। पंगुता के कारण श्रमिक की उपार्जन शक्ति तो समाप्त हो ही जाती है, साथ ही कुशल श्रमिक की आकस्मिक मृत्यु या उसका आजीवन पंगु रह जाना उद्योग और राष्ट्र के लिए भी हानिकर है। सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि ऐसी आकस्मिक विपत्तियों के समय उसके आश्रितों का क्या होगा? उनकी देखभाल कौन करेगा और उनके व्यय का क्या प्रबंध होगा? क्या समाज की कोई व्यवस्था इन प्रश्नों का समाधान कर सकती है कि उसके आश्रितों को लालन पालन में कम से कम उस समय तक कोई कष्ट न हो जब तक उसमें आश्रित योग्य होकर कमाने लायक न हो जाएँ। शारीरिक क्षतियों के अलावा कभी-कभी कुछ उद्योग धंधों में उनसे संबंधित रोग भी उत्पन्न हो जाते हैं, जैसे शीशे के कारखानों में काम करनेवालों को रक्तपित्त और रुई के कारखानों में काम करनेवालों को दमा का रोग हो जाता है। ऐसे रोगों का एक उल्लेख भारतीय कमकर प्रतिकर (श्रमिक क्षतिपूर्ति) अधिनियम की तीसरी सूची में किया गया है। ऐसी अवस्था में इस प्रकार की योजनाओं की बहुत आवश्यकता है जो मिल मालिकों को ऐसी व्यवस्था करने के लिए बाध्य करें जिससे इस प्रकार दुर्घटनाएँ कम से कम हों और दुर्घटना होने पर क्षतिपूर्ति हो जाए। इसी आवश्यकता का अनुभव करके संसार के सभी उन्नतिशील देशों ने इन परिस्थितियों के लिए बहुत से उपाय निकाले। दुर्घटनाओं, बीमारी, सामयिक असमर्थता, मृत्यु या आकस्मिक विपत्ति के समय श्रमिकों के आश्रितों की देखभाल की योजना को संयुक्त रूप से 'कमकर प्रतिकर' (वर्कमेंस कांपेनसेशन) योजना कहा जाता है। वर्तमान काल में सभी प्रगतिशील देशों में श्रमिकों के कल्याण के लिए बहुत से कानून बताए गए हैं। इस प्रकार की औद्योगिक दुर्घटनाओं की क्षतिपूर्ति प्रत्येक देश के श्रमविधान का आवश्यक अंग है तथा अनेक देशों में सामाजिक बीमा योजना के अंतर्गत सम्मिलित कर दी गई है। इस दिशा में अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ के प्रयत्न सराहनीय हैं। इस संघ ने बहुत से ऐसे कनवेंशन पारित किए हैं जिनसे प्रतिकर से संबंध रखनेवाले श्रमविधानों के सिद्धांत निश्चित होते हैं।

आर्थिक तथा मानवीय दोनों दृष्टियों से प्रतिकर प्रदान करने के सिद्धांत का समर्थन किया जा सकता है। इससे श्रमिकों में सावधानी तथा सुरक्षा की भावना पैदा होती है और उनकी कार्यशक्ति में वृद्धि होती है। साथ ही औद्योगिक कार्य का अनाकर्षण कम होता है और कार्य के प्रति उनकी रुचि बढ़ती है। इस प्रकार की योजनाएँ मालिकों का भी ध्यान सुरक्षा के प्रति आकर्षित करती हैं। इस व्यवस्था के कारण ही वे श्रमिकों को चिकित्सा आदि की उचित सुविधाएँ प्रदान करते हैं। इस व्यवस्था के द्वारा मानव व्यक्तित्व के मूल्य को भी स्वीकृति मिलती है, इसी आधार पर इस धारणा का विकास होता है कि श्रमिक बाजार की कोई वस्तु नहीं है जिसे जब चाहे खरीदा जा सके। प्रत्युत: वह ऐसा प्राणी है जिसके सुख, दु:ख कष्ट इत्यादि की वे ही सीमाएँ हैं जो किसी भी अन्य व्यक्ति की। अब यह भी सैद्धांतिक रूप से मान लिया गया है कि कार्य चाहे बड़ा हो या छोटा, व्यवसाय चाहे खतरनाक हो या न हो, चाहे औद्योगिक, वाणिज्य संबंधी हो या कृषि संबंधी और चाहे श्रमिक औद्योगिक दुर्घटना का शिकार हो या व्यवसायजनित बीमारी का-सभी अवस्थाओं में प्रतिकर का अधिकार वैसा ही बना रहता है।

प्रतिकर के रूप में दी जानेवाली धनराशि साधारणत: कमकर को लगी हुई चोट के स्वभाव तथा उसकी औसत मासिक मजदूरी पर निर्भर करती है। इस उद्देश्य के लिए क्षतियों को तीन भागों में बाँटा जाता है :

(1) ऐसी चोट जिससे आकस्मिक मृत्यु हो जाए,

(2) स्थायी और पूर्ण अथवा आंशिक पंगुता उत्पन्न करनेवाली चोट,

(3) अस्थायी पंगुतावाले आघात।

भारत में ऐसा प्रतिकर अधिनियम सर्वप्रथम 1923 में (इंडियन वर्कमेंस कांपेनसेशन ऐक्ट) पारित हुआ, तदुपरांत 1926, 1929 और 1931 में शाही कमीशन की सिफारिशों के फलस्वरूप 1934, 1939, 1942, 1946 और 1948 में संशोधन होते रहे जिससे उसके क्षेत्र में काफी विस्तार हो गया है। किसी वयस्क की मृत्यु पर अधिनियम में दी हुई दरें निम्नतम वेतनवर्ग (अर्थात्‌ दस रुपया प्रति मास से कम) के व्यक्तियों पर 500 रु. से लेकर उच्चतम वेतन वर्ग (अर्थात्‌ 300 रु. प्रति मास से अधिक) वाले व्यक्तियों पर 4,500 रु. तक हैं। किसी व्यक्ति की स्थायी और पूर्ण पंगुता पर इस प्रकार के प्रतिकर की दर वेतन के अनुसार 700 रु. से लेकर 6,200 रु. तक है। अस्थायी पंगुता पर श्रमिकों को उनके वेतन के अनुसार उनके मासिक वेतन की आधी राशि दी जाती है। ये दरें अल्पवयस्क तथा वयस्क दोनों के लिए समान हैं। हर्ष की बत यह है कि भारत में अधिकतर मिलमालिकों ने इन नियमों को कार्यान्वित करने में अपना सहयोग दिया है। इंग्लैंड में प्रथम कमकर प्रतिकर अधिनियम 1906 में पारित किया गया जिसमें मिलमालिकों से क्षति संबंधी भुगतान कराने का प्रबंध किया गया। हर्जाना उस व्यक्ति को दिया जाता है जो अपने काम के दौरान में किसी निर्दिष्ट बीमारी या दुर्घटना के कारण अपनी साधारण मजदूरी कमाने में असमर्थ है। अमरीका में इस प्रकार की सुविधाओं के लिए बड़ी व्यापक व्यवस्था है। प्रत्येक प्लांट के 'बीमारी और दुर्घटना बीमा' द्वारा उसे नकद भुगतान का लाभ मिलेगा। अस्पताल की देखभाल या आपरेशन की आवश्यकता होने पर 'अस्पताल बीमा' से सहायता मिलेगी तथा व्यावसायिक रोग से ग्रस्त हो जाने पर उसे राज्य द्वारा मालिकों के चंदे से स्थापित कोष से सहायता मिलेगी। चोट यदि स्थायी रूप से पंगु बना देती है तो 'व्यावसायिक पुनर्वास कोष' (वोकेशनल रिहैबिलिटेशनल फ़ंड) तथा संघीय सरकार उसे औषधि संबंधी, शल्य संबंधी और 'साइकियाट्रिक' चिकित्सा की सुविधा देगी और उसे नए काम के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। इसके अतिरिक्त संयुक्तराष्ट्र में बहुत सी व्यक्तिगत समाजकल्याण एजेंसियाँ हैं जो परिवारों पर मुसीबत आने पर सहायता देती हैं। 'सामुदायिक स्वास्थ्य सेवाएँ' भी असमर्थता की रोकथाम की प्रधान साधन हैं। वास्तव में ऐसी सुविधाओं की अधिकाधिक उपलब्धि से ही राज्य सचमुच जनहितकर राज्य (वेल्फ़ेयर स्टेट) बन सकता है।

ऐसी व्यापक व्यवस्थाओं के बावजूद दुर्घटनाएँ हो ही जाती हैं। मूलत: समाज का प्रयत्न तो यह होना चाहिए कि ऐसी दुर्घटनाएँ न्यूनतम हों। इसके लिए बचाव संबंधी इश्तहारों का अधिक से अधिक प्रचार, मशीनों की आड़, रक्षात्मक पोशाकों के प्रबंध इत्यादि की आवश्यकता है। नए तथा अनभिज्ञ श्रमिकों को रक्षा के उपाय भली प्रकार समझा देने चाहिए। और यदि दुर्घटनाएँ हो ही जाएँ तो क्षतिपूर्ति की व्यवस्था शीघ्र से शीघ्र होनी चाहिए, अन्यथा इसका महत्व समाप्त हो जाता है। सभी प्रकार की दुर्घटनाओं की सूचना तत्काल उच्चाधिकारियों को दे देनी चाहिए। प्रशासनात्मक कार्यवाही का यथासंभव सरल होना तथा क्षतिपूर्ति के मामलों का शीघ्र ही निपटारा हो जाना उचित है।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • Work Comp Academy (News, Classes, Podcasts, Research Tools)
  • National Workers' Compensation Information
  • Workers Compensation Resources
  • Texas Association of Responsible Nonsubscribers
  • Workers Compensation Program
  • Illinois Workers' Compensation Commission
  • WorkCover Queensland Laws
  • Northern Territory Worksafe - Workplace Health and Safety Act
  • ACT's Workers Compensation Regulation
  • Workers' Compensation Laws in Western Australia
  • Depraved Indifference: the Workers' Compensation System
  • Social Ministry of Brazil
  • Association of Workers' Compensation Boards of Canada