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जवाब: इस सवाल को सरसरी तौर पर देखें तो लगता है कि हम दैनिक अनुभव के आधार पर सवाल पूछ रहे हैं और इसलिए इसका जवाब भी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में जिन धातुओं से हमारा पाला पड़ता है उनसे जुड़ा होगा। लेकिन ऐसा है नहीं। जिन धातुओं को स्टील के चाकू से आसानी से काटा जा सकता है उनमें लीथियम, सोडियम, पोटेशियम आदि प्रमुख रूप से गिनी जा सकती हैं। हमारा दैनिक अनुभव इससे कुछ जुदा है - ताँबे के पतले तार, एल्यूमिनियम के तार या फॉइल, रांगा, टिन आदि धातुओं को हम चाकू या साधारण कैंची से आसानी से काट लेते हैं। लेकिन सोडियम, पोटेशियम से आम जीवन में धातुओं के रूप में हमारा आमना-सामना कम ही होता है। हायर सेकेण्डरी स्कूल या कॉलेज की प्रयोगशालाओं में मिट्टी के तेल में डूबे हुए सोडियम के एक-दो टुकड़े मिल जाते हैं जिन्हें चाकू से काटना या खरोंचना हो तो पानी और हवा की नमी से बचाते हुए काफी फुर्ती से बाहर निकालकर काटकर फिर से मिट्टी के तेल में डुबो देना पड़ता है। इस बात को समझने के लिए हम यह मानकर चल सकते हैं कि ज़्यादा कठोर पदार्थ से कम कठोर पदार्थ को काटा जा सकता है। कठोरता का सबसे पहला पैमाना यह था कि एक पदार्थ से दूसरे पर खरोंच लगाने की कोशिश करें। यदि खरोंच लग जाती है तो आपके हाथ में जो पदार्थ है वह अधिक कठोर है। तो आगे की चर्चा कठोरता की इसी परिभाषा को ध्यान में रखकर करेंगे। आइए, जवाब को तलाशने के लिए कुछ मदद आवर्त सारणी की लेते हैं। आवर्त सारणी में समूह 1-ए के तत्वों पर नज़र डालेंगे तो लीथियम, सोडियम, पोटेशियम, रुबीडियम, सीज़ियम, फ्रांसियम मौजूद हैं। इन्हें क्षारीय धातुएँ या ऐल्कली मेटल कहा जाता है। इन्हें ऐल्कली इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये पानी से क्रिया करके हाइड्रॉक्साइड का निर्माण करते हैं जो क्षारीय प्रकृति के हैं। इन सभी धातुओं के गुणों में कुछ समानताएँ मिलेंगी जैसे - ये सभी धातुएँ अत्यन्त क्रियाशील होती हैं और ऑक्सीजन या पानी से जल्दी क्रिया करती हैं। ऐल्कली धातुएँ चाँदी की तरह सफेद और काफी नरम होती हैं। यहाँ यह बताना भी ज़रूरी है कि इन धातुओं के भौतिक गुणों का सम्बन्ध परमाणु संरचना, परमाणुओं के आपसी बन्धन आदि से भी है। उदाहरण के लिए समूह 1-ए की बात करें तो, इस समूह में लीथियम, सोडियम, पोटेशियम, सीज़ियम, फ्रांसियम की परमाणु संरचना में एक जो समान बात है वह है अन्तिम कक्षा में 1 इलेक्ट्रॉन का होना। जैसे लीथियम की परमाणु संख्या 3 है। इलेक्ट्रॉन का वितरण 2,1 है। सोडियम की परमाणु संख्या 11 है। इलेक्ट्रॉन का वितरण 2,8,1 होगा। पोटेशियम की परमाणु संख्या 19 है। इलेक्ट्रॉन का वितरण 2,8,8,1 है। जैसा कि आप जानते हैं कि कोई परमाणु अपने अन्तिम कक्षा में मौजूद इलेक्ट्रॉन का किसी अन्य परमाणु के अन्तिम कक्षा में मौजूद इलेक्ट्रॉन के साथ लेन-देन कर सकता है। परमाणु इलेक्ट्रॉन का लेन-देन आयनिक बन्ध, सहसंयोजी बन्ध और धात्विक बन्ध बनाकर करता है। यहाँ हमारे सवाल के लिहाज़ से धात्विक बन्ध काम का है। उदाहरण के लिए सोडियम को लीजिए। इसकी परमाणु संरचना के मुताबिक परमाणु की अन्तिम कक्षा में 1 इलेक्ट्रॉन है। सोडियम के कई परमाणु एक साथ आते हैं तो इस साझा सिस्टम (एटॉमिक लेटिस) में अपने एक-एक इलेक्ट्रॉन का योगदान देते हैं। इतने सारे इलेक्ट्रॉन के समूह को इलेक्ट्रॉन का सागर भी कह सकते हैं। यहाँ धनावेशित नाभिक और मुक्त रूप से भ्रमण करने वाले इलेक्ट्रॉन के परस्पर आकर्षण के कारण धात्विक बन्ध बनता है। यदि आपको इन धात्विक बन्ध को तोड़ना है तो कुछ ऊर्जा लगानी होती है। यदि ऊष्मा के रूप में यह ऊर्जा लगाई जाए तो गलनांक और क्वथनांक के रूप में दो बिन्दु मिलते हैं जहाँ धात्विक बन्ध बिखरने लगता है। एक मत यह है कि ज़्यादा संयोजी इलेक्ट्रॉनों से बनने वाला धात्विक बन्ध ज़्यादा मज़बूत होगा। इसलिए ऐसी धातुओं के धात्वित बन्ध को तोड़ने में ज़्यादा ऊर्जा देनी होगी। यानी उन धातुओं के गलनांक व क्वथनांक भी ज़्यादा होंगे। यदि नीचे दी गई तालिका पर नज़र डालेंगे तो आपको सोडियम से टंग्स्टन तक बढ़ते क्रम में गलनांक और क्वथनांक दिखेंगे। धात्विक बन्धों की वेलेंसी से धातुओं की कठोरता को समझाने वाला ऐसा सीधा-सरल पैटर्न नहीं मिलता। लीथियम, सोडियम, पोटेशियम, सीज़ियम में धात्विक बन्ध को बनाने में एक-एक इलेक्ट्रॉन शामिल होता है इसलिए धात्विक बन्ध अपेक्षाकृत कमज़ोर होंगे और इन धातुओं को स्टील के चाकू से काटा जा सकता है। लेकिन जब आवर्त-सारणी में अलग-अलग धातुओं को संयोजी इलेक्ट्रॉन की संख्या की कसौटी पर कसते हैं तो कुछ अपवाद उभरते हैं। यानी संयोजी इलेक्ट्रॉन की संख्या बढ़ने के बावजूद कठोरता तुलनात्मक रूप में बढ़ती हुई नहीं दिखाई देती। उदाहरण के लिए समूह 2 में बेरेलियम सबसे कठोर है जबकि बेरियम सबसे कम कठोर है। इन दोनों में संयोजी इलेक्ट्रॉन की बात करें तो बेरेलियम में 2 संयोजी इलेक्ट्रॉन हैं वहीं बेरियम में भी 2 हैं। यानी संयोजी इलेक्ट्रॉन की संख्या का कठोरता से सम्बन्ध नहीं बैठ पा रहा है। ऐसे अपवाद समूह 3 में भी हैं।
शायद, यह कहना उचित होगा कि धात्विक बन्ध बनाने वाले संयोजी इलेक्ट्रॉन की संख्या-मात्र से धातुओं की कठोरता को समझ पाना मुश्किल है। यहाँ संयोजी इलेक्ट्रॉनों की केन्द्रक से दूरी भी एक कारक हो सकती है - धात्विक बन्धों की मज़बूती समझने में। बहरहाल, अभी भी धात्विक
बन्धों और भौतिक गुणों के बीच के सहसम्बन्ध को पहचाना जा रहा है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि संयोजी इलेक्ट्रॉन से धातुओं की कठोरता को पूरी तरह समझाया जा सकता है। जैसे-जैसे मज़बूत मिश्र धातुओं एवं उच्च तापमान पर काम करने वाली मिश्र धातुओं का विकास हुआ, उसी के साथ कठोर एवं मज़बूत पदार्थों को काटने के लिए कठोर पदार्थों का विकास भी होता गया। इस जवाब को माधव केलकर ने तैयार किया है। इस बार का सवाल सवाल: उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव में ही बर्फ का जमावड़ा क्यों होता है? इस सवाल के बारे में आप क्या सोचते हैं, आपका क्या अनुमान है, क्या होता होगा? इस सवाल को लेकर आप जो कुछ भी सोचते हैं, सही-गलत की परवाह किए बिना हमारे पास लिखकर भेज दीजिए। क्या लिथियम को चाकू से काटा जा सकता है?अपने कम घनत्व के कारण लिथियम बहुत हलका होता है और धातु होने के बावजूद इसे आसानी से चाकू से काटा जा सकता है।
धातु में कौन सा गुण पाया जाता है?सामान्यतः धातु चमकीले, प्रत्यास्थ, आघातवर्धनीय और सुगढ होते हैं। धातु उष्मा और विद्युत के अच्छे चालक होते हैं जबकि अधातु सामान्यतः भंगुर, चमकहीन और विद्युत तथा ऊष्मा के कुचालक होते हैं।
किस धातु को चाकू से काटा जा सकता है और क्यों?Detailed Solution
सही उत्तर सोडियम है। सोडियम एक क्षार धातु है और इतनी मुलायम होती है कि इसे चाकू से आसानी से काटा जा सकता है। यह एक नरम ठोस होता है जिसका गलनांक कम होता है और इसे चाकू से काटा जा सकता है। जबकि लोहा और सोना कठोर और सघन धातुएं हैं जो लचीले और तन्य होते हैं।
कौन सी धातु को हम चाकू से काट सकते हैं?जिन धातुओं को स्टील के चाकू से आसानी से काटा जा सकता है उनमें लीथियम, सोडियम, पोटेशियम आदि प्रमुख रूप से गिनी जा सकती हैं। हमारा दैनिक अनुभव इससे कुछ जुदा है - ताँबे के पतले तार, एल्यूमिनियम के तार या फॉइल, रांगा, टिन आदि धातुओं को हम चाकू या साधारण कैंची से आसानी से काट लेते हैं।
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