कामकाजी महिलाओं की समस्याओं का निदान कैसे किया जा सकता है? - kaamakaajee mahilaon kee samasyaon ka nidaan kaise kiya ja sakata hai?

समस्याओं में फँसी कामकाजी महिलाएँ

- डॉ. भारती जोशी

महिला स्वयं पर खर्च करने में भी ऊहापोह की स्थिति में रहती है। घरेलू कार्यों तथा बच्चों की देखभाल से तो कभी मुँह मोड़ नहीं सकती। सारा दिन दफ्तर में पुरुषों के साथ बराबरी का कार्य करने के बावजूद घर में पति का सहयोग अर्जित करने का उसमें कोई साहस नहीं होता है। बच्चों की परवरिश के लिए यदि समय नहीं दे सकती है तो हीनता बोध से महिला ही ग्रस्त रहेगी। बच्चों में यदि कोई गलत आदत पनप जाए या वे कुसंस्कारित हो जाएँ तो इसकी जिम्मेदार वही मानी जाएगी। दफ्तर के आवश्यक कार्यों में भी यदि नियत समय से अधिक संलग्न रही तो परिवार के सदस्यों की नजर हमेशा उसके चरित्र के इर्द-गिर्द ही मँडराती रहेगी।




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Published in Journal

Year: Jan, 2019
Volume: 16 / Issue: 1
Pages: 371 - 374 (4)
Publisher: Ignited Minds Journals
Source:
E-ISSN: 2230-7540
DOI:
Published URL: http://ignited.in/I/a/68752
Published On: Jan, 2019

Article Details

कामकाजी महिलाओ की समस्याएं:- एक समाजशास्त्रीय अध्ययन | Original Article


भारतीय कामकाजी महिलाओं की समस्याएँ

कामकाजी महिलाओं की समस्याओं का निदान कैसे किया जा सकता है? - kaamakaajee mahilaon kee samasyaon ka nidaan kaise kiya ja sakata hai?

jara sochiye

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(घर में सम्मान पाने ,घरेलु हिंसा से बचने,एवं परिजनों के अपमान से बचने के लिए जब एक महिला आत्म निर्भर होने के लिए घर से बाहर निकलती है, तो उसे समाज और पुरुष सत्तात्मक सोच रखने वालों से सामना करना पड़ता है,अनेक लोगों की टीका टिप्पड़ियों,अर्थात तानाकशी, घूरती निगाहों से सामना करना पड़ता है.)

भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति सदियों से दयनीय रही है, उनका हर स्तर पर शोषण और अपमान होता रहा है. पुरुष प्रधान समाज होने के कारण सभी नियम, कायदे, कानून पुरुषों के हितों को  ध्यान में रख कर बनाये जाते रहे. खेलने और शिक्षा ग्रहण करने की उम्र में बेटियों की शादी कर देना और फिर बाल्यावस्था में ही गर्भ धारण कर लेना, उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित होता रहा है. महिला को  सिर्फ बच्चा पैदा करने की मशीन बना कर रखा गया (आज भी पिछड़े क्षेत्रों में यह परम्परा जारी है). परिणाम स्वरूप प्रत्येक महिला अपने जीवन में दस से बारह बच्चो की माँ बन जाती थी, इस प्रक्रिया के कारण उन्हें कभी स्वास्थ्य को ठीक करने के लिए पर्याप्त अवसर नहीं मिलता था. अनेकों बार,कमजोर शरीर के रहते गर्भ धारण के दौरान अथवा प्रसव के दौरान उन्हें अपना जीवन भी गवाना पड़ता था, स्वास्थ्य ठीक न रहने के कारण जीवन अनेक बीमारियों के साथ व्यतीत करना पड़ता था. सदियों तक देश में विदेशी शासन होने के कारण उनकी समस्याओं की कही कोई सुनवाई भी नहीं की गयी, शिक्षा के अभाव में वे इसे ही अपना नसीब मान कर सहती रहती थी. इसके अतिरिक्त दहेज़ प्रथा जैसी कुरीतियों के कारण भी महिलाओं को कभी भी सम्मान से नहीं देखा गया. अक्सर परिवार में पुत्री के होने को ही अपने दुर्भाग्य की संज्ञा दी जाती रही है.बहू के मायके वालों के साथ अपमान जनक व्यव्हार आज भी जारी है.इसी कारण परिवार में लड़की के जन्म को टालने के लिए हर संभव प्रयास किये जाते रहे, जो आज कन्या भ्रूण हत्या के रूप में भयानक रूप ले चुका है. देश को आजादी मिलने के पश्चात् भारतीय संविधान ने महिलाओं के प्रति संवेदना दिखाते हुए, उन्हें पुरुषों के समान अधिकार प्रदान किये, और आजाद देश की सरकारों ने महिलाओं के हितों में समय समय पर अनेक कानून बनाये, शिक्षा के प्रचार प्रसार को महत्व दिया गया और बच्चियों को पढने के लिए प्रेरित किया गया  इस प्रकार से जनजागरण होने के कारण महिलाओं ने अपने हक़ को पाने के लिए और पुरुषों द्वारा किये जा रहे अन्याय के विरुद्ध अनेक आन्दोलनो के माध्यम से अपनी आवाज बुलंद की,और समाज में पुरुषों के समान अधिकारों की मांग की. देश में महिला के हितों के लिए महिला आयोग का गठन किया गया, जो महिलाओं के प्रति होने वाले अन्याय के लिये संघर्ष करती है,उनके कल्याण के लिए शासन और प्रशासन से संपर्क कर महिलाओं की समस्याओं का समाधान कराती हैं.

२०१२ में प्राप्त आंकड़ों के अनुसार कामकाजी महिलाओं की कुल भागीदारी मात्र २७% है. अर्थात इतना सब कुछ होने के बाद भी, आज भी महिलाओं  की स्थिति में बहुत कुछ सुधार की आवश्यकता है, अभी तो अधिकतर महिलाओं को यह आभास भी नहीं है की वे शोषण का शिकार हो रही हैं और स्वयं एक अन्य महिला का शोषण करने में पुरुष समाज को सहयोग कररही है.

महिलाओं को परिवार और समाज में अपना सम्मान पाने के लिए आर्थिक रूप से निर्भर होने की सलाह दी जाती है.यद्यपि प्राचीन काल से मजदूर वर्ग की महिलाये अनेक प्रकार के काम काज करती रही हैं,कुछ क्षेत्रों में जैसे घरों, सड़कों इत्यादि की साफ सफाई,कपडे धोना,नर्सिंग(दाई),सिलाई बुनाई,खेती बाड़ी सम्बन्धी कार्य इत्यादि में तो इनका एकाधिकार रहा है.अतिशिक्षित परिवारों,एवं उच्च शिक्षित परिवारों की महिलाएं पहले से ही उच्च पदों पर आसीन होकर कामकाज करती रही हैं. जहाँ तक उच्च शिक्षित परिवारों की महिलाओं की बात की जाय तो उन परिवारों में महिलाएं अपेक्षाकृत हमेशा से ही सम्मान प्राप्त रही हैं. परन्तु मजदूर वर्ग में शिक्षा के अभाव में रूढीवादी समाज के कारण आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होते हुए भी अपमानित होती रहती थीं और आज भी विशेष बदलाव नहीं हो पाया है. महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने,और शिक्षित होने  के चलते मध्य वर्गीय परिवार की महिलाएं भी नौकरी, दुकानदारी अर्थात व्यापार, ब्यूटी पारलर,डॉक्टर जैसे व्यवसायों में पुरुषो के समान कार्यों को अंजाम देने लगी हैं.डॉक्टर,वकील,आई.टी.,सी.ए.पोलिस जैसे क्षेत्रों में आज महिलाओं की बहुत मांग है. परन्तु हमारे समाज का ढांचा कुछ इस प्रकार का है की महिला को कामकाजी होने के बाद भी नए प्रकार के संघर्ष से झूझना पड़ता है,अब उन्हें अपने कामकाज के साथ घर की जिम्मेदारी भी यथावत निभानी पड़ती है. उसके लिए उन्हें सवेरे जल्दी उठ कर अपने परिवार अर्थात बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों के लिए भोजन इत्यादि की व्यवस्था करनी होती है, बच्चों के सभी कार्यों को शीघ्र निबटाना पड़ता है,उसके पश्चात् संध्या समय लौटने के बाद गृह कार्यों में लगना होता है.क्योंकि परिवार के पुरुष आज भी घर के कार्यों की जिम्मेदारी सिर्फ घर की महिला की ही मानते हैं.कुछ पुरुष तो कुछ भी सहयोग करने को तैयार नहीं होते, यदि महिला उन पर दबाब बनाती है तो अक्सर पुरुषो  को कहते सुना जाता है, की अपनी नौकरी अथवा कामकाज छोड़ कर घर के कार्यों को ठीक से निभाओं,महिला की जिम्मेदारी घर सँभालने की होती है. मजबूरन महिला दो पाटन के बीच पिस कर रह जाती है.जो महिलाये आर्थिक रूप से सक्षम होती है वे अवश्य घर के कार्यों को निबटाने के लिए, बच्चो के कार्यों में सहयोग के लिए आया और कुक की व्यवस्था कर लेती हैं, परन्तु गरीब एवं अल्प मध्य वर्गीय परिवारों की महिलाओं के लिए आज भी यह सब कुछ संभव नहीं है.

महिला के लिए नियोक्ता भी सहज नहीं दीखता,क्योकि हमारे देश के कानून में महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी नियोक्त पर होती है, वह उससे देर रात तक कार्य नहीं ले सकता,उसे सवेतन मातृत्व अवकाश भी देना होता है, पुरुष कर्मियों के समान भारी कार्यों को उन्हें नहीं सौंप सकता, व्यासायिक कार्यालय से बाहर के कार्यों को भी उनसे कराना उनकी सुरक्षा का ध्यान रखते हुए जोखिम पूर्ण होता है इत्यादि. परन्तु अनेक पदों पर जैसे यात्रियों को घर जैसा अनुभव देने के लिए एयर होस्टेस, महिला एक ममता की प्रतिमूर्ति होने के कारण अस्पतालों में नर्स, आगंतुकों, ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए बड़े बड़े वाणिज्यिक संस्थानों के स्वागत कक्ष में रिसेप्निष्ट, मार्केटिंग के लिए सेल्स गर्ल, छोटे छोटे ढाबो में ग्राहकों को घर के खाने जैसा स्वाद की कल्पना करने के लिए अधेड़ या बूढी महिला को नियुक्त करना,उनकी मजबूरी भी होती है.महिलाओं की ईमानदारी,बफादारी,कर्मठता के कारण भी महिलाओं की नियुक्ति करना  नियोक्ता के हित में होता है.

घर में सम्मान पाने ,घरेलु हिंसा से बचने,एवं परिजनों के अपमान से बचने के लिए जब एक महिला आत्म निर्भर होने के लिए घर से बाहर निकलती है, तो उसे समाज और पुरुष सत्तात्मक सोच रखने वालों से सामना करना पड़ता है,अनेक लोगों की टीका टिप्पड़ियों,अर्थात तानाकशी, घूरती निगाहों से सामना करना पड़ता है.

उद्दंड व्यक्तियों की छेड़खानियों से बचने के लिए उपक्रम करने होते हैं,कभी कभी तो बलात्कार और प्रतिरोध स्वरूप हत्या का शिकार भी होना पड़ता है.

जब वह अपने कार्य स्थल अर्थात ऑफिस,फेक्ट्री पर पहुँचती है तो उसे अपने सहयोगियों और बॉस की दुर्भावनाओं का शिकार होना पड़ता है.

संध्या समय अपने कार्य स्थल से लौटते समय भी उसे अनेक अनहोनी घटनाओं की आशंका से ग्रस्त रहना पड़ता है.उसके मन में व्याप्त असुरक्षा की भावना आज भी उसकी उसके लिए जीवन को कष्ट दायक बनाये हुए है.

पुलिस से भी उसे कोई सकारात्मक पहल की उम्मीद नहीं होती अनेक बार तो वह उनके दुर्व्यवहार का भी शिकार हो जाती है.

महिलाओं को अपने वेतन के मामले में भी शोषण का शिकार होना पड़ता है, जब उन्हें पुरुषों के मुकाबले (गुप चुप तरीके से—गैर कानूनी होने के कारण) कम वेतन के लिए कार्य करना पड़ता है.

पुरुष प्रधान समाज की सोच में अभी उल्लेखनीय परिवर्तन देखने को नहीं मिलता,साथ ही हमारी लचर न्याय व्यवस्था के कारण,यदि कोई महिला सरेआम किसी अत्याचार का शिकार होती है तो समाज के लोग उसका बचाव करने से भी डरते हैं. अतः उसे समाज और भीड़ से भी अपने पक्ष में माहौल मिलने की सम्भावना कम ही रहती है.यदि यह कहा जाय की जिस शोषण की स्थिति से निकलने के लिए वह घर की चार  दिवारी से बाहर आई थी, उस  मकसद में  सफल होना अभी दूर ही दिखाई देता है.

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भारत में कामकाजी महिलाओं की स्थिति क्या है वर्णन करें?

भारतीय कामकाजी महिला का संबंध समाज के मध्यम वर्ग या निम्न मध्य वर्ग से होता है । उच्च-वर्ग की स्त्रियाँ जीवन निर्वाह के लिए कार्य नहीं करती । कार्य करने के पीछे उनका उद्देश्य समय बिताना होता है । जबकि घरेलू कार्यो में भी उनकी कोई भूमिका नहीं होती, घर के काम-काज उनके लिए अज्ञात होते हैं ।

कामकाजी महिलाओं का क्या अर्थ है?

कामकाजी महिला शब्द का प्रयोग प्रायः घर से बाहर नौकरी करने वाली महिला के सन्दर्भ में किया जाता है । वर्तमान समय में महिलाएँ घर परिवार के साथ-साथ बाहर के क्षेत्रों में भी कदम रख रही हैं ।

भारत में स्त्रियों की स्थिति में सुधार लाने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?

इसके अतिरिक्त अनैतिक व्यापार( निवारण) अधिनियम 1956, दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961, कुटुम्ब न्यायालय अधिनियम 1984, महिलाओं का अशिष्ट रूपण ( प्रतिषेध) अधिनियम 1986, सती निषेध अधिनियम 1987, राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990, गर्भधारण पूर्वलिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005, बाल ...

महिलाओं की मुख्य समस्या क्या है?

(इ) वेश्यावृत्ति-गरीबी, धन की लालसा, दहेज, बाल-विवाह, विधवा पुनर्विवाह पर मनाही इत्यादि कारणों से भारत में वेश्यावृत्ति और कालगर्ल्स की समस्या महिलाओं के लिए बंद समाज की मानसिकता के कारण गम्भीर होती जा रही है। (उ) पर्दा प्रथा-भारतीय स्त्रियों की एक बड़ी समस्या पर्दा प्रथा भी है।