काका कालेलकर कमीशन एवं मंडल कमीशन किस वर्ग के उत्थान के लिए बनाया गया है - kaaka kaalelakar kameeshan evan mandal kameeshan kis varg ke utthaan ke lie banaaya gaya hai

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC)

 Last Updated: July 2022 

परिचय

  • 102वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2018 राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) को संवैधानिक दर्जा प्रदान करता है।
  • इसे सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के बारे में शिकायतों तथा कल्याणकारी उपायों की जाँच करने का अधिकार प्राप्त है।
  • इससे पहले NCBC सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तहत एक सांविधिक निकाय था।

पृष्ठभूमि

  • 1950 और 1970 के दशक में काका कालेलकर और बी.पी. मंडल की अध्यक्षता में क्रमशः दो पिछड़ा वर्ग आयोगों की नियुक्ति की गई।
    • काका कालेलकर आयोग को प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग के रूप में भी जाना जाता है।
  • 1992 के इंद्रा साहनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह लाभ और सुरक्षा के उद्देश्य से विभिन्न पिछड़े वर्गों के समावेशन और बहिष्करण पर विचार करने तथा जाँच एवं सिफारिश के लिये एक स्थायी निकाय का गठन करे।
  • इन निर्देशों के अनुपालन में संसद ने वर्ष 1993 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम पारित किया और NCBC का गठन किया।
  • वर्ष 2017 में 123वाँ संविधान संशोधन विधेयक संसद में प्रस्तुत किया गया ताकि पिछड़े वर्गों के हितों को अधिक प्रभावी ढंग से संरक्षित किया जा सके।
    • अगस्त 2018 में इस विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति मिली और NCBC को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया।
  • संसद द्वारा एक अलग विधेयक पारित कर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 1993 को निरस्त कर दिया गया है। अतः 1993 का अधिनियम अब अप्रासंगिक हो गया है।

NCBC की संरचना

  • आयोग में पाँच सदस्य होते हैं जिसमें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा तीन अन्य सदस्य शामिल हैं। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित एवं उसके मुहरयुक्त आदेश द्वारा होती है।
  • अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों के पद की सेवा शर्तें तथा कार्यकाल का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।

काका कालेलकर कमीशन एवं मंडल कमीशन किस वर्ग के उत्थान के लिए बनाया गया है - kaaka kaalelakar kameeshan evan mandal kameeshan kis varg ke utthaan ke lie banaaya gaya hai

संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 340 अन्य बातों के साथ-साथ "सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों" की पहचान करने, उनके पिछड़ेपन की स्थितियों को समझने और उनके सामने आने वाली कठिनाइयों को दूर करने के लिये सिफारिशें करने की आवश्यकता से संबंधित है।
  • 102वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा भारतीय संविधान में दो नए अनुच्छेदों 338 B और 342 A को जोड़ा गया। यह संशोधन अनुच्छेद 366 में भी कुछ परिवर्तन करता है।
  • अनुच्छेद 338 B सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों से संबंधित शिकायतों और कल्याणकारी उपायों की जाँच करने के लिये NCBC को अधिकार प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 342 A राष्ट्रपति को विभिन्न राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को निर्दिष्ट करने का अधिकार प्रदान करता है। इन वर्गों को निर्दिष्ट करने के लिये वह संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श कर सकता है। हालाँकि यदि पिछड़े वर्गों की सूची में संशोधन किया जाना है तो इसके लिये संसद द्वारा अधिनियमित कानून की आवश्यकता होगी।

शक्तियाँ एवं कार्य

  • NCBC सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को संविधान या किसी अन्य कानून के तहत प्रदत्त संरक्षण उपायों के कार्यान्वयन का मूल्यांकन करने हेतु संबंधित सभी मामलों की जाँच एवं निगरानी करता है।
  • सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के सामाजिक-आर्थिक विकास में भाग लेता है तथा सलाह देता है और संघ एवं किसी भी राज्य के अंतर्गत उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करता है।
  • यह आयोग सुरक्षापायों के कार्यान्वयन पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है। इसके अलावा आयोग जब भी उचित समझे अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत कर सकता है। राष्ट्रपति द्वारा संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष यह रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है।
  • इस तरह की कोई भी रिपोर्ट या उसका कोई हिस्सा, जो किसी भी राज्य सरकार से संबंधित हो, की एक प्रति राज्य सरकार को भेजी जाएगी।
  • NCBC सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के संरक्षण, कल्याण एवं विकास तथा उन्नति के संबंध में ऐसे अन्य कार्यों का भी निर्वहन करता है, जिन्हें संसद द्वारा बनाए गए कानून के प्रावधानों के अधीन राष्ट्रपति द्वारा विशेष रूप से उल्लिखित किया गया हो।
  • किसी भी मामले पर सुनवाई के दौरान इसे दीवानी न्यायालय के समान शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।

नया आयोग अपने पुराने स्वरूप से किस प्रकार अलग है?

  • नए अधिनियम ने यह स्वीकार किया है कि पिछड़े वर्गों को आरक्षण के अलावा विकास की भी आवश्यकता है।
  • अधिनियम में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (Socially and Educationally Backward Classes-SEdBCs) के विकास और विकास प्रक्रिया में नए NCBC की भूमिका से संबंधित प्रावधान किये गए हैं।
  • नए NCBC को पिछड़े वर्गों की शिकायतों के निवारण का अतिरिक्त कार्य सौंपा गया है।
  • अनुच्छेद 342 (A) पिछड़े वर्गों की सूची में किसी भी समुदाय को शामिल करने या हटाने के लिये संसदीय सहमति की अनिवार्यता को अधिक पारदर्शी बनाता है।
  • सूची-समावेशन और आरक्षण के अलावा यह विकास एवं कल्याण के सभी मापदंडों में समानता के प्रति प्रत्येक समुदाय के व्यापक तथा समग्र विकास एवं उन्नति को आवश्यक बनाता है।

मुद्दे

  • ऐसा माना जा रहा है कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के नए संस्करण द्वारा विश्वसनीय और प्रभावी सामाजिक न्याय व्यवस्था प्रदान किये जाने की संभावना नहीं है।
  • नए NCBC की सिफारिशें सरकार के लिये बाध्यकारी नहीं हैं।
  • चूँकि इसे पिछड़ेपन को परिभाषित करने का प्राधिकार प्राप्त नहीं है, इसलिये यह विभिन्न जातियों द्वारा उन्हें पिछड़े वर्गों में शामिल किये जाने के लिये की जा रही मांगों के रूप में व्याप्त वर्तमान चुनौती का समाधान नहीं कर सकता है।
  • NCBC की व्यापकता को बनाए रखने तथा निकाय की इसके मूल (अनुच्छेद 340) से संबद्धता को समाप्त कर सरकार ने संविधान विशेष संरक्षण की संपूर्ण योजनाओं को खतरे में डाल दिया है।
  • विशेषज्ञ निकाय की जो विशेषताएँ सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित की गईं थीं, वे नए NCBC की संरचना में उपलब्ध नहीं हैं।
  • हाल में जारी कुछ आँकड़ों से एस.सी./एस.टी. और ओबीसी श्रेणियों के विषम प्रतिनिधित्व का पता चलता है, ऐसे में मात्र संवैधानिक स्थिति तथा अधिक अधिनियमों से ज़मीनी स्तर पर समस्याओं का समाधान नहीं होगा।
  • अनुच्छेद 338 B (5) NCBC के परामर्श से पिछड़े वर्ग की सूची के आवधिक संशोधन संबंधी सर्वोच्च न्यायालय के अध्यादेश पर मौन है।

सुझाव

  • इस संरचना में एक विशेषज्ञ निकाय की वे सुविधाएँ प्रदर्शित होनी चाहिये जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनिवार्य की गई हैं।
  • सरकार द्वारा जातिगत जनगणना के निष्कर्षों और आयोग की सिफारिशों संबंधी जानकारी सार्वजनिक डोमेन पर उपलब्ध कराई जानी चाहिये।
  • आयोग की संरचना में लैंगिक संवेदनशीलता और हितधारकों के प्रतिनिधित्व को दर्शाया जाना चाहिये।
  • वोट बैंक की राजनीति के स्थान पर मूल्य आधारित राजनीति के मार्ग का अनुसरण किया जाना चाहिये ताकि आरक्षण का लाभ केवल समाज के पिछड़े वर्गों को ही मिल सके।