जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad) का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, कवि परिचय एवं भाषा शैली और उनकी प्रमुख रचनाएँ एवं कृतियाँ। जयशंकर प्रसादर का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय नीचे दिया गया है। Show
जयशंकर प्रसाद का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं पर प्रकाश डालिए।जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिन्दी साहित्य के बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार थे। द्विवेदी युग की स्थूल और इतिवृत्तात्मक कविता को सूक्ष्मभाव-सौन्दर्य, रमणीयता एवं माधुर्य से परिपूर्ण कर प्रसाद जी ने नवयुग का सूत्रपात किया। वे छायावाद के प्रवर्तक, उन्नायक तथा प्रतिनिधि कवि होने के साथ ही युग-प्रवर्तक नाटककार, निबन्धकार, उपन्यासकार एवं कहानीकार के रूप में भी जाने जाते हैं। जयशंकर प्रसाद का जीवन-परिचयजयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के प्रसिद्ध सुघनी साहू नामक वैश्य परिवार में सन 1889 ई. में हुआ था। इनके पिता का नाम देवीप्रसाद था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा तो ठीक प्रकार हुई, परन्तु रचनाएँप्रसाद जी एक श्रेष्ठ कवि, नाटककार, निबन्धकार और आलोचक थे। इनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-
प्रसाद जी के महाकाव्य ‘कामायनी‘ में मनु, श्रद्धा और इड़ा की कथा है, लेकिन सूक्ष्म रूप से यह कथा मानव-जीवन के अनेक मनोवैज्ञानिक पहलुओं के लिए मानव विकास की कथा हो गई है। इसमें मनु ‘मन’ के, श्रद्धा ‘हृदय’ की और इडा ‘बुद्धि’ की प्रतीक है। इच्छा, ज्ञान और क्रिया के सामंजस्य द्वारा ही आनन्द की प्राप्ति होती है। ‘आँसू‘ इनका विरह काव्य है जिसमें कवि ने युवा जीवन की मादक स्मृतियों को व्यक्त किया है। ‘चित्राधार‘ ब्रजभाषा में रचित काव्य संग्रह है जबकि ‘लहर‘ में भावात्मक कविताएँ संकलित हैं। झरना में प्रसादजी ने सौन्दर्य एवं प्रेम की अनुभूतियाँ वर्णित की हैं। हिन्दी साहित्य में स्थानप्रसाद जी एक ऐसी विभूति हैं जिसे पाकर कोई भी भाषा और साहित्य स्वयं को गौरवान्वित समझेगा। इनकी ‘कामायनी’ तुलसी के ‘रामचरितमानस’ के बाद हिन्दी साहित्य की सबसे बड़ी उपलब्धि है। आचार्य नन्द दुलारे वाजपेयी ने लिखा है— “भारत के इने-गिने आधुनिक श्रेष्ठ साहित्यकारों में प्रसाद जी का पद सर्वत्र ऊंचा रहेगा।” उन्होंने प्रबन्ध काव्य में भी चित्र प्रधान भाषा और लाक्षणिक शैली का सफलतापूर्वक प्रयोग करते हुए अपनी विलक्षण काव्य प्रतिभा का परिचय दिया है। उपयुक्त उदाहरण देते हुए सिद्ध कीजिए कि प्रसाद जी श्रेष्ठ छायावादी कवि हैं।अथवा प्रसाद की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। छायावाद का आरम्भ श्रेष्ठ कवि जयशंकर प्रसाद से माना जाता है। छायावाद के सुन्दरतम रूप के दर्शन हमको प्रसाद जी के आँसू, झरना तथा कामायनी में होते हैं। इनकी रचनाओं में छायावाद के सभी लक्षण पाए जाते हैं। इसलिए छायावादी काव्य के प्रवर्तक कवियों में प्रसाद जी का स्थान शीर्षस्थ माना जाता है। इनकी काव्यगत विशेषताएँ अग्रवत हैं :- शृंगारिकताछायावाद में शृंगार अशरीरी तथा सौम्य होकर आया है। इसकी अभिव्यक्ति दो प्रकार से हुई— प्रथम- प्रकृति के प्रतीकों द्वारा अर्थात् प्रकृति पर नारी भाव का आरोप करते हुए और, द्वितीय- नारी के सूक्ष्म सौन्दर्य को प्रमुखता देकर। यथा : नील परिधान बीच सुकुमार, व्यक्तिवाद की प्रधानताव्यक्तिवाद से अभिप्राय है— विषयोन्मुखता के स्थान पर कवि अपने व्यक्तित्व की चेतना की विशेष रूप से अभिव्यक्ति करे। रो-रोकर सिसक कर कहता मैं करुण कहानी। प्रकृति पर चेतना का आरोपप्रसादजी ने प्रकृति को सचेत मानकर उसका बड़ा सजीव चित्रण प्रस्तुत किया है। प्रसाद जी कामायनी में लिखते हैं : धीरे-धीरे हिम आच्छादन, यहाँ वनस्पतियों पर चेतना का आरोप किया गया है। रहस्यवादी भावनाप्रसाद जी ने कबीर व जायसी की रहस्यवादी भावना को ग्रहण न करके प्रकृति के सौन्दर्य से प्रभावित होकर आध्यात्मिक आधार खोजा। उदाहरण- उस असीम नीले अंचल में, अलंकारों का प्रयोगप्रसाद जी ने मानवीकरण, विरोध-चमत्कार, विशेषण-विपर्यय, ध्वन्यर्थ व्यंजना आदि पाश्चात्य अलंकारों का प्रयोग किया है। ‘विशेषण विपर्यय‘ का उदाहरण देखिए : “अभिलाषाओं की करवट फिर सुप्त व्यथा का जगना।” ‘विरोध-चमत्कार‘ : “अरी आधि मधुमय अभिशाप” मूर्त में अमूर्त तथा अमूर्त में मूर्त की भावनाछायावादी कवियों ने मूर्त वस्तुओं को अमूर्त भावो के रूप में चित्रित किया है। उदाहरण- अभिलाषाओं की करवट, नवीन छन्दों का प्रयोग भावों के अनरूप छन्दों का चयन करना प्रसाद जी की अपनी मौलिक विशेषता है। उन्होंने अपनी कामायनी, लहर और आँसू कृतियों में नवीन-नवीन छन्दों का प्रयोग किया है। प्रतीकात्मक शैलीछायावादी कवियों ने अपने भावों को प्रतीकों में प्रतिष्ठित करके गम्भीर बना दिया है। छायावादी शैली की स्पष्ट झलक प्रसाद के काव्य में मिलती है। उदाहरण- झंझा झकोर गर्जन था, निष्कर्ष: छायावादी शैली की सम्पूर्ण विशेषताएँ प्रसाद जी के काव्य में पाई जाती हैं। इसी कारण यह सिद्ध होता है कि महाकवि ‘जयशंकर प्रसाद‘ जी एक श्रेष्ठ छायावादी कवि हैं।। संकलित अंश ‘श्रद्धा-मन’ के आधार पर श्रद्धा के सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।अथवा कामायनी के संकलित अंश ‘श्रद्धा-मनु’ में श्रद्धा के सौन्दर्य का जो वर्णन किया गया है उसका सोदाहरण विवेचन कीजिए। कामायनी जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित छायावाद काल का खड़ी बोली में रचित प्रसिद्ध महाकाव्य है जिसमें कुल मिलाकर 15 सर्ग हैं। इनमें से एक सर्ग का नाम है ‘श्रद्धा‘ जिसका कुछ अंश यहाँ ‘श्रद्धा-मनु’ शीर्षक से संकलित किया गया है। जल-प्रलय में देव सृष्टि नष्ट हो गई और मनु शेष बच गए। वे अपनी गुफा के समीप निर्जन स्थान पर बैठे तप में लीन थे तभी गांधार देश की निवासिनी श्रद्धा उधर घूमती हुई आई और मन को अकेले वैठे देखकर उनसे उनका परिचय पूछने लगी। मनु ने जब कुतूहलवश अपना दृष्टि ऊपर उठाई तो उन्हें अपने समक्ष एक अत्यन्त सुन्दर युवती खडी दिखाई दी। वह श्रद्धा कैसी थी, उसका अंग-प्रत्यंग कैसा मनमोहक था तथा मनु पर उसके रूप सौंदर्य का क्या प्रभाव पडा, इसका आकर्षक चित्र प्रसादजी ने यहाँ अंकित किया है। मनु ने देखा कि उनके समक्ष सुकुमार अंगों वाली एक युवती खड़ी है जिसका रूप नेत्रों को सम्मोहित करने वाले “इन्द्रजाल (जादू) की भाँति था। वह फूलो से लदाहुइएकसुकुमारलता जसा प्रतीत हो रही थी तथा नीले वस्त्रों में उसकी अंग कान्ति झलक रही थी। इस सारे दृश्य को कवि ने निम्न पंक्तियों में चित्रित किया – और देखा वह सुन्दर दृश्य, गान्धार देश की भेड़ों के चमड़े से बने हुए वस्त्र उसके अंगों पर शोभा पा रहे थे। नील परिधान धारणा किए हए श्रद्धा के अंगों की कान्ति ऐसी झलक रही थी जैसे बादलों के वन में गुलाबी रंग की आभा वाले बिजली के फूल खिले हुए हों – नील परिधान बीच सुकुमार, श्रद्धा के काले-काले केशों की पृष्ठभूमि में सुन्दर मुखमण्डल ऐसा दमक रहा था मानो संध्याकाल का सूर्य दमक रहा हो। श्रद्धा के तेजोद्दीप्त मुखमण्डल का वर्णन करता हुआ कवि कहता है: आह! वह मुख पश्चिम के व्योम, श्रद्धा के घुंघराले केश उसके कन्धों पर पड़े हुए थे जो ऐसे प्रतीत होते थे मानो छोटे-छोटे बादल मुखरूपी चन्द्रमा से लावण्यरूपी अमृत भरने के लिए उसके चारों ओर घिर आए हों : घिर रहे थे धुंघराले बाल, कवि ने श्रद्धा के सुरम्य लाल-लाल अधरों पर छाई हुई मुस्कान की तुलना सूरज की पहली किरण से की है, जो किसलयों पर स्थिर हो गई है : और उस मुख पर वह मुस्कान, श्रद्धा अपूर्व सुन्दरी थी। उसके इस आकर्षक सौन्दर्य को देखकर मन को ऐसा लगा जैसे उनके निराश जीवन में भी अब वसन्त की बहार आ जाएगी। बादलों के घने अन्धकार में चमकने वाली बिजली तथा तपन में शीतलता प्रदान करने वाली वायु के झोंके जैसी श्रद्धा मनु को प्रतीत हो रही थी। वे उससे पूछते हैं : कौन हो तुम बसन्त के दूत, जैसे पतझड में कोयल की मधुर कूक आशा का संचार करती है, बादलों के घने अन्धकार में बिजली चमककर मार्ग दिखा देती है और धूप की तपन से व्याकुल व्यक्ति को वायु का शीतल झोंका ठण्डक पहुँचाता है ठीक उसी प्रकार श्रद्धा के रूप-सौन्दर्य ने मन को प्रभावित किया है। प्रसादजी ने श्रद्धा के सौन्दर्य का चित्रण छायावादी पद्धति पर किया है। जिसमें स्थूलता के स्थान पर सूक्ष्मता एवं वायवीयता है तथा मांसलता का नितान्त अभाव है। ‘बीती विभावरी’ नामक गीत का मूल भाव अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।अथवा ‘बीती विभावरी’ नामक गीत के काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए। ‘बीती विभावरी‘ कविवर जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित एक जागरण गीत है जो उनके काव्य संकलन ‘लहर’ में संकलित है। रात बीत गई है, तारे डूब रहे हैं, प्रभात बेला है, शीतल मन्द सुगन्धित पवन बह रहा है। कलियाँ खिलने लगी हैं, किन्तु नायिका अभी तक सो रही है। उसे जगाती हुई सखी कहती है- अरी सखी! अब तो जाग और जागकर इस मधुर प्रातःकाल के सौन्दर्य का अवलोकन कर। देख आकाश-रूपी पनघट में उषारूपी स्त्री ताररूपी धड़ों को इबो रही है अर्थात उषाकाल हो गया है, आकाश में डूबने लगे हैं, अतः तुझे नींद त्याग कर जाग जाना चाहिए- बीती विभावरी जाग री। अरी देख इस लता ने किसलयों का कैसा सुकुमार अंचल धारण किया है। इसकी अधखिली कलियों रूपी गागर में मकरन्द रस भर गया है। शीतल पवन से इसका किसलयों का आंचल हिल रहा है, पक्षी मधुर कलरव कर रहे हैं : खग कुल कुल कुल सा बोल रहा, अरी सखी! जागकर इस मनोहर वातावरण का आनन्द ले। त अपने अधरों में मधुर राग बन्द किए हुए अब तक सो रही है। तेरे केशों में चन्दन की सुगन्ध है, आँखों में नींद की खुमारी है। इसे त्यागकर जाग जा और नव स्फूर्ति एवं नवचेतना से युक्त होकर इस प्रभातकाल के सौन्दर्य का अवलोकन कर। प्रसाद का यह गीत जागरण गीत है तथा इसकी गणना हिन्दी के गिने-चुने मधुर गीतों में की जाती है। इसमें प्रभातकाल के हृदयस्पर्शी मनोहर सौन्दर्य का चित्रण किया गया है। आलंकारिक भाषा में लिखे गए इस गीत में सांगरूपक, उपमा, मानवीकरण एवं यमक अलंकारों का प्रयोग किया गया है; यथा :-
इस गीत में छायावादी भाषा-शैली का माधुर्य विद्यमान है। कोमलकान्त मधुर लाक्षणिक भाषा एवं प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग द्रष्टव्य है। शुद्ध साहित्यिक हिन्दी में लिखे गए इस गीत का शब्द चयन अद्वितीय है। सम्पूर्ण गीत में शृंगार रस एवं माधुर्य गुण का समावेश किया गया है। प्रसाद कृत ‘आँसू’ की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।अथवा ‘आँसू’ एक श्रेष्ठ विरह काव्य है-इस कथन की सोदाहरण विवेचना कीजिए। ‘आँसू‘ छायावाद के सर्वश्रेष्ठ कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित एक विरह काव्य है जिसमें कवि ने वियोग श्रृंगार की मार्मिक अभिव्यक्ति की है। यह प्रसाद की सर्वाधिक लोकप्रिय रचना है जिसमें वेदना की मादक टीस एवं प्रेमी हृदय की मादकता का सुन्दर निरूपण किया गया है। कविवर पन्त ने वियोग से ही कविता का जन्म मानते हुए लिखा है:- वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान। ‘आँसू’ की काव्यगत विशेषताओं का निरूपण निम्न शीर्षकों में किया जा सकता है :- प्रेम की मधुर स्मृतियों का चित्रणप्रिय के बिछुड़ जाने पर उससे सम्बन्धित स्मृतियाँ हृदय को व्याकुल किए हुए हैं। प्रेम की पीडा हदय को हिला रही है और रह-रहकर वे स्मृतिया टीस बनकर कसकने लगती हैं: बस गई एक बस्ती है, स्मृतियों की इसी हृदय में। प्रिय के सौन्दर्य का चित्रणप्रियतम का सौंदर्य रह-रहकर मन में कौंधता है। वह अपने चन्द्रमुख को घूघट में छिपाए हुए थे। शरीर बिजली का भांति दमक रहा था। लगता था जैसे बिजली ने चांदनी में स्नान किया हो, ऐसा था उसका वह पावन तन। कवी का चित्रण देखिये – चंचला स्नान कर आवे चन्द्रिका पर्व में जैसी विरह वेदना की तीव्रताआँसू में प्रेम जनित विरह की मार्मिक अभिव्यक्ति है। प्रेम की वह मधुर पीडा अब हृदय को हिला देती है। मैं कितना मूर्ख था जिसने वेदना को लेकर सुख से नाता तोड़ लिया। अब तो आंखों से निरन्तर आँसु झरते रहते हैं, हृदय में तूफान सी आकुलता रहती है: इस विकल वेदना को ले किसने सुख को ललकारा। रहस्यवादी भावनाआँसू पर रहस्यवाद का आरोप भी किया जाता है। कुछ आलोचकों के मन से आँसू में जिस विरह की अभिव्यक्ति है वह लौकिक विरह न होकर अलौकिक विरह है अर्थात यह विरह काव्य सामान्य नायक-नायिका से सम्बन्धित न होकर आत्मा का विरह परमात्मा के प्रति है। आंसू के कुछ छंद निश्चित रूप से आध्यात्मिकता का लबादा ओढ़े हुए हैं। यथा : शशि मुख पर बूंघट डाले अंचल में दीप छिपाए। प्रकृति चित्रणआँसू में प्रकृति का भी चित्रण किया गया है। संयोग काल में प्रकृति भी जैसे प्रेम के मानवीय क्रिया व्यापार करती दिखाई पड़ती है। यथा : हिलते द्रुमदल कल किसलय देती गलबाहीं डाली। प्रतीकात्मक शैलीआँसू में प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग करते हुए भावों को अभिव्यक्ति दी गई है। उदाहरण के लिए निम्न पंक्तियों में पतझड़, झाड़, क्यारी क्रमशः वेदना, अव्यवस्था, हृदय के प्रतीक हैं तथा किसलय, नवकुसुम क्रमशः प्रेम एवं उल्लास के प्रतीक हैं : पतझड़ था झाड़ खड़े थे सूखी सी फुलवारी में। लाक्षणिक भाषाआँसू में लाक्षणिक भाषा का प्रयोग प्रचुरता से किया गया है। हृदय में वेदना की जो हलचल है, यादों का जो तूफान है तथा स्मृतियों की जो टीस है उसका आकर्षक चित्र निम्न पंक्तियों में है : झंझा झकोर गर्जन था बिजली थी नीरद माला। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि आँसू एक उत्कृष्ट विरह काव्य है। जयशंकर प्रसाद की रचनाएं एवं कृतियाँजयशंकर प्रसाद की काव्य संग्रह- कामायनी, उर्वशी, आंसू, वन मिलन, प्रेम राज्य, अयोध्या का उद्धार, शोकोच्छवास, वश्रुवाहन, कानन कुसुम, प्रेम पथिक, करूणाचल, महाराणा का महत्व, चित्राधार, झरना, लहर।
प्रसाद के प्रथम नाटक ‘सज्जन‘ का कथानक महाभारत से लिया गया है, प्रसाद का अंतिम नाटक ‘ध्रुवस्वामिनी‘ है। हिन्दी साहित्य के अन्य जीवन परिचय- हिन्दी के अन्य जीवन परिचय देखने के लिए मुख्य प्रष्ठ ‘Jivan Parichay‘ पर जाएँ। जहां पर सभी जीवन परिचय एवं कवि परिचय तथा साहित्यिक परिचय आदि सभी दिये हुए हैं। जयशंकर प्रसाद की प्रथम काव्य रचना कौन सी है?प्रसाद जी की प्रारम्भिक रचनाओं का संग्रह 'चित्राधार' था, जिसका पहला संस्करण १९१८ ई॰ में प्रकाशित हुआ था; परंतु उनका पहला प्रकाशित काव्य-संग्रह 'कानन-कुसुम' था जिसका प्रथम प्रकाशन १९१३ ई॰ में हुआ था।
जयशंकर प्रसाद की काव्य कृति कौन कौन है?जयशंकर प्रसाद की काव्य रचनाएँ हैं: कानन कुसुम, महाराणा का महत्व, झरना (1918), आंसू, लहर, कामायनी (1935) और प्रेम पथिक । प्रसाद की काव्य रचनाएँ दो वर्गो में विभक्त है : काव्यपथ अनुसंधान की रचनाएँ और रससिद्ध रचनाएँ। आँसू, लहर तथा कामायनी दूसरे वर्ग की रचनाएँ हैं।
जयशंकर प्रसाद की पहली छायावादी रचना कौन सी है?प्रसाद जी द्वारा उनकी सर्वप्रथम छायावादी रचना “खोलो द्वार” जो की संन्न 1914 में इंदु में प्रकाशित की गयी थी। प्रसाद जी छायावाद के प्रतिस्थापक ही नहीं अपितु छायावादी पद्धति पर सरल संगीतमयी गीतों को लिखने वाले श्रेष्ठ कवि भी हैं। इनके द्वारा हिंदी में करुणालय द्वारा गीत नाटक का भी आरम्भ किया।
जयशंकर प्रसाद की सर्वश्रेष्ठ रचना कौन सी है?Answer: जयशंकर प्रसाद जी का सर्वश्रेष्ठ रचना कामायानी है।
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