चरखे को भारतीय राष्ट्रवाद का प्रतीक क्यों चुना गया? - charakhe ko bhaarateey raashtravaad ka prateek kyon chuna gaya?

नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्वपूर्ण मुद्दा क्यों बन गया था?


नमक एक बहुमूल्य राष्ट्रीय संपदा थी जिस पर औपनिवेशिक सरकार ने अपना एकाधिकार स्थापित कर लिया था। यह कानून द्वारा स्थापित एकाधिकार भारतीय जनता के लिए एक अभिशाप के समान था। इसलिए गाँधी जी ने औपनिवेशिक शासन के विरोध के लिए नमक का प्रतीक रूप में चुनाव किया और शीघ्र ही नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया।

नमक कानून के चुनाव के निम्नलिखित कारण थे:

  1. यह कानून ब्रिटिश भारत के सर्वाधिक घृणित कानूनों में से एक था। इसके अनुसार नमक के उत्पादन और विक्रय पर राज्य का एकाधिकार था।
  2. भारतीय विशेषत: जन-साधारण नमक कानून को घृणा की दृष्टि से देखता था। प्रत्येक घर में नमक भोजन का एक अपरिहार्य अंग था। किन्तु भारतीयों द्वारा घरेलू प्रयोग के लिए भी स्वयं नमक बनाए जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसी कारण सभी को ऊँचे मूल्यों पर दुकानों से नमक खरीदना पड़ता था।
  3. नमक पर राज्य का एकाधिकार अत्यधिक अलोकप्रिय था। जनसामान्य में इस कानून के प्रति असंतोष व्याप्त था।
  4. नमक उत्पादन पर सरकार के एकाधिकार ने लोगों को एक महत्त्वपूर्ण किन्तु सरलतापूर्वक उपलब्ध ग्राम-उद्योग से वंचित कर दिया था।


चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक क्यों चुना गया?


चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक इसलिए चुना गया क्योंकि यह जन सामान्य से संबंधित था और स्वदेशी व आर्थिक प्रगति का प्रतीक था। गाँधीजी जी स्वयं प्रतिदिन अपना कुछ समय चरखा चलाने में व्यतीत किया करते थे। वे अन्य सहयोगियों को भी चरखा चलाने के लिए प्रोत्साहित करते थे। गाँधीजी का मानना था कि आधुनिक युग में मशीनों ने मानव को गुलाम बनाकर श्रम को हटा दिया हैं। इससे गरीबों का रोज़गार उनसे छिन्न गया हैं। गाँधीजी का विश्वास था कि चरखा मानव-श्रम के लिए गौरव को फिर से जीवित करेगा ओर जनता को स्वावलम्बी बनाएगा। वस्तुत: चरखा स्वदेशी तथा राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गया। पारंपरिक भारतीय समाज में सूत कातने के काम को अच्छा नहीं समझा जाता था। गाँधीजी द्वारा सूत कातने के काम ने मानसिक श्रम एवं शारीरिक श्रम की खाई को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


राष्ट्रीय आंदोलन के अध्ययन के लिए अखबार महत्त्वपूर्ण स्रोत क्यों हैं?


राष्ट्रीय आंदोलन के अध्ययन के स्रोतों में अख़बारों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनसे हमें राष्ट्रीय आंदोलन के अध्ययन में महत्त्वपूर्ण सहायता मिलती है। ये अख़बार राष्ट्रिय आंदोलन को समझने तथा इसका अध्ययन करने के लिए इतिहासकारों के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं। इस संदर्भ में निम्नलिखित बातें उल्लेखनीय हैं:

  1. अंग्रेजी एवं विभिन्न भारतीय भाषाओं में छपने वाले समकालीन समाचार-पत्रों में राष्ट्रीय आंदोलन से संबंधित सभी घटनाओं का विवरण मिल जाता हैं।
  2. समाचार-पत्रों से राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं (राष्ट्रिय, प्रांतीय, स्थानीय स्तर पर) के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
  3. समाचार-पत्रों से राष्ट्रीय आंदोलन के प्रति ब्रिटिश सरकार के दृष्टिकोण का भी पता लगता है।
  4. समाचार-पत्रों द्वारा महात्मा गाँधी की गतिविधियों पर नज़र रखी जाती थी क्योंकि गाँधी जी से संबंधित समाचारों को विस्तृत रूप से प्रकाशित किया जाता था। अतः समाचार-पत्रों से विशेष रूप से महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन के स्वरूप का पता चलता हैं।
  5. समाचार-पत्रों से राष्ट्रीय आंदोलन से संबंधित महत्त्वपूर्ण घटनाओं एवं नेताओं के विषय में पक्ष और विपक्ष दोनों के विचार मिलते हैं।


महात्मा गाँधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए क्या किया?


इस में कोई दोराहे नहीं कि महात्मा गाँधी के जीवन व्यापन में आम लोगों कि छवि दिखती थी:

  1. गांधी जी ने स्वयं को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए अनेक बातें अपने जीवन में अपनाई-सर्वप्रथम सामान्य जन्म की दशा को जानने के लिए 1915 में (अफ्रीका से आगे के बाद) सारे देश का भ्रमण किया। उन्होंने भारत में अपना सार्वजनिक भाषण फरवरी, 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में दिया। इस भाषण से स्पष्ट होता है कि वे आम जनता से जुड़ना चाहते थे।
  2. गाँधी जी सामान्य लोगों की ही भाषा बोलते थे और उनकी ही तरह के वस्त्र पहनते थे। सामान्यजनों के साथ गाँधी जी की पहचान उनके वस्त्रों से विशेष रूप से झलकती थी।
  3. गाँधीजी आम लोगों के बीच घुल-मिलकर रहते थे। उनके मन में उनके कष्टों के प्रति हमदर्दी थी। इसलिए वे उनके प्रति सहानुभूति जताते थे।
  4. गाँधी जी की वेशभूषा अत्यधिक सीधी-सादी थी। वे जनसामान्य के मध्य में एक साधारण-सी धोती में जाते थे। 1921 ई० में दक्षिण भारत की यात्रा के दौरान गाँधी जी ने अपना सिर मॅडवा लिया था और गरीबों के साथ तादात्म्य स्थापित करने के लिए वे सूती वस्त्र पहनने लगे थे।
  5. वे प्रतिदिन कुछ समय के लिए चरखा कातते थे। इस प्रकार उसने आम जनता के श्रम को गौरव प्रदान किया।


किसान महात्मा गाँधी को किस तरह देखते थे?


किसान महात्मा गाँधी का अत्यधिक व्यक्तित्व सम्मान करते थे। 'गाँधी बाबा', 'गाँधी महाराज ' अथवा सामान्य 'महात्मा' जैसे अलग-अलग नामों से ज्ञात गाँधी जी भारतीय किसान के लिए एक उद्वारक के समान थे जो उनकी ऊँची करों और दमनात्मक अधिकारियों से सुरक्षा करने वाले और उनके जीवन में मान-मर्यादा और स्वायत्तता वापस लाने वाले थे। भारत कि गरीब जनता विशेष तौर पर किसान गाँधी जी कि सात्विक जीवन-शैली ओर उनके द्वारा अपनाई गई धोती तथा चरखा जैसी चीज़ों से अत्यधिक प्रभावित थे।  
जाति से महात्मा गाँधी एक व्यापारी व पेशे से वकील थे, लेकिन उनकी सादी जीवन-शैली तथा हाथों से काम करने के प्रति उनके लगाव की वजह से वे गरीब श्रमिकों के प्रति बहुत अधिक समानुभूति रखते थे तथा बदले में वे लोग गाँधी जी से समानुभूति रखते थे। इतना ही नहीं, गरीब किसान उनकी 'महात्मा' के समान पूजा भी करते थे। 


क्यों चरखा राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में चुना गया था?

चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक इसलिए चुना गया क्योंकि यह जन सामान्य से संबंधित था और स्वदेशी व आर्थिक प्रगति का प्रतीक था। गाँधीजी जी स्वयं प्रतिदिन अपना कुछ समय चरखा चलाने में व्यतीत किया करते थे। वे अन्य सहयोगियों को भी चरखा चलाने के लिए प्रोत्साहित करते थे।

राष्ट्रवाद उदय में अंग्रेजी शिक्षा की क्या भूमिका थी?

भारत में अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार से एक ऐसे विशिष्ट वर्ग का निर्माण हुआ जो स्वतन्त्रता को मूल अधिकार समझता था और जिसमें अपने देश को अन्य पाश्चात्य देशों के समकक्ष लाने की प्रेरणा थी। पाश्चात्य देशों का इतिहास पढ़कर उसमें राष्ट्रवादी भावना का विकास हुआ।