भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पर चर्चा करते हुए बताइये कि आम लोगों को इस क्षेत्र में कौन-सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है? साथ ही, भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हेतु कुछ उपाय भी सुझाइये।
22 Jan, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
प्रस्तावना
स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ
मृस्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हेतु उपाय
निष्कर्ष
किसी भी देश का सामाजिक-आर्थिक विकास उस देश के सेहतमंद नागरिकों पर निर्भर करता है। किसी भी देश के विकास की कुंजी उस देश के स्वस्थ नागरिक हैं। भारत की सकल राष्ट्रीय आय की दृष्टि से विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन जब बात स्वास्थ्य सेवाओं की आती है तो हमारी स्थिति काफी दयनीय साबित होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की अनेक रिपोर्ट से लेकर इस क्षेत्र में हुए अनेक सर्वेक्षण यह बताते हैं कि हमारी सार्वजनिक चिकित्सा व्यवस्था सुधरने की बजाय और बदहाल होती जा रही है। भारत विश्व स्तर पर गुणवत्ता युक्त इलाज मुहैया कराने के लिये प्रसिद्ध है, किंतु इसके बावजूद अब भी स्वास्थ्य संबंधी कई चुनौतियाँ हैं।
भारत में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ:
स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित सबसे प्रमुख चुनौती है आबादी के अनुपात में अस्पतालों और डॉक्टरों की कमी। सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं, आधारभूत संरचना, दवाइयों, कुशल व प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ एवं अन्य सुविधाओं की भारी कमी है।
ग्रामीण क्षेत्रों में हमारी स्वास्थ्य सेवाएँ सबसे बदतर हालात में हैं। कई ग्रामीण क्षेत्रों में अब तक तो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं खुल पाए हैं और अगर खुल भी गए हैं तो वहाँ पर कोई चिकित्सक जाना नही चाहता है।
भारत में आर्थिक असमानता के कारण स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में भी काफी विषमता है। निजी अस्पतालों की वज़ह से संपन्न लोगों को तो गुणवत्ता युक्त स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध हो जाती है, किंतु गरीब एवं निर्धन लोगों के संबंध में यह स्थिति काफी चिंताजनक बनी हुई है।
महँगी होती स्वास्थ्य सेवाओं के कारण आम आदमी द्वारा स्वास्थ्य पर किये जाने वाले खर्च में बेतहाशा वृद्धि हुई है जिससे यह वर्तमान समय में गरीबी को बढ़ाने वाला एक प्रमुख कारण माना जाने लगा है।
भारत में अभी भी उच्च शिशु मृत्यु दर एवं प्रसव के दौरान मातृ मृत्यु दर बरकरार है। यहाँ हर माह लगभग अस्सी हजार महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान हो जाती है।
भारत विकासशील और विकसित हो रही दुनिया के बीच फँस रहा है जिससे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मलेरिया, जापानी बुखार एवं डेंगू जैसी कई संक्रमित बीमारियाँ फैल रही हैं।
भारत में महिलाएँ एवं बच्चे बड़ी तादाद में कुपोषण के शिकार हैं।
सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं राजनीतिक वर्ग में यह अहसास कि स्वास्थ्य सेवा सामान्यतः मतदाताओं के लिये कोई प्राथमिकता नहीं है, इस क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती है।
स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हेतु उपाय
टेलीमेडिसिन सेवा का उपयोग करके देश के सुदूर भागों और पिछड़े क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा में गुणात्मक सुधार ला सकते हैं।
चिकित्सा की ऐलोपैथिक पद्धति के अलावा उपलब्ध अन्य चिकित्सीय पद्धति पर भी जोर देना चाहिये, जैसे- आर्युर्वेद, योग, होमोपैथिक आदि। वैकल्पिक चिकित्सा के प्रचार-प्रसार हेतु प्रयास करना चाहिये।
विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों एवं प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी हुई बातों का रेडियो एवं टेलीविज़न के माध्यम से प्रचार-प्रसार करना चाहिये।
देश के सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 1.4 फीसदी ही चिकित्सा सेवा में खर्च किया जाता है। इसे बढ़ाने की काफी जरूरत है तभी आबदी के अनुपात में डॉक्टर अस्पताल एवं अन्य सुविधाओं का विस्तार हो सकेगा।
सरकार को यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि निजी चिकित्सा उद्योग सिर्फ चुनिंदा शहरों तक सीमित ना रहें बल्कि ये अपनी सुविधाओं का विस्तार छोटे एवं पिछड़े शहरों में भी करें तथा सरकार को यह भी देखना चाहिये कि वे मरीजों से मनमानी रकम ना वसूल सकें इसके लिये भी समुचित तंत्र की व्यवस्था की जानी चाहिये।
निष्कर्षतः वर्तमान समय में देश को एक ऐसी स्वास्थ्य नीति की आवश्यकता है जो मौजूदा समय की चुनौतियों से निपटने में सक्षम हो तथा लगातार परिवर्तित हो रहे परिवेश में उत्पन्न होने वाली संक्रमित बीमारियों से रक्षा कर सके। भारत में स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है, परंतु अभी भी इस क्षेत्र में काफी काम बाकी है। देश में स्वास्थ्य संरचना, उपचार परीक्षण व शोध व निरंतर कार्य करने की आवश्यकता है ताकि सबके स्वास्थ्य का सपना साकार हो सके।
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल स्वास्थ्य और कल्याण का एक पूरे समाज का दृष्टिकोण है, जो व्यक्तियों, परिवारों और समुदायों की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं पर आधारित है। यह स्वास्थ्य के अधिक व्यापक निर्धारकों को संबोधित करता है और शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य और कल्याण के व्यापक और आपस में संबंधित पहलुओं पर केंद्रित है।
वह पूरे जीवन में स्वास्थ्य आवश्यकताओं के लिए पूरे की देखभाल मुहैया कराता है और न केवल विशिष्ट रोगों के लिए। प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल करता है कि लोगों को व्यापक देखभाल मिले, जिसमें प्रमोशन और निवारण सेउपचार, पुनर्वसन और पीड़ाहारक देखभाल शामिल है, जो लोगों के दैनिक पर्यावरण के लिए अधिक से अधिक योग्य हो।
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का मूल न्याय और समानता के प्रति वचनबद्धता और स्वास्थ्य के उच्चतम प्राप्य मानक के मूलभूत अधिकार की मान्यता में है, जैसे कि मानव अधिकारों पर वैश्विक घोषणा की धारा २५ में बताया गया हैः “हर किसी को उसके और उसके परिवार के लिए पर्याप्त जीवनमान का अधिकार है, जिसमें अन्न, वस्त्र, आवास और वैद्यकीय देखभाल तथा आवश्यक सामाजिक सेवायें शामिल हैं […]”
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को बारबार अर्थाकलन तथा परिभाषा की गई है। कुछ संदर्भों में, उसे एंबुलेंस अथवा व्यक्तिगत स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के प्रथम स्तर को कराने का अर्थ दिया गया है। अन्य संदर्भों में, प्राथमिक स्वास्थ्यदेखभाल को कम आय की जनसंख्याओं के लिए प्राथमिकतापूर्ण स्वास्थ्य हस्तक्षेपों के संच के रूप में समझा गया है (जिसे चुनिंदा प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल भी कहते हैं)। अन्यों ने आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक पहलुओं पर ध्यान देते हुए प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को मानवीय विकास का एक महत्त्वपूर्ण घटक समझा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तीन घटकों पर आधारित एक व्यापक परिभाषा विकसित की है।
पूरे जीवन में व्यापक बढ़ावा देने वाली, सुरक्षात्मक, निवारक, उपचारात्मक, पुनर्वसनसंबंधी और पीड़ाहारक देखभाल के माध्यम से लोगों की स्वास्थ्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना, समेकित स्वास्थ्य सेवाओं के केंद्रीय घटकों के रूप में रणनीति की दृष्टि से प्राथमिक देखभाल के माध्यम से और परिवारों पर लक्षित महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं और जनसंख्या पर सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यों के माध्यम से प्राथमिकता देना ।
सभी क्षेत्रों में प्रमाण सूचित सार्वजनिक नीतियों और कार्यों के माध्यम से स्वास्थ्य के व्यापक निर्धारकों को व्यवस्थित रूप से संबोधित करना (जिसमें सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय के साथ ही लोगों की विशेषतायें और व्यवहार); तथा
स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने वाली और सुरक्षा देने वाली नीतियों की वकालत के रूप में, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं के सहविकासकों के रूप में और अन्यों को स्वयं देखभाल करने और देखभाल देने वालों के रूप में स्वास्थ्य को महत्तम करने के लिए व्यक्तियों, परिवारों और समुदायों का सशक्तीकरण करना
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल महत्त्वपूर्ण क्यों है?
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का नूतनीकरण करना और उसे प्रयासों के केंद्र में रखकर स्वास्थ्य और कल्याण को सुधारना तीन कारणों से महत्त्वपूर्ण हैः
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल तेज़ी से आर्थिक, प्रौद्योगिकीय और जनसंख्या परिवर्तनों को प्रतिक्रिया देने के लिए सुस्थित है, जिनमें सभी स्वास्थ्य और कल्याण पर प्रभाव डालते हैं। हाल के विश्लेषण से पता चला है कि १९९० से २०१० में बाल मृत्युदर को कम करने के लगभग आधे लाभ स्वास्थ्य क्षेत्र के बाहर के घटकों के कारण थे (जैसे कि पानी और स्वच्छता, शिक्षा, आर्थिक विकास)। प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल दृष्टिकोण हित संबंधितों की व्यापक परिधि को आकर्षित कर स्वास्थ्य और कल्याण के सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय और व्यावसायिक निर्धारकों को संबोधित करने के लिए नीतियों की परीक्षा और बदलाव लाता है। अपने स्वयं के स्वास्थ्य और कल्याण के उत्पादन में महत्वपूर्ण कार्यकारकों के रूप में लोगों और समुदायों से व्यवहार करना हमारे बदलते विश्व की जटिलताओं को समझने और प्रतिक्रिया देने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल स्वास्थ्य और कल्याण के आज के प्रमुख कारणों और खतरों को संबोधित करने के लिए, साथ ही आने वाले समय मेंस्वास्थ्य और कल्याण को खतरे में डालने वाले उभरती चुनौतियों को संभालने के लिए अति प्रभावी और कार्यक्षम पद्धति सिद्ध हुई है। वह एक अच्छे मूल्यवान निवेश भी सिद्ध हुआ है, क्योंकि ऐसा प्रमाण है कि गुणवत्तावान प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल अस्पताल में भर्ती होना कमी करने के द्वारा कुल स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को कम करती और कार्यक्षमता को बढ़ाती है। बढ़ती जटिल स्वास्थ्य समस्याओं को संबोधित करने के लिए एक बहुक्षेत्रीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाली और निवारक नीतियों का समेकन करता है, वह समाधान जो समुदायों को प्रतिक्रिया देते हैं और स्वास्थ्य सेवायें जो जनकेंद्रित होती हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में महत्वपूर्ण घटक शामिल होते हैं, जो स्वास्थ्य सुरक्षा को सुधारने और महामारियों व सूक्ष्म जीवरोधी प्रतिरोध जैसे स्वास्थ्य खतरों के निवारण में आवश्यक हैं, जो सामुदायिक सहभाग तथा शिक्षा, विवेकपूर्ण निर्धारण, और आवश्यक सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यवाहियों जैसे कि पर्यवेक्षण के माध्यम से होगा। सामुदायिक और पेरिफ़ेरल स्वास्थ्य सुविधा स्तर पर प्रणालियों को करने से निरंतरता बनाने में योगदान मिलता है, जो स्वास्थ्य प्रणाली के झटके झेलने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
अधिक शक्तिशाली प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल चिरस्थायी विकास ध्येयों और वैश्विक स्वास्थ्य कवरेज को प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। वह स्वास्थ्य ध्येय(एसडीजी३) के परे अन्य ध्येयों की उपलब्धि में योगदान देगा, जिसमें गरीबी, भूख, लैंगिक समानता, स्वच्छ पानी और सुरक्षा, कार्य तथा आर्थिक विकास, असमानता और जलवायु कार्य कम करना शामिल है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रतिक्रिया
विश्व स्वास्थ्य संगठन सभी के लिए स्वास्थ्य और कल्याण को प्राप्त करने की प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की केंद्रीय भूमिका को पहचानता है। डब्ल्यूएचओ अन्य देशों के साथ इस कारण से काम करता हैः
जन स्वास्थ्य से आप क्या समझते हैं?
शाब्दिक दृष्टि से जन स्वास्थ्य का आशय जनता के स्वास्थ्य से है। क्योंकि जन से आशय जनता से तथा 'स्वास्थ्य' का अर्थ उसका शारीरिक-मानसिक दृष्टि से स्वस्थ होने से है।
जन स्वास्थ्य की जिम्मेदारी किसकी है?
हालांकि चिकित्सा एवं स्वास्थ्य संबंधी कुछ कार्यक्रम जैसे चिकित्सा शिक्षा, परिवार नियोजन तथा जनसंख्या नियंत्रण केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। समग्र रूप से देखें तो देश में जन स्वास्थ्य कुछ मायनों में केंद्र की जिम्मेदारी है और ज्यादातर मामलों में राज्यों की।
भारत की स्वास्थ्य सेवाएं क्या है?
परिचय: स्वास्थ्य सेवाओं में अस्पताल, चिकित्सा उपकरण, नैदानिक परीक्षण, आउटसोर्सिंग, टेलीमेडिसिन, चिकित्सा पर्यटन, स्वास्थ्य बीमा और चिकित्सा उपकरण शामिल हैं। भारत की स्वास्थ्य सेवा वितरण प्रणाली को दो प्रमुख घटकों में वर्गीकृत किया गया है - सार्वजनिक और निजी।
स्वास्थ्य सेवाओं को कितने भागों में बांटा जा सकता है?
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भारत में उपचार की विभिन्न पद्धतियों में स्वास्थ्य सेवाओं के अलग-अलग स्तर हैं : सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मचारी, पारम्परिक उपचारक, स्वास्थ्य केन्द्र तथा अस्पताल।