हिन्दी के आरंभिक काल से लेकर आधुनिक व आज की भाषा में आधुनिकोत्तर काल तक साहित्य इतिहास लेखकों के शताधिक नाम गिनाये जा सकते हैं। हिन्दी साहित्य के इतिहास को शब्दबद्ध करने का प्रश्न अधिक महत्वपूर्ण था। हिन्दी साहित्य के इतिहास-लेखन का कार्य विभिन्न कालों में किसी न किसी रूप में अवश्य मिलता है। Show
साहित्येतिहास तो बहुत पहले से 'बाँटकर' देखा, सोचा और लिखा जाता रहा है। युगों, धाराओं और विधाओं के इतिहास तो सर्वमान्य हैं, साहित्येतिहास तो सम्प्रदायों के आधार पर लिखे गये, (जैसे निर्गुण काव्यधारा, पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल ; जम्भोजी और विश्नोई सम्प्रदाय, हीरालाल माहेश्वरी ; वल्लभसम्प्रदाय- डॉ. दीनदयालु गुप्त ; राधावल्लभ-सम्प्रदाय : सिद्धान्त और साहित्य, डॉ. विजयेन्द्र स्नातक ; श्री हितहरिवंश गोस्वामी सम्प्रदाय और साहित्य-ललित शरण गोस्वामी ; चैतन्यमत और ब्रजसाहित्य-प्रभुदयाल मीतल आदि–आदि) विभिन्न भूखण्डों और उनकी बोलियों के आधार पर लिखे गये (जैसे कि, बुन्देलखण्ड के कवियों का विवरण-गौरीशंकर द्विवेदी ; राजस्थान साहित्य की रूपरेखा -मोतीलाल मेनारिया ; राजस्थानी भाषा और साहित्य - हीरालाल माहेश्वरी ; पंजाब प्रान्तीय हिन्दी साहित्य का इतिहास - चन्द्रकान्त बाली ; हिन्दी साहित्य और बिहार - शिवपूजन सहाय ; कानपुर का हिन्दी साहित्य - नरेशचन्द्र चतुर्वेदी आदि-आदि), विशिष्ट राजदरबारों के आधार पर लिखे गये, (जैसे कि अकबरी दरबार के हिन्दी कवि - डॉ. सरयूप्रसाद अग्रवाल ; भगवन्त राम खींची और उनके मण्डल के कवि - डॉ. महेन्द्र प्रताप सिंह ; भोंसला राजदरबार के हिन्दी कवि - डॉ. कृष्ण दिवाकर आदि) यहाँ तक कि जातिगत आधार पर साहित्येतिहास लिखे गये (जैसे कि, सुकवि सरोज—सनाढ्य ब्राह्मणों का इतिहास ; गौरीशंकर द्विवेदी, ब्रह्मभट्ट कवि सरोज—ब्रह्मभट्ट कवियों की विवेचना आदि) ।[1] आरंभिक काल[संपादित करें]आरंभिक काल में मात्र कवियों के सूची संग्रह को इतिहास रूप में प्रस्तुत कर दिया गया। भक्तमाल आदि ग्रन्थों में यदि भक्त कवियों का विवरण दिया भी गया तो धार्मिक दृष्टिकोण तथा श्रद्धातिरेक की अभिव्यक्ति के अतिरिक्त उसकी और कुछ उपलब्धि नहीं रही। 19वीं सदी में ही हिन्दी भाषा और साहित्य दोनों के विकास की रूपरेखा स्पष्ट करने के प्रयास होने लगे। प्रारंभ में निबंधों में भाषा और साहित्य का मूल्यांकन किया गया जिसे एक अर्थ में साहित्य के इतिहास की प्रस्तुति के रूप में भी स्वीकार किया गया। डॉ॰ रूपचंद पारीक, गार्सा-द-तासी के ग्रन्थ इस्त्वार द ल लितरेत्यूर ऐन्दूई ऐन्दूस्तानी को हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास मानते हैं। उन्होंने लिखा है - हिन्दी साहित्य का पहला इतिहास लेखक गार्सा-द-तासी हैं, इसमें संदेह नहीं है। परंतु डॉ॰ किशोरीलाल गुप्त का मंतव्य है- तासी ने अपने ग्रन्थ को 'हिन्दुई और हिन्दुस्तानी साहित्य का इतिहास' कहा है, पर यह इतिहास नहीं हैं, क्योंकि इसमें न तो कवियों का विवरण काल क्रमानुसार दिया गया है, न काल विभाग किया गया है और अब काल विभाग ही नहीं है तो प्रवृत्ति निरूपण की आशा ही कैसे की जा सकती है। वैसे तासी और सरोज को हिन्दी साहित्य का प्रथम और द्वितीय इतिहास मानने वालों की संख्या अल्प नहीं है परंतु डॉ॰ गुप्त का विचार है कि ग्रियर्सन का द माडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास है। डॉ॰ रामकुमार वर्मा ने इसके विपरीत अनुसंधानात्मक प्रवृत्ति की दृष्टि से तासी के प्रयास को अधिक महत्वपूर्ण निरूपित किया है। पाश्चात्य और प्राच्य विद्वानों ने हिन्दी के इतिहास लेखन के आरंभिक काल में प्रशंसनीय भूमिका निभाई है। शिवसिंह सरोज साहित्य इतिहास लेखन के अनन्य सूत्र हैं। हिन्दी के वे पहले विद्वान हैं जिन्होंने हिन्दी साहित्य की परंपरा के सातत्य पर समदृष्टि डाली है। अनन्तर मिश्र बंधुओं ने साहित्यिक इतिहास तथा राजनीतिक परिस्थितियों के पारस्परिक संबंधों का दर्शन कराया। डॉ॰ सुमन राजे के शब्दों में - काल विभाजन की दृष्टि से भी मिश्रबंधु विनोद प्रगति की दिशा में बढ़ता दिखाई देता है। नया युग[संपादित करें]आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य का प्रथम व्यवस्थित इतिहास लिखकर एक नये युग का समारंभ किया। उन्होंने लोकमंगल व लोक-धर्म की कसौटी पर कवियों और कवि-कर्म की परख की और लोक चेतना की दृष्टि से उनके साहित्यिक अवदान की समीक्षा की। यहीं से काल विभाजन और साहित्य इतिहास के नामकरण की सुदृढ़ परंपरा का आरंभ हुआ। इस युग में डॉ॰ श्याम सुन्दर दास, रमाशंकर शुक्ल 'रसाल', सूर्यकांत शास्त्री, अयोध्या सिंह उपाध्याय, डॉ॰ रामकुमार वर्मा, राजनाथ शर्मा प्रभृति विद्वानों ने हिन्दी साहित्य के इतिहास विषयक ग्रन्थों का प्रणयन कर स्तुत्य योगदान दिया। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने शुक्ल युग के इतिहास लेखन के अभावों का गहराई से अध्ययन किया और हिन्दी साहित्य की भूमिका (1940 ई.), हिन्दी साहित्य का आदिकाल (1952 ई.) और हिन्दी साहित्य; उद्भव और विकास (1955 ई.) आदि ग्रन्थ लिखकर उस अभाव की पूर्ति की। काल विभाजन में उन्होंने कोई विशेष परिवर्तन नहीं किया। शैली की समग्रता उनकी अलग विशेषता है। आधुनिक काल[संपादित करें]वर्तमान युग में आचार्य द्विवेदी के अतिरिक्त साहित्येतिहास लेखन में अन्य प्रयास भी हुए परंतु इस दिशा में विकास को अपेक्षित गति नहीं मिल पाई। वैसे डॉ॰ गणपति चंद्र गुप्त, डॉ॰ रामखेलावन पांडेय के अतिरिक्त डॉ॰ लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय, डॉ॰ कृष्णलाल, भोलानाथ तथा डॉ॰ शिवकुमार की कृतियों के अतिरिक्त काशी नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी द्वारा प्रकाशित हिन्दी साहित्य का इतिहास एवं डॉ नगेन्द्र के संपादन में प्रकाशित हिन्दी साहित्य का इतिहास आधुनिक युग की उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हैं। हरमहेन्द्र सिंह बेदी ने भी हिन्दी साहित्येतिहास दर्शन की भूमिका लिखकर साहित्य के इतिहास और उसके प्रति दार्शनिक दृष्टि को नये ढंग से रेखांकित किया है। हिन्दी साहित्य के इतिहासकार और उनके ग्रन्थ[संपादित करें]हिन्दी साहित्य के मुख्य इतिहासकार और उनके ग्रन्थ निम्नानुसार हैं - 1. गार्सा द तासी : इस्तवार द ला लितेरात्यूर ऐंदुई ऐंदुस्तानी (फ्रेंच भाषा में; फ्रेंच विद्वान, हिन्दी साहित्य के पहले इतिहासकार) 2. शिवसिंह सेंगर : शिव सिंह सरोज 3. जार्ज ग्रियर्सन : द मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिट्रेचर ऑफ हिंदोस्तान 4. मिश्र बंधु : मिश्र बंधु विनोद 5. रामचंद्र शुक्ल : हिन्दी साहित्य का इतिहास 6. हजारी प्रसाद द्विवेदी : हिन्दी साहित्य की भूमिका; हिन्दी साहित्य का आदिकाल; हिन्दी साहित्य :उद्भव और विकास 7. रामकुमार वर्मा : हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास 8. डॉ धीरेन्द्र वर्मा : हिन्दी साहित्य 9. डॉ नगेन्द्र : हिन्दी साहित्य का इतिहास; हिन्दी वाङ्मय २०वीं शती 10. रामस्वरूप चतुर्वेदी : हिन्दी साहित्य और संवेदना का विकास, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 1986 11. बच्चन सिंह : हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास, राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली। विस्तृत सूची नीचे दी गयी है-[2]
सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास कब लिखा?आचार्य रामचन्द्र शुक्ल:- (100 कवियों का परिचय) - ''हिन्दी साहित्य का इतिहास'' नामक ग्रंथ 1929 ई. मे हिन्दी शब्द सागर की भूमिका के रूप में लिखा। इन्होने युगीन परिस्थितियो के सदंर्भ मे साहित्यिक प्रवृतियों के विकास की बात कही।
हिंदी भाषा के प्रथम इतिहासकार कौन थे *?काल विभाजन करने वाला हिन्दी साहित्य का सर्वप्रथम इतिहासकार – जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन (1888 ई.) परम्परागत रूप में हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहासकर्त्ता – मिश्रबन्धु (1913 ई.) सच्चे अर्थों में हिंदी साहित्य के प्रथम व्यवस्थित इतिहासकार – आचार्य रामचंद्र शुक्ल (1929 ई.)
हिंदी साहित्य के इतिहास का प्रथम लेखक कौन है?आचार्य रामचन्द्र शुक्लहिंदी साहित्य का इतिहास / लेखकnull
हिंदी साहित्य का आरंभ कब हुआ?हिन्दी साहित्य का आरम्भ आठवीं शताब्दी से माना जाता है।
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