नमस्कार दोस्तों ! हमे उम्मीद है कि, आपलोग himalaya parvat हिमालय का नाम तो जरूर सुना होगा। तो चलिए आज हमलोग इस लेख के माध्यम से हिमालय पर्वत श्रृंखला के विभिन्न पहलुओं से परिचित होंगे। जैसे हिमालय का स्थिति और विस्तार क्या है ? इसकी उत्पत्ति कैसे हुई है। इसके भौतिक एवं प्रादेशिक विभाजन। भारत के परिपेक्ष इसका क्या महत्व है। आदि आदि। Show
भारत के उत्तर में विश्व के सबसे ऊँची, नवीनतम तथा मोड़दार पर्वत श्रृंखला हिमालय स्थित है। यह भारत के उत्तर पश्चिम में नागा पर्वत चोटी ( शिखर ) से उत्तर पर्व में नामचा बरुआ पर्वत चोटी तक अर्थात भारत के उत्तर पश्चिम में सिंधु नदी के मोड़ से उत्तर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक अर्ध चंद्राकर रूप में फैला हुआ है। भारत का भौतिक स्वरूप का मुख्य भू-आकृति उत्तरी पर्वतमाल, हिमालय पर्वत का क्षेत्रफल भारत में लगभग 5 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। इस पर्वत की लम्बाई पश्चिम से पूर्व लगभग 2500 किमी है। तथा उत्तर से दक्षिण की चौड़ाई 160 से 400 किमी है। इस पर्वत की औसत ऊंचाई समुद्रतल से लगभग 6000 मीटर है। यह पर्वत श्रृंखला पश्चिम की ओर चौड़ी 400 किमी तथा पूर्व की ओर 160 किमी संकरी होती जाती है। जबकि इसकी ऊंचाई पूर्व की ओर अधिक तथा जैसे-जैसे पश्चिम की ओर बढ़ते है इसकी उचाई कम होते जाती है। विश्व की सबसे ऊँची पर्वत चोटियों में अधिकांश हिमालय में ही स्थित है। माउंट एवरेस्ट दुनिया के सबसे ऊँची पर्वत चोटी ( 8848 मीटर ) हिमालय में ही स्थित है। Table of Contents
हिमालय पर्वत श्रृंखला की उत्पत्ति कैसे हुई है ?हिमालय पर्वत में कैम्ब्रियन -पूर्व से लेकर आदिनूतन काल की चट्टानें पाई जाती है इससे पता चलता है कि,हिमालय पर्वत कई कालो के चट्टानों के जमाव के उत्थान से इसका निर्माण हुआ है। भू-अभिन्नति सिद्धांत, महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत तथा प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार हिमालय पर्वत की उत्पत्ति का का व्याख्या किया जा सकता है। महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांतमहाद्वीपीय वस्थापन सिद्धांत के अनुसर कार्बोनिफेरस युग के अंत में पैंजिय का विखंडन हुआ है। इसका उत्तरी भाग लोरेसिया ( अंगारालैंड )तथा दक्षिणी हिस्सा ( गौंडवानलैण्ड ) तथा इन दोनों के मध्य में टेथिस सागर का विकास हुआ। टेथिस सागर में निक्षेपित मलबा के उत्थान से हिमालय का निर्माण हुआ है। भू-अभिन्नति सिद्धांतभू-अभिन्नति सिद्धांत के अनुसार टेथिस सागर में अंगारालैंड तथा गौंडवानलैण्ड से निकलकर टेथिस सागर में गिरने नाली नदियों से निक्षेपण का जमाव टेथिस सागर में होने लगा। तथा अत्यधिक जमाव के कारण सागर के तल में धसाव की प्रक्रिया के कारण निक्षेपों की मोटाई और अधिक होती गई। जिसे भू-अभिन्नति के नाम से जाना जाता है। बाद में यही भूसन्नति के ऊपर उठने से हिमालय का निर्माण हुआ है। प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांतप्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार मेसोजोइक महाकल्प ( 6.4 से 24.5 करोड़ वर्ष पूर्व ) में अंगारालैंड से इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट अलग होकर उत्तर पूर्व की ओर अग्रसारित होकर एशियाई प्लेट से जा टकराई। जिससे टेथिस भू-अभिन्नति में दबाव पड़ने के कारण मेसोजोइक महाकल्प के क्रिटेशियस काल ( 6.5 से 14.4 करोड़ वर्ष पूर्व ) टेथिस भू-सन्नति में उभार या ऊपर उठने की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। और यह उभार की प्रक्रिया वर्त्तमान समय तक जारी है। जिससे हिमालय पर्वत की ऊचाई वर्त्तमान समय में भी बढ़ना जारी है। इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट के लगातार उत्तर पूर्व की ओर अग्रसारण के कारण आदिनूतन ( Eocene ) काल में 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व महान हिमालय का उद्भव हुआ। इसी प्रकार अल्पनूतन ( Miocene ) काल में 2.5 से 3.0 करोड़ वर्ष पूर्व हिमालय का द्वितीय उत्थान लघु हिमालय के रूप में हुआ। तथा अतिनूतन काल ( Pliocene ) में 1.4 करोड़ वर्ष पूर्व हिमालय के शिवालिक श्रेणी की उत्पत्ति हुई। इस प्रकार हिमालय पर्वत का उद्भव संभव हुआ है। भू-वैज्ञानिको का मानना है कि, भविष्य में प्लेटो के अभिसरण के कारण गंगा के मैदानों में एक चतुर्थ पर्वत श्रेणी का निर्माण हो सकता है। हिमालय का प्राकृतिक या भौतिक या भू-आकृतिक विभाजनभारत में हिमालय पर्वत का विस्तार 5 लाख वर्ग किमी में है। हिमालय पर्वत के अंतर्गत कई समांतर श्रेणियाँ उत्तर पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर फैली हुई है। इसको मुख्य रूप से चार प्राकृतिक भागो में विभाजित किया जाता है।
( 1. ) पार ( Trans ) हिमालय।महान हिमालय के उत्तर की ओर या बाहर की ओर स्थित होने के कारण इसे पार हिमालय कहा जाता है। इसे ट्रांस हिमालय के नाम से भी जाना जाता है। इसके अंतर्गत कैलाश श्रेणी, लद्दाख, जास्कर, तथा कराकोरम श्रेणी को शामिल किया जाता है। सिंधु नदी लद्दाख और जास्कर पर्वत श्रेणियों के मध्य में प्रवाहित होती है। और यह लद्दाख श्रेणी को बुंजी नामक स्थान पर काटकर गहरे गार्ज का निर्माण करती है। इस हिमालय के कराकोरम श्रेणी में भारत का सर्वोच्च शिखर गाडविन आस्टिन ( K2 ) ( 8611 मीटर ) स्थित है। जो दुनिया के दूसरी सबसे ऊँची पर्वत चोटी है माउन्ट एवरेस्ट ( 8848 मीटर ) के बाद। ट्रांस हिमालय परतदार चट्टानों से निर्मित है। तथा यहाँ वनस्पतियो का पूर्ण आभाव पाया जाता है। सिंधु, सतलज, ब्रह्मपुत्र नदियों का उद्गम स्थल इसी हिमालय में है। ( 2. ) महान हिमालय।यह हिमालय पर्वत श्रृंखला का प्रमुख पर्वत श्रेणी है। इसकी औसत उचाई 6100 मीटर तथा औसत चौड़ाई 25 किमी है। यह एक सतत श्रेणी है। इसे दर्रो के माध्यम से पार किया जा सकता है। इसकी दक्षिणी ढाल तीव्र तथा उत्तरी ढाल मध्यम है। सर्वाधिक उचाई के कारण इसे बृहद हिमालय भी कहा जाता है। जिसके कारण इसको पार कर पाना काफी कठिन है। इसमें सालो भर बर्फ से ढके रहने के कारण इसे हिमाद्रि के नाम से भी पुकारा जाता है। इस श्रेणी का निर्माण 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व आदिनूतन कल ( Eocene ) में हुआ है। इस श्रेणी के आंतरिक भाग में जीवाश्मरहित चट्टानें पाई जाती है। जिसके ऊपर अवसादी ( परतदार ) चट्टानें की परत थी किन्तु अपरदन के कारण वर्त्तमान समय में परतदार चट्टानें पूरी तरह से नष्ट हो गई है एवं आंतरिक भाग की अजैविक चट्टाने बाहर निकल गई है। ये चट्टानें ग्रेनाइट, निस, शिष्ट प्रकार की है। हिमालय पर्वत के सभी ऊँची पर्वत चोटियां इसी श्रेणी में स्थित है जो दुनियाँ की सर्वोच्च पर्वत चोटियाँ है जिनमे से दस पर्वत चोटियाँ इस प्रकार है। क्रम संख्यापर्वत चोटी ( शिखर )देशऊचाई ( समुद्र तल से मीटर में )1माउन्ट एवरेस्टनेपाल8,8482कंचन जुंगाभारत8,5983मकालुनेपाल8,4814धौलागिरिनेपाल8,1725नंगा पर्वतभारत8,1266अन्नपूर्णानेपाल8,0787नंदा देवीभारत7,8178कामेटभारत7,7569नामचा वरूआभारत7,75610गुरुला मन्धातानेपाल7,728महान हिमालय की दस प्रमुख पर्वत चोटियाँमहान हिमालय में कई दर्रे है जो इसको काटती है।
महान हिमालय में सालो भर बर्फ से ढके रहने के कारण यहाँ पर कई हिमनदियाँ प्रवाहित होती है। जिनमे से गंगोत्री, जेमू, मिलम प्रमुख है। ( 3. ) लघु हिमालय।इस श्रेणी को हिमाचल, मध्य और निम्न हिमालय के नाम से जाना जाता है। इसकी ऊचाई 3700 मीटर से 4500 के मध्य है। इसकी औसत चौड़ाई 80 किमी है। इसमें जीवाश्म रहित अवसादों या कायांतरित चट्टानों की बहुलता पाई जाती है। इसमें स्लेट, चूना पत्थर और क्वाट्र्ज चट्टाने पाई जाती है। ये चट्टाने पुराजीवी महाकल्प से लेकर आदिनूतन काल ( Eocene ) तक की है। इस श्रेणी का उत्थान 2.5 से लेकर 3.0 करोड़ वर्ष पूर्व अल्पनूतन काल ( Miocene ) में हुआ है। इसके अंतर्गत पीरपंजाल श्रेणी ( जम्मुकश्मीर ), धौलाधर श्रेणी ( हिमाचल प्रदेश ), नागा टीबा श्रेणी, क्राल श्रेणी, मसूरी श्रेणी ( उत्तराखंड ), महाभारत श्रेणी ( नेपाल ) शामिल किया जाता है। इस श्रेणी के दक्षिणी ढाल मंद तथा उत्तरी ढाल तीव्र है। इन ढालो में छोटे-छोटे घास के मैदान पाए जाते है जिसे कश्मीर में मर्ग ( गुलमर्ग, सोनमर्ग आदि ) एवं उत्तराखंड में ( बुग्याल एवं पयार ) कहा जाता है। महान हिमालय और लघु हिमालय के मध्य कई घाटियाँ स्थित है। जिसमे से कश्मीर घाटी, हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा और कुल्लू की घाटी, नेपाल में काठमांडू की घाटी काफी प्रसिद्ध है। इस श्रेणी में भारत के अधिकांश स्वास्थ्य वर्धक स्थान या पर्वतीय नगर स्थित है जैसे:- शिमला, मसूरी, डलहौजी, नैनीताल, दार्जिलिंग इत्यादि। ( 4. ) शिवालिक हिमालय।यह श्रेणी हिमालय के सबसे दक्षिणी श्रेणी है। जिसके कारण इसे बाह्य हिमालय या उप हिमालय के नाम से जाना जाता है। इसकी चौड़ाई 10 से 50 किमी तथा ऊंचाई समुद्र तल से 900 से 1100 मीटर है। यह श्रेणी पंजाब में पोटवार बेसिन से प्रारम्भ होकर पूर्व में कोसी नदी तक फैली हुई है। इसका निर्माण अतिनूतन काल ( Pliocene ) में 1.4 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ है। यह पश्चिम में चौड़ी तथा पूरब की ओर संकीर्ण होती गई है। शिवालिक श्रेणी में मुख्य रूप से ऊपरी तृतीय काल की चट्टानें जैसे बलुआ पत्थर,मृतिका, मिश्र पिंडाश्म और चूना पत्थर पाए जाते है। लघु हिमालय तथा शिवलीक हिमालय के बीच कहीं-कहीं समतल संरचनात्मक घाटियाँ पाई जाती है जिन्हे पश्चिम में दून ( Duns ) जैसे:- देहरादून, पोटलीदून, कोठरीदन, तथा पूर्व में दुआर ( Duar ) के नाम से जाना जता है। हिमालय पर्वत शृंखला का प्रादेशिक विभाजनक्षेत्रीय विभिन्नताओं, उच्चावच या भू-आकृतियों के आधार पर हिमालय पर्वत श्रृंखला को कई विद्वानों ने इसको कई उप खंडो या प्रादेशिक या अनुदैर्ध्य विभाजन करने का प्रयास किया है। ब्रिटिश भूगर्भ शास्त्री सिडनी बुर्राड ने हिमालय को चार प्रदेशिक भूखंडों में विभाजित किया है।
प्रोफेसर एस. पी. चटर्जी ने 1973 ई. में हिमालय को पाँच प्रादेशिक खंडो में विभाजित करने का प्रयास किया है जो काफी व्यवहारिक है। जो निम्न इस प्रकार है।
NCERT कक्षा 11,विषय -भूगोल, पुस्तक- भारत भौतिक पर्यावरण, अध्यय-2, में हिमालय को निम्नलिखित पाँच प्रदेशिक उपखंडो में विभाजित करके हिमालय पर्वत का वर्णन किया गया है। जो निम्न इस प्रकार है।
( 1. ) कश्मीर या उत्तरी-पश्चमी हिमालय।
( 2. ) हिमाचल और उत्तरांचल हिमालय।
( 3. ) दार्जिलिंग और सिक्किम हिमालय।
( 4. ) अरुणाचल हिमालय।
( 5. ) पूर्वी पहाड़ियाँ और पर्वत।
हिमालय के प्रमुख दर्रेक्र.सं.दर्रे का नामस्थितिजुड़ने वाले स्थान का नाम1बनिहालजम्मूकश्मीरजम्मु को श्रीनगर से।2बड़ालाचाहिमाचल प्रदेश, लद्दाखमनाली को लेह से।3बोमडी-लाअरुणाचल प्रदेशअरुणाचल प्रदेश को ल्हासा ( तिब्बत )।4बुर्जिलाजम्मुकश्मीरकश्मीर घाटी को लद्दाख से।5चांग-लालद्दाखलद्दाख को तिब्बत से।6देब्साहिमाचल प्रदेशकुल्लु और स्पीति को।7दिहांगअरुणाचल प्रदेशअरुणाचल प्रदेश को मंडाले ( म्यांमार )।8डिफुअरुणाचल प्रदेशअरुणाचल प्रदेश को मंडाले ( म्यांमार )।9इमिस-लालद्दाखलद्दाख को तिब्बत से।10खारदुंगला ( सबसे ऊँचा )लद्दाखलद्दाख को लेह से।11खुंजेराबलद्दाखलद्दाख को तिब्बत से ।12जलेप-लासिक्किमसिक्किम को ल्हासा ( तिब्बत )13लनक-लालद्दाख (अक्साई चीन )लद्दाख को तिब्बत से।14लिखापानीअरुणाचल प्रदेशअरुणाचल प्रदेश को म्यांमार से ।15जोजिलाजम्मुकश्मीरश्रीनगर को कश्मीर और लेह से।16लिपुलेखउत्तराखंडउत्तराखंड को तिब्बत से।17मानाउत्तराखंडउत्तराखंड को तिब्बत से।18मंगशा धुराउत्तराखंडउत्तराखंड को तिब्बत से।19मूलिंग-लाउत्तराखंडउत्तराखंड को तिब्बत से।20नाथुलासिक्किमसिक्किम को चीन से।21नितिउत्तराखंडउत्तराखंड को तिब्बत से।22पंगसानअरुणाचल प्रदेशअरुणाचल प्रदेश को मंडाले ( म्यांमार )।23पेंजी-लाजम्मूकश्मीरकश्मीर घाटी को कारगिल से।24पीरपंजालजम्मूकश्मीरजम्मु को श्रीनगर से25शिपकी-लाहिमाचल प्रदेशहिमाचल प्रदेश को तिब्बत से26थगलालद्दाखलद्दाख को तिब्बत से।हिमालय के प्रमुख दर्रेहिमालय के प्रमुख हिमनद।क्र.सं.हिमनदी के नामस्थितिलम्बाई ( किमी )1सियाचिनकराकोरम752ससैनीकराकोरम683हिस्पारकराकोरम614बियाफोकराकोरम605बलटोराकराकोरम586चोगो लुंग्माकराकोरम507ख़ोरदोपीनकराकोरम418रीमोकश्मीर409पुनमाहकश्मीर2710गंगोत्रीउत्तराखंड2611जेमुसिक्किम, नेपाल2512रूपलकश्मीर1613डीयामीरकश्मीर11स्रोत:- भारत का भूगोल, माजीद हुसैन और रमेश सिंहहिमालय पर्वत श्रृंखला का महत्व।भारत की दृष्टि से देखा जय तो हिमालय पर्वत्त श्रृंखला का स्थान काफी महत्वपूर्ण है। इसकी स्थिति के कारण भारत एक अलग भारतीय उप महाद्वीप के रूप में जाना जाता है। इसके महत्व को निम्न विन्दुओ के माध्यम से समझने का प्रयास करते है। ( 1. ) भारतीय जलवायु पर प्रभाव:-हिमालय पर्वत के कारण ही पूरी भारतीय उप महाद्वीप में उष्ण कटिबंधीय मानसूनी जलवायु पाई जाती है। हिमालय पर्वत एक प्रकृतिक अवरोध के रूप में स्थित है। हिन्द महासागर से प्रवाहित होने वाली दक्षिण पश्चिम मानसूनी हवाओ को रोक कर भारत में वर्षा कराती है। यहाँ स्पष्ट शीत, ग्रीष्म और वर्षा ऋतु पाई जाती है। इसके साथ-साथ साइबेरिया से आने वाली ठंडी हवाओ को भारत में प्रवेश होने से रोकती है। हिमालय के कारण जेट धाराएँ दो शाखाओ में विभाजित हो जाती है। जो वर्षा ऋतु को प्रभावित करती है। ( 2. ) सुरक्षा दीवार:-हिमालय के ऊंचाई के कारण तथा सालो भर बर्फ जमे रहने के कारण इसे पार कर पाना काफी कठिन कार्य है। इसी कारण से भारत में अबतक उत्तर की ओर से कोई भी आक्रमण का प्रमाण नहीं मिलता है। आक्रमणकारियों द्वारा जो भी भारत में आक्रमण किये गए है। वह भारत के पश्चिम और सागर की ओर से हुए है। किन्तु वर्त्तमान समय में नए अविष्कारों जैसे:-हवाई उड़ान, सेटेलाइट, मिसाइल आदि के कारण विश्व के कोई क्षेत्र सुरक्षित नहीं है। ( 3. ) सदावाहिनी नदियों के जल का स्रोत:-हिमालय से निकलने वाली लगभग सभी नदियाँ में जल का प्रवाह सालो भर बना रहता है। जिसका मुख्य कारण इन नदियों को वर्षा के साथ-साथ हिमालय में स्थित हिमानियों से जल प्राप्त होता रहता है। ( 4. ) उत्तरी वृहत मैदान के उपजाऊ मृदा का स्रोत:-हिमालय से निकलने वाली नदियों के निक्षेपों से भारत के उत्तरी मैदान का निर्माण हुआ है। ये नदियाँ अपने साथ भरी मात्रा में जलोढ़ को बहाकर लाती है। और मैदानी क्षेत्रो में फैला देती है और यह क्रिया प्रत्येक वर्ष होता है। जिसके कारण मैदानी क्षेत्र की मिट्टियाँ उपजाऊ बनी रहती है। जिसे खादर के नाम से जाना जाता है। ( 5. ) सिचाई, पनविजली के स्रोत:-हिमालय से निकलने नाली नदियाँ सदावाहिनी होती है। जिसके कारण इसके जल का सम्पूर्ण उपयोग के लिए पर्वतीय क्षेत्रो में कई बांधो का निर्माण करके इसके जल से जलविद्युत, मछलीपालन, सिचाई के लिए नहर का निर्माण किया गया है। जैसे:- भाखड़ा-नांगल, सिलाल, दुलहस्ती, टिहरी, बगलिहार इत्यादि बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं का निर्माण किया गया है। ( 6. ) वन संसाधन की प्रचुरता:-हिमालय पर्वत श्रृंखला में विविध प्रकार के वनस्पति एवं जीव-जंतु पाए जाते है। यहाँ पर विविध ऊंचाई पर उष्ण से लेकर शीत कटिबंधीय वनस्पतियाँ पाई जाती है। जिमे विभिन्न प्रकार के वन उत्पाद प्राप्त किये जाते है। जैसे:- इमरती लकड़ी, गोंद, लाह, रेजिन, विभिन्न प्रकार के जड़ी-बूटी लकड़ी, छाल, फल, फूल, जीव-जंतु इत्यादि। ( 7. ) विशेष प्रकार की खेती:-शीत जलवायु तथा हिमानी निक्षेपों के कारण इन क्षेत्रो में विशेष प्रकार की मृदा ( करेवा निक्षेप ) पाई जाती है। जिसके कारण इन क्षेत्रो में सेब, नाशपाती, अँगूर, पीच, चेरी, कीमू, अखरोट, बादाम, जरदालू , केशर, चाय इत्यादि का उत्पादन किया जाता है। ( 8. ) खनिज सम्पदा:-हिमालय में आर्कियन से लेकर नूतन काल की चट्टानें पाई जाती है। जिसके कारण यहाँ पर विविध प्रकार की खनिज सम्पदा पाई जाती है। जैसे:- तांबा, जस्ता, निकल, सोना, चाँदी, एंटिमनी, टंगस्टन, मैग्नेसाइट, चूना पत्थर, कोयला इत्यादि। किन्तु इनका दोहन करना इतना आसान नहीं है। क्योकि हिमालय की दुर्गमता के कारण इसको निकलने में काफी कठिनाई है। ( 9. ) प्राकृतिक सौन्दर्य:-पूरी दुनियाँ में अपने प्राकृति सौन्दर्य के कारण हिमालय विख्यात है। यहाँ अनेको प्राकृति पर्यटन स्थल स्थित है। जिसे देखने के लिए दुनियाँ भर से लाखो पर्यटक प्रतिवर्ष यहाँ देखने के लिए आते है। कुछ पर्यटक स्थल इस प्रकार है। श्रीनगर, पहलगाम, गुलमर्ग, सोनमर्ग, चम्बा, डलहौजी, चर्मशाला, शिमला, मसूरी, मनाली, कांगड़ा, कुल्लू, नैनीताल, रानीखेत, अल्मोड़ा, दार्जिलिंग इत्यादि। ( 10. ) धार्मिक स्थल के रूप में:-हिमालय पर्वत विशेष कर पश्चिमी हिमालय में कई तीर्थस्थल प्राचीन काल से स्थापित किये गए है जिसे देखने के लिए प्रतिवर्ष लाखो श्रद्धालु जाते है। इन धार्मिक स्थलों में अमरनाथ, हजरतबल, कैलाश,मानसरोवर, वैष्णोदेवी, केदारनाथ, बद्रीनाथ, हरिद्वार, गंगोत्री, यमुनोत्री, ज्वालदेवी इत्यादि काफी प्रसिद्ध है। हिमालय की उत्पत्ति कौन से काल में हुई?हिमालय की उत्पत्ति
ऊपरी क्रीटैशियस काल में (840 लाख वर्ष पूर्व) भारतीय प्लेट ने तेजी से उत्तर की ओर गति प्रारंभ की और तकरीबन 6000 कि॰मी॰ की दूरी तय की।
हिमालय का निर्माण कब और कैसे हुआ है?हिमालय का निर्माण कैसे हुआ (Himalaya Ka Nirman Kaise Hua)
पृथ्वी की आंतरिक हलचलों के कारण अंगारा व गोंडवाना एक दूसरे की ओर खिसकने लगे। दोनों ओर से दबाव के कारण सागर की तलहटी में जमा मलवे में मोड़ पड़ने लगे। यह मलवा मोड़दार पर्वत के रूप में ऊपर उठता गया। इस प्रकार संसार के सबसे ऊँचे पर्वत हिमालय का निर्माण हुआ।
हिमालय का प्राचीन इतिहास क्या है?हिमालय पर्वतमाला की गणना वैज्ञानिक विश्व की नवीन पर्वत मालाओं से करते हैं। इसका निर्माण सागर तल के उठने से आज से पाँच-छह करोड़ वर्ष पहले हुआ था। हिमालय को अपनी पूरी ऊँचाई प्राप्त करने में 60 से 70 लाख वर्ष लगे। यह अपनी ऊँची चोटियों के लिये प्रसिद्ध है।
हिमालय कितने साल पुराना है?70 करोड़ वर्षों का इतिहास
माना यह जाता है कि हिमालय का अस्तित्व 70 करोड़ वर्षों से भी अधिक पुराना है. भारत ऑर एशिया में बडे़ पैमाने पर विस्फोटक टकराव के उपरांत इस पर्वत श्रृंखला का जन्म हुआ।
हिमालय का प्राचीन नाम क्या है?बृहत् हिमालय नया नाम है। प्राचीन नाम हिमाद्रि था। इन श्रेणियों को पूर्व और पश्चिम दो भागों में बाँट सकते हैं। पश्चिमी भाग कराकोरम है।
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