ग्रामीण और नगरीय जीवन में क्या अंतर है? - graameen aur nagareey jeevan mein kya antar hai?

सारे किसान और उनके परिवार, समुदाय में खेती के अतिरिक्त साधारणत: अन्य व्यवसायों के कुछ प्रतिनिधि होते हैं।

सब लोग विशेषत: वस्तुओं का निर्माण, यांत्रिक कार्य, व्यापार, उद्योग, व्यवसाय, शासन के तथा दूसरे खेती के अतिरिक्त व्यवसाय करते हैं।

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ग्रामीण जीवन और शहरी जीवन में अगर अंतर देखा जाए तो मात्र इतना है कि यहां का जीवन काफी तेज है और वहां का स्लो है लेकिन सुख-दुख की जहां तक बातें हैं तो हमारी मानसिकता पर निर्भर कर्ता करे लोग कहते हैं शहरी जीवन काफी तेज होने के कारण लोगों और लोगों में भगदड़ है यह है वह है अगर सिर्फ ऐसा ही होता तो ग्रामीण के सारे लोग सुखी होते हैं परंतु यह मानसिकता है यह हमारी सोच है हम किस प्रकार से चीजों को लेते हैं परिस्थितियों को अपनी स्व की स्थिति से सुधारा जा सकता है अगर आप को ठंड लग रही है तो आप एक हैं कि नहीं ठंडी है बाहर चंडी है तो इससे स्थिति समाप्त नहीं हो सकती परिस्थिति समाप्त नहीं होगी आपको स्वेटर पहनना पड़ेगा तो परिस्थितियों को अपने स्वास्थ्य कैसे सुधारे चाहे हम ग्रामीण में हो जाए आप शहर में हो आप कहीं पर भी हो आपको किसी भी प्रकार की आपत्ति नहीं हो सकती फर्क सिर्फ इतना है ग्रामीण जीवन में थोड़ा सा हमको वातावरण के सानिध्य में रहने का अधिक मौका मिलता है शहर में थोड़ा सा कम है लेकिन जहां तक सुख दुख की बात है तो हम अपने संकल्पों द्वारा ही उसे प्राप्त कर सकते हैं चाय हम कहीं पर भी हो

gramin jeevan aur shahri jeevan me agar antar dekha jaaye toh matra itna hai ki yahan ka jeevan kaafi tez hai aur wahan ka slow hai lekin sukh dukh ki jaha tak batein hain toh hamari mansikta par nirbhar karta kare log kehte hain shahri jeevan kaafi tez hone ke karan logo aur logo me bhagadad hai yah hai vaah hai agar sirf aisa hi hota toh gramin ke saare log sukhi hote hain parantu yah mansikta hai yah hamari soch hai hum kis prakar se chijon ko lete hain paristhitiyon ko apni swa ki sthiti se sudhara ja sakta hai agar aap ko thand lag rahi hai toh aap ek hain ki nahi thandi hai bahar chandi hai toh isse sthiti samapt nahi ho sakti paristhiti samapt nahi hogi aapko swetar pahanna padega toh paristhitiyon ko apne swasthya kaise sudhare chahen hum gramin me ho jaaye aap shehar me ho aap kahin par bhi ho aapko kisi bhi prakar ki apatti nahi ho sakti fark sirf itna hai gramin jeevan me thoda sa hamko vatavaran ke sanidhya me rehne ka adhik mauka milta hai shehar me thoda sa kam hai lekin jaha tak sukh dukh ki baat hai toh hum apne sankalpon dwara hi use prapt kar sakte hain chai hum kahin par bhi ho

ग्रामीण जीवन और शहरी जीवन में अगर अंतर देखा जाए तो मात्र इतना है कि यहां का जीवन काफी तेज

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ग्रामीण और नगरीय जीवन में क्या अंतर है? - graameen aur nagareey jeevan mein kya antar hai?
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ग्रामीण और नगरीय जीवन में क्या अंतर है? - graameen aur nagareey jeevan mein kya antar hai?

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ग्रामीण और नगरीय जीवन में क्या अंतर है? - graameen aur nagareey jeevan mein kya antar hai?

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ग्रामीण जीवन: ग्रामों में प्रकृति का प्रभुत्व है। वहां की धरती हरित परिधान धारण किए दिखलाई पड़ती है। पक्षियों का कलरव सबका मन मोह लेता है। बागों में मयूर नृत्य करते दिखलाई पड़ते हैं। कोयल का मधुर गान सबके ह्रदय को छू लेता है। प्रकृति का कण-कण मानव जीवन को उम्मीद से भर देता है। ग्रामीणों की विशेषता है कि वह स्वभाव के सरल होते हैं। उनका रहन-सहन सादा होता है। उनकी ग्रहणी सच्चरित्र की मूर्ति होती हैं। वे अतिथि का बहुत सम्मान करते हैं। वे एक दूसरे की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। उनमे छल कपट नाम को भी नहीं होता। शिक्षित ना होने पर भी उनमें एक दूसरे के लिए अपार श्रद्धा होती है। यदि ग्रामो में नगरों की भी सुविधाएं जैसे शिक्षा, प्रकाश ,स्वच्छता ,चिकित्सा व मनोरंजन आदि का प्रबंध हो जाए तो ग्राम जीवन में निसंदेश धर्म ओर स्वर्ग का आनंद दे सकता है।

नगरीय जीवन: इसके विपरीत नगरों में उन्नति के सभी साधनों सुविधा उपलब्ध होती है। इसी कारण नगरवासी सभ्य , शिक्षित, चतुर, ओर गुणी होते हैं। यहां उद्योग और व्यापार तेजी से पनपता है। इसलिए यहां के लोग धनवान होते हैं। यहां के निवासी भौतिकवादी वह अवसरवादी हो जाते हैं। इसमें स्वार्थपरता की भावना अधिक हो जाती है। उनके व्यवहार में कृतिमता अधिक तथा वास्तविकता कम होती है। अधिकतर बुराइयों को नगरों में ही आश्रय मिलता है। यहां के मिलो तथा वाहनों की अधिकता के कारण प्रदूषण भी प्रचुर मात्रा में पनपता है। यहां अनेक प्रकार के घोर अपराध जन्म लेते हैं, तथा पनपते रहते हैं।

उपसंहार: संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि दोनों एक-दूसरे से अटूट संबंध है। नगरों में व्यवसाय होता है। तो गांवों में कृषि की जाती है। यदि नगर गाँवो की दूसरी जीवन-उपयोगी वस्तु की पूर्ति करते हैं। तो गांव नगरों को फल – फूल, सब्जी, दूध और अन्न प्रदान करते हैं। अतः दोनों के सहयोग से ही राष्ट्र की उन्नति संभव है। अतः दोनों की अपनी-अपनी जगह महत्ता रहता है।

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ग्रामीण एवं नगरीय जीवन में क्या अंतर है?

ग्रामों मे परिवार का आकार बड़ा, परिवार पितृसत्तात्मक, परिवार के सदस्यों मे संबंधों की घनिष्ठता आदि पाई जाती है किन्तु नगरीय समाज मे परिवार का आकार छोटा है और माता-पिता की समान सत्ता होती है तथा परिवार के सदस्यों मे घनिष्ठता पाई जाती है। ग्रामीण परिवारों के बच्चों एवं स्त्रियों को अधिक महत्व नही दिया जाता।

ग्रामीण नगरीय से आप क्या समझते हैं?

ग्रामीण-नगरीय सातत्य को मानने वाले विद्वानों का मत है कि ग्राम एवं नगर में अंतर मुख्यतः भौगोलिक, जनसंख्यात्मक और आर्थिक दृष्टि से इतने स्पष्ट नहीं है जितने सामाजिक दृष्टि से सामाजिक क्रिया की दृष्टि से गांव एवं नगर में भिन्नता पाई जाती है किंतु ग्रामवासियों एवं नगर वासियों की परस्पर अंतःक्रिया के परिणामस्वरूप ही गांव ...

नगरीय जीवन क्या है?

नगरीय समाज में विभिन्न संस्कृतियों से संबंधित लोग निवास करते हैं। जिनमें वेशभूषा खानपान रहन-सहन तथा धार्मिक परंपराओं में अनेक तरह की विभिन्नता पाई जाती है। अतः कहा जाता है कि नगरीय समाज में सामाजिक एकता का अभाव देखने को मिलता है। नगरीय समाज में लोग अपने-अपने कार्यों में लगे रहते हैं।

नगरीय जीवन की मुख्य विशेषताएं क्या है?

नगरीय समुदाय की पहली विशेषता सामाजिक विभिन्नता का होना है। नगरों मे रहने वाले लोगो के सामाजिक जीवन मे बहुत अधिक भिन्नता देखने को मिलती है। इनकी वेशभूषा, खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार, विश्वास एवं धारणायें, आर्थिक स्थिति, शिक्षा का स्तर, धर्म व्यवसाय इत्यादि समस्त क्षेत्रों मे विभिन्नता देखने को मिलती है।