Abstract भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि और पर्यटन सम्मिलित रूप से दोनों ऐसे क्षेत्र हैं जिनसे सबसे अधिक रोजगार प्राप्त होता है। इस संदर्भ में जैविक खेती और उससे जुड़े उत्पाद अधिक कारगर है। भारत की 70 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में निवास करती है जो कृषि पर निर्भर है। भारत में 9 करोड़ से अधिक किसान यहाँ के 6 लाख गांवों में निवास करते हैं जो प्रति वर्ष 27 करोड़ टन से अधिक खाद्यान्न का उत्पादन करते हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ बागवनी उत्पाद, फल-फूल, डेयरी उत्पाद, पशुधन उत्पाद तथा पोल्ट्री व मछली इत्यादि उत्पाद प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से उत्पादित किया जाता है। उक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि भारत का ’एग्रीकल्चर’ ही यहाँ का ’कल्चर’ है। कृषि-पर्यटन किसानों और गांव के लोगों के अतिरिक्त आय के साधन के रूप में विकसित हुआ है। कम उपज प्राप्त होने की स्थिति में कृषि-पर्यटन द्वारा जहाँ किसानों के आमदनी के स्रोत बढ़ते हैं वहीं पर्यटन की इस क्रिया से किसान अत्मनिर्भर भी होते हैं। भारत में आने वाले विदेशी पर्यटकों की रूचि यहाँ के गांवों का जीवन और कृषि पर निर्भर लोगों को जानने व समझने में अधिक है। प्रस्तुत शोध आलेख में भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि क्षेत्र में कृषि-पर्यटन की संभावनाओं की सामयिक समीक्षा की गयी है। कृषि, भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। भारत में कृषि सिंधु घाटी सभ्यता के दौर से की जाती रही है। १९६० के बाद कृषि के क्षेत्र में हरित क्रांति के साथ नया दौर आया। सन् २००७ में भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि एवं सम्बन्धित कार्यों (जैसे वानिकी) का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में हिस्सा 16.6% था। उस समय सम्पूर्ण कार्य करने वालों का 51℅ कृषि में लगा हुआ था। Show भारत में कृषि की गौरवशाली परम्परा रही है। इतिहासकारों द्वारा किया गया शोध यह दर्शाता है कि भारत में सिन्धु घाटी सभ्यता के समय में भी कृषि व्यवस्था अर्थव्यवस्था की रीढ़ हुआ करती थी। वैदिक काल में बीजवपन, कटाई आदि क्रियाएं की जाती थीं। हल, हंसिया, चलनी आदि उपकरणों का चलन था तथा इनके माध्यम से गेहूं, धान, जौ आदि अनेक धान्यों का उत्पादन किया जाता था। चक्रीय परती पद्धति के द्वारा मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने की परम्परा के निर्माण का श्रेय भी प्राचीन भारत को जाता है। रोम्सबर्ग (यूरोपीय वनस्पति विज्ञान के जनक) के अनुसार इस पद्धति को बाद में पाश्चात्य जगत में भी अपनाया गया। विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद के अक्षसूक्त में कृषि का गौरवपूर्ण उल्लेख श्लोकों में देखा जा सकता है: अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित् कृषस्व वित्ते रमस्व बहुमन्यमानः” (ऋग्वेद- 34-13)अर्थात् जुआ मत खेलो, कृषि करो और सम्मान के साथ धन पाओ। नारदस्मृति, विष्णु धर्मोत्तर पुराण, अग्नि पुराण आदि में भी कृषि के सन्दर्भ में उल्लेख मिलते हैं। कृषि पाराशर तो विशेष रूप से कृषि की दृष्टि से एक मान्य ग्रंथ माना जाता है, जिसमें कुछ विशेष तथ्यों का दर्शन मिलता है। कृषिर्धन्या कृषिर्मेध्या जन्तूनां जीवनं कृषिः । (कृषि पाराशर-श्लोक-७)अर्थात् कृषि सम्पत्ति और मेधा प्रदान करती है तथा कृषि ही मानव जीवन का आधार है।[1]सिंधुनदी घाटी सभ्यता पर शोध के दौरान कांठे के पुरावेशों के उत्खनन से इस तथ्य के प्रचुर प्रमाण प्राप्त हुए हैं कि लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व कृषि अत्याधिक उन्नत अवस्था में थी। यहाँ राजस्व का भुगतान अन्न देकर किया जाता था, यह अनुमान साहित्यकारों और पुरातत्ववेत्ताओं ने मोहनजोदड़ो में उत्खनन से मिले बड़े बड़े कोठारों के आधार पर लगाया है। इसके अतिरिक्त खुदाई में प्राप्त हुए गेहूँ एवं जौ के नमूनों से उनके उक्त समय मुख्य फसल के रूप में पाए जाने की भी पुष्टि हुई है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मौर्य राजाओं के काल में कृषि, कृषि उत्पादन आदि को बढ़ावा देने हेतु कृषि अधिकारी की नियुक्ति का वर्णन मिलता है। यूनानी यात्री मेगस्थनीज ने भी लिखा है कि मुख्य नाले और उसकी शाखाओं में जल के समान वितरण को निश्चित करने व नदी और कुओं के निरीक्षण के लिए राजा के द्वारा अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी। भारत की स्वतंत्रता के पूर्व भारतीय कृषि पर सबसे अधिक दुष्प्रभाव पड़ा। इस काल में भारतीय अर्थव्यवस्था शोषित होकर अंग्रेजी स्वार्थवाद का शिकार बनकर रह गयी थी और इसका परिणाम सभी क्षेत्रों में देखने को मिला। वस्तुतः यह भारतीय कृषि क्षेत्र के शोषण का समयकाल था, जिसके परिणामस्वरूप कृषि की हालत बदतर हो गयी। स्वतन्त्र होने के बाद भारत में कृषि में 1960 के दशक के मध्य तक पारंपरिक बीजों का प्रयोग किया जाता था जिनकी उपज अपेक्षाकृत कम थी। उन्हें सिंचाई की कम आवश्यकता पड़ती थी। किसान उर्वरकों के रूप में गाय के गोबर आदि का प्रयोग करते थे। १९६० के बाद उच्च उपज बीज (HYV) का प्रयोग शुरू हुआ। इससे सिंचाई और रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ गया। इस कृषि में सिंचाई की अधिक आवश्यकता पड़ने लगी। इसके साथ ही गेहूँ और चावल के उत्पादन में काफी वृद्धी हुई जिसके कारण इसे हरित क्रांति भी कहा जाता है। भारत में विभिन्न वर्षों में दाल-गेहूँ का उत्पादन (दस करोड़ टन में)[कृपया उद्धरण जोड़ें]-
भारत में कृषि के परंपरागत औजारों जैसे फावड़ा, खुरपी, कुदाल, हँसिया, बल्लम, के साथ ही आधुनिक मशीनों का प्रयोग भी किया जाता है। किसान जुताई के लिए ट्रैक्टर, कटाई के लिए हार्वेस्टर तथा गहाई के लिए थ्रेसर का प्रयोग करते हैं। मढ़ाई (पिटाई) , कपास की चुनाई, धान की खेती के लिये लेव लगाता किसान, और चाय की पत्तियाँ तोड़ती एक स्त्री २०१० संयुक्त राष्ट्र कृषि तथा खाद्य संगठन के विश्व कृषि सांख्यिकी, के अनुसार भारत के कई ताजा फल और सब्जिया, दूध, प्रमुख मसाले आदि को सबसे बड़ा उत्पादक ठहराया गया है। रेशेदार फसले जैसे जूट, कई स्टेपल जैसे बाजरा और अरंडी के तेल के बीज आदि का भी उत्पादक है। भारत गेहूं और चावल की दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत, दुनिया का दूसरा या तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है कई चीजो का जैसे सूखे फल, वस्त्र कृषि-आधारित कच्चे माल, जड़ें और कंद फसले, दाल, मछलीया, अंडे, नारियल, गन्ना और कई सब्जिया। २०१० मई भारत को दुनिया का पॉचवा स्थान हासिल हुआ जिसके मुताबिक उसने ८०% से अधिक कई नकदी फसलो का उत्पादन् किया जैसे कॉफी और कपास आदि। २०११ के रिपोर्ट के अनुसार, भारत को दुनिया में पाँचवे स्थान पर रखा गया जिसके मुताबिक व सबसे तेज़ वृद्धि के रूप में पशुधन उत्पादक करता है। २००८ के एक रिपोर्ट ने दावा किया कि भारत की जनसंख्या, चावल और गेहूं का उत्पादन करने की क्षमता से अधिक तेजी से बढ़ रही है। अन्य सुत्रो से पता चलता है कि, भारत अपनी बढती जनसंख्या को आराम से खिला सकता है और साथ ही साथ चावल और गेहूं को निर्यात भी कर सकता है। बस, भारत को अपनी बुनियादी सुविधाओं को बढाना होगा जिससे उत्पादक भी बढे जैसे अन्य देश ब्राजील और चीन ने किया। भारत २०११ में लगभग २लाख मीट्रिक टन गेहूँ और २.१ करोड़ मीट्रिक टन चावल का निर्यात अफ्रीका, नेपाल, बांग्लादेश और दुनिया भर के अन्य देशों को किया। जलीय कृषि और पकड़ मत्स्यपालन भारत में सबसे तेजी से बढ़ते उद्योगों के बीच है। १९९० से २०१० के बीच भारतीय मछली फसल दोगुनी हुई, जबकि जलीय कृषि फसल तीन गुना बढ़ा। २००८ में, भारत दुनिया का छठा सबसे बड़ा उत्पादक था समुद्री और मीठे पानी की मत्स्य पालन के क्षेत्र में और दूसरा सबसे बड़ा जलीय मछली कृषि का निर्माता था। भारत ने दुनिया के सभी देशों को करीब ६,00,000 मीट्रिक टन मछली उत्पादों का निर्यात किया। भारत ने पिछ्ले ६० वर्षो मैं कृषि विभाग में कई सफलताए प्राप्त की है। ये लाभ मुख्य रूप से भारत को हरित क्रांति, पावर जनरेशन, बुनियादी सुविधाओं, ज्ञान में सुधार आदि से प्राप्त हुआ। भारत में फसल पैदावार अभी भी सिर्फ ३०% से ६०% ही है। अभी भी भारत में कृषि प्रमुख उत्पादकता और कुल उत्पादन लाभ के लिए क्षमता है। विकासशील देशों के सामने भारत अभी भी पीछे है। इसके अतिरिक्त, गरीब अवसंरचना और असंगठित खुदरा के कारण, भारत ने दुनिया में सबसे ज्यादा खाद्य घाटे से कुछ का अनुभव किया और नुकसान भी भुगतना पड़ा। भारत में सिंचाई का मतलब खेती और कृषि गतिविधियों के प्रयोजन के लिए भारतीय नदियों, तालाबों, कुओं, नहरों और अन्य कृत्रिम परियोजनाओं से पानी की आपूर्ति करना होता है। भारत जैसे देश में, ६४% खेती करने की भूमि, मानसून पर निर्भर होती है। भारत में सिंचाई करने का आर्थिक महत्त्व है - उत्पादन में अस्थिरता को कम करना, कृषि उत्पादकता की उन्नती करना, मानसून पर निर्भरता को कम करना, खेती के अंतर्गत अधिक भूमि लाना, काम करने के अवसरों का सृजन करना, बिजली और परिवहन की सुविधा को बढ़ाना, बाढ़ और सूखे की रोकथाम को नियंत्रण में करना। विपणन के विकास के लिए निवेश की आवश्यकता स्तर, भंडारण और कोल्ड स्टोरेज बुनियादी सुविधाओं को भारी होने का अनुमान है। हाल ही में भारत सरकार ने पूरी तरह से कृषि कार्यक्रम का मूल्यांकन करने के लिए किसान आयोग का गठन किया। हालांकि सिफारिशों का केवल एक मिश्रित स्वागत किया गया है। नवम्बर २०११ में, भारत ने संगठित खुदरा के क्षेत्र में प्रमुख सुधारों की घोषणा की। इन सुधारों में रसद और कृषि उत्पादों की खुदरा शामिल हुई। यह सुधार घोषणा प्रमुख राजनीतिक विवाद का कारण भी बना। यह सुधार योजना, दिसंबर २०११ में भारत सरकार द्वारा होल्ड पर रख दिया गया था ॥ वित्त वर्ष २०१३-१४ के अंत में भारत में कृषि की स्थिति[2][संपादित करें]भारत की प्रमुख फसलों के उत्पादक क्षेत्र
भारत का कृषि निर्यात 50 बिलियन डॉलर की ऐतिहासिक उंचाई पर पहुंच गया है। वर्ष 2021-22 के लिए कृषि उत्पाद का निर्यात 50 बिलियन डॉलर को पार कर गया है। यह अब तक का सबसे अधिक कृषि उत्पाद निर्यात है। वाणिज्यिक जानकारी एवं सांख्यिकी महानिदेशालय द्वारा जारी अनंतम आंकड़ों के अनुसार 2021-22 के दौरान कृषि उत्पाद 19.92 फीसद बढ़कर 50.21 बिलियन डॉलर हो गया। यह वृद्धि दर शानदार है और 2020-21 के 17.66 फीसदी यानि 41.87 बिलियन से अधिक है। पिछले 2 वर्षों की यह उपलब्धि किसानों की आय में सुधार में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के सपने को साकार करने में काफी अधिक सफल होगी। चावल, गेहूं, चीनी और अन्य अनाजों के लिए यह अब तक का सबसे अधिक निर्यात है। गेहूं निर्यात में अप्रत्याशित 273 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई है।[3] भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का कितना प्रतिशत योगदान है?कृषि का भारतीय अर्थव्यस्था के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 14 % योगदान है। लेकिन लगातार हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान घट रहा है। 1950 के दशक में हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान 53 प्रतिशत होता था जो वर्तमान में करीब 14 % रह गया है। देश में निर्यात के क्षेत्र में कृषि का 10 % हिस्सा है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण अंग कौन सा है?कृषि हमारे देश की अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण कड़ी मानी जाती है। इससे लाखों लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रोजगार मिलता है। ऐसे में देश के किसानों को सही समय पर खाद, बीज और अन्य सामान मिल सके इसमें बैंकिंग सेक्टर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, खास करके ग्रामीण क्षेत्रों में।
भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान कितना है?इस साल पेश की गई आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक साल 2021-22 में देश की जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी 20.2 फीसदी थी, जो 2021-22 में 18.8 फीसदी दर्ज की गई है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व क्यों है?कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है जो न केवल इसलिए कि इससे देश की अधिकांश जनसंख्या को खाद्य की आपूर्ति होती है बल्कि इसलिए भी भारत की आधी से भी अधिक आबादी प्रत्यक्ष रूप से जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है ।
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