फीचर लेखन क्या है, फीचर लेखन Show
फीचर लेखन Feature writing Kya Hoti haiफीचर क्या है? उसकी लेखन प्रक्रिया को सोदाहरण समझाइए ।संपादकीय के बारे में विस्तार से जानने के बाद अब आपको फीचर लेखन की प्रक्रिया से अवगत कराया जा रहा है। सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि फीचर क्या है? फीचर क्या है?
फीचर के तत्त्व Elements of Feature Writing1. फीचर पाठक को आकर्षित करने में समर्थ और पाठक की जिज्ञासा को निरंतर बढ़ाने वाला होना चाहिए तभी रोचकता बनी रहेगी। सूचना, शिक्षण और मनोरंजन तीनों का समन्वय फीचर में होना चाहिए। 2. फीचर सत्य पर आधारित और मौलिक होना चाहिए। यह तथ्यात्मक रूप से सटीक होना चाहिए। इसमें मौलिकता फीचर लेखक द्वारा किए गए गहन तथ्यान्वेषण से आती है। 3. फीचर समसामयिक होना चाहिए, सामाजिक जीवन के निकट होना चाहिए तभी यह उपयोगी और प्रभावकारी होगा। उसका आकार संक्षिप्त होना चाहिए लेकिन अपने आप में पूर्ण होना चाहिए। वह गागर में सागर प्रतीत हो। 4. चित्रात्मकता फीचर का आवश्यक गुण है। यह चित्रात्मकता फीचर लेखक की शैली से आती है। अतः फीचर लेखक की शैली सीधी-सपाट न होकर चित्रात्मक होनी चाहिए। कथात्मक अनुभूति की प्रतीति भी फीचर में होनी चाहिए। 5. भाषा भी सहज, सरल, विषयानुरूप, भावानुरूप और लालित्यपूर्ण होनी चाहिए। उसका प्रवाह छोटी नदी के समान होना चाहिए। वाक्यों में तारतम्य हो और वाक्य गठन में अनेकरूपता हो शब्दों, वाक्यों और विचारों में पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए और कुछ भी अनावश्यक नहीं होना चाहिए। फीचर लेखक के गुणएक फीचर लेखक में निम्नलिखित गुण होने चाहिए1. उसमें निरीक्षण शक्ति होनी चाहिए ताकि वह वस्तु को देखकर उसे आत्मसात कर सके। इसके माध्यम से फीचर लेखक उन तथ्यों तक पहुंच सकता हैं जिन तक सामान्य पाठक नहीं पहुंच पाता है। 2. फीचर-लेखक को बहुज्ञ, अध्ययनशील और कलम का धनी होना चाहिए। उसका भाषा पर पूरा अधिकार होना चाहिए। उसकी भाषा विषय और विचार के अनुकूल कलात्मक और उद्देश्यपूर्ण होनी चाहिए। धर्म, दर्शन, संस्कृति, समाज, साहित्य, इतिहास आदि की समझ न केवल उसके बहुआयामी व्यक्तित्व को सामने लाती है बल्कि फीचर को आकर्षक, तथ्यपूर्ण और प्रभावपूर्ण भी बनाती है। 3. फीचर लेखक को आत्मविश्वास से परिपूर्ण होना चाहिए। उसका ज्ञान और अनुभव उसके फीचर में झलकना चाहिए। उसे अपनी आंखों और कानों पर विश्वास होना चाहिए और उसी आधार पर फीचर लेखन करना चाहिए। 4. फीचर लेखक को निष्पक्ष और अपने परिवेश के प्रति सदैव जागरूक रहना चाहिए। उसका विषय प्रतिपादन, विश्लेषण और प्रस्तुति प्रामाणिक हो, न कि आरोपित और संकीर्ण। इसी प्रकार परिवेश और समसामयिक परिस्थितियों के प्रति उसकी जागरूकता घटनाओं के सही और सूक्ष्म विश्लेषण में सहायक होगी। फीचर लेखन क्या है?
फीचर लेखन के निम्नलिखित बिंदु माने जा सकते हैं -(1) विषयवस्तु, (2) सामग्री-संकलन, (3) प्रस्तावना या भूमिका या आरंभ, (4) विवेचन विश्लेषण या मध्य, (5) उपसंहार या निष्कर्ष या अंत और (6) शीर्षक। यहां इनका क्रमशः विवेचन प्रस्तुत है 1. विषयवस्तु
2. सामग्री संकलन
3. प्रस्तावना या भूमिका -
4. विवेचन-विश्लेषण -
5. उपसंहार या निष्कर्ष
6. शीर्षक
फीचर का एक उदाहरणयहाँ फीचर का एक उदाहरण प्रस्तुत हैं जिनके अध्ययन से फीचर लेखन का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने में सहायता मिल सकती है- मीठा दर्द मर्द का शीर्षक मर्द को कभी दर्द नहीं होता। कहने को तो यह डायलॉग करीब डेढ़ दशक पहले आई फिल्म मर्द का है। परंतु आज भी इसे सुनकर पुरुषों का सीना गर्व से चौड़ा हुए बिना नहीं रहता । अंग्रेजी में कहा जाता है 'बॉय्ज डोंट क्राई।' रोती तो लड़कियाँ हैं! लेकिन दोनों ही बातें उतनी सच नहीं है, जितनी दिखाई पड़ती हैं। समय बदल चुका है। इसके साथ भारतीय समाज में भी बदले हुए पुरुषों की ‘नस्ल’ दिखाई देने लगी है। नई नस्ल के ये पुरुष नौकरी के साथ घर की साफ-सफाई करते हैं, खाना बनाते हैं, बच्चों को नहलाते और तैयार करते हैं! इस पुरुष को मीडिया में कभी जगह मिलती है तो परंपरावादी पुरुष आश्चर्य से उसे देखते हैं। उस पर कभी हंसते हैं और कभी उनके मन में डर पैदा होता है कि क्या कभी हमारे दरवाजे पर भी यह बदलाव दस्तक देगा!! प्रस्तावना निश्चित ही हमारे समय के भारतीय पुरुष के मस्तिष्क में बड़ी उथल-पुथल मची है। न वह अपने पारंपरिक हठी, अक्खड़, स्वार्थी, रौबदार और अहंकारी व्यक्तित्व को संभाले रख पा रहा है और न ही नई उदार, सहिष्णु, प्रेममय, जिम्मेदार और संवेदनशील छवि को पूरी तरह आत्मसात कर पा रहा है। यद्यपि इस उलझन की अंतिम परिणति अक्सर महिलाओं के विरुद्ध उसके किए अपराधों में झलकती है परंतु यह उसके अनेक चेहरों में से सिर्फ एक चेहरा है। अपने बाकी चेहरों में पुरुष हैरान, परेशान, कुंठित और लाचार है। बदले समय के साथ न बदल पाने के अपने दर्द से निजात पाने का सही रास्ता उसे नहीं दिख रहा। वह मीठे दर्द की तरह अपनी उलझनों की कलीफ सह रहा है। सटीक प्रतिक्रिया कर पाने की स्थिति में नहीं है। पूर्व और पश्चिम की सभ्यताओं के संधिकाल में, हमारा सामाजिक पुरुष नहीं समझ पा रहा है कि वह किसे अपनाए और किसे छोड़े। उसकी जैविक जरूरतें और आदतें, तमाम नारीवादी आंदोलनों और स्त्री विमर्श के दौर में किसी 'अपराध' से कम नहीं मालूम पड़ती। उसके सामने एकाएक परिस्थितियाँ और चीजें बदलने लगी हैं। टीवी सीरियल और विज्ञापन उसे अपने से तेज, स्मार्ट और बुद्धिमान महिलाओं के आगे भोंदू और उसका मजाक उड़ाते दिखाते हैं। इससे भी बड़ी मुश्किल पुरुष के सामने यह आती है कि महिलाओं के पास कम-से-कम अपनी बेहतरी/समानता/स्वतंत्रता के लक्ष्य तो हैं, परंतु पुरुष के पास ऐसा कोई लक्ष्य नहीं है। पुरुष समझ नहीं पड़ता कि आखिर यह सब हो क्या रहा है? को ऐलन और बारबरा प्रेस की पुस्तक 'वाई मेन लाई ऐंड वुमन क्राई' में एक रोचक तथ्य है। 1960 के दशक से, जबकि दुनिया भर में नारीवादी आंदोलन ज्यादा मुखर हुए और उन्हें सफलता भी मिली, महिलाओं की आत्महत्या की दर में 34 फीसदी तक गिरावट आई. लेकिन पुरुषों की आत्महत्या दर 16 फीसदी तक बढ़ गई !! वास्तव में हमारे समय में पुरुष होना तमाम जटिलताओं के बीच जीना है। यद्यपि यह पश्चिमी दुनिया का तथ्य है परंतु ऐसा नहीं कि हमारा समाज पश्चिमी हवाओं से बेअसर रहा। पुरानी पीढ़ियों में परिवार के सदस्यों की भूमिकाएँ स्पष्ट थीं। पुरुष घर का मुखिया था। वह कमाकर लाता था। संरक्षक था । स्त्री पत्नी, माँ, बहन की भूमिका में सबको साथ लेकर चलने और दुलारने वाली थी। पुरुष को अपनी जिम्मेदारियाँ पता थीं, स्त्री को अपनी जीवन सरल था। परंतु आज एकाएक सामाजिक परिदृश्य बदल चुका है। यही पुरुष की मानसिक उलझनों को बढ़ाने वाला है। नई पीढ़ी के किशोर और युवा भी, पश्चिमी प्रभावों और हमारी परंपरा के द्वंद्व में उलझे हैं। उन्हें अच्छा लगता है कि स्कूल और कॉलेज में उनकी गर्लफेंड हो। परंतु वे समझ नहीं पाते कि इस दोस्ती को क्या अंजाम दें? दिल्ली में छात्रों को सलाह देने वाली संस्था आस्था के लड़के अक्सर यह जानना चाहते हैं कि उनके संबंधों की सीमा क्या होनी चाहिए? अनुसार भारतीय और पश्चिमी जीवनशैली के द्वंद्व में फंसे आशीष नंदन (बदला हुआ नाम) को अपनी अपनी पत्नी से हाथ धोना पड़ा। आशीष की पत्नी तलाक लेकर अब उनके पक्के दोस्त से कोर्ट मैरिज कर चुकी है। आशीष बताते हैं 'मैंने कभी अपनी पत्नी को पैरों की जूती नहीं समझा। मैंने अपनी पत्नी का एक मनुष्य की तरह सम्मान किया और समझा कि एक सामान्य व्यक्ति की तरह उसे भी स्पेस की जरूरत होगी परंतु उसने मुझ पर अपनी उपेक्षा करने का आरोप लगाया। 'विवेचन विश्लेषण यूनिवर्सिटी ऑफ डेनवेर के फैमिली थेरेपिस्ट ऐंड साइकोलॉजिस्ट हॉवर्ड मार्कमेन का विश्वास है कि खेल के मैदान, युद्ध या व्यवसाय में पुरुष हमेशा सधा हुआ प्रदर्शन करते हैं क्योंकि वहाँ चीजें निश्चित नियमों और दायरों में बंधी रहती हैं परंतु यहाँ स्त्री-पुरुष संबंधों के निर्वाह में कोई स्पष्ट नियम लागू नहीं होता और पुरुष गच्चा खा जाते हैं। विज्ञान के अध्ययनों में कहा गया है कि विवाहित पुरुष अविवाहित पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा जीते हैं परंतु विवाहित पुरुषों का कहना है कि ऐसा सिर्फ आभास होता है, असल में ऐसा होता नहीं!! निष्कर्ष एक नजर इधर भी
4 बातें
फीचर लेखन का चर्चित नाम कौन सा है *?पत्रकारिता की भाषा में जिसे समाचार फीचर कहा जाता है। वास्तव में वह घटना मूलक फीचर ही है। क्योंकि समाचार के मूल में कोई ना कोई घटना अवश्य होती है। घटना मूलक फीचर का लेखन समाचार पत्रों का बड़ा सूक्षम निरीक्षण करता है , और वह उन समाचारों की तलाश में रहता है , जिसमें एक फीचर के बीज होते हैं।
फीचर लेखन किसकी विधा है?फीचर समाचारों के प्रस्तुतिकरण की ही एक विधा है लेकिन समाचार की तुलना में फीचर में गहन अध्ययन, चित्रों, शोध और साक्षात्कार आदिके जरिए विषय की व्याख्या होती है। उसका विस्तृत प्रस्तुतिकरण होताहै और यह सब कुछ इतनसहज और रोचक ढंग से होता है कि पाठक उसके बहाव में बंधता चला जाता है।
फीचर का क्या अर्थ है?feature lekhan kya hai (फीचर लेखन क्या है या रूपक क्या है)
किसी घटना व्यक्ति या वस्तु अथवा स्थिति को केंद्र में रखकर जानकारी पूर्ण और रोचक विवरण प्रस्तुत करना फीचर कहलाता है। कब क्यों कैसे और कौन आदि सभी प्रश्नों को सुस्पष्ट करने वाले समाचार से आगे बढ़कर फीचर उन सभी महत्वपूर्ण और गुड बातों को भी स्पष्ट करता है।
3 फीचर लेखन की प्रक्रिया के मुख्य अंग कितने हैं?=> विषय की विविधता और उसके विस्तार की दृष्टि से फीचर लेखन निम्न प्रकार के भी हो सकते हैं –. समाचारों पर आधारित. सांस्कृतिक. विशिष्ट घटनाओं जैसे – युद्ध , अकाल , दुर्घटना , दंगे आदि पर आधारित. राजनीतिक घटनाओं पर आधारित. सामाजिक घटनाओं पर आधारित. वाद – विवाद संबंधी चिंतातमक. आंचलिक. व्यक्ति विशेष पर आधारित. |