छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्व पर आधारित एक परियोजना तैयार कीजिए - chhatteesagadh ke pramukh parv par aadhaarit ek pariyojana taiyaar keejie

छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्व पर आधारित एक परियोजना तैयार कीजिए - chhatteesagadh ke pramukh parv par aadhaarit ek pariyojana taiyaar keejie

May 26, 2020July 28, 2022 Cg ke pramukh tyohar, Cg tyohar, Chhattisgarh ka tyohar, Chhattisgarh ka tyohar in hindi, Chhattisgarh ke pramukh tyohar, Chhattisgarh ke tyohar ke nam, Chhattisgarh of festival, Chhattisgarh tyohar, Festival of chhattisgarh, Festival of chhattisgarh in hindi, Tyohar dekho, Tyohar of Chhattisgarh

हेलो दोस्तों मेरा नाम है हितेश कुमार इस पोस्ट में मैं आपको छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्यौहार के बारे में जानकारी देने वाला हूं। 

छत्तीसगढ़ का त्यौहार

छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्व पर आधारित एक परियोजना तैयार कीजिए - chhatteesagadh ke pramukh parv par aadhaarit ek pariyojana taiyaar keejie

छत्तीसगढ़ का प्रमुख त्यौहार इस प्रकार है-

1.हरेली  2. भोजली  3. हलषष्ठी  4. पोला  5. अरवा तीज6. छेरछेरा 7. मेघनाथ  8. तीजा  9. अक्ती 10. बीचबोहानी

11. आमाखायी  12. रतौना 13. गोंचा 14. नवान्न 15.सरहुल 16. मातर 17. जेठवनी 18.देवारी 19.दशहरा 20.गौरा 21. गोवर्धन पूजा  22. नवरात्रि  23. गंगा दशमी 24.लारुकाज 25. करमा 26. ककसार ।

  1. हरेली

यह मुख्य रूप से किसानों का पर्व है। यह पर्व श्रावण मास की अमावस्या को मनाया जाता है। यह छत्तीसगढ़ अंचल में प्रथम पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह हरियाली के उल्लास का पर्व है। इस पर्व में धान की बुवाई के बाद श्रावण मास की अमावस्या को सभी लौह उपकरणों की पूजा की जाती है। इस दिन बच्चें बांस की गोड़ी बनाकर घूमते एवं नाचते है। इस दिन जादू टोने की भी मान्यता है। इस दिन बैगा जनजाति के लोगों द्वारा फ़सल को रोग मुक्त करने के लिए ग्राम देवी देवताओं की पूजा पाठ भी की जाती है। इस पर्व के अवसर पर लोग नीम को टहनिया अपने घरों के दरवाजे पर लगाते हैं।

   2. भोजली

यह पर्व रक्षा बंधन के दूसरे दिन भाद्र मास में मनाया जाता है। इस दिन लगभग एक सप्ताह पूर्व बोए गए गेहूं, धान आदि के पौधे रूपी भोजली का विसर्जन किया जाता है। इस अवसर पर भोजली के गीत गाए जाते हैं। भोजली का आदान प्रदान किया जाता है। ओ देवी गंगा, लहर तुरंगा, भोजली पर्व का प्रसिद्ध गीत है।

   3. हलषष्ठी

इस पर्व को हर छट एवं कमरछट के नाम से भी जाना जाता है।इस दिन महिलाए भूमि में सगरी बनाकर शिव पार्वती की पूजा अर्चना करती है उपवास करती है तथा अपने पुत्र कि लंबी आयु

की कामना करती हैं। इस दिन पसहेर चावल, दही एवं अन्य 6 प्रकार की भाजी, लाई, महुआ आदि का सेवन किया जाता है।

पसहेर धान बिना जुती जमीन, पानी भरे गड़ढो आदि में सवतः उगता है। कमरछट के दिन उपवास रखने वाली स्त्रियों को जूते हुए जमीन में उपजे किसी भी चीज का सेवन वर्जित रहता है।

    4. पोला

यह पर्व भाद्रा मास में मनाया जाता है।इस दिन किसान अपने बैलों को सजाकर पुजा अर्चना करते हैं।इस दिन बैल दौड़ प्रतियोगिता भी आयोजित को जाती हैं।इस दिन बच्चे मिट्टी के बैलो को सजाकर उसकी पूजा अर्चना करते है तथा उससे खेलते है।

         5. अरवा तीज

यह पर्व विवाह का स्वरूप लिए हुए राज्य की अविवाहित लड़कियों द्वारा बैशाख मास में मनाया जाता है। इस पर्व में आम की डालियों का मंडप बनाया जाता है।

     6. छेरछेरा

यह पर्व पोष माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह पर्व पूष पुन्नी के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व के अवर पर बच्चे नई फसल के धान मांगने के लिए घर- घर अपनी दस्तक देते हैं। ये उत्साहपूर्वक लोगो के घर जाकर छेरछेरा कोठी के धान ला हेरते हेरा कहकर धान मांगते है जिसका अर्थ अपने भंडार से धान निकालकर हमें दो होता है। यह पर्व पहले काफी महत्वपूर्ण माना जाता था परंतु समय के साथ- साथ यह पर्व वर्तमान में अपना महत्व खोता जा रहा है।इस दिन लड़कियां छतीसगढ़ अंचल का प्रसिद्ध सुआ नृत्य करती है।

      7. मेघनाथ

यह पर्व फाल्गुन माह में राज्य के गोड़ आदिवासियों द्वारा मनाया जाता है। कही कही यह पर्व चैत्र माह में भी मनाया जाता है। अलग- अलग तिथियों में मनाने का उद्देश्य अलग अलग स्थानों के पर्व में सभी की भागीदारी सुनिश्चित करना है। गोड़ आदिवासी समुदाय के लोग मेघनाद को सर्वोच्च देवता मानते है। मेघनाद का प्रतीक एक बड़ा सा ढाचा आयोजन के मुख्य दिवस के पहले खड़ा किया जाता है। यही मेघनाद मेला आयोजित होता है। इस ढाचे के चार कोने में चार एवं बीचों बीच एक कुल 5 खंभे होते हैं, जिसे गेरू एवं तेल से पोता जाता है। पारम्परिक रूप से इस आयोजन में खंडेरा देव का आहवान किया जाता है और मानी जाती है। मनौती लेने वाले को मेघनाद के ढांचे के बीच स्थित खंभे में उल्टा लटकाकर घूमना होता है।यह इस पर्व का मुख्य विषय भी है। इस पर्व के अवसर पर गांव में मेले का माहौल बन जाता है। संगीत एवं नृत्य का क्रम स्वमेव निर्मित हो जाता है। मेघनाद के ढांचे के निकट स्त्रियां नृत्य करते समय खंडेरा देव के अपने शरीर में प्रवेश का अनुभव करती है। यह आयोजन गोड जनजाति में आपदाओं पर विजय पाने का विश्वास उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  8. तीजा

यह छत्तीसगढ़ का परम्परागत त्यौहार है। इस त्यौहार के अवसर पर भाद्र मास पिता अपनी ब्याही लडकियो को उसके ससुराल से मायके लाते हैं। तीजा में स्त्रियां उपवास रखती है। दूसरे दिन स्त्रियां शिव पार्वती को पूजा अर्चना के पश्चात अपना उपवास तोड़ती है।

  9. अक्ती

इस पर्व के अवसर पर लड़कियां पुतला पुतली का विवाह रचाते है। इसी दिन से खेतों में बीच में बोने का कार्य प्रारंभ होता है।

   10. बीच बोहानी

यह कोरबा जनजाति का महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व कोरबा जनजाति के लोगों द्वारा बीज बोने से पूर्व काफी उत्साह से मनाया जाता है।

  11. आमाखायी

यह बस्तर में घुरावा एवं परजा जनजातियों द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहार है। इस जनजाति के लोग यह त्यौहार आम फलने के समय बड़ी धूमधाम से मनाते हैं।

 12. रतौना

यह बैगा जनजातियों का प्रमुख त्योहार है।इस त्योहार का संबंध

नागा बैगा से है।

  13. गोंचा

यह बस्तर क्षेत्र का एक  महत्वपूर्ण आयोजन है। बस्तर में आयोजित होने वाले रथयात्रा समारोह को गोंचा के नाम से जाना जाता है।

  14. नवान्न

यह पर्व नायर फ़सल पकने पर दीपावली के बाद मनाया जाता है। कही कही इसे छोटे दीपावली भी कहते हैं।इस अवसर पर गोड़ आदिवासी साज वृक्ष माता भवानी, रात माई, नारायण देव एवं होलेरा देव को धान की बालियां चढ़ाते हैं।

  15. सरहुल

यह ओरांव जनजाति का महत्वपूर्ण पर्व है।इस अवसर पर प्रतीकात्मक रूप से सूर्य देव और धरती माता का विवाह रचाया जाता है।इस अवसर पर मुर्गे की बलि भी दी जाती है। अप्रैल महर के प्रारंभ में जब साल वृक्ष फलते है तब यह पर्व ओरांव जा जनजाति और ग्राम के अन्य लोगों द्वारा उत्साह पूर्वक मनाया जाता है। मुर्गे को सूर्य तथा काली मुर्गी को धरती माता का प्रतीक मान कर उसे सिंदूर लगाया जाता है, तथा उनका विवाह सम्पन्न कराया जतर है। बाद में मुर्गे व मुर्गी की बलि चढ़ा दी जाती हैं।

   16. मातर

यह छत्तीसगढ़ के अनेक हिस्सों में दीपावली के तीसरे दिन मनाया जाने वाला एक मुख्य त्योहार है। मातर या मातृ पूजा कुल देवता की पूजा का त्योहार है। यहां के आदिवासी एवं यादव समुदाय के लोग इसे मानते है। ये लोग लकड़ी के बने अपने कुल देवता खोड़ हर देव की पूजा अर्चना करते है। राउत लोगो द्वारा इस अवसर पर पारम्परिक वेश भूषा में रंग- बिरंगे परिधानों में लाठियां लेकर नृत्य किया जाता है।

     17. जेठवनी

इस पर्व में तुलसी विवाह के दिन तुलसी की पूजा की जाती है।

   18. देवारी

छत्तीसगढ़ में दीपावली के त्योहार को देवारी के नाम से जाना जाता है।

    19. दशहरा

यह प्रदेश का प्रमुख त्योहार है। इसे भगवान राम की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।इस अवसर पर शस्त्र पूजन एवं दशहरा मिलन होता है पर बस्तर क्षेत्र में यह दंतेश्वरी की पूजा का पर्व है। बस्तर का दशहरा अपनी विशिष्ठता के लिए जाना जाता है। यह बस्तर का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। यह बस्तर में लंबी अवधि तक मनाया जाता है।

   20. गौरा

छत्तीसगढ़ में गौरा पर्व कार्तिक माह में मनाया जाता है इस पर्व के अवसर पर स्त्रियां शिव एवं पार्वती का पूजन करती है। अंत में शिव पार्वती की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। गोड़ जनजाति के लोग इस अवसर पर भीमसेन का प्रतिमा तैयार करते हैं मालवा क्षेत्र में ऎसा ही पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। जहां यह गण गौर के नाम से जाना जाता है।

      21. गोवर्धन पूजा

इस पर्व का आयोजन कार्तिक माह में दीपावली के दूसरे दिन किया जाता है।यह पूजा गोधन की समृद्धि की कामना से कि जाती है। इस अवसर पर गोबर की विभिन्न आकृतियां बनाकर

उसे पशुओं के खुरो से कुचलवाया जाता है।

    22. नवरात्रि

मां दुर्गा की उपासना का यह पर्व चैत्र एवं आश्विन दोनों माह में 9-9 दिन मनाया जाता है । छत्तीगढ़ अंचल के दंतेश्वरी,बम्लेश्वरी, महामाया आदि शक्ति पीठ पर इस दौरान विशेष पूजन होता है। आश्विन नवरात्रि में मां दुर्गा की आकर्षक एवं भव्य प्रतिमाएं जगह जगह स्थापित की जाती हैं।

       23. गंगा दशमी

यह त्योहार सरगुजा क्षेत्र में गंगा के पृथ्वी पर अवतरण को स्मृति में मनाया जाता है। यह त्योहार जेठ माह की दशमी को मनाया जाता है। आदिवासी एवं गैर आदिवासी दोनों ही समुदाय के लोगों द्वारा यह त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार में पति- पत्नी सामूहिक रूप से पूजन करते है।

        24. लारुकाज

लारू का अर्थ दूल्हा और काज का अर्थ अनुष्ठान होता है।इस तरह लारुकाज का अर्थ विवाह उत्सव है। यह सूअर के विवाह का सूचक है। गोडो का यह पर्व नारायण देव के सम्मानार्थ आयोजित किया जाता है।इस अवसर पर नारायण देव को सूअर की बलि भी चढ़ायी जाती है। वर्तमान समय में बलि के अनुष्ठान की परम्परा समाप्त हो रही है। सुख समृद्धि एवं स्वास्थ्य के लिए 9 से 12 वर्षों में एक बार इसका आयोजन प्रत्येक परिवार के लिए आवश्यक समझा जाता है। एक परिवार का आयोजन होते हुए भी इसमें समुदाय की भागीदारी होती है। यह पर्व झेत्रिय आधार पर विभिन्नता लिए हुए व इसमें समयानुसार परिवर्तन भी होता है। पारिवारिक आयोजन होने के कारण इसकी सामुदायिक भागीदारी अन्य पर्वो की अपेक्षा सीमित होती है।

     25. करमा

यह ओरांव, बैगा, बिझवार, गोड़ आदि जनजातियों का एक महत्त्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व कठोर वन्य जीवन और कृषि संस्कृति में श्रम के महत्व पर आधारित है। कर्म की जीवन में प्रधानता इस पर्व का महत्वपूर्ण सन्देश है। यह पर्व भाद्र माह में मनाया जाता है। यह प्रायः धान रोपने व फसक कटाई के बीच के अवकाश काल का उत्सव है। इसे एक तरह से अधिक उत्पादन हेतु मनाया जाने वाला पर्व भी कहा जा सकता है। इस अनुष्ठान का केंद्रीय तत्व करम वृक्ष है। करम वृक्ष की तीन डालियां काट कर उसे अखाड़ा या नाच के मैदान में गाड़ दिया जाता है तथा उसे करम राजा सांज्ञ दी जाती है। इस अवसर पर करमा नृत्य का आयोजन किया जाता है। दूसरे दिन करम संबंधी गाथा कही जाती है तथा विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं। गोड़ लड़कियां इस अवसर पर गरबा की तरह छेदो वाली मटकियां जिसमे जलते हुए दिए रखे होते है सिर पर रखकर गांव में घर घर घूमती है। इसके बदले में उसे खाद्य सामग्रियां तथा पैसे मिलते हैं। वही कोरबा या कोरकू आदिवासी इस पर्व को फसल कटाई के बाद मनाते है। करमा पर्व के दौरान विभिन्न नृत्यों एवं लोकगीतों का आयोजन किया जाता है। करमा नृत्य गोड़ एवं बैगा जनजातियों का प्रसिद्ध नृत्य है जिसमे पुरुष और महिला दोनों भाग लेते हैं। क्षेत्रिय भिन्नता के आधार पर गीत, लय, ताल, पद, संचालन आदि में थोड़ी थोड़ी भिन्नता होती है। करमा वास्तव में जीवन चक्र की तरह से कलात्मक अभिव्यक्ति है।

    26. ककसार

यह अबूझमाडिया आदिवासियों द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है।ककसार उत्सव अन्य त्योहारों वकी सक्रिय आयोजन अवधि के बाद खाली समय में मनाया जाता है।इस अवसर पर युवक और युवतियां एक दूसरे के गांव में नृत्य करने के लिए पहुंचते है।इस पर्व का संबंध अबूझमाडिया की विशिष्ट मान्यता से है, जिसके अनुसार वर्ष की फसलों में जब तक बालियां नहीं फूटती स्त्री पुरुषों का एकांत में मिलना वर्जित माना जाता है। बालियां फुट जाने पर ककसार उत्सव के माध्यम से यह वर्जना तोड़ दी जाती हैं। इसमें स्त्री पुरुष अपने अपने अर्द्धवृत्त बनाकर नृत्य करते हैं। नृत्य का आयोजन लगभग सारी रात जारी रहता है। इस नृत्य में उसी धुन और ताल का प्रयोग किया जाता है जो विवाह के समय प्रयोग किया जाता है।ककसार के अवसर पर वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित किए जाते हैं।इस तरह यह अविवाहित लड़के लड़कियो  के लिए अपने जीवन साथी चुनने का अवसर होता है।ककसार बस्तर की मुड़िया जनजाति का पूजा नृत्य भी है। मुड़िया गांव के धार्मिक स्थल पर एक बार ककसार पर पूजा का आयोजन किया जाता है जिसमे मुड़िया जनजाति के लोग अपने ईष्ट देव लिंगदेव को धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए पुरुष कमर में लोहे या पीतल को घंटियां बांधकर हाथ में छतरी लेकर, सिर में सजावट करके रात भर सभी वाधो के साथ नृत्य गायन करते हैं। स्त्रियां विभिन्न प्रकार के फूलों और मोतियों की माला पहनती है। इस अवसर पर गाए जाने वाले गीत को ककसारपाटा कहा जाता है।

यह पोस्ट आप को अच्छा लगे या इसके बारे में अधिक जानकारी है तो नीचे कॉमेंट करके जरूर बताए।

जय जोहार जय छत्तीसगढ़

Hitesh

हितेश कुमार इस साइट के एडिटर है।इस वेबसाईट में आप छत्तीसगढ़ के कला संस्कृति, मंदिर, जलप्रपात, पर्यटक स्थल, स्मारक, गुफा , जीवनी और अन्य रहस्यमय जगह के बारे में इस पोस्ट के माध्यम से सुंदर और सहज जानकारी प्राप्त करे। जिससे इस जगह का विकास हो पायेगा।

छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्व कौन कौन से हैं?

छत्तीसगढ़ के उत्सव.
1 होली.
2 पोरा.
4 हरेली.
5 नृत्य-गान.

छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार क्या है?

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (CM Bhupesh Baghel) ने एनडीटीवी से कहा कि हरेली छत्तीसगढ़ का पहला त्योहार है और दो साल पहले हरेली के दिन लोगों ने गोबर खरीदने का निर्णय लिया.

छत्तीसगढ़ का परंपरागत खेल कौन सा है?

छत्तीसगढ़िया ओलम्पिक 2022-23 में गिल्ली-डंडा, बांटी, भंवरा, बिल्लस, फुगड़ी, गेड़ी दौड़, भंवरा सहित 14 प्रकार के पारम्परिक खेलों को शामिल किया गया है।

छत्तीसगढ़ कब मनाया जाता है?

छत्तीसगढ़ भारत का एक राज्य है। इसका गठन १ नवम्बर २००० को हुआ था और यह भारत का २६वां राज्य है। पहले यह मध्य प्रदेश के अन्तर्गत था।