बृहस्पति (Jupiter) और शनि ग्रह (Saturn) पर कई चांद है. लेकिन बेचारी धरती के पास सिर्फ एक ही है. अगर धरती के चारों तरफ चांद की संख्या बढ़ जाए तो क्या होगा. धरती कितने चांद संभाल पाएगी. कितने चंद्रमा हमारे आसमान में सेट हो पाएंगे. क्या इससे धरती सुरक्षित रहेगी. उसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति पर क्या असर पड़ेगा. धरती के मूवमेंट पर दिक्कत तो नहीं आएगी. Show एक नई स्टडी के मुताबिक हमारी पृथ्वी वर्तमान चांद के आकार के दो और चंद्रमा संभाल सकती है. अगर साइज छोटा हुआ तो ज्यादा चांद भी संभाल लेगी. यह स्टडी 3000 सालों के सिमुलेशन पर आधारित है. यह एक हाइपोथेटिकल सिचुएशन पर आधारित सिमुलेशन है. स्टडी पेपर में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि पृथ्वी के चंद्रमा की स्थिरता गुरुत्वाकर्षण शक्ति की वजह से बनी रहती है. तीन तरह के चांद के आकार की गणना की गई सम्बंधित ख़बरेंचंद्रमा और धरती के बीच के संबंध और संतुलन की वजह से इंसान और अन्य जीव जीवित हैं. अगर इनमें बदलाव होगा तो धरती पर प्रलय आ सकता है. वैज्ञानिकों ने अपने सिमुलेशन में वर्तमान चांद के आकार के दो और चांद संभालने की बात कही. इसके अलावा उन्होंने तीन अलग-अलग आकार के चांद का सिमुलेशन भी किया. पहला- वो जो वर्तमान चांद के बराबर वजन का हो. दूसरा- वो जो प्लूटो यानी वर्तमान चांद के वजन का छह गुना कम और तीसरा- वो जो ड्वार्फ प्लैनेट सेरेस (Ceres) यानी वर्तमान चांद के वजन का सौवां हिस्सा है. 3...4...7, इतने चांद सेट हो सकते हैं धरती पर तीनों सिमुलेशन से पता चला कि धरती पर चांद के वजन के दो और चांद फिट हो सकते हैं. प्लूटो के आकार के चार चंद्रमा धरती के चारों तरफ चक्कर लगा सकते हैं. Ceres के आकार सात चंद्रमा धरती के चारों तरफ फिट हो सकते हैं. लेकिन इन सातों का आकार और वजन बराबर होना चाहिए. अर्लिंगटन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के फिजिसिस्ट सुमन सत्याल कहते हैं कि बृहस्पति और शनि ग्रह के सभी चांद एक आकार या वजन के नहीं है. सौर मंडल के ग्रहों का निर्माण अलग-अलग सुमन सत्याल ने बताया कि दोनों ग्रहों पर मौजूद ढेर सारे चांद अलग-अलग आकार के हैं. हम किसी भी सिमुलेशन से सिर्फ गणना ही कर सकते हैं. असली स्थितियां बेहद अच्छी और डरावनी दोनों हो सकती हैं. हमारे सौर मंडल में बुध और शुक्र ऐसे ग्रह हैं, जिनके पास एक भी चंद्रमा नहीं है. ये बताता है कि ये ग्रह अलग-अलग स्थितियों में बने हैं. इनकी अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति है. इनकी स्टडी से हमें इनकी ताकत और कमजोरियों का पता चलता है. धरती से 15 करोड़ KM दूर हैं दो एक्सोमून सुमन सत्याल के ही साथी फिजिसिस्ट बिली क्वार्ल्स ने बताया कि हमारे मॉडल में हमने गुरुत्वाकर्षण शक्ति को शामिल नहीं किया है. क्योंकि अगर उसे करते तो सिमुलेशन और गणना में बहुत मुश्किल होती. हमारे सिमुलेशन के जरिए हम सौर मंडल के बाहर की भी गणित लगा सकते हैं. इस समय दो एक्सोमून (Exomoon) हैं, जिनकी दूरी धरती से करीब 15 करोड़ किलोमीटर है.
तीन चंद्रमा बढ़ा देंगे रात में रोशनी धरती के आसपास और चंद्रमा आने से रात का मौसम अच्छा हो जाएगा. रोशनी बढ़ सकती है. लेकिन सभी चांद को धरती से अलग-अलग दूरी पर रहना होगा. इसलिए वो अपने अलग-अलग आकार में दिखाई देंगे. हर दिन उनके आकार में कमी-बढ़ोतरी भी होगी. यह देखना बेहद सुंदर होगा. यह रिसर्च हाल ही में मंथली नोटिसेस ऑफ द रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी में पब्लिश हुई है. चांद पर रात बिताने की बात हो, तो स्पेस इंजीनियरों को पसीने आ जाते हैं. चांद पर रातें इतनी सुकूनभरी नहीं होतीं, जितना पृथ्वी की रातें होती हैं. वो इसलिए क्योंकि पृथ्वी के दिन के हिसाब से, चांद की सतह पर ज्यादातर जगहों पर, लगातार 14 दिन का दिन रहता है और 14 दिन की रात रहती है. यानी 14 दिनों तक लगातार अंधेरा और तेज ठंड. चांद पर तापमान दिन के समय 120ºC और रात तक माइनस 180ºC तक पहुंच जाता है. चांद पर जिन जगहों पर स्थाई रूप से छाया रहती है (Permanently shadowed regions-PSR) वे तो और भी ठंडे हो सकते हैं, वहां का तापमान माइनस 240ºC तक गिर सकता है. चांद पर तापमान के ये उतार-चढ़ाव, आने वाले समय में चांद के मिशनों के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक हैं. वास्तव में, PSRs में जो क्रेटर हैं, वहां सूर्य की रोशनी नहीं आती इसलिए वहां पानी की बर्फ जमा रहती है. इस जमा पानी को ऑक्सीजन, पानी, यहां तक कि रॉकेट ईंधन में प्रोसेस किया जा सकता है. मून एक्सप्लोरेशन प्लानर, इस बात पर विचार कर रहे हैं कि चांद पर सफलतापूर्वक संचालन करने के लिए क्या होना चाहिए, खासकर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर. क्योंकि यह जगह PSRs से भरी हुई है और यहां पानी की बर्फ संचय करने के लिए एक समृद्ध जगह है. लेकिन यहां जमा देने वाली ठंडा है, जो आसान नहीं है. सम्बंधित ख़बरेंसमस्या एक नहीं, दो हैं द एयरोस्पेस कॉरपोरेशन (The Aerospace Corporation) के लूनर साइंटिस्ट डीन एपलर (Dean Eppler) का कहना है कि चांद पर रात गुजारने पर एक नहीं दो समस्याएं आती हैं. रात को जिंदा बचे रहना अकेली चुनौती नहीं है, बल्कि रात को मिशन से जुड़े काम करना भी चुनौती भरा होगा. चांद पर रात को ध्रुवों पर कहीं भी जाएंगे अंधेरा ही मिलेगा. रात में फील्ड जियोलॉजी नहीं की जा सकती. लेकिन उस वक्त शायद जीवन विज्ञान, सैंपल एनालिसिस और कलिंग, इंजीनियरिंग या रखरखाव जैसे काम किए जा सकते हैं. एपलर ने यह भी कहा कि वह चांद की रात को लेकर सकातात्मक सोच रखते हैं. उन्हें लगता है कि पहले की तुलना में हम बेहतर तरीके से काम कर सकते हैं. चांद पर बेहद ठंड हालांकि चांद पर ध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर भी रात में जिंदा रहना अभी भी एक बड़ा मुद्दा है. सेंट्रल फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी में फ्लोरिडा स्पेस इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक फिलिप मेट्ज़गर ( Philip Metzger) का कहना है कि बेहद ठंड से निपटना बहुत बड़ी समस्या नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि थोड़ी सी ऊर्जा और अच्छे इन्सुलेशन से वाहन को गर्म रखा जा सकता है. न्यू होराइजन्स स्पेसक्राफ्ट ने अपने इलेक्ट्रॉनिक सामानों को तब भी रूम टेम्प्रेचर पर रखा था, जब वे प्लूटो में सूर्य से बहुत दूर थे. मुख्य मुद्दा यह है कि हम चांद पर ऊर्जा कहां से पा सकते हैं?
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि रेडियोएक्टिव डिके स्रोतों का इस्तेमाल किया जा सकता है. वाहन पर सही जगहों पर रेडियोएक्टिव हीटर यूनिट (RHUs) को रखा जा सकता है. रेडियोएक्टिव स्रोत के बिना, ये काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है. चांद पर पहनने वाले सूट पर फोकस एपलर का कहना है कि जूते, दस्ताने और बैकपैक जैसे पोर्टेबल लाइफ सपोर्ट सिस्टम सहित मूनवॉकिंग सूट सिस्टम के संबंध में, थर्मल डिजाइन के मुद्दे भी गंभीर होंगे. मान लें कि आप बर्फ में खड़े हैं, लेकिन आपके पैर और धड़ पर धूप आ रही है. ऐसे में आपको यह पक्का करना होगा कि जूते और कपड़े का मैटीरियल जमकर टूट न जाए. वहीं यह भी देखना होगा कि सूट का ऊपरी हिस्सा इतना गर्म न हो जाए कि क्रू को परेशानी हो. यह असली समस्या है. एपलर ने अंत में कहा कि अच्छी बात तो यह है कि आर्टेमिस (Artemis) टेक्नोलॉजिस्ट इसपर काम कर रहे हैं कि रात को चांद पर कैसे सर्वाइव किया जा सकता है. चांद के पास कौन कौन जाता है?Home » Chand Par Kon Kon Gaya Hai.... नील आर्मस्ट्रांग उन्होंने 20 जुलाई 1969 को अपोलो 11 मिशन के तहत चंद्रमा की जमीन कोछुआ था और ऐसा करने के साथ वह चाँद पर जाने वाले पहले व्यक्ति बने। ... . बज़ एल्ड्रिन ... . पीट कॉनराड ... . एलन बीन ... . एलन शेपर्ड ... . एड मिशेल ... . डेविड स्कॉट ... . जेम्स इरविन. चांद पर पानी होता है क्या?चांद पर पानी मिला है. धरती की तरह वहां के पानी में बहाव नहीं है. यह अंधेरे वाले हिस्से में मौजूद क्रेटर्स यानी गड्ढों में जमी बर्फ में मौजूद है. या फिर हाइड्रेटेड पत्थरों में.
चांद के अंदर क्या होता है?क्या है चंद्रमा पर : चंद्रमा की खुरदुरी सहत पर बेहद अस्थिर और हल्का वायुमंडल होने की संभावना व्यक्त की जाती है और यहां पानी भी ठोस रूप में मौजूद होने के सबूत मिले हैं। हालांकि वैज्ञानिकों के अनुसार यह वायुमंडलविहीन उपग्रह है। नासा के एलएडीईई प्रोजेक्ट के मुताबिक यह हीलियम, नीयोन और ऑर्गन गैसों से बना हुआ है।
चांद पर घर किसका है?सुशांत सिंह राजपूत ने भी खरीदी थी जमीन
सुशांत सिंह राजपूत चांद पर जमीन खरीदने वाले पहले एक्टर थे. उन्होंने 2018 में इंटरनेशनल लूनर लैंड्स रजिस्ट्री से खरीदी. उनकी ये जमीन चांद के 'सी ऑफ मसकोवी' में है. सुशांत ने यह जमीन 25 जून 2018 को अपने नाम करवाई थी.
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