Show यूएन सुरक्षा परिषद में ताइवान की सीट चीन को कैसे मिली, नेहरू की क्या थी भूमिका
17 मार्च 2019 इमेज स्रोत, Getty Images संयुक्त राष्ट्र के साथ रिपब्लिक ऑफ़ चाइना यानी आरओसी के रूप में ताइवान का संबंध काफ़ी नाटकीय रहा है. 1945 में संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य रहा ताइवान 1971 में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी पीआरसी से सुरक्षा परिषद की अपनी सीट गंवा बैठा था. संयुक्त राष्ट्र के चार्टर को इस संगठन का मौलिक दस्तावेज़ माना जाता है और 'वन चाइना' पॉलिसी को संयुक्त राष्ट्र ने आधिकारिक रूप से स्वीकार कर लिया था. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र में ताइवान की सदस्यता पर ही ग्रहण लग गया था. वन चाइना पॉलिसी का मतलब है कि पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना चीन की वैध सरकार है और ताइवान उसका अभिन्न अंग है. जो पीआरसी से संबंध रखना चाहते हैं उन्हें आरओसी से संबंध तोड़ना होगा. सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता को लेकर चीन ने कहा था कि एक ही संगठन में उसके हिस्से के लिए कोई अलग से सीट नहीं हो सकती. आज की तारीख़ में ताइवान संयुक्त राष्ट्र का एक सदस्य भी नहीं है और न ही इसके उप-संगठनों का हिस्सा है. यह अलग बात है कि वो शामिल होने की आकांक्षा रखता है. चीन ताइवान की इस आकांक्षा का ज़ोरदार विरोध करता है. चीन का तर्क है कि केवल संप्रभु देश ही संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बन सकता है. 1947 में चीन से लेकर ताइवान तक रिपब्लिक ऑफ़ चाइना सरकार का शासन शुरू हुआ था. इस सरकार के अपदस्थ होने के बाद 1949 में बीजिंग में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना सत्ता में आई. इसके बाद दोनों प्रतिद्वंद्वियों ने अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधित्व के दावे करने शुरू कर दिए. दोनों 'वन चाइना पॉलिसी' का पालन करते थे. ऐसे में राजनयिक संबंधों में किसी दूसरे देश के लिए काफ़ी मुश्किल स्थिति बन गई थी. ऐसी हालत में संयुक्त राष्ट्र के लिए भी मुश्किल होने लगा. यह सवाल बड़ा और महत्वपूर्ण हो गया कि कौन सी सरकार चीन का वास्तविक रूप में प्रतिनिधित्व करती है? रिपब्लिक ऑफ़ चीन सरकार के च्यांग काई-शेक ने संयुक्त राष्ट्र में असली चीन होने का दावा किया लेकिन कामयाबी नहीं मिली. वक़्त के साथ उन देशों की संख्या बढ़ती गई जिन्होंने बीजिंग को मान्यता देना शुरू कर दिया और ताइपे के प्रति लोगों का रुझान कम होता गया और आख़िरकार ताइवान ख़ुद में सिमट गया. इमेज स्रोत, Bettmann इमेज कैप्शन, माओत्से तुंग के साथ च्यांग काई शेक संयुक्त राष्ट्र में दोहरा प्रतिनिधित्व तभी रह सकता है जब देश का विभाजन हो या फिर वन चाइना और वन ताइवान जैसी स्थिति हो. संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में 1971 में 2758 प्रस्ताव पास होने से पहले ऐसी कोशिश भी हुई कि दोनों को यूएन में सदस्यता मिले. च्यांग काई-शेक ने संयुक्त राष्ट्र में ये कोशिश की थी कि आरओसी ही पूरे चीन का वैध प्रतिनिधित्व करता है. च्यांग काई-शेक को लगता था कि टू-स्टेट सॉल्युशन से वो यूएन की सुरक्षा परिषद की सीट अपने दुश्मन पीआरसी से खो देंगे. 1961 में च्यांग काई-शेक का वो बयान बहुत प्रसिद्ध हुआ था जब उन्होंने कहा था कि देशभक्त और देशद्रोही एक साथ नहीं सकते. वो समय भी आया जब अमरीका ने भी बीजिंग से संबंध बढ़ाना शुरू कर दिया. जब अमरीका का ताइवान के साथ पूरी तरह रायनयिक संबंध कायम था तभी अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने 1972 में चीन की यात्रा की. वीडियो कैप्शन, कश्मीर मुद्दे पर क्या कहते हैं इतिहासकार? अमरीका ने लंबे समय तक ताइवान के साथ राजनयिक संबंध रखा तब. 1971 से पहले तक ताइवान सुरक्षा परिषद के पांच सदस्यों में एक सदस्य बना रहा. तब दुनिया को लगता था कि च्यांग काई-शेक चीन के असली शासक हैं. अमरीका नहीं चाहता था कि सुरक्षा परिषद की सीट ताइवान से चीन को मिले लेकिन ऐसा केवल अमरीका के सोचने से संभव नहीं हो पाता. इसी क्रम में अमरीका ने नेहरू से अनौपचारिक तौर पर इच्छा जताई थी कि भारत सुरक्षा परिषद में शामिल हो जाए. लेकिन यह भी इतना आसान नहीं था. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में संशोधन करना पड़ता और सुरक्षा परिषद के पांचों देशों के बीच सहमति ज़रूरी शर्त होती. तब सोवियत संघ और चीन में कम्युनिस्ट विचारधारा के कारण दोस्ती थी. कहा जाता है कि अगर भारत के लिए ऐसा कोई संशोधन लाया भी जाता तो सोवियत संघ वीटो कर देता. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी चाहते थे ताइवान की सीट चीन को मिले और अगर ऐसा नहीं होता है तो उसके साथ नाइंसाफ़ी होगी. ऑडियो कैप्शन, चीन से हार : कौन था जिम्मेदार ? आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक मसूद अज़हर को चीन ने वैश्विक आतंकी घोषित कराने के मामले में भारत के ख़िलाफ़ वीटो कर दिया तो बीजेपी नेता और क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस नेता शशि थरूर की किताब का हवाला देकर आरोप लगाया कि सुरक्षा परिषद में भारत की सीट नेहरू ने चीन को दिलवा दिया था और इसी के दम पर चीन भारत को परेशान कर रहा है. इसके जवाब में शशि थरूर ने कहा कि बीजेपी के दावों में कई सच्चाई नहीं है और उन्होंने इस मसले कई तथ्यों को साझा किया. शशि थरूर ने लिखा है, ''संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता में नेहरू की भूमिका पर मेरी किताब 'नेहरू द इन्वेंशन ऑफ़ इंडिया' का बीजेपी ने हवाला दिया है. उसके संदर्भ को यहाँ समझ सकते हैं-
27 सितंबर, 1955 को डॉ जेएन पारेख के सवालों के जवाब में नेहरू ने संसद में कहा था, ''यूएन में सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य बनने के लिए औपचारिक या अनौपचारिक रूप से कोई प्रस्ताव नहीं मिला था. कुछ संदिग्ध संदर्भों का हवाला दिया जा रहा है जिसमें कोई सच्चाई नहीं है. संयुक्त राष्ट्र में सुरक्षा परिषद का गठन यूएन चार्टर के तहत किया गया था और इसमें कुछ ख़ास देशों को स्थायी सदस्यता मिली थी. चार्टर में बिना संशोधन के कोई बदलाव या कोई नया सदस्य नहीं बन सकता है. ऐसे में कोई सवाल ही नहीं उठता है कि भारत को सीट दी गई और भारत ने लेने से इनकार कर दिया. हमारी घोषित नीति है कि संयुक्त राष्ट्र में सदस्य बनने के लिए जो भी देश योग्य हैं उन सबको शामिल किया जाए.'' वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी जवाहरलाल नेहरू को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए चीन का समर्थन करने का गुनाहगार बताया है. जेटली का कहना है कि नेहरू ने भारत के बजाय चीन का समर्थन किया था. जेटली ने कहा है कि चीन और कश्मीर पर एक ही व्यक्ति ने बड़ी ग़लती की. अरुण जेटली ने ट्वीट कर दो अगस्त 1955 को नेहरू की तरफ़ से कथित रूप से मुख्यमंत्रियों को लिखे चिट्ठी का हवाला दिया है. हालांकि जेटली ने उस चिट्ठी को साझा नहीं किया है. वीटो पावर वाले 5 देश कौन से हैं?यूनाइटेड नेशन सुरक्षा परिषद के पास वीटो पावर है जो 5 स्थाई सदस्य देशों को मिली हुई है यह पांच स्थाई सदस्य देश चाइना, फ्रांस, रसिया, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका है।
क्या चीन के पास वीटो पावर है?यूनाइटेड नेशन्स (UN) सुरक्षा परिषद (Security Council) के पांच स्थायी सदस्यों (Permanent Members) को वीटो की शक्ति प्रदान की गई है। चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका यूनाइटेड नेशन्स के पांच स्थायी सदस्य हैं जो वीटो का इस्तेमाल किसी भी प्रस्ताव को पारित करने के लिए करते हैं।
चीन स्थाई सदस्य कब बना?दरअसल द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया भर में शांति और सुरक्षा कायम करने के मकसद से इस परिषद का गठन वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा किया गया। द्वितीय विश्व युद्ध 1939 से 1945 तक चला था। दुनिया के सर्वाधिक प्रभावशाली पांच देशों को इसका स्थाई सदस्य बनाया गया।
क्या भारत को वीटो पावर मिल सकता है?संयुक्त राष्ट्र संघ के पांच स्थायी सदस्यों के पास वीटो पावर होता है और समय समय पर इसका राजनीतिक प्रयोग किया जाता है। अमेरिका,ब्रिटेन,रूस,फ्रांस और चीन स्थायी सदस्य देश है और इनके पास ही वीटो पावर है। क्या संयुक्त राष्ट्र में भारत को कभी मिल सकेगा वीटो? भारत को विटो पावर नहीं मिल सकेगा।
|