बेल का पेड़ सूखने से क्या होता है? - bel ka ped sookhane se kya hota hai?

कहीं विलुप्त न हो जाए बेल की प्रजाति

मेरठ, जागरण संवाददाता: आयुर्वेद में अपना खास महत्व रखने वाले फल बेल के वृक्ष अब धीरे-धीरे मनुष्य का साथ छोड़ रहे हैं। बेल की प्रजाति पिछले पांच सालों से एक भयानक संक्रमण की शिकार है। इस रोग के कारण और उपचार में कृषि वैज्ञानिकों को लगातार विफलता मिल रही है। विशेषज्ञों की माने तो बेल की प्रजाति अगले चार सालों में देश भर से खत्म होने की कगार पर पहुंच जाएगी।

शीशम और नीम के बाद अब देश से बेल की प्रजाति धीरे-धीरे खात्मे की ओर है। यह प्रजाति मेरठ, बागपत, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, गाजियाबाद, सहारनपुर, मुरादाबाद, अलीगढ़, आगरा व बरेली जनपदों में 59 हजार हेक्टेयर से ज्यादा रकबे में मौजूद है। बेल की प्रजाति पर चल रहे संकट को लेकर कृषि वैज्ञानिक भी हताश हैं। वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा.बी गंगवार के अनुसार बेल भी नीम और शीशम की तरह संक्रमण रोग का शिकार हो चुकी है। इस पर कीटनाशक दवा असर नहीं कर पा रही है।

क्या है बीमारी के लक्षण

रोग की शुरूआत पेड़ के ऊपरी हिस्से से होती है। धीरे-धीरे ऊपर वाला हिस्सा सूखने लगता है। इसके बाद यह रोग ऊपर से नीचे की ओर बढ़ता है। कुछ ही समय में सारा पेड़ सूख जाता है।

पेड़ पर सड़ जाता है फल

किसान परेशान हैं रोग के कारण बेल की फसल पेड़ पर ही सड़ जाती है। बेल पेड़ की डाली से अचानक टूटकर नीचे गिर जाती है और उसका अंदर का हिस्सा सड़ा गला निकलता है। खतरनाक कीट बेल के अंदर टहनी के रास्ते घुस फल को नष्ट कर रहे है।

क्या कहते हैं अधिकारी

प्रभारी जिला उद्यान अधिकारी ओमपाल राठी का कहना है कि यह फंगस रोग है। विभाग लगातार किसानों को कीटनाशक स्प्रे करने की सलाह दे रहा है लेकिन कोई भी दवा रोग पर असर नहीं कर रही है।

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विषयसूची

  • 1 बेल का पौधा कितने दिन में फल देता है?
  • 2 बेल का पेड़ सूखने से क्या होता है?
  • 3 बेलपत्र के पौधे को कैसे लगाएं?
  • 4 बेल पर कौन से फल लगते हैं?
  • 5 बेलपत्र का पेड़ कौन से दिन लगाना चाहिए?

बेल का पौधा कितने दिन में फल देता है?

इसे सुनेंरोकेंफलों की तुड़ाई बेल का पौधा खेत में लगाने के लगभग 7 साल बाद पैदावार देना शुरू करता है. इसके फलों के पकने के बाद उनकी तुड़ाई जनवरी माह में की जाती है. पकने के बाद इसके फल हरे पीले दिखाई देते है.

बेल का पेड़ सूखने से क्या होता है?

इसे सुनेंरोकेंकुछ ही समय में सारा पेड़ सूख जाता है। किसान परेशान हैं रोग के कारण बेल की फसल पेड़ पर ही सड़ जाती है। बेल पेड़ की डाली से अचानक टूटकर नीचे गिर जाती है और उसका अंदर का हिस्सा सड़ा गला निकलता है। खतरनाक कीट बेल के अंदर टहनी के रास्ते घुस फल को नष्ट कर रहे है।

बेल का पौधा कब लगाना चाहिए?

इसे सुनेंरोकेंशास्त्रों के अनुसार घर के उत्तर पश्चिम दिशा में लगा बेल का पौधा वहां रहने वाले सदस्यों को अधिक तेजस्वी और ऊर्जावान बनाता है। वहीं उत्तर-दक्षिण दिशा में लगा बेल का पौधा परिवार को आर्थिक संपन्नता प्रदान करता है। ऐसे परिवार का हर व्यक्ति धनवान बनता है। कर्ज से मुक्ति के लिए भी इस दिशा में बेल का पौधा लगाना चाहिए।

बेलपत्र के पौधे को कैसे लगाएं?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर-पश्चिम दिशा में लगा बेल का पौधा वहां रहने वाले हर सदस्य को यशस्वी और तेजवान बनाता है। इसलिए सम्मान तथा प्रसिद्धि पाने के लिए इसे घर की इसी दिशा में लगाएं। घर के उत्तर-दक्षिण दिशा में लगा बेल का पौधा परिवार को आर्थिक संपन्नता देता है। ऐसे परिवार का हर व्यक्ति धनवान बनता है और कभी भी उन्हें धन की कमी नहीं होती।

बेल पर कौन से फल लगते हैं?

इसे सुनेंरोकेंखरबूजा खरबूजा भी तरबूज की तरह होता है लेकिन इसका आकार थोडा छोटा होता है। यह भी बेल पर उगने वाला फल है जिसका स्वाद मीठा होता है। यह स्वादिष्ट फल भी गर्मी के मौसम में पाया जाता है।

अनार का पेड़ कितने साल में फल देता है?

इसे सुनेंरोकेंइसका पौधा तीन-चार साल में पेड़ बन जाता है और फल देना शुरू कर देता है। अनार के एक पेड़ से लगभग 20 सालों तक फल मिल सकता है। उन्होंने बताया कि अनार की खेती गर्म प्रदेशों में होती है।

बेलपत्र का पेड़ कौन से दिन लगाना चाहिए?

इसे सुनेंरोकेंबिल्व (बेल पत्र) के पेड़ को किस दिन लगाया जाना चाहिए? ज्यादा तर पेंड वर्षा के समय ही लगाना चाहिए जिससे वह आसानी से उग सकें।

जवाहर लाल सिंह
जमशेदपुर, झारखंड
ईमेलः

मैं प्रतिदिन सुबह दूध लाने के लिए ‘दूधपैकेट सप्लाई बूथ’ पर जाता हूं। रास्ते में एक बेल का पेड़ है, उसे कभी कभी निहारता भी हूं। चैत्र के महीने में उसमें खूब फल होते हैं और पककर अपने आप गिरते भी हैं। उस समय पतझड़ का समय होता है तब बेल के अधिकांश पत्ते पक कर झड़ जाते हैं तब ऐसा लगता है कि बेल के पत्तों से ज़्यादा फल ही इस वृक्ष पर झूल रहे हैं।

बेल का तत्काल स्वामी, माखन जी (क्योंकि यह कंपनी का क्वॉर्टर है इसके मालिक बदलते रहते हैं) वैसे तो बड़ा ही सफाई पसंद व य्क्तिहै और हर समय अपने घर के सामने और आस -पास के इलाक़े में सफाई करता दिख जाता है और गंदगी फैलने वाले इंसान से भिड़ भी जाता है। पर एकाध बुरी आदत से अपने आपको बचा नही पाया है। वह है खैनी खाकर जहाँ तहाँ थूकने की तथा गांजा पी कर ऊपर की तरफ धुँआ उड़ाने की।

गत एक सालों से मैं देख रहा हूं अवकाश प्राप्त करने के बाद भी उसने क्वॉर्टर को नहीं छोड़ा है और केवल खाना खाने और रात मे सोने के लिए ही घर में जाता है। शेष समय सफाई सुथराई और लोगों के ऊपर नजरें रखने में बिताता है। पास ही के मैदान में जहाँ कंपनी के द्वारा मैदान के चारो ओर वृक्षारोपण कर वातावरण को स्वच्छ बनाने की कोशिश की गई है, वही इसने एक वृक्ष के बगल में एक पीपल और नींम के पौधे लगाकर बाँस का सहारा भी दे दिया है। जैसे जैसे पीपल और नीम के पौधे बडे़ होते जाते हैं ये कंपनी के द्वारा लगाए गये पौधे को काटते जाते हैं।

माखन जी पहले तो इन पौधों में जी भरकर पानी डालते रहे फिर उसकी जड़ों में सड़ी हुई गोबर की खाद भी डालने लगे ताकि यह पीपल और नीम का पौधा जल्द से जल्द बड़ा हो जाए और इन पौधों ने भी इनका मान रखा और एक साल के अंदर ही इनके मन को खुशी प्रदान करने की सीमा तक बड़े हो गये। माखन जी ने अपने घर के नल से एक रबर का पाइप लगाकर इन पौधों तक लाकर, भर दिन नल को खोले रखते है जिससे इन पौधों को तो भरपूर पानी मिलता ही है अगल बगल के पौधे और दूब घास भी गर्मी के दिनों में हरे भरे होकर बड़े हो गये हैं।

गर्मी के दिनों में भी उस परिवेश में शीतलता की अनुभूति होती है। माखनजी उन्हें देखकर खूब खुश होते हैं और अपने जान पहचानवाले, मित्रों से अपनी खुशी का इज़हार करने से नहीं चूकते हैं. कहते हैं -"कंपनी हज़ारों टन कार्बनडाईऑक्साइड हवा में छोड़ती है, यही नहीं, वायुमंडल से हज़ारों टन ऑक्सीजन और नाइट्रोजन खींचकर उसे भी अपने उत्पादन कार्य में लगाकर नष्ट कर रही है। हम चाहते हैं ये पेड़ पौधे कंपनी द्वारा उत्सर्जित कार्बनडाईऑक्साइड को अवशोषित कर बदले में ऑक्सीजन उत्सर्जित कर वातावरण के संतुलन को बनाए रखें.

माखनजी की इन बातों को सुन कर उन्हें महान पर्यावरणविद् मानने का जी चाहता है. पर जब उनके पास आकर नेताजी एवम् अन्य घनिष्ठ मित्र आकर बैठते हैं तो वे बड़े प्रेम से गाँजा बनाने बैठ जाते हैं और उसे चिलम में डालकर बम-बम भोले का स्मरण करते हुए दम लगाते हैं और उस गाँजे के ऑक्साइड को हवा में ऊपर की तरफ छोड़ते हैं. उस गाँजे के ऑक्साइड को शायद उनके आँगन का बेल का पेड़ भी अवशोषित नहीं कर पाता है तभी आस पास के वातावरण में गाँजाक्साइड की खुशबू बिखर जाती है. .उस समय माखनजी को पर्यावरणविद् मानने को जी नही करता है।

कुछ दिनों बाद माखनजी के मन में मे ख्याल आया -“क्यों न इस पीपल और नींम के पेड़ के नीचे एक चबूतरे का निर्माण किया जाय जहाँ पर बैठकर हम अपना चौकड़ी भी लगा सकते हैं और बीच बीच में प्रवचन का भी आयोजन कर सकते हैं, बशर्ते कि कुछ लोग सुननेवाले मिल जायँ.”

फिर क्या था, आस पास के अवशिष्टों को लाकर उसी नीम-पीपल के पेड़ के पास जमा करने लगे और बराबर करके गोबर से लीपने भी लगे. चबूतरा बनकर तैयार था! कुछ दिनों के बाद उस चबूतरे पर दूब घांस की भी उत्पत्ति हो गयी क्योंकि उनके द्वारा पानी डालना बदस्तूर जारी था.

मैदान जो कि क्रीड़ा स्थल है, बच्चे वहाँ खेलते हैं और खेल के दौरान स्वाभाविक रूप से उनके मुँह से कुछ अपशब्दों के श्लोक का प्रवाह निकल पड़ता है. माखन जी को यही बर्दाश्त नहीं होता है और तब वे श्लोक पाठ करनेवाले किशोरों पर अपने प्रवचन का प्रवाह कर डालते हैं. कुछ किशोर तो चुप हो जाते हैं पर, आजकल के ज़्यादातर किशोर प्रत्युत्तर देने से भी नहीं चूकते हैं.

लाखन जी रोज सुबह उठकर ताजी हवा में साँस लेते हैं और अपने द्वारा लगाए गये पीपल और नीम के पौधे को देखकर मन ही मन खुश होते हैं यह खुशी उनके होठों के साथ साथ मूँछों पर भी झलकती है.

एक दिन में प्रतिदिन की भाँति, सुबह दूध लेने जा रहा था और माखन जी ज़मीन पर गिरे हुए बेल के पत्तों को साफ कर रहे थे. मैंने एक बार बेल के वृक्ष को निहारा - बेल के अधिकांश पत्ते और हरी भरी टहनियाँ साफ हो चुकी थी. सावन का महीना जो ठहरा! प्रतिदिन हज़ारों पत्ते और सैकड़ो टहनियों को सुबह सुबह टूटते देखता हूँ. कुछ लोग तो अपनी बाहों के बीच में दबाकर ढेर सारे पत्तियाँ युक्त टहनियों को ले जाते हैं शंकर भगवान के शिवलिंग पर चढ़ाने हेतु. टहनियों को तोड़ते वक्त जो अच्छे पत्ते ज़मीन पर गिर जाते हैं उसे वे लोग छोड़ कर चल देते हैं जिसे माखन जी मनोयोग से साफ करते है।

मैंने सिर्फ़ उन्हे टोकने के लिए पूछा - "लोग अच्छे पत्ते को भी छोड़ कर चल देते हैं, शायद आपके लिए!" माखन जी बोले - "उनकी मर्ज़ी! में तो उनलोगों की सेवा में हमेशा तत्पर रहता हूँ. तभी मैने बाँस मे लोहे की हुक लगाकर रखी है ताकि उँचाई वाले पत्तों को भी नीचे से तोड़ा जा सके”. "पर मैंने तो देखा है कुछ लोगों को बेल के गाछ पर चढ़कर या आपके क्वॉर्टर की छत पर चढ़कर पत्तियों एवं टहनियों को तोड़ते हुए" यह मेरा स्वर था. "आख़िर शंकर भगवान को कितने पत्तों की आवश्यकता होती है?”
माखन जी - " शिवभक्तों की जैसी मर्ज़ी में तो उन्ही भक्तों के मध्यम से अपनी श्रद्धा अर्पित करता हूँ"..
मैंने पूछा - "आप क्या शंकर भगवान पर जल चढ़ाने नहीं जाते हैं?"
वे बोले -“नही, में उनके भक्तों की सेवा में ही उनकी आराधना कर लेता हूँ."
मैंने कहा-" चलिए यह भी पूजा आराधना का अच्छा मध्यम है. पूजा करनेवाले की निःस्वार्थ सेवा एक तरह से पूजा ही हुई."
लाखन जी ने अपने दोनो हाथ अपनी छाती पर रखकर एकबार उपर की तरफ देखा -जैसे उन्हें परम शांति की अनुभूति हो रही हो.
कुछ ही क्षणों बाद माखनजी के स्वर फूट पड़े -"शायद आपने ध्यान नहीं दिया, कुछ बेहाया लोगों ने पीपल और नीम के गाछ को काट डाला." उनके स्वर में बेहद पीड़ा थी जैसे किसी ने उनके पुत्र को मार डाला हो.
मैंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा - "कब और किसने? आप तो हमेशा सबकी रखवाली में तत्पर रहते हैं. ना जाने कितने हज़ार लीटर पानी आप उसमे रोज डाला करते थे! जिससे अगल बगल के घांसों को भी आनंद आ जाता था और वे सुबह सुबह ओस की बूँदों के साथ मुस्कुराकर हम सबका स्वागत करते थे."
“पता नहीं किन दुर्जनों को यह नहीं भाया और मेरी अंतरात्मा का गला घोंट गये. शायद इसमें किन्हीं शरारती तत्वों का हाथ है. आख़िर ऑक्सीजन की ज़रूरत सबको है!”-माखन जी ने बड़े ही दुखी मन से कहा. मैंने उन्हें दिलासा देते हुए कहा -“मारने वाले से बचानेवाले का मनोबल ज़्यादा ऊंचा रहता है. घबराइए नहीं, उन पौधों के तने सुरक्षित हैं उनमे नई डालियां निकलेंगी और वे पौधे फिर से हरे भरे हो जाएँगें.

मैं आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा था तभी पीछे से आवाज़ आई -"ऐ पथिक, ज़रा मेरे दुख दर्द की गाथा भी सुनता जा." सहसा मैंने पीछे मुड़कर देखा -पीछे कोई नहीं था. तभी फिर आवाज़ आई - "क्या तुम सर जगदीश चंद्र बोस को भूल गये जिन्होंने साबित किया था कि वनस्पतियों में भी जीवात्मा होती है, उन्हें भी हर्ष-शोक की अनुभूति होती है”. मुझे लगा यह आवाज़ बेल के पेड़ से आ रही है.- “जिस माखन की बड़ाई करते तुम थकते नही हो, पूछो इससे, इसने मेरे साथ क्या किया है?
भीषण गर्मी में, जब मेरे फल पक जाते हैं, बड़े चाव से उन्हें निहारता है और हर एक फल को तोड़कर सुंदरियों को भेट करता है .सुंदरियाँ भी ज़रा सा मुस्कुरकर फल को बड़े चाव से ग्रहण करती हैं,तब इसे शायद स्वर्ग का सुख मिल जाता है और इसके होठों के साथ मूँछों पर भी मुस्कुराहट खिल उठती है. पर उस समय भी तुमने देखा है तुमने इसे पानी की एक बूँद भी मेरी जड़ों में डालते हुए? वो तो में बहुत पुराना वृक्ष हूँ और इस क्वॉर्टर में माखन से पहले रहने वाले गृह स्वामी के सेवा काफल हूँ. वे श्रीमान मेरी जड़ों में पानी के अलावा सड़ी हुई पत्तियों आदि के खाद भी डाला करते थे. वे इतनी बेरहमी से किसी को पत्ते या टहनियाँ तोड़ने से भी रोकते थे तभी में इतना बड़ा हो पाया. वो तो मेरी जड़ें ज़मीन के काफ़ी अंदर तक है इसीलिए इस भयंकर गर्मी में भी माखन को शीतलता ही प्रदान करता हूँ.. पर ज़रा इसे देखो, प्रतिदिन सुबह शाम चार व्यक्तियों को बुलाकर मेरी छाया में बैठाता है और गाँजा के धुँए से मुझे घुटाता रहता है कभी कभी उन्ही लोगों के द्वारा पिए गये चाय के ग्लास को धोकर जूठा पानी मेरे तने के उपर डाल देता है जिससे चीटी और दीमक कभी कबी मेरे ऊपर आक्रमण कर देते हैं. यह उसकी भी परवाह नहीं करता है. वह तो में अपनी जिजीविषा की बदौलत आज भी तन कर खड़ा हूँ और लोगों को अपनी सेवा प्रदान कर रहा हूँ. जाड़ा, गर्मी, पतझड़, बसंत और वर्षा के मौसम मे भी में बिना राग द्वेष के सामान्य भाव से खड़ा रहता हूँ. फल और छाया के साथ साथ शुद्ध ऑक्सीजन की भी आपूर्ति करता रहता हूँ. पर तुम्हारी बिरादरी के लोग मुझे हमेशा कष्ट ही पहुँचाते रहते हैं.

पतझड़ के बाद से ही तुमने देखा होगा, मुझमें नई सृष्टि का सृजन हुआ, नई नई कोमल पत्तियाँ निकल आई. तभी रामनवमी का त्योहार आया और तुम जैसे अनेकों लोग आए और उन कोमल पत्तियों को भी तोड़कर ले गये बजरंग बली को अर्पण करने के लिए. फिर यदाकदा पूर्णमासी या अन्य त्योहारों के दिन, श्री सत्यनारायन भगवान की पूजा में मेरी पत्तियों को तोड़ कर ले जाते और अपने भगवान को अर्पण कर सुख शांति पाते. तुम भी कम नहीं हो! तुमने भी अपना हाथ बढ़ाकर कई बार मेरी टहनियों और पत्तों को ले गये हो अपने बंधुओं के यहा पूजा में देने के लिए..
फिर आती है वर्षा ऋतु , वर्षा की रिमझिम फुहारों से हमारी सारी पत्तियाँ धूल जाती हैं और मैं भी तरोताजा महसूस करता हूँ. मेरे रोम रोम खिल जाते हैं और सभी पत्तियाँ अपनी टहनियों के साथ बड़ी होने लगती हैं. तभी आता है सावन का महीना, मेरे लिए संताप का महीना! सभी मेरे ही पत्तों से शंकर भगवान को खुश करना चाहते हैं. लोगों के मन में क्यों यह ग़लत धारणा है कि ज़्यादा पत्तियों से भगवान ज़्यादा खुश होंगे. वे औढरदानी तो हमेशा बाघम्बर और मृगछाला लपेटे रहते हैं. पर सावन के महीनों में बेल की पत्तियों से क्या आनंद आता है ये तो वही जाने!. सभी भक्त बेलपतरों से उनके शिवलिंग को ढँकते हैं और मंदिर का पुजारी या सेवक उन पत्तियों को हटाकर मंदिर के आस पास ही फेंक देता है जहाँ गंदगी का अंबार लग जाता है. पशु भी उन पत्तियों को खाने से कतराते हैं और अंत में मैं यानी मेरे अंग किसी नाले में फँस जाते हैं जिससे नाले जाम हो जाते हैं. नगरपालिका के कर्मचारी महीने मे एकाध बार आकर नाले की सफाई करते वक्त मुझे उठाकर किनारे पर सारी गंदगियों के साथ छोड़ जाते हैं. फिर किसी दिन नगरपालिका की ही गाड़ी आती है सभी गंदगियों के साथ मुझे भी उठाकर क़चड़े के ढेर में उडेल देती है.

मैं तो भोले बाबा से प्रार्थना करता हूँ, आप तो अच्छे भले कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं.वहाँ हिमखंडों के बीच आपको शीतल जल और बेलपत्र की आवश्यकता महसूस नहीं होती है.

मेरे मित्रों, ये कहानी एक दृष्टांत है पर्यावरण प्रेमियों के लिए! आज पर्यावरण के असंतुलन से हम सभी परेसान हैं. वातानुकूलित घरों में बैठ कर पर्यावरण पर ढेर सारी बातें करते हैं, पर हम खुद प्रकृति से कितना खिलवाड़ कर रहे हैं कभी नही सोंचते हैं. बेल का पेड़ के माध्यम से कही गयी बात से अगर किसी ब्यक्ति या समूह की धार्मिक भावना को ठेस पहुँची हो तो इसके लिए माँफी चाहूँगा. दरअसल मेरा मानना है प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग उतना ही हो जितना आवश्यक है. किसी भी वस्तु का दुरुपयोग किसी ना किसी का हक छीनने के समान है.

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बेल के पेड़ में कौन से देवता रहते हैं?

बरगद व बेल का पेड़ मान्यता के अनुसार बरगद और बेल के पेड़ पर भगवान शिव वास करते हैं.

पौधे क्यों सूखते हैं?

कई बार जब आप पौधे का उचित रखरखाव नहीं करते, तो इस वजह से भी पौधे सूख जाते हैं। ओवर वाटरिंग या अंडर वाटरिंग के कारण भी पौधे सूखने लगते हैंपौधों को उचित मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिल पाने के कारण (अर्थात पोषक तत्वों की कमी या अधिकता के कारण) भी पौधे सूखने और मुरझाने लगते हैं

बेल के पेड़ में जल देने से क्या होता है?

बेल के वृक्ष को शिव जी का वास स्थान माना जाता है। इसलिए सोमवार के दिन बेल के वृक्ष पर जल चढ़ाने एवं शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से व्यक्ति के सभी काम बन जाते हैं।

बेलपत्र के पेड़ के नीचे किसका वास होता है?

1 बिल्वपत्र के वृक्ष में लक्ष्मी का वास माना गया है। इसकी पूजा करने से दरिद्रता दूर होती है और बेलपत्र के वृक्ष और सफेद आक को जोड़े से लगाने पर निरंतर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।