प्रदेश में बाल अधिकार संरक्षण आयोग के गठन का उद्देश्य प्रदेश में बाल अधिकारों का संरक्षण सुनिश्चित करना है। एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करना है जो बच्चों के हित में सभी कानूनी प्रावधानों, उनके संरक्षण और विकास के लिए प्रदेश में चलाई जा रही समस्त योजनाओं की सटीकता, सम्पूर्णता, प्रभावशीलता की निगरानी कर सके और उन्हें और अधिक प्रभावोत्पादक बनाने के लिए सजग प्रहरी और मार्ग-दर्शक की भूमिका निभा सके ताकि प्रदेश में बच्चों के लिए सकारात्मक, खुशहाल वातावरण निर्मित हो। Show विश्व में बच्चों की सर्वाधिक संख्या भारत में है। भारत के संविधान ने बच्चों के कल्याण, उनके हित संरक्षण, संवर्धन तथा विकास हेतु उनके विभिन्न अधिकारों को सुनिश्चित किया है। संविधान के अनुच्छेद 39 (ङ) में राज्य से यह अपेक्षा की गई है कि बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरूपयोग न हो तथा आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर उन्हें ऐसे रोजगारों में न जाना पड़े जो कि उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हो। अनुच्छेद 39 (च) के अनुसार राज्य से अपेक्षित है कि बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएं दी जावें एवं बालकों तथा अल्पवय व्यक्तियों की शोषण तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा की जाए। संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के द्वारा अनुच्छेद 21 क जोड़ा जाकर बच्चों के शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में जोड़ा गया है, जिसके अंतर्गत राज्य, 6 से 14 वर्ष की आयु वाले सभी बालकों के लिये, निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा देने का, ऐसे रीति में, जो राज्य विधि द्वारा अवधारित करें, उपबंध करेगा। इसी प्रकार संविधान में मूलभूत कर्तव्यों में अनुच्छेद 51 क में अलग से प्रावधान (ट) जोड़ा गया है जिसमें माता-पिता एवं पालकों को बच्चों को अनिवार्य रूप से शिक्षित करने का कर्तव्य डाला गया है। अनुच्छेद 45 के अनुसार राज्य सभी बालकों के लिये 6 वर्ष की आयु पूरी करने तक प्रारम्भिक बाल्यावस्था, देखरेख और शिक्षा देने के लिये उपबंध करने का प्रयास करेगा। अनुच्छेद 24 के द्वारा कारखानों, खदान एवं जोखिम भरे कार्यों में किसी बालक, जिसकी आयु 14 वर्ष से कम हो, नहीं लगाया जायेगा। और देखेंमीडिया गैलरी
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