भाषा-शिक्षण में अनिवार्य हैThis question was previously asked in Show CTET July 2013 Paper - 2 Maths & Science (L - I/II: Hindi/English/Sanskrit) View all CTET Papers >
Answer (Detailed Solution Below)Option 2 : समग्रतावादी दृष्टिकोण Free Child Development and Pedagogy Mock Test 10 Questions 10 Marks 10 Mins भाषा का “समग्रतावादी दृष्टिकोण” भाषा विमर्श के गलियारों में “होल लैंग्वेज अप्रोच” के नाम से जाना जाता है। जो भाषा को संप्रेषण का माध्यम मानने और शब्द-कोश तथा वाक्यगत नियमों के बंधन के अतिरिक्त अन्य पहलुओं पर भी ध्यान देने की गुजारिश करता है। कोई भी भाषा अपने समाज की संरचना, साहित्य, संस्कृति, मनोविज्ञान एवं सौंदर्य की प्रचलित मान्यताओं से काफी गहराई से जुड़ी होती है। ताकि हम भाषा के बारे में सोचते समय तमाम तरह के चौखटों से परे एक समग्र दृष्टिकोण अपना सकें। Important Points एनसीएफ 2005 के आधार पत्र के अनुसार,
अतः हम कह सकते हैं कि भाषा-शिक्षण में समग्रतावादी दृष्टिकोण अनिवार्य है। Last updated on Oct 25, 2022 Detailed Notification for CTET (Central Teacher Eligibility Test) December 2022 cycle released on 31st October 2022. The last date to apply is 24th November 2022. The CTET exam will be held between December 2022 and January 2023. The written exam will consist of Paper 1 (for Teachers of class 1-5) and Paper 2 (for Teachers of classes 6-8). Check out the CTET Selection Process here. Candidates willing to apply for Government Teaching Jobs must appear for this examination. भाषा शिक्षण का शैक्षिक संदर्भ :- भाषा शिक्षण का शैक्षिक स्थल सर्वप्रथम स्कूल होता है स्कूल में अन्य विषयों के साथ अन्य भाषा शिक्षण की व्यवस्था की जाती है किसी भी भाषा को सीखना उतना ही महत्वपूर्ण कार्य जितना की अन्य विषयों की जानकारी प्राप्त करना सरकारी गैर सरकारी और पब्लिक स्कूलों में 1 से अधिक भाषाओं का ज्ञान दिया जाता है सरकारी स्कूलों में जहा और अंग्रेजी भाषा के ज्ञान पर ही अधिक बल दिया जाता है वहीं पब्लिक स्कूलों में हिंदी और अंग्रेजी भाषा सिखाई जाती हैं विद्यार्थी के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक भी हो जाती हैं भूमंडलीकरण के इस दौर में व्यक्ति नहीं रह सकता उसे कभी ना कभी कहीं ना कहीं एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना पड़ सकता है यह आवश्यक नहीं है कि जिस स्थान पर व्यक्ति जाए वहां की भाषा शिक्षण का महत्व बढ़ जाता है हमारी स्कूलों कॉलेजों में हिंदी माध्यम से दी जाती है इसके अलावा हिंदी भाषा और अंग्रेजी भाषा के रूप में पढ़ाई कराई जाती है और इसके अलावा शिक्षा व्यवस्था को सही ढंग से चलाने के लिए भारत सरकार ने त्रिभाषा सूत्र स्वीकार किया है ! (1) मातृभाषा अथवा प्रादेशिक भाषा! (2) संघ की राजभाषा हिंदी अथवा जब तक स्थिति बनी हुई है संघ की सहयोगी राजभाषा अंग्रेजी होगी ! (3) आधुनिक भारतीय अथवा विदेशी वह भाषा जो (1)और (2)के अंतर्गत ना आती हो और शिक्षा की मध्य भाषा के रूप में प्रयुक्त ना होती हो ! रविंद्र नाथ श्रीवास्तव कहते हैं कि स्पष्ट है हमारी राष्ट्रीय भाषा नीति स्पष्ट निर्देश देती है कि स्कूली शिक्षा में कौन सी भाषा कब शुरू की जाए कितने समय तक उसे पढ़ाया जाए किस भाषा को कैसी भाषा माना जाए और किसे विषय रूप में पढ़ाया जाए आदि इस नीति के अनुसार पहली अर्थात मातृभाषा को अनिवार्यता 10 वर्ष पढ़ाना आवश्यक है देती भाषा या तो राजभाषा हिंदी हो सकती है अंग्रेजी जिसे अनिवार्यता पांचवीं कक्षा से दसवीं कक्षा तक 6 वर्षों के लिए बनाना अपेक्षित है इन 3 वर्षों के समय 1 या उससे अधिक आधुनिक भारतीय भाषाओं को विकल्प रूप में पढ़ने पढ़ाने की भी छूटे उच्चतर माध्यमिक कक्षा 11वीं और 12वीं कक्षा में अनिवार्य नहीं दोबारा जिन्हें उसने पहली प्रणव को पढ़ाना बताइए कि आधुनिक भारतीय भाषाओं की गई भारतीय भाषाओं मैं किन्हीं दो का अध्यापन आवश्यक है! (1)आधुनिक भारतीय भाषाए ( 2)क्लासिक भाषाए (भारतीय अथवा विदेशी), (3)आधुनिक विदेशी भाषाएं इसी प्रकार देखा जा सकता है कि कॉलेजों में भी हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं को विषयों के रूप में बढ़ाया जाता है इसके अतिरिक्त भी आधुनिक भारतीय भाषाओं के रूप में भी भाषा का चुनाव किया जा सकता है! किसी भी भाषा को दो प्रकार से सीखा जाता है एक व्यंजन में जादू भाषा जो मनुष्य को जन्म से ही प्राप्त होती है जिसे हम मातृभाषा कहती हैं जो बालक अपने परिवार से सीखता है इसके अतिरिक्त एक अन्य भाषा ही होती है जो मनुष्य जिद करता है जिसे वह अपने किसी संस्थान स्कूल आदि से सीखता है यह भाषा कोई सजातीय भाषा तो जातिवाद शादी हो सकती है अथवा कोई विदेशी भाषा भी यह सभी भाषाएं मनुष्य के जीवन में कभी ना कभी अवश्य काम आती है इन हवाओं को सीखने की बुक संप्रेषण करना ही नहीं होता बल्कि उसे नौकरी व्यवसाय के दृष्टिकोण से भाषाएं उतनी ही महत्वपूर्ण है किसी भी भाषा को सीखने से तात्पर्य केवल इतना मन नहीं है कि आप उस भाषा को बोल और समझ सके उस भाषा के माध्यम से हम उसके भाषा ही समाज और लास्ट की संस्कृति को भी भली-भांति समझ सकते हैं जिससे यदि कभी हमें उस भाषा ही समाज से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ तथा हमें किसी कारणवश उस भाषा ही समाज के बीच रहने का अवसर मिले तो हमारे लिए हमारी सीखी हुई भाषा योगी हो सकती है कई बार ऐसा भी होता है कि है एक ही देश में दो या दो से अधिक भाषाओं का प्रयोग किया जाता है यह भाषा प्रयोग में न केवल हमें एक दूसरे सेेे जोडने सहायक होते हैं बल्कि बल्कि हमारे लिए नौकरी आदि केे भी अवसर प्रदान करते हैं भारतीय भाषा समाज मेंंंं अंग्रेजी भाषा द्वितीय भाषा के रूप में सिद्ध है हिंदी और अंग्रेजी के अलावा भी हमारे देश में कई भाषाएं बोली जाती हैं हमारा देश एक बहुभाषी देश है इसी को ध्यान में रखकर शिक्षा नीति के अंतर्गत त्रिभाषा सूत्र को बनाया गया है दिभाषिक शिक्षा का क्षेत्र मातृभाषा शिक्षा और द्वितीय भाषा शिक्षा का मध्यवर्ती क्षेत्र है द्वितीय भाषा शिक्षण में मात्र एक अन्य भाषा का शिक्षण एक निश्चित पाठ्यक्रम के साथ निर्धारित घंटों में किया जाता है स्पेनिश अथवा फ्रेंच भाषी क्षेत्र के प्रयोक्ता के लिए अगर हम अंग्रेजी को द्वितीय भाषा के रूप मैं पढ़ाएं तो यह द्वितीय भाषा शिक्षण होगा इसी प्रकार अगर हम हिंदी भाषी क्षेत्र में अंग्रेजी को मात्र एक विषय के रूप में पढ़ाएं और उस विषय को एक निर्धारित घंटे के साथ पाठ्यक्रम में रखें तो वह द्वितीय भाषा शिक्षण कहा जाएगा ऐसे स्थिति में स्कूल या विद्यालय में पढ़ाई जाने वाले अन्य विषय किसी अन्य भाषा के माध्यम से पढ़ाई जाते हैं उदाहरण के लिए हिंदी भाषी क्षेत्र के ऐसे स्कूलों को लीजिए जिनमें गणित ,विज्ञान ,भूगोल ,इतिहास आदि सभी विषय हिंदी माध्यम से पढ़ाई जाएं और एक विषय विशेष के रूप में जहां अंग्रेजी की शिक्षा दी जाति हो इस स्थिति में अंग्रेजी जी शिक्षा द्वितीय शिक्षण के रूप मैं स्वीकार की जाए पृथ्वी स्पष्ट है कि शिक्षण के संदर्भ में भाषा का विषय के रूप में प्रयोग और माध्यम के रूप में प्रयोग दोनों मेंं ही अंतर है! भाषा शिक्षण के दृष्टिकोण क्या है?भाषा शिक्षण में कहीं न कहीं क्रिया पक्ष की विशेषता रहती है। विद्यालय में भाषा शिक्षण भी भाषा अधिगम का औपचारिक तरीका है । भाषा सीखने एवं सिखाने की दृष्टियों को जान सकेंगे । भाषा अर्जन एवं भाषा अधिगम दार्शनिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक आधार को समझ सकेंगे ।
भाषा अर्जन के दो सिद्धांत क्या है?भाषा अर्जन का सिद्धांत - यह सिद्धांत मुख्यतः चॉम्स्की का दिया हुआ है। उनके अनुसार बच्चों में भाषा सीखने की जन्मजात क्षमता होती है। उन्होंने सार्वभौमिक व्याकरण का नियम बताते हुए बताया था कि बच्चे एक निश्चित समय में अनुकरण द्वारा भाषा नियम जानकर धीरे-धीरे सही वाक्य बनाना सीख जाते हैं और नए शब्द भी सीख जाते हैं।
भाषा शिक्षण के कौन कौन से सिद्धांत हैं?भाषा शिक्षण के सिद्धांत. 1) अभिप्रेरणा एवं रुचि का सिद्धांत( Theory of motivation and interest ) ... . 2) क्रियाशीलता का सिद्धांत ( Theory of creativity ) ... . 3)अभ्यास का सिद्धांत( Theory of principal ) ... . 4) समन्वय का सिद्धांत ( Theory of coordination ) ... . 5) व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धांत ( Theory of individual difference ). भाषा शिक्षण क्या है समझाइए?भाषा शिक्षण (Language Teaching) एक प्रक्रिया है या हम कह सकते हैं कि एक माध्यम है जिसकी सहायता से इस बात पर बल दिया जाता है कि बालक को किस प्रकार से पढ़ना-लिखना सिखाया जाए जिससे बालक भाषा का समझ के साथ प्रयोग करना सीख सके। बच्चों की भाषा को उसके समाज के व्यवस्था के अनुरूप ढालने के लिए भाषा शिक्षण जरूरी होता है।
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