भारत में यूरोपीय निवेश की स्थापना के प्रमुख कारण क्या थे? - bhaarat mein yooropeey nivesh kee sthaapana ke pramukh kaaran kya the?

श्रेया नंदी / नई दिल्ली April 30, 2022

भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) 2024 तक व्यापक मुक्त व्यापार सौदे को अंतिम रूप देने को लेकर आशान्वित हैं। भारत में ईयू के राजदूत उगो अस्तूतो ने आज यह जानकारी दी।

भारत और ईयू दोनों जगह 2024 में अगला आम चुनाव होने वाला है। इसी को मद्देनजर रखते हुए सौदे की समयसीमा तय की गई है। अस्तूतो ने संवाददाताओं को बताया कि व्यापार समझौता चुनावों से पहले पूरा हो जाने की उ मीद है।  

इस संबंध में चर्चा विश्व व्यापार संगठन की 12वी मंत्रीस्तरीय बैठक के बाद जून में आरंभ हो सकती है। व्यापार समझौते की रूपरेखा तय करने के लिए इसी महीने वाणिज्य सचिव बीवीआर सुब्रमण्यन की अगुआई में अधिकारियों का एक दल ब्रसेल्स पहुंचा था। ईयू के सांसद भी व्यापार वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए भारत आए थे।

भारत और ईयू पिछले वर्ष मई में संतुलित और व्यापक मुक्त व्यापार और निवेश समझौतों पर चर्चा की शुरुआत करने पर सहमत हुए थे। भारत और ईयू के बीच औपचारिक चर्चा विभिन्न मुद्दों पर मतभेद होने के कारण आठ वर्ष पहले थम गई थी। इसकी वजह थी कि यह समूह वाहन और वाइन पर आयात शुल्क में कटौती करने पर अधिक जोर दे रहा था। इस चर्चा की शुरुआत 2007 में हुई थी।     

हालांकि, कोविड-19 संबंधी चुनौतियों के साथ साथ ईयू की तरफ से मुक्त व्यापार समझौतों में पर्यावरण और श्रम जैसे मुद्दों को शामिल करने पर जोर दिए जाने के कारण चर्चा में प्रगति नहीं हो पाई थी। पता चला है कि व्यापार सौदे में इन मुद्दों को शामिल करने को लेकर भारत और ईयू एक ही स्थिति में हैं।

ईयू भारत का तीसरा सबसे प्रमुख व्यापार साझेदार और एक प्रमुख निवेशक है। इसी ह ते भारत और ईयू व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद की स्थापना करने पर सहमत हुए। यह परिषद व्यापार, विश्वसनीय तकनीकी और सुरक्षा के संबंधों में आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए एक रणनीतिक तंत्र है। इस कदम से इन दोनों पक्षों के बीच रणनीतिक संबंध गहरे होने के आसार हैं।

ईयू के अलावा, भारत फिलहाल ब्रिटेन, कनाडा के साथ एक व्यापार सौदे पर बातचीत कर रहा है और इजराइल तथा खाड़ी सहयोग परिषद के साथ इसी तरह के समझौते पर नजर बनाए हुए है। भारत पहले ही इस साल संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया के साथ व्यापार समझौता कर चुका है।

सारांश

यूरोपीय संघ और भारत की कार्यनीतिक साझेदारी लम्बे समय तक राजनीतिक तथा कार्यनीतिक मुद्दों की अपेक्षा व्यापार तथा सांस्कृतिक पहलुओं पर व्यापक रूप से केन्द्रित रही है। किन्तु चीन की हठधर्मिता और ट्रम्प प्रशासन के तहत अनिश्चित अमेरिकी राजनीति के कारण बदलते भूराजनीतिक परिदृश्य के साथ ही यूरोप तथा भारत को यह आभास हो गया है कि उन्हें एक-दूसरे के साथ मिलकर बहुत कुछ करना है। इस लक्ष्य को साकार करने के लिए यूरोपीय संघ ने नवम्बर 2018 में भारत के प्रति अपनी अलग रणनीति बनाई है। नये दस्तावेज में सहयोग के क्षेत्रों का विस्तार किया गया है और यूरोपीय संघ तथा भारत के बीच रणनीतिक साझेदारी को सशक्त करने के लिए एक रूपरेखा तैयार की गयी है। इस आलेख का लक्ष्य भारत और यूरोपीय संघ के सम्बन्धों का संक्षिप्त प्रस्तुतीकरण, इस नयी रणनीति का विश्लेषण तथा सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों को रेखांकित करना है।

भूमिका

यूरोपीय संघ ने नवम्बर 2018 में भारत के प्रति अपनी नवीन कार्यनीति प्रारम्भ की। 2004 में कार्यनीतिक साझेदारी पर हस्ताक्षर करने से लेकर अब तक चौदह वर्षों में यह इसका प्रथम कार्यनीतिक दस्तावेज है। इस कार्यनीति में भारत में यूरोपीय संघ के प्रमुख हितों को आगे बढ़ाने के लिए एक सुसंगत आधार प्रदान किया गया और इससे भी महत्त्वपूर्ण यह कि इससे व्यापार तथा निवेश, पारस्परिक सैन्य सम्पर्क, नवाचार, विदेश नीति आदि के सन्दर्भ में अवसरों की वृद्धि के लिए यूरोपीय संघ की भारत में प्रवेश की राह का अत्यन्त सरल हो गयी है। इस आलेख का उद्देश्य भारत के प्रति यूरोपीय नीति का विश्लेषण, साझेदारी के प्रमुख मुद्दों की समीक्षा तथा सम्बन्धों का मूल्यांकन करना है।

यूरोपीय संघ तथा भारत के सम्बन्धों का संक्षिप्त विवरण

1962 में यूरोपीय आर्थिक समुदाय के साथ राजनयिक सम्बन्ध स्थापित करने वाले प्राथमिक देशों में भारत भी शामिल था। 1993 में यूरोपीय संघ (ईयू) की औपचारिक स्थापना के साथ ही भारत ने 1994 में एक सहयोग अनुबन्ध पर हस्ताक्षर किए और इसके पश्चात दोनों के मध्य व्यापक राजनीतिक अन्तर्सम्बन्धों के द्वार खुल गये। ईयू-भारत कार्यनीतिक साझेदारी पर 2004 में हस्ताक्षर किया गया। 2005 के शिखर सम्मेलन में ईयू-भारत संयुक्त कार्य योजना स्वीकार की गयी जिसमें साझा लक्ष्यों को परिभाषित किया गया और राजनीतिक, आर्थिक तथा विकासपरक सहयोग के क्षेत्रों में सहयोग के अनेक आयाम प्रस्तावित किये गये। 2008 के सम्मेलन में इसकी समीक्षा की गयी जिसका केन्द्र बिन्दु चार प्राथमिकताओं : शान्ति तथा व्यापक सुरक्षा, सतत विकास, अनुसन्धान एवं तकनीक तथा जनता के पारस्परिक और सांस्कृतिक सम्बन्धों के विनियम को बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित किया गया।

ईयू भारत का सबसे बड़ा क्षेत्रीय व्यापारिक साझेदार है जबकि भारत 2016 में यूई का 9वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था। 2017-18 में ईयू के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार 76.90 बिलियन डॉलर था जिसमें भारत का निर्यात 30.35 बिलियन डॉलर और ईयू से भारत का निर्यात 46.55 बिलियन डॉलर था। अप्रैल 2000 से जून 2017 के कालखण्ड में ईयू राष्ट्रों से एफडीआई प्रवाह 83.7 बिलियन डॉलर था।2 भारत में लगभग 6000 ईयू कम्पनियाँ कार्यरत हैं जो 6 मिलियन से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रोजगार प्रदान कर रही हैं। व्यापारिक सम्बन्ध में वृद्धि के लिए भारत-ईयू ने 2007 में द्विपक्षीय व्यापार तथा निवेश समझौते (बीटीआईए) पर बातचीत प्रारम्भ की। अनेक चरणों की वार्ता के बावजूद सेवाओं, कृषि, आटोमोबाइल, आईपीआर जैसे क्षेत्रों में बाजर के मुद्दों पर भारी मतभेद रहे। मुक्त व्यापार समझौते में एचआर प्रावधानों पर ईयू की जिद ने भी प्रगति को बाधित किया।

लगभग एक दशक से ईयू तथा भारत की साझेदारी मन्द तथा विखण्डित रही। दूसरी ओर, सदस्य राष्ट्रों ने भारत के साथ व्यावहारिक और अग्रगामी सम्बन्धों को स्वीकार किया है। इसकी परिणति सीमित साझेदारी के रूप में सामने आयी जो व्यापक स्तर पर आर्थिक तथा व्यापारिक क्षेत्र तक सीमित रहा। यद्यपि ईयू भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार तथा सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है किन्तु इनके सम्बन्ध किसी भी प्रकार के रणनीतिक विषय से वंचित हैं।4

भारत के प्रति ईयू की कार्यनीति

2000 में ठोस पहल के पश्चात ईयू-भारत साझेदारी की गति बहुत मन्द रही जिसमें राजनीतिक तथा रणनीतिक चिन्ताओं के बजाय व्यापार तथा सांस्कृतिक मुद्दों को अधिक महत्त्व दिया गया। यद्यपि यूरोपीय सदस्य राष्ट्रों जैसे जर्मनी, फ्रांस तथा ब्रिटेन के साथ भारत के द्विपक्षीय सम्बन्ध विकसित हुए किन्तु इससे संघ के साथ इसके रणनीतिक सम्बन्धों के विस्तार में कोई मदद नहीं मिली। दूसरी ओर, यूरोप चीन को अपना प्रमुख साझेदार और एशिया में अपना बाजार मानता रहा।  किन्तु गत कुछ वर्षों में वैश्विक स्थिति में परिवर्तन आया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के उदार आदेश समाप्त करने तथा दूसरी ओर चीन की हठधर्मिता बढ़ने के कारण ब्रूसेल्स यह सोचने पर बाध्य हो गया कि भारत के साथ ठोस सम्बन्ध स्थापित करना स्वाभाविक रूप से अनुकूल होगा। साथ ही, भारत की अन्तर्राष्ट्रीय पहल तथा उसकी प्रासंगिकता लगातार बढ़ती जा रही है जिससे ईयू को भारत के साथ अपने आर्थिक, राजनयिक तथा रक्षा क्षमताओं को विकसित करने पर पुन: विचार करना पड़ा है।

इस नयी नीति का लक्ष्य वह क्रियान्वित करना है जो इन दोनों के मध्य सम्बन्धों के विस्तार के लिए तैयार की गयी रूपरेखा में प्रावधानित है। इस नीति में भारत को विशालतम अर्थव्यवस्था वाले राष्ट्रों में से एक माना गया जिसकी वार्षिक वृद्धि दर लगभग 7% है और 2030 तक इसकी अर्थव्यवस्था 7.8 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने की सम्भावना है। इस नीति में बढ़ते हुए जटिल भू-रणनीतिक परिक्षेत्र में भारत को एक महत्त्वपूर्ण सहयोगी माना गया।

इस नीति को तीन खण्डों में विभाजित किया गया6 : प्रथम नीति है सतत आधुनिकीकरण के माध्यम से समृद्धि। इस खण्ड में निर्धारित नीति के अनुसार सतत ढंग से विकास तक पहुँच, हरित तकनीक तथा डिजिटल समाधान, अवसंरचना के विकास, संसाधनों के कुशल उपयोग, डाटा सुरक्षा हेतु विनियामक प्रारूप के क्रियान्वयन तथा अन्तर्राष्ट्रीय मानकों को समरस बनाने में भारत के लक्ष्य को समर्थन देने वाले स्वाभाविक साझेदार के रूप में ईयू को महत्त्व दिया गया है। ईयू-भारत सहयोग संसाधनों पर दबाव तथा प्रदूषण, हरितगृह उत्सर्जन को कम करने तथा जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन बढ़ाने में योगदान देखा। ईयू तथा भारत के बीच सशक्त आधुनिकीकरण साझेदारी भी ईयू के स्वयं के रोजगार सृजन, विकास तथा निवेश लक्ष्यों में सहायक होगी और ईयू के सम्बन्ध-वृद्धि की नीति के अनुरूप यूरोप तथा एशिया के स्थायी सम्बन्धों को भी प्रोत्साहित करने में सहायक होगी। यह नीति व्यापार तथा निवेश सम्बन्ध की अछूती सम्भावनाओं को भी स्पर्श करने पर बल देती है। इस नीति के तथ्य कहते हैं कि भारत में अब भी "निर्यात तथा आगमी निवेश पर सशक्त निर्भरता और आयातों के प्रति उदासीनता" है। और कहा गया कि "ईयू भारत को अपनी अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा, वैश्विक मूल्य शृंखला में उत्तम समेकन से लाभ तथा वैश्विक जीडीपी में अपनी बढ़ती हिस्सेदारी के प्रति अधिक अनुरूपता को सशक्त करने के लिए अपनी अर्थव्यवस्था को मुक्त करने के लिए लगातार प्रोत्साहित करता रहेगा।" अन्तिम विषय-सामग्री "सन्तुलित, महत्त्वाकांक्षी तथा पारस्परिक लाभदायक" होनी चाहिए, कहते हुए यूरोपीय आयोग  के साथ कार्यनीति में दीर्घ-लम्बित व्यापक-आधार के व्यापार तथा निवेश समझौते (बीटीआईए) पर वार्ता जारी रखने का भी उल्लेख किया गया है। प्रतिभा तथा नवाचार के क्षेत्र में निवेश के सन्दर्भ में यह नीति राज्य तथा नगर स्तर पर मेलों, कार्यशालाओं तथा सेमिनारों के माध्यम से यूरोपीय संघ के कार्यक्रमों में भारतीय भागीदारी को अधिक आकर्षित करने के लिए यूरोपीय संघ तथा इसके सदस्य राष्ट्रों द्वारा विस्तारित गतिविधियों में वृद्धि करने का आह्वान करती है। यह ईयू में पर्यटन को प्रोत्साहित करने तथा युवा-विनिमयों में सहयोग के लिए ईयू तथा भारत दोनों के बीच सांस्कृतिक विरास की संरक्षा तथा प्रोत्साहन हेतु संयुक्त गतिविधियों में वृद्धि करने का भी आह्वान करती है।

दूसरा खण्ड नियम आधारित विश्व व्यवस्था के माध्यम से सुरक्षा तथा स्थिरता का है। इसकी नीति "संयुक्त राष्ट्र में, जी-20 में तथा डब्ल्यूटीओ में और अन्तर्राष्ट्रीय कानून तथा विवादों के निपटारे को संयुक्त सहयोग देने में इनके अनुरूप स्वयं को ढालते हुए" महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय बैठकों के अतिरिक्त भारत के साथ नियमित वार्ता और परामर्श को बढ़ाने पर बल देती है। ईयू विदेश नीति के मुद्दे और विशेष रूप से यूरेशिया तथा भारत-प्रशान्त क्षेत्र की अपनी साझा स्थिति पर सहयोग को मजबूत करने का इच्छुक है। "मध्य एशिया, मध्य पूर्व/पश्चिम एशिया, अफ्रीका तथा हिन्द महासागर में अतिव्यापित अपने पड़ोसियों के साथ अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा सुनिश्चित करने में भारत तथा ईयू के उत्तरदायित्व एकसमान हैं।" ईयू भारत के साथ "एक व्यावहारिक दृष्टिकोण, संयुक्त मूल्यांकनों, विश्लेषण तथा कार्यान्यवन की पिपासा से" सम्बन्ध प्रगाढ़ करने पर बल देता है। किन्तु सबसे महत्त्वपूर्ण परिवर्तन वह प्रभाव है जिसे बढ़ती सुरक्षा तथा रक्षा सहयोग पर स्थापित किया गया है।

विश्वसनीय सैन्य अवसंरचना निर्मित करने के लिए ईयू के प्रयास के अतिरिक्त यह नीति "भारतीय सशस्त्र सेनाओं के प्रमुखों और ईयू सैन्य ढाँचे के मध्य तथा संयुक्त सैन्य अभ्यास सहित भारत के साथ सैन्य सम्बन्धों" को बढ़ाने के महत्त्व पर बल देती है। इसने ईयू के सैन्य सलाहकार की नई दिल्ली में और भारत के सैन्य सलाहकार की ईयू में नियुक्ति करने का भी प्रस्ताव किया है। यह साइबर सुरक्षा, अस्त्र अप्रसार तथा नि:शस्त्रीकरण जैसी अनेक संयुक्त प्राथमिकताओं पर भी बल देती है। तृतीय विश्व के देशों के साथ अनेक प्रस्तावित कार्यवाहियों का आह्वान किया गया है जिसमें विशेष रूप से हिन्द महासागर तथा पूर्वी अफ्रीका में समुद्रतटीय देशों की क्षमता को  मजबूत करना, अफ्रीकी देशों को शान्ति के लिए प्रशिक्षित करना तथा आपदा के समय आपदा प्रबन्धन महत्त्वपूर्ण हैं।

तीसरा खण्ड भारत के प्रति अधिक समन्वित तथा अनुकूल उपागम है। यह भारत के सन्दर्भ में ईयू के हितों को प्रोत्साहित करने में उच्चस्तरीय प्राथमिकताओं की स्थापना तथा समन्वय, घनिष्ठता तथा प्रभावकता में वृद्धि के लिए ईयू की क्षमता में वृद्धि हेतु ईयू संस्थान तथा सदस्य राष्ट्रों, दोनों की भूमिका निर्धारित करता है। यह ईयू से भारत की प्रत्याशाओं को समझने तथा पारस्परिक हितों और लचीले, परिणामोन्मुखी उपागम के आधार पर ईयू-भारत रणनीतिक साझेदारी की ढाँचे को अनुकूल करने के लिए ईयू के साथ द्विपक्षीय स्तर पर संयुक्त उत्तरदायित्व में वृद्धि पर बल देती है।

मूल्यांकन

भारत के लिए यूरोपीय शक्तियों के साथ द्विपक्षीय व्यवहार सामूहिक इकाई के रूप में ईयू के साथ सम्बन्ध की अपेक्षा अधिक सरल था। ईयू के लिए यूरोप तथा अटलांटिक से परे देखने पर चीन में अधिक अस्पष्टता दिखाई देती है। चीन के उभरने के कारण उत्पन्न अनिश्चितताओं, रूस के दृढ़ निश्चय तथा संयुक्त राज्य द्वारा मोर्चेबन्दी के कारण ईयू नेतृत्व ने भारत की ओर नवीन दृष्टि से देखना प्रारम्भ किया। ईयू की यह नवीन नीति भारत के बढ़ते आर्थिक महत्त्व, भौतिक तथा संस्थागत विश्व परिवेश पर इसकी नीतियों के प्रभाव तथा जटिल भू-राजनीतिक अवस्थिति में इसकी स्थिति को लेकर जागरूक है।

इस नीति के माध्यम से अब ईयू भारत की प्रगति को प्रोत्साहित करने तथा भारत को अपने समकक्ष समझने में अपने हितों को पहचान रहा है। "ईयू तथा भारत के बीच सशक्त आधुनिकीकरण साझेदारी भी ईयू के स्वयं के रोजगार सृजन, विकास तथा निवेश लक्ष्यों में सहायक होगी और ईयू के सम्बन्ध-वृद्धि की नीति के अनुरूप यूरोप तथा एशिया के स्थायी सम्बन्धों को भी प्रोत्साहित करने में सहायक होगी।" इसे भारत के प्रति ईयू की नीति विषय पर यूरोपीय संघ परिषद के निष्कर्षों द्वारा भी समर्थित किया गया जिसमें बहुपक्षवाद के रक्षक की भूमिका पर बल दिया गया जिसमें भारत तथा ईयू एक साथ आ सकें। निष्कर्ष में कहा गया है कि "ईयू तथा भारत संयुक्त राष्ट्र तथा विश्व व्यापार संगठन के साथ ईमानदारी से बहुपक्षवाद के सशक्त रक्षक हैं..... यूएन, जी-20, डब्ल्यूटीओ तथा अन्य बहुपक्षीय संगठनों की साझा चुनौतियों तथा वैश्विक मुद्दों के समाधान के लिए ईयू भारत के साथ समन्वय स्थापित करेगा।"8

भारत के नवीन मानदण्ड स्थापक के रूप में उभरने की मान्यता एक अन्य महत्त्वपूर्ण परिवर्तन है। सतत विकास, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण सुरक्षा, सामुद्रिक प्रशासन, मानवीय तथा आपदा राहत आदि वैश्विक चुनौतियों से निपटने में भारत के योगदान को ईयू ने मान्यता दी है। 

परिषद द्वारा स्वीकृत रणनीति तथा निष्कर्ष इस विकासपरक सहयोग पर नवीन साझेदारी को बढ़ाने पर बल देते हैं जो तृतीय विश्व के देशों सहित अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर समन्वयन सहित सतत लक्ष्यों की प्राप्ति को सुगम करेंगे। भारत के प्रति ईयू के दृष्टिकोण में प्रमुख परिवर्तन यह हुआ है कि इसने आतंक-निरोधन, उग्रवाद, साइबर सुरक्षा, मिश्रित खतरों जैसे साझा सुरक्षात्मक हितों पर सहयोग को बढ़ावा दिया है किन्तु विगत से अधिक महत्त्वपूर्ण और परिवर्तित तथ्य पारस्परिक सैन्य सहयोग करना है। यद्यपि अभी यह देखना शेष है कि ईयू किस प्रकार इस पहलू पर कार्य करने जा रहा है किन्तु यह इस तथ्य की ओर अवश्य संकेत करता है कि भारत की बढ़ती सैन्य शक्ति को ईयू किस प्रकार देखता है, इस विषय में उसके सदस्य देशों के बीच परिवर्तनशील विचार हैं।

ब्रूसेल्स में इसकी भूराजनीतिक भूमिका को बढ़ाने का भारी दबाव है और भारत अनेक प्रकार से एक स्वाभाविक साझेदार है। चीन के रुख से एक व्यापक निराशा है और अपने पश्चिमी मित्रों के प्रति ट्रम्प प्रशासन की बेरुखी अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है।9 इसके साथ ही भारत भी दक्षिणी एशिया तथा हिन्द महासागर से परे एक विश्वसनीय खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है जिसके कारण ईयू को अपने परिक्षेत्र की समीक्षा करने के लिए बाध्य होना पड़ा। ईयू दिम्बर, 2018 में अन्तर्राष्ट्रीय सौर संगठन10 का अंग बना और सोमालिया में विश्व खाद्य कार्यक्रम वाहन भेजने के लिए भारत को अपने सहयोग के लिए आमन्त्रित किया। ईयू तथा भारत दोनों क्षेत्रीय चुनौतियों पर घनिष्टतापूर्वक समन्वयन भी करते रहे हैं। किन्तु केवल यह दुहराना ही पर्याप्त नहीं होगा कि भारत तथा ईयू "स्वाभाविक साझेदार" हैं, रणनीतिक आवश्यकताओं के विभिन्न क्षेत्रों तथा प्राथमिकताओं पर भी ध्यान देना आवश्यक है। भारत को साइबर सुरक्षा, नगरीकरण, पर्यावरणीय पुनरुद्भवन तथा कौशल विकास जैसी अपनी विभिन्न प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में ईयू के संसाधनों तथा विशेषज्ञता की आवश्यकता है। अब चूँकि ईयू का ध्यान भारत पर केन्द्रित हो रहा है तो यह नवीन रणनीति अद्वितीय है क्योंकि यह पहला अवसर है जब ईयू तथा इसके सदस्य राष्ट्रों ने साझेदारी के पुन: परिभाषित करने के लिए एक समग्र दीर्घकालीन दृष्टिकोण अपनाया है और इसे सशक्त करना समय की माँग है।

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* लेखिका, शोधार्थी, वैश्विक मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली।

अस्वीकरण : इसमें व्यक्त विचार शोधार्थी के हैं न कि परिषद के।

अन्त्य टिप्पणी

ईयू-भारत व्यापार, वाणिज्य विभाग, वाणिज्य एवं उद्योग मन्त्रालय, http://commerce-app.gov.in/eidb/ergn.asp, 11 जनवरी, 2019 को अधिगमित।

भारत-ईयू द्विपक्षीय वक्तव्य, भारतीय दूतावास, ब्रूसेल्स, 17 मार्च, 2018, https://www.indianembassybrussels.gov.in/pdf/Revised_Brief_Unclassifiedmar19_2018.pdf, 11 जनवरी, 2019 को अधिगमित

ईयू-भारत तथ्य शीट, ईयू की भारत नीति, https://cdn2- eeas.fpfis.tech.ec.europa.eu/cdn/farfuture/bKxeumPzObF8OEde6SrD5qWyKo9- suTMQp3ZZLfv93M/mtime:1542703624/sites/eeas/files/eu-india_factsheet_november_2018.pdf, 13 जनवरी, 2019 को अधिगमित।

हर्ष पन्त, अनिश्चित विश्व में एक साथ, टिप्पणियाँ, 1 दिसम्बर, 2018, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउण्डेशन, https://www.orfonline.org/research/together-in-an-uncertain-world-45709/, 13 जनवरी, 2019 को अधिगमित।

ईयू की भारत नीति के तत्व, यूरोपीय संसद तथा परिषद से संयुक्त संवाद, 20 नवम्बर, 2018, यूरोपीय आयोग, ब्रूसेल्स

आईबिड। पृ. 2

आईबिड। पृ. 3

ईयू की भारत नीति पर परिषद का मन्तव्य, परिषद द्वारा अपनी 3662वीं बैठक में स्वीकृत, 10 दिसम्बर, 2018, यूरोपी संघ परिषद, ब्रूसेल्स

पन्त, पृ. 4

सौर ऊर्जा सहयोग हेतु संयुक्त घोषणा पर ईयू तथा अन्तर्राष्ट्रीय सौर संगठन द्वारा हस्ताक्षर, यूरोपीय आयोग, 11 दिसम्बर, 2018. https://ec.europa.eu/info/news/signature-eu-and-international-solar¬alliance-joint-declaration-cooperation-solar-energy-2018-dec-11_en, 14 जनवरी, 2019 को अधिगमित।

ईयू एनएवीएफओआर द्वारा निवेदन करने पर संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम हेतु महत्त्वपूर्ण मानवीय सहायता के सहयोग के लिए भारतीय नौसेना ने 24-25 दिसम्बर, 2018 को संरक्षक बनना स्वीकार किया। भारतीय युद्धपोत सुनयना ने बोसाओ से उत्तरी सोमालिया के बरबेरा तक 360 टन खाद्य सहायता उपलब्ध कराई। (भारतीय युद्धपोत ने विश्व खाद्य कार्यक्रम जलयान, 8 जनवरी, 2019, यूरोपीय संघ बाह्य क्रियान्वयन, https://eunavfor.eu/indian-warship¬escorts-world-food-programme-vessel/)

भारत में यूरोपीय निवेशकों की स्थापना के प्रमुख कारण क्या थे?

अंग्रेजों का भारत आगमन और ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना का प्रमुख कारण पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा भारत में अपनी वस्तुओं को बेचने से होने वाला अत्यधिक लाभ था जिसने ब्रिटिश व्यापारियों को भारत के साथ व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित किया ।

भारत में यूरोपीय कंपनी की स्थापना कब हुई?

(1) 20 मई, 1498 ई.

भारत में यूरोपियों का आगमन कैसे हुआ?

17 मई 1498 को पुर्तगाल का वास्को-डी-गामा भारत के तट पर आया जिसके बाद भारत आने का रास्ता तय हुआ। वास्को डी गामा की सहायता गुजराती व्यापारी अब्दुल मजीद ने की । उसने कालीकट के राजा जिसकी उपाधि 'जमोरिन'थी से व्यापार का अधिकार प्राप्त कर लिया पर वहाँ सालों से स्थापित अरबी व्यापारियों ने उसका विरोध किया।

यूरोपीय कंपनियों का भारत में आगमन का क्या उद्देश्य था?

कंपनी का प्रारंभिक उद्देश्य था, भू-भाग नहीं बल्कि व्यापार । अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की प्रथम समुद्री यात्रा 1601 में जावा, सुमात्रा तथा मलक्का के लिए हुई । 1608 में इस कंपनी ने भारत के पश्चिमी तट पर सूरत में एक फैक्ट्री खोलने का निश्चय किया।