लोहे पर जिंक की परत जमा करने की प्रक्रिया क्या कहलाती है? - lohe par jink kee parat jama karane kee prakriya kya kahalaatee hai?

लोहे के ऊपर जिंक की परत चढ़ाने को क्‍या कहते हैं

लोहे के ऊपर जिंक की परत चढ़ाने को गैल्‍वेनाइजेशन कहते हैं। 

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लोहे पर जस्ते की परत निक्षेपित करने की प्रक्रिया को _______ कहा जाता है।

  1. निक्षेपण
  2. जंग लगना
  3. क्रिस्टलीकरण
  4. गैल्वनीकरण

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : गैल्वनीकरण

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CTET Paper 1 (महारथी): Mini Live Test

60 Questions 60 Marks 60 Mins

सही उत्तर गैल्वनीकरण है।

लोहे पर जिंक की परत जमा करने की प्रक्रिया क्या कहलाती है? - lohe par jink kee parat jama karane kee prakriya kya kahalaatee hai?
Key Points

  • गैल्वनीकरण लोहे पर जस्ता की परत जमा करने की प्रक्रिया है।
  • गैल्वनीकरण के दौरान, जस्ते का उपयोग लोहे और स्टील की वस्तुओं को जंग लगने से बचाने हेतु कोटिंग के लिए किया जाता है।

लोहे पर जिंक की परत जमा करने की प्रक्रिया क्या कहलाती है? - lohe par jink kee parat jama karane kee prakriya kya kahalaatee hai?
Additional Information

  • लोहे को जंग लगने से बचाने के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया का उपयोग किया जा सकता है:
    • लोहे की वस्तु की सतह को पेंट करने से हवा और नमी लोहे की वस्तु के संपर्क में नहीं आ सकती है और इसलिए जंग नहीं लगता है।
    • ग्रीस या तेल लगाने से,
    • गैल्वनीकरण द्वारा, अर्थात लोहे की वस्तुओं पर जस्ता धातु की एक पतली परत जमा करके,
    • क्रोम-प्लेटिंग द्वारा, यानी लोहे को क्रोमियम से लेपित किया जाता है,
    • स्टेनलेस स्टील बनाने के लिए लोहे को कार्बन क्रोमियम और निकल के साथ मिलाकर

Last updated on Oct 19, 2022

The Application Links for the DSSSB TGT will remain open from 19th October 2022 to 18th November 2022. Candidates should apply between these dates. The Delhi Subordinate Services Selection Board (DSSSB) released DSSSB TGT notification for Computer Science subject for which a total number of 106 vacancies have been released. The candidates can apply from 19th October 2022 to 18th November 2022. Before applying for the recruitment, go through the details of DSSSB TGT Eligibility Criteria and make sure that you are meeting the eligibility. Earlier, the board has released 354 vacancies for the Special Education Teacher post. The selection of the DSSSB TGT is based on the Written Test which will be held for 200 marks.

यशदीकरण (अंग्रेजी:Galvanization) या गैल्वानीकरण या यशदलेपन एक धातुकार्मिक प्रक्रम है जिसमें इस्पात या लोहे के उपर जस्ते की परत चढ़ा दी जाती है। इससे इन धातुओं का क्षरण (विशेषत: जंग लगना) रूक जाता है। यद्यपि यशदीकरण की प्रक्रिया स्वयं एक गैर-विद्युतरासायनिक प्रक्रिया है किन्तु फिर भी यह प्रक्रिया एक विद्युतरासायनिक उद्देश्य की पूर्ति करती है। यह प्रकिया अधिकांश यूरोपीय भाषाओं मे गैल्वेनाइजेशन कहलाती है और इसका यह नाम इतालवी वैज्ञानिक लुईगी गैल्वानी के नाम पर पड़ा है।

इस्पात को पिघले हुए जस्ते में डुबाकर संरक्षित करने की प्रक्रिया १५० वर्ष से भी अधिक पुरानी है। इस प्रक्रिया का आविष्कार सन १८३७ में पेरिस के मोसियर स्तैनिस्लास सोरेल (Monsieur Stanislas Sorel) ने किया था।

यशदी इस्पात[संपादित करें]

सादे इस्पात के बने हुए पतले तारों और चादरों को संक्षरण (corrosion) से बचाने के लिये इसे किसी संक्षरणरोधी धातु की पतली परत से ढका जाता है। इस कार्य के लिये जो धातुएँ उपयोग में आती हैं उनमें जस्ता और वंग (टिन) मुख्य हैं। जस्ता सबसे सस्ती धातु पड़ती है।

यशदीकरण की विधियाँ[संपादित करें]

इस्पात पर जस्ता चढ़ाने की चार विधियाँ हैं :

1-उष्ण निमज्जन प्रक्रिया (Hot Dip process);

2-विद्युत-अपघटनी यशदलेपन (Electrolytic Zinc Plating);

3-शेरार्डीकरण (Sherardising)

4-उष्ण धातु की फुहार (Spraying of Hot Metal)।

उष्ण निमज्जन प्रक्रिया[संपादित करें]

उष्ण निमज्जन गैलवानीकरण देखें।

विद्युत-अपघटनी यशदलेपन[संपादित करें]

कुछ किस्म के पदार्थों पर जस्ता चढ़ाने के लिये शीतक या विद्युत्मुलम्मा प्रक्रिया आजकल काम में आती है। इस विधि के लाभ ये हैं :

1. जस्ते के उपयोग में मितव्ययिता;

2. लेप की वांछित मोटाई पर एक सीमा तक नियंत्रण;

3. शुद्ध जस्ते के लेप का चढ़ना;

4. इस्पात की कमानी जैसी वस्तुओं के लिये, जो उष्ण विधि में पिछले जस्ते के ताप से प्रभावित हो सकती है, इसकी उपयुक्तता तथा

5. सपाट सतह के लेप में विकृत और टेढ़ा मेढ़ा होने का अभाव, जैसा उष्ण विधि में देखा जाता है।

इस विधि के दोष ये हैं:

1. उष्ण विधि की अपेक्षा अधिक समय का लगना,

2. मोटे अस्पंजीय लेप प्राप्त करने में कठिनता,

3. उष्ण मुलम्मे की तरह लेप का चमकदार न होना,

4. ठीक ठीक लेप प्राप्त करने में उष्ण विधि की अपेक्षा अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता और अधिक कठिनाइयों का सामना पड़ना तथा 5. जलाभेद्य बर्तनों के निर्माण में विद्युद्विश्लेष्य विधि का झलाई में उतना प्रभावशाली न होना जितना उष्ण विधि का। सभी विद्युद्विश्लेषिक विलयनों का आधार ज़िंकसल्फेट है।

शेरार्डीकरण[संपादित करें]

इस विधि में लेप की जानेवाली वस्तु को धातु के ड्रम या बक्स में जस्ताचूर्ण से घेर कर, जिसमें धात्विक जस्ता रहता है, गरम करते हैं। यह विधि विशेष रूप से उन वस्तुओं के लिये उपयुक्त है जिनपर संरक्षण के लिये बहुत पतला लेप आवश्यक होता है और जहाँ पात्रों पर नक्काशी, प्रतिरूप एवं रूपांकन को ज्यों का त्यों रखना होता है। इसमें यही दोष है कि छोटी मोटी वस्तुओं पर ही इससे जस्ता चढ़ाया जा सकता है।

धातु फुहार[संपादित करें]

इस विधि में पहले से स्वच्छ किए हुए उष्ण इस्पात पर पिघले जस्ते की हल्की फुहार एक विशेष प्रकार की धातु की पिचकारी से की जाती है। बड़े बड़े पात्रों पर जस्ता चढ़ाने के लिये यह सुगम विधि है। इस लेप से इस्पात के साथ मिश्रधातु नहीं बनती।

जस्ती लेप की आयु[संपादित करें]

साधारण जस्ती लेप वायुमंडलीय तथा द्रव संक्षारण के प्रति खुले रहते हैं और मिट्टी के संक्षारण के प्रति कम मात्रा में खुले रहते हैं। इनका वायुमंडलीय संक्षारण प्रतिरोध हवा के अम्लीय पदार्थों, जैसे औद्योगिक स्थानों पर सल्फर डाइआक्साइड, लवणीय जल की झीलों या समुद्रों के पास सोडियम क्लोराइड, के प्रति संदूषण पर निर्भर है। इस तरह ग्रामीण क्षेत्रों में औद्योगिक क्षेत्रों की अपेक्षा जस्ती लेप की आयु 4 से लेकर 10 गुना तक अधिक होती है। द्रव में, या द्रव द्वारा, जस्तीकृत चादरों के संक्षारण की मात्रा संक्षारक माध्यम के हाइड्रोजन आयन की सांद्रता पर निर्भर करती है। पीएच 6 और 12 के बीच संरक्षी फिल्म स्थायी होता है। पीएच के 4 और 12.5 हो जाने से चादरें शीघ्रता से आक्रांत होती हैं। प्रबल खनिज अम्लों के कुछ लक्षणों, विशेषत: क्लोराइड और नाइट्रेट वाले लवणों के विलयन में जस्ता शीघ्रता से घुल जाता है।

जस्ती लेप का परीक्षण और उसके दोष[संपादित करें]

जस्ती चादरों के रासायनिक, चुंबकीय, सूक्ष्मदर्शीय तथा भौतिकी परीक्षण किए जाते हैं।

अपलेपन परीक्षण (test) रासायनिक है और यह जस्ती लेप के जस्ते के भार के अंतर पर आधारित है, जो परीक्षण के समय विलीन हो जाने से होता है। बिना वस्तु को नष्ट किए चुंबकीय परीक्षण द्वारा लेप की मोटाई निर्धारित की जाती है। जस्ते का लेप अचुंबकीय होने के कारण चादर के संघनित्र परिपथ (condenser circuit) की चादर के लेप की मोटाई के अनुसार प्रेरणा (induction) में परिवर्तन हो जाता है। यह परिवर्तन मापा जाता है और उससे गणना कर मोटाई ज्ञात की जाती है। ठीक ठीक निक्षारित आड़ी काट (etched cross section) के सूक्ष्मदर्शी द्वारा अध्ययन से लेप की मोटाई और बनावट प्रकट होती है। भौतिक विधियों में लेप को बिना हटाए चादर में सामान्य रूप में मोड़ने, गोठने (beading), किनारे दबाने और खींचने से जो विरूपता आती हैं, उसका निर्धारण होता है।

बार-बार सामने आनेवाले दोषों में मुख्य दोष फफोला पड़ना है। ये फफोले अत्यंत सूक्ष्म आकार से लेकर बड़े बड़े आकार तक के हो सकते हैं और चादर की सतह पर न्यून स्थान बृहत स्थान तक घेरते हैं। इस्पात की सतह के असातत्य (discontinuities) के कारण हाइड्रोजन एकत्र होता है और उससे फफोले बनते हैं। दूसरा दोष लेप का धूसर होना है। इसमें क्षेत्र धूसर रग का हो जाता है, जिसमें मणिभ या तो बिल्कुल होते नहीं, अथवा सामान्य विस्तार से छोटे होते हैं। इस दोष के निश्चित कारण हैं :

(1) लोहे में अधातु पदार्थों का रह जाना और

(2) जस्ता ऊष्मक से निकलने पर चादर का बड़ा तीव्र गति से ठंढा होना।

जस्ता चढ़ाने में विशेष सावधानी बरतकर इन दोषों का निवारण किया जा सकता है।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • Life Program regarding liquid waste management in galvanic processes.
  • American Galvanizers Association

लोहे पर जिंक के परत चढ़ाने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?

यशदीकरण (अंग्रेजी:Galvanization) या गैल्वानीकरण या यशदलेपन एक धातुकार्मिक प्रक्रम है जिसमें इस्पात या लोहे के उपर जस्ते की परत चढ़ा दी जाती है।

लोहे की वस्तु के चरण को रोकने के लिए कौन सी प्रक्रिया की जाती है?

Solution : (a) यशदलेपन- इस प्रक्रिया में लोहे की वस्तुओं के ऊपर जिंक की एक परत चढ़ाई जाती है ।

जस्तीकरण क्या है?

जस्तीकरण एक धातु में जस्ता की एक सुरक्षात्मक परत लगाने की प्रक्रिया है। यह लोहे की जंग को रोकने की एक बहुत ही सामान्य विधि है। यह धातु को संरक्षित करने के लिए गर्म, पिघला हुआ जस्ता में डुबाकर या विद्युतलेपन की प्रक्रिया द्वारा किया जा सकता है। पिघला हुआ जस्ता की कोटिंग द्वारा जंग से लोहे और स्टील की सुरक्षा।