Show नोटा नोटा (अंग्रेज़ी: None of the above (NOTA)) का अर्थ है- इनमे से कोई भी नहीं। NOTA का उपयोग पहली बार भारत में 2009 में किया गया था।[1] स्थानीय चुनावों में मतदाताओं को NOTA का विकल्प देने वाला छत्तीसगढ़ भारत का पहला राज्य था। NOTA बटन ने 2013 के विधानसभा चुनावों में चार राज्यों - छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान और मध्य प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली में अपनी शुरुआत की।[2] 2014 से नोटा पूरे देश मे लागू हुआ।[कृपया उद्धरण जोड़ें] भारत निर्वाचन आयोग ने दिसंबर २०१३ के विधानसभा चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में इनमें से कोई नहीं अर्थात ‘नोटा’(None of the above) बटन का विकल्प उपलब्ध कराने के निर्देश दिए।[3],[4], 2018 में नोटा को भारत में पहली बार उम्मीदवारों के समकक्ष दर्जा मिला। हरियाणा में दिसंबर २०१८ में पांच जिलों में होने वाले नगर निगम चुनावों के लिए हरियाणा चुनाव आयोग ने निर्णय लिया कि नोटा के विजयी रहने की स्थिति में सभी प्रत्याशी अयोग्य घोषित हो जाएंगे तथा चुनाव पुनः कराया जाएगा।[5][6] हालांकि अभी भारत निर्वाचन आयोग ने इसे लागू नही किया है। भारतीय आम चुनाव, 2019 में भारत में लगभग 1.04 प्रतिशत मतदाताओं ने उपरोक्त में से कोई नहीं (नोटा) के लिए मतदान किया, जिसमें बिहार 2.08 प्रतिशत नोटा मतदाताओं के साथ अग्रणी रहा।[7] इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
भारत में नोटा विकल्प कब पेश किया गया था?2014 में, ECI ने राज्यसभा चुनावों में नोटा की शुरुआत की। 2015 में, भारत के चुनाव आयोग ने अहमदाबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिज़ाइन (NID) द्वारा डिज़ाइन किए गए विकल्प के साथ 'उपरोक्त में से कोई नहीं' के लिए प्रतीक की घोषणा की।
पहली बार ईवीएम का प्रयोग कब किया गया?इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ("ईवीएम") 1999 के चुनावों से भाग में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के कार्यान्वयन के लिए भारतीय जनरल और राज्य चुनावों में इस्तेमाल हो रही है। ईवीएम ने भारत में स्थानीय, राज्य और सामान्य (संसदीय) चुनावों में पेपर मतपत्रों का स्थान लिया है।
मतदान से क्या अभिप्राय है?यदि किसी देश में अनुचित साधनों द्वारा केवल विशिष्ट उद्देश्यों एवं स्वार्थों की पूर्ति के लिये सचेष्ट राजनीतिक संगठन ही मतदाताओं को मतदान में संमिलित होने की प्रेरणा देते हैं, तथा इस प्रकार अपने पक्ष में उनके मत संग्रह करते हैं तो निश्चय ही निर्वाचन तथा मतदान का प्रबंध सरकार के हाथों सौपना अधिक श्रेयस्कर होगा ताकि यह ...
कौन मात देने के लिए योग्य है?सर्वजनीन मताधिकार से तात्पर्य है कि सभी नागरिक जो 18 वर्ष और उससे अधिक उम्र के हैं, उनकी जाति या शिक्षा, धर्म, रंग, प्रजाति और आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद वोट देने के लिए स्वतंत्र हैं। नवीन संविधान लागू होने के पूर्व भारत में 1935 के "गवर्नमेंट ऑव इंडिया ऐक्ट" के अनुसार केवल 13 प्रति शत जनता को मताधिकार प्राप्त था।
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