"बरसात" यहाँ पुनर्प्रेषित होता है। अन्य प्रयोगों के लिए, बरसात (बहुविकल्पी) देखें। Show
वर्षा (Rainfall) एक प्रकार का संघनन है। पृथ्वी के सतह से पानी वाष्पित होकर ऊपर उठता हैऔर ठण्डा होकर पानी की बूंदों के रूप में पुनः धरती पर गिरता है। इसे वर्षा कहते हैं। वर्षा के प्रकार:
काल्पित[संपादित करें]महाभारत काल में कर्ण की पत्नी भी वर्षा थी। परिचय[संपादित करें]वायु में मिला जलवाष्प शीतल पदार्थों के संपर्क में आने से संघनन (condensation) के कारण ओसांक तक पहुंचता है। जब वायु का ताप ओसांक से नीचे गिर जाता है, तब जलवाष्प पानी की बूँदों अथवा ओलों के रूप में धरातल पर गिरने लगता है। इसी को वर्षा कहते हैं। किसी भी स्थान पर किसी निश्चित समय में बरसे हुए जलकणों तथा हिमकणों से प्राप्त जल की मात्रा को वहाँ की वर्षा का माप कहते हैं। विश्व के विभिन्न भागों में मासवार औसत वर्षा की मात्रा गरमी के कारण उत्पन्न जलवाष्प ऊपर आकाश में जाकर फैलता है एवं ठंडा होता है। अत: जैसे जैसे वायु ऊपर उठती है, उसमें जलवाष्प धारण करने की क्षमता कम होती जाती है। यहाँ तक कि अधिक ऊपर उठने से वायु का ताप उस अंक तक पहुंच जाता है, जहाँ वायु जलवाष्प धारण कर सकती है। इससे भी कम ताप हो जाने पर, जलवाष्प जलकणों में परिवर्तित हो जाता है। इसी से बादलों का निर्माण होता है। फिर बादल जल के कारण धरातल पर बरस पड़ते हैं। जलकण बनने के उपरांत भी यदि वायु का ताप कम होते होते हिमांक से भी कम हो जाता है, तो जलकण हिमकणों का रूप धारण कर लेते हैं जिससे हिमवर्षा होती है। वर्षा के लिए दो बातें आवश्यक हैं :
वर्षा के प्रकार[संपादित करें]वर्षा तीन प्रकार की होती है : संवहनीय वर्षा (Convectional rain)[संपादित करें]संवहनीय वर्ष में प्राय: प्रति दिन होती है । दिन में अत्यधिक गर्मी पड़ने के कारण धरातल गर्म हो जाता है , जिस कारण वायु गर्म होकर फैलती है शुष्क एडियावेटिक दर से प्रति 1000 मीटर पर या वायु का 283.15°k(10°C) तापमान कम होने लगता है जिस कारन वायु ठंडी हो जाती है। पर्वतकृत वर्षा (Orographical rain)[संपादित करें]वाष्प से भरी हवाओं के मार्ग में पर्वतों का अवरोध आने पर इन हवाओं को ऊपर उठना पड़ता है जिससे पर्वतों के ऊपर जमे हिम के प्रभाव से तथा हवा के फैलकर ठंडा होने के कारण हवा का वाष्प बूँदों के रूप में आकर धरातल पर बरस पड़ता है। ये हवाएँ पर्वत के दूसरी ओर मैदान में उतरते ही गरम हो जाती हैं और आसपास के वातावरण को भी गरम कर देती है। विश्व के अधिकतर भागों में इसी प्रकार की वर्षा होती है। मानसूनी प्रदेशों (भारत) में भी इसी प्रकार की वर्षा होती है। इस वर्षा को पर्वतकृत वर्षा कहते हैं। चक्रवातीय वर्षा (Cyclonic rain)[संपादित करें]इस प्रकार की वर्षा गर्म और शीतल वायुराशियों के आपस में मिलने से होती है, क्योंकि हल्की गरम वायु ऊपर उठती है तथा भारी शीतल वायु नीचे बैठती है। अत: ऊपर उठनेवाली वायु ठंडी होकर वर्षा करने लगती है। इस प्रकार वर्षा प्राय: शीतोष्ण कटिबंध में हुआ करती है। वर्षामापन[संपादित करें]किस स्थान पर कितनी वर्षा हुई है, इसे मापने के लिए एक यंत्र काम में लाया जाता है, जिसे वर्षामापी (Rain gauge) कहते हैं। इसे एक निश्चित समय में तथा निश्चित स्थान पर वर्षा में रखकर पानी के बरसने की मात्रा को माप लिया जाता है। वर्षामापी कई तरह का होता है। वर्षा अधिकतर इंच या सेंटीमीटर में मापी जाती है। वर्षामापी एक खोखला बेलन होता है जिसके अंदर एक बोतल रखी रहती है और उसके ऊपर एक कीप लगा रहता है। वर्षा का पानी कीप द्वारा बोतल में भर जाता है तथा बाद में पानी को मापक द्वारा माप लिया जाता है। इस यंत्र को खुले स्थान में रखते हैं, ताकि वर्षा के पानी के कीप में गिरने में किसी प्रकार की रुकावट न हो। इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
भारत में वर्षा कितने प्रकार की होती है?वर्षा तीन प्रकार की होती है :. संवहनीय वर्षा (Convectional rain). पर्वतकृत वर्षा (Orographical rain). चक्रवातीय वर्षा (Cyclonic rain). वर्षा के तीन प्रकार क्या है?उत्पत्ति के आधार पर वर्षा को मुख्यतया तीन प्रकारों में बाँटा जा सकता है- संवहनीय वर्षा, पर्वतीय वर्षा और चक्रवातीय वर्षा।
वर्षा कैसे होती है यह कितने प्रकार की होती है वर्णन कीजिए?वर्षा कितने प्रकार की होती है?
वर्षा के प्रमुख प्रकार कौन कौन से हैं?वर्षा के प्रकार. संवहनीय वर्षा–धरातल पर ऊष्मा की अधिकता के कारण वायुमण्डल में उत्पन्न संवहनीय धाराओं द्वारा होने वाली वर्षा को संवहनीय वर्षा कहते हैं। ... . पर्वतीय वर्षा–निम्न वायुभार उच्च वायुभार को अपनी ओर आकर्षित करता है।. |