भारत में जातिवाद के क्या कारण है? - bhaarat mein jaativaad ke kya kaaran hai?

जातिवाद एक जाति के हित के सम्मुख अन्य जातियों के सामान्य हितों की अनादर और हनन करने की प्रवृत्ति है। जातिवाद या जातीयता एक ही जाति के लोगों की वह भावना है। जो अपनी जाति विशेष के हितों की रक्षा के लिये अन्य जातियों के हितों की अवहेलना और उनका हनन करने के लिये प्रेरित करती है। एक ही जाति के लोग अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिये अन्य जाति के लोगों को हानि पहुंचाने के लिये प्रेरित होते है। जातिवाद के विकास के कई कारक है अपनी जाति की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए, औद्योगिक विकास संस्कृतिकरण, विभिन्न जातीय संगठन। आज विभिन्न जातियाँ मिलकर भी अपना संगठन बना रही हैं और राजनैतिक एवं आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए इनका प्रयोग कर रही हैं। वर्ण व्यवस्था भारतीय समाज का एक महत्वपूर्ण अंग रही है। जिसने सामाजिक और राजनीतिक जीवन के सभी पक्षो को प्रभावित किया है। वर्तमान युग में भी व्यक्ति की जाति जन्म से ही निर्धारित होती है न कि कर्म से। इस प्रकार प्राचीन वर्ण व्यवस्था की विकृति के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई जाति व्यवस्था ने ही जातिवाद को जन्म दिया है।

जाति का अर्थ 

अंग्रेजी भाषा का शब्द ‘caste’ स्पेनिश शब्द ‘casta’ से लिया गया है। ‘कास्टा’ शब्द का अर्थ है ‘नस्ल, प्रजाति अथवा आनुवंशिक तत्वों या गुणों का संग्रह’। पुर्तगालियों ने इस शब्द का प्रयोग भारत के उन लोगों के लिए किया, जिन्हें ‘जाति’ के नाम से पुकारा जाता है। अंग्रेजी शब्द ‘caste’ मौलिक शब्द का ही समंजन है।

जाति की परिभाषा

रिजले – जाति परिवारों का संग्रह अथवा समूह है जो एक ही पूर्वज, जो काल्पनिक मानव या देवता हो, से वंश-परंपरा बताते हैं और एक ही व्यवसाय करते हों और उन लोगों के मत में या इसके योग्य हों, एक सजाति समुदाय माना जाता हो।

लुंडबर्ग – जाति एक अनमनीय सामाजिक वर्ग है, जिसमें मनुष्यों का जन्म होता है और जिसे वे बड़ी कठिनाई से ही छोड़ सकते हैं।

ब्लंट – जाति एक अन्तर्विवाही समूह या समूहों का संकलन है, जिसका एक सामान्य नाम होता है, जिसकी सदस्यता पैतृक होती है और जो अपने सदस्यों पर सामाजिक सहवास के सम्बन्ध में कुछ प्रतिबन्ध लगाती है। जो एक परम्परागत सामान्य पेशे को करती है या एक सामान्यतया एक सजातीय समुदाय को बनाने वाली समझी जाती है।

कूले – जब वर्ग पूर्णतया आनुवंशिकता पर आधरित होता है, तो हम उसे जाति कहते हैं।

मैकाइवर – जब प्रस्थिति पूर्णतया पूर्वनिश्चित हो, ताकि मनुष्य बिना किसी परिवर्तन की आशा के अपना भाग्य लेकर उत्पन्न होते हैं, तब वर्ग जाति का रूप धरण कर लेता है।

केतकर – जाति दो विशेषताएं रखने वाला एक सामाजिक समूह है (क) सदस्यता उन्हीं तक सीमित होती है, (ख) सदस्यों को एक अनुल्लंघनीय सामाजिक नियम द्वारा समूह के बाहर विवाह करने से रोक दिया जाता है।

मार्टिन्डेल और मोनोकेसी – जाति व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है, जिनके कर्तव्यों तथा विशेषाधिकारों का हिस्सा जन्म से निश्चित होता है, जो कि जादू या ध्र्म दोनों से समर्थित तथा स्वीकृत होता है।

ई. ए. गेट – जाति अन्तर्विवाही समूह या ऐसे समूहों का संकलन है, जिनका एक सामान्य नाम होता है, जिनका परम्परागत व्यवसाय होता है, जो अपने को एक ही मूल से उद्भूत मानते हैं और जिन्हें साधरणतया एक ही सजातीय समुदाय का अंग समझा जाता है।

ग्रीन- जाति स्तरीकरण की ऐसी व्यवस्था है, जिसमें प्रस्थिति की सीढ़ी पर उपर या नीचे की ओर गतिशीलता, कम-से-कम आदर्शात्मक रूप में नहीं पायी जाती।

एंडरसन – जाति सामाजिक वर्गीय संरचना का वह कठोर रूप है, जिसमें व्यक्तियों का पद, प्रस्थिति-क्रम में, जन्म अथवा आनुवंशिकता द्वारा निर्धारित होता है।

जातिवाद को दूर करने के उपाय

भारत में जातिवाद को जन्म देने वाली कुप्रथा जातिप्रथा है। जिसे एकदम तो समाप्त नही किया जा सकता परंतु इस दिशा में उपाय किये जाने चाहिए-

  1. अन्तजार्तीय विवाहो को पेा्रत्साहन दिया जाना चाहिए इससे जातीय बंधन ढ़ीले पडेंगे। 
  2. जाति सूचक उपनामो पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए। 
  3. जातिगत आधार पर होने वाले चुनावो पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए। 
  4. जाति प्रथा के विरूद्ध प्रचार प्रसार किया जाना चाहिए। 
  5. समाज में व्याप्त आर्थिक एवं सामाजिक असमानता को समाप्त करने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

जातिवाद का लोकतंत्र पर प्रभाव

जातिवाद के कुछ ऐसे दुष्परिणाम भी सामने आये है। जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लोकतंत्र को प्रतिकूल रूप में प्रभावित कर रहे है।

1. राष्ट्रीय एकता के घातक - जातिवाद राष्ट्रीय एकता के लिये घातक सिद्ध हुआ है। क्योंकि जातिवाद की भावना से प्रेरित होकर व्यक्ति अपने जातीय हितो को ही सर्वोपरि मानकर राष्ट्रीय हितो की उपेक्षा कर देता है। व्यक्ति केा तनाव उत्पन्न हो जाता है। जिससे राष्ट्रीय एकता को आघात पहुंचता है।  

2. जातीय एवं वगरीय संघर्ष- जातिवाद ने जातीय एवं संघर्षो को जन्म दिया है। विभिन्न जातियो एवं वर्गो में पारस्परिक ईर्ष्या एवं द्वेष के कारण जातीय एवं वर्गीय दंगे हो जाया करते है। इतना ही राजसत्ता पर अधिकार जमाने के लिये विभिन्न जातियों के मध्य खुला संघर्ष दिखाई देता है।

3. राजनीतिक भ्रष्टाचार- सभी राजनैतिक दलो में जातीय आधार पर अनेक गुट पाये जाते है और वे निर्वाचन के अवसर पर विभिन्न जातियो के मतदाताओ की संख्या को आधार मानकर ही अपने प्रत्याशियो का चयन करते है। निर्वाचन के पश्चात राजनीतिज्ञ नेतृत्व का निर्णय भी जातिगत आधार पर ही होता है।

4. नैतिक पतन- जातिवाद की भावना से प्रेरित व्यक्ति अपनी जाति के व्यक्तियों को अनुचित सुविधाएं प्रदान करने के लिये अनैतिक एवं अनुचित कार्य करता है। जिससे समाज का नैतिक पतन हो जाता है।