भारत को कौन कौन देश साथ देते हैं? - bhaarat ko kaun kaun desh saath dete hain?

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: आसिम खान Updated Wed, 24 Jun 2020 01:22 PM IST

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सार

चीन से 1962 के युद्ध में कई देशों ने दिया था भारत का साथअमेरिका और ब्रिटेन ने खुलकर दिया था भारत को समर्थनदोस्ती के बावजूद रूस रहा था शांत, पाकिस्तान था खिलाफभारत और चीन युद्ध के बीच दो भागों में बंट गई थी दुनिया

भारत को कौन कौन देश साथ देते हैं? - bhaarat ko kaun kaun desh saath dete hain?

चीन से 1962 के युद्ध में कई देशों ने दिया भारत का साथ - फोटो : Twitter

विस्तार

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद जारी है। गलवां घाटी में हुई हिंसक झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे। इसे लेकर देशभर में गुस्से का माहौल है। लोग चीन से भारत के सपूतों की शहादत का बदला लेने और चीन को सबक सिखाने की मांग कर रहे हैं। भारत को कई देशों का भी साथ मिल रहा है। 

वहीं, कुछ देश 1962 के युद्ध की तरह चीन के साथ नजर आ रहे हैं। क्या आपको मालूम है कि जब भारत और चीन के बीच 1962 में युद्ध हुआ तो भारत को सबसे बड़ी मदद उस देश से मिली थी जिससे भारत बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं कर रहा था। चलिए हम आपको बताते हैं कि 1962 के युद्ध में कौन से देश भारत के साथ और किसने विरोध किया था।

दो भागों में बंट गई थी दुनिया

1962 में जब भारत और चीन का युद्ध हुआ तो पूरी दुनिया दो खेमों में बंटी हुई थी। एक खेमा सोवियत संघ का साम्यवादी खेमा जो पूर्वी खेमा कहलाता था और दूसरा खेमा अमेरिका और मित्र देशों का था। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इसी के बीच गुटनिरपेक्ष देशों का आंदोलन खड़ा कर रहे थे।

हालांकि, भारत ने सोवियत संघ (अब रूस) से मिग विमानों की खरीद करके ब्रिटेन और अमेरिका को नाराज कर दिया था। युद्ध से पहले सोवियत संघ भारत से लगातार दोस्ती की बात कर रहा था लेकिन भारत और चीन का युद्ध होते ही वो शांत होकर बैठ गया।

अमेरिका ने दिया था खुलकर साथ

भारत को सबसे बड़ी मदद अमेरिका से मिली थी जिसकी भारत को उम्मीद नहीं थी। अमेरिका ने हथियारों और समर्थन दोनों तरीके से भारत की मदद की। अमेरिका के राष्ट्रपति जान एफ कैनेडी ने भारत का साथ दिया। उन्होंने कोलकाता में 02 नवंबर 1962 को सात विमानों से हथियार भेजे। भारत का साथ देने की एक वजह सोवियत संघ और अमेरिका के बीच क्यूबा को लेकर चल रही जबरदस्त तनातनी भी थी। 

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भारत को कौन कौन देश साथ देते हैं? - bhaarat ko kaun kaun desh saath dete hain?

भारत-चीन युद्ध 1962

भारत और चीन के मौजूदा सीमा तनाव के समय ज्यादातर देश भारत के समर्थन में खड़े हैं. क्या थी 1962 की स्थिति जब भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ गया था. तब किस देश ने भारत की मदद की थी और किसने नहीं

  • News18Hindi
  • Last Updated : June 23, 2020, 15:24 IST

भारत और चीन के बीच इस समय जिस तरह का सीमा तनाव चल रहा था, उसे लेकर ज्यादातर देशों की प्रतिक्रिया बंटी हुई है. कुछ देश भारत के पक्ष में मजबूती से खड़े दिख रहे हैं तो कुछ साफतौर पर चीन की ओर हैं. क्या आपको मालूम है कि जब भारत और चीन के बीच 1962 में युद्ध हुआ तो भारत को सबसे बड़ी मदद उस देश से मिली, जिससे भारत बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं कर रहा था.

जिस समय वर्ष 1962 में भारत और चीन का युद्ध हुआ तो पूरी दुनिया दो खेमों में बंटी हुई थी. एक खेमा सोवियत संघ का साम्यवादी खेमा पूर्वी खेमा कहलाता था और दूसरा खेमा अमेरिका और मित्र देशों का था. भारत के तत्कालाीन प्रधानमंत्री नेहरू इसी के बीच गुट निरपेक्ष देशों का आंदोलन खड़ा कर रहे थे. हालांकि भारत ने 50 के दशक में आखिर में सोवियत संघ (अब रूस) से मिग विमानों की खरीद करके ब्रिटेन आदि को नाराज कर दिया था.

युद्ध से पहले सोवियत संघ भारत से लगातार दोस्ती का दम भर रहा था लेकिन भारत और चीन का युद्ध होते ही वो तटस्थ होकर बैठ गया. भारत को सबसे बड़ी मदद अमेरिका से हथियारों और समर्थन दोनों रूप में मिली.

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अमेरिकी प्रेसिडेंट ने भारत का पूरा साथ दिया 
जब भारत-चीन युद्ध हो रहा था जब सोवियत संघ और अमेरिका के बीच क्यूबा को लेकर जबरदस्त तनातनी चल रही थी. इसके बाद भी अमेरिका के राष्ट्रपति जान एफ कैनेडी ने भारत का साथ दिया. उन्होंने उसी दौरान कोलकाता में सात विमानों से हथियार भेजे. ये विमान 02 नवंबर 1962 को कोलकाता के एयरपोर्ट पर उतरे.

भारत को कौन कौन देश साथ देते हैं? - bhaarat ko kaun kaun desh saath dete hain?

02 नवंबर 1962 अमेरिका के साथ विमान कोलकाता एयरपोर्ट पर भारत की मदद के लिए हथियारों के साथ उतरे

क्या कहती है अमेरिकी राजदूत की डायरी 
केवल यही नहीं अमेरिका ने पर्दे के पीछे बड़ी भूमिका भी निभाई. उसने ये सुनिश्चित किया कि पाकिस्तान उस समय पश्चिम छोर से भारत पर आक्रमण नहीं करेगा. अगर तत्कालीन नई दिल्ली स्थित अमेरिकी राजदूत जॉन कैनेथ गालब्रेथ की प्रकाशित डायरी पढ़ें तो लगता है कि अमेरिका ने वाकई इस युद्ध को रोकने, चीन पर दबाव डालने के साथ पाकिस्तान को शांत रखने में काफी सक्रियता दिखाई थी. डायरी के इस संस्मरण को एंबेसडर जर्नल में प्रकाशित किया गयाथा.

सोवियत संघ और अमेरिका के बीच क्यूबा को लेकर गंभीर तनाव की स्थिति थी. सोवियत संघ तब क्यूबा में कुछ परमाणु बिजलीघर स्थापित करना चाहता था. अमेरिका इसके खिलाफ था, उसे लगता था कि ऐसा करने से ठीक उसके पड़ोस में सोवियत संघ उसको नुकसान पहुंचा सकता है. बाद में ये मसला संयुक्त राष्ट्र संघ पहुंचा. वहां दोनों देशों के बीच इसे लेकर एक सहमति बन गई.

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चीन को लग रहा था कि कोई भारत की मदद नहीं करेगा
जब चीन ने भारत पर हमला किया तो उसे ये भी लग रहा था कि अमेरिका और सोवियत संघ आपस में उलझे हुए हैं तो कोई भी भारत की मदद नहीं कर पाएगा. इसके बाद भी अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने भारत के लिए समय निकाला और ये सुनिश्चित किया कि भारत को यथासंभव मदद दी जा सके.

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1962 में भारत में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत जॉन कैनेथ गालब्रेथ. जिन्होंने अमेरिका से भारत को मदद में खास भूमिका अदा की

अमेरिका ने परमाणु हथियारों से हस्तक्षेप के बारे में विचार किया था
विकीपीडिया के चीन-भारत युद्ध (Sino-Indian War) पेज की मानें तो भारत में जिस तरह से चीन ने हमला कर एग्रेशन दिखाया था, उससे अमेरिका में कैनेडी प्रशासन डिस्टर्ब था. भारत-चीन युद्ध के बाद मई 1963 में जब अमेरिका में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की मीटिंग हुई. उसमें भारत पर चीन के हमले पर भी चर्चा हुई. तब रक्षा मंत्री राबर्ट मैकनमारा और जनरल मैक्सवेल टेलर ने राष्ट्रपति को सुझाव दिया कि अगर फिर कभी ऐसी स्थिति आए तो अमेरिका को परमाणु हथियारों से भी हस्तक्षेप करना चाहिए. मीटिंग में ये तय कर लिया गया कि अगर चीन ने फिर ऐसी हिमाकत की तो उसे मजा परमाणु हथियारों के जरिए चखाया जाएगा. हालांकि चीन तब तक खुद भी परमाणु हथियार विकसित कर चुका था.

ब्रिटिश संसद की बैठक में भारत को समर्थन दिया गया 
भारत पर चीन के आक्रमण के बाद ब्रिटेन में तुरंत संसद की बैठक बुलाई गई. जिसे क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय ने संबोधित किया. संसद के नए अधिवेशन में अपना अभिभाषण देते हुए उन्होंने भारत को चीनी आक्रमण के खिलाफ पूरा समर्थन दिया. उन्होंने कहा कि इस संकट की घड़ी में ब्रिटेन पूरी तरह भारत के साथ है. अगर भारत चाहे तो हम उसे सैनिक मदद दे सकते हैं.

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गुटनिरपेक्ष देश जरूर खुलकर समर्थन में नहीं खड़े हुए
हालाकि गुटनिरपेक्ष उस तरह भारत के समर्थन आकर नहीं खड़े होते दिखाई दिए. केवल मिस्र और यूनाइटेड अरब रिपब्लिक ही खुलकर भारत के समर्थन में आए. बाद में 10 दिसंबर 1962 में गुट निरपेक्ष देशों ने श्रीलंका में एक मीटिंग करके चीन से अनुरोध किया उसकी सेना 20 किमी पीछे चली जाए.

सोवियत संघ का रुख तटस्थ रहा
उसी तरह सोवियत संघ भी इस पूरे मामले में तटस्थ दिखा. उसने युद्ध में ना तो किसी का साथ दिया और ना ही किसी के प्रति अपना समर्थन जाहिर किया. हालांकि 50 के दशक के आखिर में सोवियत संघ ने भारत के साथ प्रगाढ़ दोस्ती का वायदा किया था. तब भारत ने अमेरिका, ब्रिटेन को नाराज करके उससे मिग विमान खरीदने का फैसला किया था.

जो देश खुलकर भारत के साथ खड़े हुए
जो अन्य देश उस समय खुलकर भारत के पक्ष में खड़े हो गए थे और उन्होंने खुले तौर पर चीन की कार्रवाई को गलत बताया था, उसमें एक नहीं कई देश शामिल थे. जिसमें ऑस्ट्रेलिया, साइप्रस, फ्रांस, जर्मनी, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, न्यूजीलैंड, मेक्सिको, कनाडा, जापान, ईरान, हालैंड, स्वीडन, इक्वाडोर आदि शामिल थे.

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पाकिस्तान चीन के साथ था लेकिन...
पाकिस्तान की भूमिका उस युद्ध निश्चित तौर पर चीन के साथ थी लेकिन अमेरिका की दखलंदाजी के कारण वो चुपचाप बैठा रहा. तब नेपाल जरूर भारत के साथ खड़ा नजर आ रहा था. उसने उस युद्ध में भारत को अपनी जमीन सैन्य इस्तेमाल के लिए दी.

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Tags: China, India and china, India China Border Tension, India-China Rift, Indo-China Border Dispute, USA, War

FIRST PUBLISHED : June 23, 2020, 14:32 IST

भारत के सपोर्ट में कितने देश हैं?

भारत की स्थलीय सीमा 7 देशों से मिलती है इनमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भूटान ,नेपाल, चीन म्यांमार,बांग्लादेश शामिल हैं |

चीन और भारत के बीच कौन कौन से विवाद है?

पाकिस्तान के साथ जम्मू-कश्मीर को लेकर विवाद है तो चीन के साथ न सिर्फ लद्दाख, बल्कि अरुणाचल प्रदेश में भी सीमा विवाद है. चीन भारत के हजारों किलोमीटर हिस्से पर अपना दावा करता है. पूर्वी लद्दाख में तो चीन के साथ मई 2020 से ही तनाव बना हुआ है, लेकिन अब अरुणाचल से सटी सीमा पर भी ड्रैगन अपनी ओर पक्का निर्माण कर रहा है.

भारत चीन पर कितना निर्भर है?

भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों से यह साफ़ तौर पर ज़ाहिर होता है कि भारत की चीन के आयात पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है. मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021-22 में दोनों देशों के बीच क़रीब 115 अरब डॉलर का व्यापार हुआ. जोकि पिछले साल की तुलना में बढ़ा है. पिछले साल यह 86 अरब डॉलर था.

भारत में कुल कितने देश हैं?

सबसे हमले आपको हम बता से की भारत एक स्वयं देश है जो दुनिया का सबसे बड़ा एशिया महाद्वीप में स्थित है। मतलब भारत में एक भी देश नहीं है बल्कि भारत खुद एक देश है जिसमे 28 राज्य है और 8 केंद्र शासित प्रदेश है।