भगवान श्री कृष्ण के धनुष का क्या नाम था? - bhagavaan shree krshn ke dhanush ka kya naam tha?

विश्व के प्राचीनतम साहित्य संहिता और अरण्य ग्रंथों में इंद्र के वज्र और धनुष-बाण का उल्लेख मिलता है। भारत में धनुष-बाण का सबसे ज्यादा महत्व था इसीलिए विद्या के संबंध में एक उपवेद धनुर्वेद है। नीतिप्रकाशिका में मुक्त वर्ग के अंतर्गत 12 प्रकार के शस्त्रों का वर्णन है जिनमें धनुष का स्थान सर्वोपरि माना गया है।

भारत में महाभारत काल और उससे पूर्व के काल में एक से एक बढ़कर धनुर्धर हुए हैं। एक ऐसा भी धनुर्धर था जिसको लेकर द्रोणाचार्य चिंतित हो गए थे और एक ऐसा भी धनुर्धर था, जो अपने एक ही बाण से दुश्मन सेना के रथ को कई गज दूर फेंक देता था। धनुर्धर तो बहुत हुए हैं, लेकिन एक ऐसा भी धनुर्धर था जिसकी विद्या से भगवान कृष्ण भी सतर्क हो गए थे। फिर भी इन इन सभी के तीर में था दम लेकिन सर्वश्रेष्ठ तो सर्वश्रेष्ठ ही होता है।

आखिर भारत में किस तरह धनुष-बाण की शुरुआत हुई और किस तरह एक से एक चमत्कारिक धनुष- बाण के आविष्कार हुए, यह एक रहस्य ही है। महाभारत काल के सभी योद्धाओं के पास विशेष प्रकार के धनुष हुआ करते थे और इनके धनुष-बाण के नाम भी होते हैं। हर एक धनुष के बाण की अपनी एक अलग ही शक्ति होती थी। आओ जानते हैं ऐसे ही 10 धनुष और बाणों के बारे में।

अगले पन्ने पर पहला धनुष और बाण...

श्रीराम के पास कोदंड, शिवजी के पास पिनाक और अर्जुन के पास गाण्डिव धनुष था। प्रभु श्रीकृष्‍ण को आपने धनुष धारण करते हुए नहीं देखा होगा परंतु उनके पास था सारंग या शारंग नाम का धनुष। आओ जानते हैं इसके बारे में कुछ खास।


शारंग (sarang) :

1. भगवान श्रीकृष्ण सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर भी थे यह बात तब पता चली, जब उन्होंने लक्ष्मणा को प्राप्त करने के लिए स्वयंवर की धनुष प्रतियोगिता में भाग लिया था। इस प्रतियोगिता में कर्ण, अर्जुन और अन्य कई सर्वश्रेष्ठ धनुर्धरों ने भाग लिया था। द्रौपदी स्वयंवर से कहीं अधिक कठिन थी लक्ष्मणा स्वयंवर की प्रतियोगिता। भगवान श्रीकृष्ण ने सभी धनुर्धरों को पछाड़कर लक्ष्मणा से विवाह किया था। हालांकि लक्ष्मणा पहले से ही श्रीकृष्ण को अपना पति मान चुकी थी इसीलिए श्रीकृष्ण को इस प्रतियोगिता में भाग लेना पड़ा।

2. शारंग का अर्थ होता है रंगा हुआ, रंगदार, सभी रंगोंवाला और सुंदर।


3. कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण का यह धनुष सींग से बना हुआ था।


4. कुछ मानते हैं कि यह वही शारंग है जिसे कण्व की तपस्यास्थली के बांस से बनाया गया था। ब्रह्माजी के आदेश से विश्वकर्माजी ने इन बांसों से 1. गांडीव, 2. पिनाक और 3. सारंग नाम के तीन धनुष बनाए थे।

5. यह भी कहा जाता है कि वत्तासुर नाम का एक दैत्य था जिसका संपूर्ण धरती पर आतंक था। उसके आतंक का सामना करने के लिए दधीचि ऋषि ने देशहित में अपनी हड्डियों का दान कर दिया था। उनकी हड्डियों से 3 धनुष बने- 1. गांडीव, 2. पिनाक और 3. सारंग। इसके अलावा उनकी छाती की हड्डियों से इन्द्र का वज्र बनाया गया। इसी सभी दिव्यास्त्रों को लेकर वत्तासुर के साथ युद्ध किया और उसका वध कर दिया गया था।

6. एक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण और राक्षस शल्व के बीच एक युद्ध के दौरान शारंग धनुष प्रकट होता है। शल्व ने कृष्ण के बाएं हाथ पर हमला किया जिससे कृष्ण के हाथों से शारंग छूट गया। बाद में, भगवान कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शल्व के सिर को धड़ से अलग कर दिया।

7. कहेत है कि भगवान विश्वकर्मा ने तीन धनुष बनाए थे। पहला पिनाक, दूसरा गांडिव और तीसरा शारंग। ब्रह्मा ने विष्णुजी और शिवजी के बीच झगड़ा पैदा कर दिया कि तुम दोनों में से बेहतर तीरंदाज कौन है। फिर दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। शिवजी के पास पिनाक था और विष्णुजी के नास शारंग। अंत में ब्रह्माजी ने दोनों के क्रोध को शांत किया तब शिवजी ने क्रोधित होकर पिनाक देवरात को सौंप दिया। देवराज से यह धनुष राजा जनक के पास चला गया। इसी तरह विष्णुजी ने भी क्रोधित होकर अपना धनुष ऋषि ऋचिक को सौंप दिया।

8. शारंग धनुष सबसे पहले भगवान विष्णु के पास था। विष्णुजी ने इसे ऋषि ऋचिक को दे दिया था। ऋषि ऋचिक ने अपने पौत्र परशुराम को दिया और परशुरामजी ने श्रीराम को दिया। श्रीराम ने यह धनुष जल के देवता वरुण को दे दिया और भगवान वरुणदेव ने खांडवदहन के दौरान इस धनुष को श्रीकृष्ण को सौंप दिया। मृत्यु से ठीक पहले, कृष्ण ने इस धनुष को महासागर में फेंककर वरुण को वापस लौटा दिया।

शार्ङ्ग, भगवान् विष्णु के धनुष का नाम है। इसका उच्चारण लोग 'शारंग' या 'सारंग' के रूप में भी करते हैं, परन्तु सही शब्द 'शार्ङ्ग' है।[1][2] विष्णु के अन्य अस्त्र-शस्त्रों में सुदर्शन चक्र, नारायणास्त्र, वैष्णवास्त्र, कौमोदकी व नंदक तलवार सम्मिलित हैं।

कथा[संपादित करें]

यह धनुष, भगवान शिव के धनुष पिनाक के साथ, विश्वव्यापी वास्तुकलाकार और अस्त्र-शस्त्रों के निर्माता विश्वकर्मा द्वारा तैयार किया गया था। एक बार, भगवान ब्रह्मा जानना चाहते थे कि उन दोनों में से बेहतर तीरंदाज कौन है, विष्णु या शिव। तब ब्रह्मा ने दोनों के बीच झगड़ा पैदा किया, जिसके कारण एक भयानक द्वंद्वयुद्ध हुआ। उनके इस युद्ध के कारण पूरे ब्रह्मांड का संतुलन बिगड़ गया। लेकिन जल्द ही विष्णु ने अपने बाणों से शिव को पराजित किया। ब्रह्मा के साथ अन्य सभी देवताओं ने उन दोनों से युद्ध को रोकने के लिए आग्रह किया और विष्णु को विजेता घोषित किया क्योंकि वह शिव को पराजित करने में सक्षम थे। क्रोधित भगवान शिव ने अपने धनुष पिनाक को एक राजा को दे दिया, जो सीता के पिता राजा जनक के पूर्वज थे। भगवान विष्णु ने भी ऐसा करने का निर्णय किया, और ऋषि ऋचिक को अपना धनुष शारंग दे दिया।

समय के साथ, शारंग, भगवान विष्णु के अवतार और ऋषि ऋचिक के पौत्र परशुराम को प्राप्त हुआ। परशुराम ने अपने जीवन के उद्देश्य को पूरा करने के पश्चात, विष्णु के अवतार भगवान राम को शारंग दे दिया। राम ने इसका प्रयोग किया और इसे जलमण्डल के देवता वरुण को दिया। महाभारत में, वरुण ने शारंग को खांडव-दहन के दौरान भगवान कृष्ण (विष्णु के अवतार) को दे दिया। गोलोक धाम में वापिस जाने के पहले , श्रीकृष्ण ने इस धनुष को महासागर में फेंककर वरुण को वापस लौटा दिया।

विष्णु के बाईसवें अवतार श्रीकृष्ण और रहस्यमय शक्तियों के राक्षस शल्व के बीच एक द्वंद्वयुद्ध के दौरान शारंग प्रकट होता है। शल्व ने श्रीकृष्ण के बाएं हाथ पर हमला किया जिससे श्रीकृष्ण के हाथों से शारंग छूट गया। बाद में, श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शल्व के सिर को धड़ से अलग कर दिया।

एक अन्य कथा के अनुसार, जब जनक ने घोषणा की कि जो भी देवी सीता से विवाह करना चाहता है उसे पिनाक नामक दिव्य धनुष उठाना होगा और इसकी प्रत्यंचा चढ़ानी होगी। अयोध्या के राजकुमार श्रीराम ने ही यह धनुष प्रत्यंचित किया और देवी सीता से विवाह किया। विवाह के बाद जब उनके पिता दशरथ श्रीराम के साथ अयोध्या लौट रहे थे, श्रीपरशुराम ने उनके मार्ग को रोका और अपने गुरु शिव के धनुष पिनाक को तोड़ने के लिए राम को चुनौती दी। श्रीराम ने धनुष को भंग कर दिया । इस पर दशरथ ने ऋषि श्रीपरशुराम से उसे क्षमा करने के लिए प्रार्थना की लेकिन श्रीपरशुराम और भी क्रोधित हुए और उन्होने श्रीविष्णु के धनुष शारंग को लिया और श्रीराम से धनुष को बांधने और उसके साथ एक द्वंद्वयुद्ध लड़ने के लिए कहा। श्रीराम ने श्रीविष्णु के धनुष शारंग को लिया, इसे बाँधा, इसमें एक बाण लगाया और उस बाण को श्रीपरशुराम की ओर इंगित किया। तब श्रीराम ने श्रीपरशुराम से पूछा कि वह तीर का लक्ष्य क्या देंगे। इस पर, श्रीपरशुराम स्वयं को अपनी रहस्यमय ऊर्जा से रहित मानते हैं। वह महसूस करते हैं कि श्रीराम श्रीविष्णु का ही अवतार हैं।

  1. महाभारत, सटीक, प्रथम खण्ड, 3.3.48 एवं 6.65.50; गीताप्रेस, गोरखपुर।
  2. श्रीमद्भागवत महापुराण, सटीक, प्रथम खण्ड, 4.12.24; गीताप्रेस, गोरखपुर, पृष्ठ-378.

श्री कृष्ण जी के धनुष का नाम क्या था?

शारंग धनुष: सींग का बना हुआ यह धनुष भगवान श्रीकृष्ण के पास था. ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण इसी धनुष के द्वारा लक्ष्मणा स्वयंवर की प्रतियोगिता जीतकर लक्ष्मणा से विवाह किया था.

भगवान विष्णु के धनुष का नाम क्या था?

शारंग, भगवान विष्णु के धनुष का नाम है। विष्णु के अन्य अस्त्र-शस्त्रों में सुदर्शन चक्र, नारायणास्त्र, वैष्णवास्त्र, कौमोदकी व नंदक तलवार सम्मिलित हैं।

सबसे शक्तिशाली धनुष कौन था?

या पिनाक (संस्कृत: पिनाक:) भगवान शिव का धनुष है। हिंदू महाकाव्य रामायण में इस धनुष का उल्लेख है, जब श्री राम इसे जनक की पुत्री सीता को अपनी पत्नी के रूप में जीतने के लिए भंग करते हैं।

भीष्म पितामह के धनुष का नाम क्या था?

इस धनुष का नाम पिनाक था