भगत सिंह को फांसी देने वाले जज का नाम क्या है? - bhagat sinh ko phaansee dene vaale jaj ka naam kya hai?

शहीद-ए-आजम भगत सिंह की शहादत को देश और दुनिया बड़ी विनम्रता से स्मरण करती है। भगत सिंह की शहादत की जब बात आती है, कुछ नाम खुद-ब-खुद उनके साथ जुड़ जाते हैं। इनमें दो नाम ऐसे है जिसे भारत का हर नागरिक हिकारत की नजरों से देखता है, जबकि एक और नाम है जिसे देश लाखों सलाम भेजता है। यह नाम है जस्टिस आगा हैदर का। जस्टिस आगा हैदर ने भगत सिंह को फांसी लिखने के बजाय अपना इस्तीफा देना स्वीकार किया था किया था।

जस्टिस आगा हैदर ने भगतसिंह और उनके साथियों सुखदेव और राजगुरु को सज़ा से बचाने के लिए गवाहों के बयानों और सुबूतों की बारीकी से पड़ताल की थी। इन महान क्रांतिकारियों के लिए जस्टिस आग़ा हैदर साहब के दिल में काफी हमदर्दी थी। इस कारण उन्होंने शहीद-ए-आजम और उनके साथियों के केस से खुद को अलग करना ज्यादा मुनासिब समझा।

इतिहासकार भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने वाले दो गद्दारों का भी जिक्र करना नहीं भूलते। असेंबली में बम फेंकने का मुकदमा जब चल रहा था तब उनके साथी बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ शोभा सिंह ने गवाही दी थी। दूसरे गवाह शादी लाल ने भी वतन से गद्दारी कर मुकदमे में गवाही दी थी। वतन से गद्दारी के इनाम में दोनों को अंग्रेज़ों ने सर की उपाधि के साथ ढेरों माल-असबाब दिया था। शादीलाल और शोभा सिंह को अंग्रेजों ने सर-आंखों पर बिठाया, लेकिन भारतीय जनता से इन्हें नफरत ही मिली। शादी लाल को गांव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा तक नहीं दिया था। शादी लाल के लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर लाये तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था।

वहीं, जस्टिस आगा हैदर ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जाकर जो काम किया, उस पर हर भारतीय को गर्व है। जस्टिस आगा हैदर पर अंग्रेजी हुकूमत ने दबाव बनाया था और भगतसिंह को फांसी की सज़ा देने का हुक़्म दिया था, मगर इस वतन परस्त ने देशभक्तों को फांसी लिखने के बजाय अपना इस्तीफा दे मुनासिब समझा। उसके बाद दूसरे जज ने फांसी लिखकर बहुत नाम कमाया।

ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ गये जस्टिस आगा हैदर

8 अप्रैल 1929 को शहीद भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ असेंबली हॉल में बम फेंका था। उन्हें गिरफ्तार कर विशेष ट्रिब्यूनल द्वारा केस दर्ज किया गया था। इसे लाहौर षड्यंत्र केस (1929-1930) के रूप में जाना जाता है। इस मुकदमने में सहारनपुर के निवासी जस्टिस आगा हैदर ट्रिब्यूनल में एकमात्र भारतीय सदस्य थे। ट्रिब्यूनल में सभी जज अंग्रेज़ थे। 7 अक्टूबर1930 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई थी। ब्रिटिश हुकूमत के इस फैसले पर जस्टिस आगा हैदर को हस्ताक्षर करने के लिये कहा गया। जस्टिस आगा हैदर ने इससे इनकार कर दिया। अंग्रेज़ों का दबाव पड़ने पर जस्टिस हैदर ने देश की आज़ादी की ख़ातिर न्यायमूर्ति के पद से इस्तीफा दे दिया।

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जानिये कौन थे जस्टिस सैय्यद आगा हैदर जिन्होंने शहीद भगत सिंह को फांसी नहीं लिखी बल्कि अपना इस्तीफा लिख दिया था इतिहास...

Posted by इस्लाम और मुसलमान on Saturday, August 29, 2020

पाकिस्तान के रिटायर जज जस्टिस खलीलुर्रहमान रमदे ने शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की भिजवाई थी केस हिस्ट्री, खुले थे कई राज

पाकिस्तान के रिटायर जज जस्टिस खलीलुर्रहमान रमदे ने शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की भिजवाई थी केस हिस्ट्री, खुले थे कई राज

पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज जस्टिस खलीलुर्रहमान रमदे के प्रयास से भारत को शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव पर अंग्रेजों के जमाने में चले मुकदमे के ट्रायल की कॉपी मिली थी।

भगत सिंह को फांसी देने वाले जज का नाम क्या है? - bhagat sinh ko phaansee dene vaale jaj ka naam kya hai?

Himanshu Kumar Lallहरिद्वार,संवाददाता।Fri, 17 Jun 2022 02:19 PM

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पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज जस्टिस खलीलुर्रहमान रमदे गुरुवार को हरिद्वार में हुए कार्यक्रम में पहुंचे। खलीलुर्रहमान वही शख्स हैं, जिनके प्रयास से भारत को शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव पर अंग्रेजों के जमाने में चले मुकदमे के ट्रायल की कॉपी मिल सकी थी। फांसी देने संबंधित कई चौंकाने वाले तथ्य भी सामने आए थे।

वर्ष 2009 में ट्रायल की कॉपी गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय को मिली थी। उस समय तक ट्रायल की कापी भारत सरकार के पास भी उपलब्ध नहीं थी। इस ट्रायल का अनुवाद करने वाले लक्ष्मण शर्मा ने बताया कि जस्टिस खलीलुर्रहमान और हरिद्वार गुरुकुल कांगड़ी विवि के तत्कालीन कुलपति स्वतंत्र कुमार के प्रयास से ट्रायल की कापी गुरुकुल कांगड़ी विवि को 2009 में प्राप्त हो सकी थी।

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव पर चले केस के ट्रायल के हिंदी अनुवाद के लिए तब पाकिस्तान के नागरिक लक्ष्मण शर्मा को गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में लाया गया था। लक्ष्मण शर्मा ने 3.5 साल में 1667 पन्नों के इस ट्रायल का अनुवाद उर्दू से हिंदी में किया था। लक्ष्मण शर्मा तब से हरिद्वार में ही रह रहे हैं।

इस ट्रायल के हिंदी में अनुवाद होने के बाद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी देने संबंधित कई चौंकाने वाले तथ्य भी सामने आए थे। अक्तूबर 2016 में उर्दू से हिंदी अनुवाद के बाद इस ट्रायल के डिजिटल संस्करण का लोकार्पण उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने किया था।

आज भी यह ट्रायल गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। कोई भी व्यक्ति गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में आकर ट्रायल की कापी को पढ़ सकता है। लक्ष्मण कहते हैं, यह ट्रायल गुरुकुल कांगड़ी विवि हरिद्वार और उत्तराखंड को प्राप्त होना एक गर्व की बात है।

भगत सिंह को फांसी सुनाने वाले जज का नाम क्या है?

Abhishek Mishra. उन्हें फांसी की सजा सुनाने वाला न्यायाधीश का नाम जी.सी. हिल्टन था.

किसकी गवाही से भगत सिंह को फांसी हुई थी?

जिसकी गवाही से हुई भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी; उसे मौत के घाट उतारने वाला शख्‍स बिहार का था डा. चंद्रभूषण सिंह शशि, हाजीपुर।

भगत सिंह की फांसी कौन रुकवा सकता था?

वैसे तो भगत सिंह को फांसी 24 मार्च, 1931 को होनी थी. लेकिन, ब्रिटिश हुकूमत ने एक दिन पहले ही 23 मार्च को उन्हें फांसी दे दी थी. महात्मा गांधी ने फांसी की निर्धारित तारीख 24 मार्च से ठीक एक दिन पहले यानी 23 मार्च, 1931 को लॉर्ड इरविन को पत्र लिखकर भगत सिंह की फांसी रोकने की दरख्वास्त की थी.

Singh को फांसी क्यों हुई थी?

23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी दे दी थी। उन्हें लाहौर षड़यंत्र के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई थी