अर्थशास्त्र के सन्दर्भ में, लोच (elasticity) शब्द का उपयोग किसी आर्थिक चर को बदलने पर किसी दूसरे चर में हुए परिवर्तन की मात्रा बताने के लिये किया जाता है। यदि एक चर के परिवर्तन से दूसरा चर अधिक परिवर्तित होता है तो कहते हैं कि लोच अधिक है। उदाहरण के लिये, यदि किसी उत्पाद के मूल्य में कमी की जाय तो उसकी बिक्री कितनी बढ़ेगी, इसके लिये 'लोच' शब्द का प्रयोग किया जाता है। कीमत बढ़ने पर गिफीन वस्तु की मांग बढ़ती हैं व कम होनें पर कुछ घटती हैं । जैसें - यदि शुद्ध घी की कीमत बढ़ जाएं व आय परिवर्तित ना हों तो उपभोक्ता वनस्पति की ओर प्रतिस्थापन कर देता हैं व तत्पश्चात यदि आय में वृद्धि होती हैं तो वह वनस्पति घी में कुछ कमी कर के कुछ मात्रा शुद्ध घी की लेता हैं अत: तब वनस्पति घी एक तरह से गिफीन वस्तु होती हैं । Show किसी वस्तु की कीमत में होने वाले परिवर्तन के फलस्वरूप उस वस्तु की माँगी गई मात्रा में होने वाले परिवर्तन की माप को ही माँग की लोच कहा जाता है।
परन्तु नियम यह बताने में असमर्थ है माँग में कितना परिवर्तन होगा। किसी वस्तु की कीमत में होने वाले परिवर्तन के परिणामस्वरूप माँग में होने वाले आनुपातिक परिवर्तन की जानकारी जिस धारणा से होती है उसे माँग की लोच (Elasticity of demand) कहा जाता है। अतः यह कहना उचित होगा कि माँग की लोच एक परिमाणात्मक कथन (क्वाण्टिटेटिव स्टेटमेण्ट) है। किसी वस्तु की कीमत में होने वाले परिवर्तन के फलस्वरूप उस वस्तु की माँगी गई मात्रा में होने वाले परिवर्तन की माप को ही माँग की लोच कहा जाता है आधुनिक अर्थशास्त्री बोल्डिंग एवं श्रीमती जॉन रोबिन्सन ने माँग की मूल्य लोच को गणितीय में प्रकट किया है। श्रीमती जॉन रोबिन्सन के अनुसार, माँग की लोच किसी मूल्य या उत्पादन पर मूल्य में अल्प परिवर्तन के फलस्वरूप क्रय की गई मात्रा के आनुपातिक परिवर्तन को मूल्य के आनुपातिक परिवर्तन से भाग देने पर प्राप्त होती है। इसे निम्न सूत्र के रूप में व्यक्त किया जा सकता है- माँग की लोच = माँग की मात्रा में आनुपातिक परिवर्तन / मूल्य में आनुपातिक परितर्वनEd=ΔQd/QdΔP/P{\displaystyle E_{d}={\frac {\Delta Q_{d}/Q_{d}}{\Delta P/P}}}जहाँ Ed{\displaystyle E_{d}} अतः यह कहना उचित होगा कि 'माँग का मूल्य लोच' किसी वस्तु के मूल्य में परिवर्तन के फलस्वरूप उसकी माँगी गई मात्रा में परिवर्तन की दर होती है। उदाहरणएक साबुन का मूल्य पहले १० रूपये था और इसकी बिक्री १ लाख प्रतिदिन थी। जब इसका मूल्य बढ़ाकर ११ रूपये कर दिया गया तब इसकी बिक्री घटकर ९५ हजार प्रतिदिन हो गयी। तो, In this article, we will share MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति Pdf, These solutions are solved subject experts from the latest edition books. MP Board Class 12th Economics Important Questions Unit 3 उत्पादक व्यवहार एवं पूर्तिउत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति Important Questionsउत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति वस्तुनिष्ठ प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न (a) प्रश्न (b) प्रश्न (c) प्रश्न (d) प्रश्न (e) प्रश्न 2.
उत्तर:
प्रश्न 3.
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प्रश्न 4. उत्तर:
प्रश्न 5.
उत्तर:
उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. स्थिर लागत –
परिवर्तनशील लागतों –
प्रश्न 2. 1. तकनीकी बचतें: 2. श्रम संबंधी बचतें: 3. विपणन की बचतें: 4. प्रबंधकीय बचतें: प्रश्न 3.
प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. जब वस्तु की अपनी कीमत बढ़ने से पूर्ति की मात्रा बढ़ती है तो पूर्ति का विस्तार कहते हैं। इसके विपरीत होने पर संकुचन कहते हैं। हड्कि वस्तु की अपनी कीमत के अतिरिक्त अन्य कारण से पूर्ति की मात्रा में वृद्धि होती है तो इसे पूर्ति में वृद्धि कहते हैं। इसके विपरीत होने पर पूर्ति में कमी होती है। प्रश्न 10. प्रश्न 11. ज्यामितीय विधि के अंतर्गत एक सीधी रेखा वाले पूर्ति वक्र पर कीमत लोच ज्ञात करने के लिए उसे बढ़ाते जाते हैं।
प्रश्न 12.
प्रश्न 13.
प्रश्न 14.
प्रश्न 15. जहाँ α तथा β दो धनात्मक संख्याएँ हैं, फर्म निर्गत की q मात्रा का उत्पादन कारक एक का x1 मात्रा तथा कारक दो की x2 मात्रा को प्रयोग में लाकर करती है। प्रश्न 16. प्रश्न 17. इस प्रकार उत्पादन प्रक्रिया के प्रारंभिक चरणों में सीमांत लागत घटती है इसके बाद स्थिर होती है तथा अंतिम चरणों में बढ़ने लगती है जिसकी वजह से सीमांत लागत वक्र अंग्रेजी के अक्षर ‘U’ जैसा होता है। प्रश्न 18. प्रश्न 19. उत्तर: श्रम की औसत उत्पाद तथा सीमांत उत्पाद अनुसूची – प्रश्न 20. प्रश्न 21. (अ) अल्पकालीन लागत तथा (अ) अल्पकालीन लागत: अल्पकाल में लागत की विभिन्न संकल्पनाएँ निम्नलिखित हैं –
सूत्र – (ब) दीर्घकालीन लागत: दीर्घकालीन लागत में सभी लागत परिवर्तनशील होते हैं। दीर्घकालीन लागत की संकल्पनाएँ निम्नलिखित हैं
सूत्र के रूप में – प्रश्न 22.
उत्पादक व्यवहार एवं पूर्ति दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. (अ) औसत स्थिर लागत: (अ) औसत स्थिर लागत: अल्पकाल में उत्पादन की मात्रा घटे या बढ़े, कुल स्थिर लागत अपरिवर्तित रहती है। कुल स्थिर लागत में कोई परिवर्तन नहीं होता है, किन्तु उत्पादन के बढ़ने के साथ-साथ औसत स्थिर लागत घटती चली जाती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि उत्पादन की मात्रा बढ़ने से कुल स्थिर लागत, उत्पादन की अधिकाधिक इकाइयों में बँटने लगती है। अत: औसत स्थिर लागत क्रमशः घटने लगती है। (ब) औसत परिवर्तनशील लागत: कुल परिवर्तनशील लागत उत्पादन की मात्रा कुल परिवर्तनशील लागत, उत्पादन की मात्रा में वृद्धि किये जाने से हमेशा बढ़ती जाती है। चूंकि अल्पकाल में उत्पादन के क्षेत्र में परिवर्तनशील अनुपातों का नियम’ लागू होता हैं, इसलिए औसत परिवर्तनशील लागत वक्र प्रारम्भिक अवस्था में गिरता है, क्योंकि उत्पादन वृद्धि नियम या लागत ह्रास नियम लागू होता है, किन्तु एक बिन्दु के पश्चात् उत्पत्ति ह्रास नियम या लागत वृद्धि नियम लागू होने के कारण यह तीव्र गति से ऊपर की ओर बढ़ने लगता है। (स) औसत कुल लागत: चूँकि कुल लागत, परिवर्तनशील लागत एवं स्थिर लागत का योग होती है, अतः औसत कुल लागत, औसत परिवर्तनशील लागत और औसत स्थिर लागत के योग के बराबर होती है। प्रश्न 2. उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि अतिरिक्त इकाई बेचने के लिए कीमत में कटौती की जा रही है। जब फर्म, वस्तु की इकाई बेचती है, तो औसत आय, कुल आय और सीमान्त आय सभी ₹ 10 हैं, किन्तु जब वह वस्तु की दो इकाइयाँ बेचती है, तो वस्तु की कीमत में कटौती कर ₹ 9 प्रति इकाई कर देती है, इससे उसकी कुल आय ₹ 18 हो गयी है, जबकि सीमान्त आय 18 – 10 = ₹ 8 है। जब वस्तु की 3 इकाइयाँ बेची जाती हैं, तो कीमत में पुनः कटौती की जाती है। प्रति इकाई कीमत ₹ 8 किये जाने पर कुल आय 8 x 3 = ₹ 24 हो गयी है, जबकि सीमान्त आय 24 – 18 = ₹ 6 हो गयी है। उपर्युक्त तालिका को निम्न रेखाचित्र की सहायता से भी स्पष्ट किया जा सकता है प्रस्तुत रेखाचित्र में Ox – आधार रेखा पर बेची जाने वाली इकाइयाँ तथा OY – लम्ब रेखा पर आगम को दिखाया गया है। 1. चित्र में TR कुल आय वक्र, AR औसत आय वक्र एवं सीमांत आय वक्र एवं MR सीमान्त आय वक्र है। 2. जब कुल आय वक्र TR,A बिन्दु तक बढ़ता जाता है तो सीमान्त आय MR धनात्मक होती है। चित्र से स्पष्ट है 15 कि MR रेखा C बिन्दु तक धनात्मक है। 3. जब कुल आय वक्र TR, A में B बिन्दु तक घटने आय वक्र – लगती है, तो सीमान्त आय वक्र MR ऋणात्मक हो जाता है। MR वक्र C बिन्दु के पश्चात् ऋणात्मक हो गया है। 4. जब औसत आय वक्र AR गिरने लगता है, तो सीमान्त आय वक्र MR भी गिरने लगता है किन्तु MR वक्र में गिरावट की दर AR में गिरावट की दर से अधिक है। चित्र से स्पष्ट है कि MR वक्र AR वक्र से नीचे है। 5. जब उत्पादन की मात्रा OC हो जाती है, तो इसके उत्पादन बढ़ने पर सीमान्त आय वक्र ऋणात्मक हो जाता है। 6. औसत आय वक्र AR बायें से दायें नीचे की ओर गिरता हुआ वक्र है। इसका अभिप्राय यह है कि वस्तु की अतिरिक्त इकाइयाँ बेचने के लिए मूल्यों में कटौती करनी पड़ती है। मूल्यों में यह कटौती सभी इकाइयों में की जाती है इसलिए AR औसत आय वक्र नीचे की ओर गिरता हुआ है। 7. सीमान्त आय वक्र MR भी बायें से दायें की ओर गिरता हुआ वक्र है, किन्तु सीमान्त आय वक्र में गिरावट की दर अधिक है। इसका कारण यह है कि अतिरिक्त इकाई बेचने के लिए वस्तु के मूल्य में कटौती करनी पड़ती है। प्रश्न 3. एक फर्म साम्य की स्थिति में तब होगी जबकि उसके कुल उत्पादन में कोई परिवर्तन नहीं होता। एक फर्म अपने उत्पादन में परिवर्तन तब नहीं करेगी जब उसे अधिकतम लाभ प्राप्त हो रहा हो। अत: “एक फर्म का साम्य तथा एक फर्म द्वारा उत्पादित वस्तु की मात्रा और कीमत निर्धारण दोनों एक ही बात है।” अल्पकाल में फर्म का साम्य: 1. लाभ की स्थिति: चित्र में E बिन्दु पर MR = MC के है इसलिए E PM बिन्दु अधिकतम लाभ का बिन्दु है। यह फर्म के साम्य की E स्थिति को बताता है अतः 2. सामान्य लाभ की स्थिति: 3. हानि की स्थिति: प्रश्न 4. प्रस्तुत रेखाचित्र में OX – आधार रेखा पर उत्पादन की मात्रा तथा OY – लम्ब रेखा पर लागत को दिखाया गया है। AC औसत लागत वक्र एवं MC सीमान्त लागत वक्र है। दोनों का स्वरूप अंग्रेजी अक्षर ‘U’ के समान है, क्योंकि उत्पादन के क्षेत्र में परिवर्तनशील अनुपातों। का नियम लागू होता है। Pबिन्दु औसत लागत वक्र का न्यूनतम बिन्दु। है। सीमान्त लागत वक्र MC, औसत लागत वक्र AC को इसी न्यूनतम बिन्दु P पर नीचे से काटता है एवं कटाव बिन्दु के ऊपर तेजी से बढ़ने। लगता है। P बिन्दु के पूर्व जब औसत लागत वक्र AC ऊपर से नीचे उत्पादन की मात्रा की ओर गिर रहा है। चित्र से स्पष्ट है कि सीमान्त लागत वक्र MC औसत लागत वक्र AC से नीचे है। P बिन्दु के पश्चात् जब औसत लागत वक्र AC की ओर बढ़ने लगता है, तो सीमान्त लागत वक्र MC भी बढ़ने लगता है, किन्तु सीमान्त लागत वक्र में वृद्धि की दर अधिक है। प्रश्न 5. कुल लागत:
अर्थात् 1. स्थिर या पूरक लागत: स्थिर लागतों के अन्तर्गत निम्नलिखित लागतों को सम्मिलित किया जाता है –
2. परिवर्तनशील या प्रमुख लागत: अल्पकालीन परिवर्तनशील लागतों में निम्न लागतें सम्मिलित की जाती हैं –
इस प्रकार स्पष्ट है कि कुल लागत, स्थिर लागत एवं कुल परिवर्तनशील लागत का योग होता है। प्रश्न 6. फर्म के संतुलन की विशेषताएँ – फर्म के संतुलन की अवस्था की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं – 1. वस्तु की कीमत या उत्पादन की मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं: 2. अधिकतम लाभ प्राप्त करना: 3. फर्म की उत्पादन लागत न्यूनतम होना: 4. कुल लागत एवं कुल आगम तथा सीमांत विश्लेषण रीति का प्रयोग: प्रश्न 7. पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की अवस्था: पैमाने के स्थिर प्रतिफल की अवस्था: पैमाने के घटते प्रतिफल की अवस्था: अतः इस प्रकार उत्पत्ति के साधनों की मात्रा दुगुनी तथा तिगुनी होने पर भी उत्पादन दुगुना या तिगुना न होकर कम बढ़ता है। अत: E बिन्दु तक पैमाने के घटते हुए प्रतिफल की प्राप्ति हो रही है, क्योंकि DE > CD > BC > AB है। दूध जैसी वस्तु के लिए पूर्ति की लोच क्या है?Answer: जब वृद्धि पर पूर्ति मूल बिन्दु पर मिलता है तो Es < 1 होता है।
पूर्ति की लोच कितने प्रकार के होते हैं?लोचदार पूर्ति (Elastic supply). अधिक लोचदार पूर्ति (Highly elastic supply). पूर्णतया लोचदार पूर्ति (Perfectly elastic supply). बेलोचदार पूर्ति (Inelastic supply). पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति (Perfectly inelastic supply) •. वस्तु की पूर्ति की कीमत लोच क्या है?आपूर्ति की कीमत लोच वस्तु की कीमत के परिवर्तन और आपूर्ति की मात्रा में होने वाले अनुक्रियाशीलता की माप है अर्थात् किसी वस्तु की कीमत में प्रतिशत परिवर्तन के कारण आपूर्ति में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन की माप को वस्तु की आपूर्ति की कीमत लोच कहते हैं ।
पूर्ति की लोच का क्या तात्पर्य है?पूर्ति की लोच से तात्पर्य किसी वस्तु की कीमत के अनुपात में उसकी मांगी गई मात्रा में हुआ परिवर्तन पूर्ति की लोच कहलाता है।
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