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... These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे. पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर प्रश्न 1.
प्रश्न 2.
उत्तर:
2. वन अधिनियम बनाने के कारण – अंग्रेज वन
अधिकारी ऐसा मानते थे कि वनों में पशुओं को चराने के अनेक नुकसान हैं। पशुओं के चरने से छोटे जंगली पौधों और वृक्षों की नयी कोपलें नष्ट हो जाती हैं जिससे नए पेड़ों का विकास रुक जाता है। इसलिए औपनिवेशिक (UPBoardSolutions.com) सरकार ने अनेक वन अधिनियम पारित किए जिसके द्वारा वनों को आरक्षित तथा पशुचारण को नियमित किया जा सके।
3. “अपराधी जनजाति अधिनियम बनाने के कारण – अंग्रेज अधिकारी घुमंतू लोगों को शक की निगाह से देखते थे। अंग्रेजों का ऐसा मानना था कि इन लोगों के बार-बार स्थान परिवर्तन के कारण इन लोगों की पहचान करना तथा इनका विश्वास करना कठिन कार्य है। घुमंतू लोगों से कर संग्रह करना और कर निर्धारण दोनों
कठिन कार्य हैं। उक्त कारणों से प्रेरित होकर अंग्रेज सरकार ने 1871 ई० में (UPBoardSolutions.com) अनेक घुमंतू समुदायों को अपराधी समुदायों की सूची में डाल दिया और उनकी बिना परमिट आवागमन को प्रतिबन्धित कर दिया।
4. चराई कर लागू किए जाने के कारण – अंग्रेज सरकार ने अपनी आय बढ़ाने के लिए यथासंभव प्रयास किया। इसी क्रम में चरवाहों पर चराई कर लगाया गया। चरवाहों से चरागाहों में चरने वाले एक-एक जानवर पर करे वसूल किया जाने लगा। देश के अधिकतर चरवाही इलाकों में 19वीं सदी के मध्य से ही चरवाही टैक्स लागू कर दिया गया था। प्रति मवेशी कर की देर तेजी से बढ़ती चली गयी और कर वसूली की व्यवस्था दिनोंदिन सुदृढ़ होती गयी। 1850 से 1880 ई० के दशकों के बीच टैक्स वसूली का काम बाकायदा बोली लगाकर ठेकेदारों को सौंप जाता था। ठेकेदारी पाने के लिए ठेकेदार सरकार को जो पैसा देते थे उसे वसूल करने और साल भर में ज्यादा से ज्यादा मुनाफ़ा बनाने के लिए वे जितना चाहे उतना कर वसूल सकते थे। 1880 ई० के दशक तक आते-आते सरकार ने अपने कारिंदों के माध्यम से सीधे चरवाहों से ही कर वसूलना शुरू (UPBoardSolutions.com) कर दिया। हरेक चरवाहे को एक ‘पास’ जारी कर दिया गया। किसी भी चरागाह में दाखिल होने के लिए चरवाहों को पास दिखाकर पहले टैक्स अदा करना पड़ता था। चरवाहे के साथ कितने जानवर हैं और उसने कितना टैक्स चुकाया है, इस बात को उसके पास में दर्ज कर दिया जाता था। चरवाहों पर चराई कर का प्रभाव–प्रति मवेशी कर लागू होने पर चरवाहों ने पशुओं की संख्या को सीमित कर दिया। अनेक चरवाहों ने अवर्गीकृत चरागाहों की खोज में स्थान परिवर्तन कर लिया। अनेक चरवाहा समुदायों ने पशुपालन के साथसाथ वैकल्पिक व्यवसायों को अपनाना आरंभ कर दिया। इससे पशुपालन करने वालों की कठिनाई को समझा जा सकता है। प्रश्न
3. श्वेतों के लिए बस्तियाँ बनाने के लिए मासाई लोगों की सर्वश्रेष्ठ चरागाहों को छीन लिया गया और मासाई लोगों को दक्षिण केन्या एवं उत्तर तंजानिया के छोटे से क्षेत्र में धकेल दिया गया। उन्होंने अपने चरागाहों का लगभग 60 प्रतिशत भाग खो दिया। औपनिवेशिक सरकार ने उनके आवागमन पर विभिन्न बंदिशें लगाना प्रारंभ कर दिया। चरवाहों को भी विशेष आरक्षित स्थानों में रहने के लिए बाध्य किया गया। विशेष परमिट के बिना उन्हें उन सीमाओं से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी। क्योंकि मासाई लोगों को एक निश्चित क्षेत्र में सीमित कर दिया गया था, इसलिए वे सर्वश्रेष्ठ चरागाहों से कट गए और एक ऐसी अर्द्ध-शुष्क पट्टी में रहने पर मजबूर कर दिया गया जहाँ सूखे की आशंका हमेशा बनी रहती थी। उन्नीसवीं सदी के अंत में पूर्व अफ्रीका में औपनिवेशिक सरकार ने स्थानीय किसान समुदायों को अपनी खेती की भूमि बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया। जिसके परिणामस्वरूप मासाई लोगों के चरागाह खेती की जमीन में तब्दील हो गए। प्रश्न
4. (ii) भारत और पूर्वी अफ्रीका के चरवाहा समुदाय खानाबदोश थे और इसलिए उन पर शासन करने वाली औपनिवेशिक शक्तियाँ उन्हें अत्यधिक संदेह की दृष्टि से देखती थीं । यह उनके और अधिक पतन का कारण बना। (iii) दोनों स्थानों के चरवाहा समुदाय अपनी-अपनी चरागाहें कृषि-भूमि को तरजीह दिए जाने के कारण खो बैठे। भारत में चरागाहों को खेती की जमीन में तब्दील करने के लिए उन्हें कुछ चुनिंदा लोगों को दिया गया। जो जमीन इस प्रकार छीनी गई थी वे अधिकतर चरवाहों की चरागाहें थीं। ऐसे बदलाव चरागाहों के पतन एवं चरवाहों के लिए बहुत-सी समस्याओं का कारण बन गए। इसी प्रकार (UPBoardSolutions.com) अफ्रीका में भी मासाई लोगों की चरागाहें श्वेत बस्ती बसाने वाले लोगों द्वारा उनसे छीन ली गईं और उन्हें खेती की जमीन बढ़ाने के लिए स्थानीय किसान समुदायों को हस्तांतरित कर दिया गया। अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न
2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न
12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2.
प्रश्न
3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. (ख) दिशा का निर्धारण – प्रवास की दिशा निर्धारित करना चरवाहा समुदाय की एक प्रमुख समस्या होती है क्योंकि गलत दिशा का चयन उन्हें तथा उनके पशुओं के लिए भोजन तथा पानी की समस्या उपस्थित कर सकता है। (ग) प्रवास की समय सीमा का निर्धारण – प्रवास काल में किस स्थान पर कितने समय तक रुकना है जिससे वे चरागाहों तक सही समय पर पहुँच सकें और मौसम बिगड़ने से पहले सही सलामत वापस आ सकें अर्थात् प्रवास की अवधि और रेवड़ के साथ कब और कहाँ ठहरना है (UPBoardSolutions.com) आदि, का निर्धारणजी एक कठिन समस्या होती है जिसे एक लंबे अनुभव द्वारा ही हल किया जा सकता है। चरवाहा समुदाय अपनी जीवन सम्बन्धी अनेक आवश्यकताओं के लिए गैर-चरवाहा समुदायों पर भी निर्भर होते हैं, ऐसे में समाज अन्य समूहों से भी उनके मानवीय सम्बन्ध स्थापित होते हैं। प्रश्न 6. प्रश्न 7.
प्रश्न 8. 1933 और 1934 ई0 में पड़े केवल दो साल के भयंकर सूखे में मासाई आरक्षित क्षेत्र के आधे से अधिक जानवर मर चुके थे। जैसे-जैसे चरने की जगह सिकुड़ती गई, सूखे के दुष्परिणाम भयानक रूप लेते चले गए। बार-बार आने वाले बुरे सालों की वजह से चरवाहों के जानवरों की संख्या में लगातार गिरावट आती गई। प्रश्न 9. प्रश्न 10.
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. मासाई समुदाय के सभी सदस्य पशुपालन का कार्य नहीं करते हैं। प्रायः 16 से 30 वर्ष के लोगों को युद्ध के लिए रखा जाता है। इनका कर्त्तव्य अपने दल के लोगों तथा पशुओं की रक्षा करना है। ये सिपाही बड़े आनंद से जीवन बिताते हैं। ये लोग तेज धार वाले बचें, लोहे की तलवार और हड्डी की बनी ढाल का प्रयोग करते हैं। मासाई समाज की एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि समय-समय पर युवकों को योद्धाओं के दल में भेजा जाता है। ये उन लोगों का स्थान ग्रहण करते हैं जो प्रौढ़ हो जाते हैं और उन्हें शादी करके परिवार बसाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। युवकों को योद्धावर्ग में सम्मिलित होने से पूर्व (UPBoardSolutions.com) योद्धाओं के सब गुण अपनाने पड़ते हैं और बाद में उनका मुंडन-संस्कार होता है। प्रत्येक वर्ग को कुछ नाम दिया जाता है, जैसे-‘लुटेरा’, ‘सफेद तलवार’ इत्यादि। योद्धाओं
का आयु के अनुसार वर्गीकरण किया जाता है। मासाई लोग सदा अपनी संपत्ति को बढ़ाने का प्रयत्न करते हैं, जिसमें ये योद्धा बड़े सहायक होते हैं।
प्रश्न 3. अतः यहाँ के किसान चावल की खेती करते थे। ये धंगर चरवाहों का स्वागत करते थे जिसके मुख्य कारण निम्नलिखित थे जिसे समय धंगर किसान कोंकण पहुँचते थे उस समय तक खरीफ (चावल) की फसल कट चुकी होती थी। अब किसानों को अपने खेत रबी की फसल के लिए तैयार करने (UPBoardSolutions.com) होते थे। उनके खेतों में धान के नँठ अभी मिट्टी में फँसे होते थे। धांगरों के पशु इन ढूंठों को खा जाते थे और मिट्टी साफ हो जाती थी। धंगरों के पशुओं का गोबर तथा मलमूत्र मिट्टी में मिल जाता था। अतः मिट्टी फिर से उर्वरता प्राप्त कर लेती थी। प्रसन्न होकर कोंकणी किसान धांगरों को चावल देते थे जो वे वापसी पर अपने साथ ले जाते थे। प्रश्न 4. (2) गुज्जर बकरवाल – इन लोगों ने 19वीं शताब्दी में जम्मू-कश्मीर में बसना आरंभ कर दिया। ये लोग भेड़-बकरियों के बड़े-बड़े झुण्ड पालते हैं जिन्हें रेवड़ कहा जाता है। बकरवाल लोग अपने पशुओं के साथ मौसमी स्थानान्तरण करते हैं। सर्दियों के मौसम में यह अपने पशुओं को लेकर शिवालिक पहाड़ियों में चले आते हैं क्योंकि ऊँचे पर्वतीय मैदान इस मौसम में बर्फ से ढक जाते हैं इसलिए उनके पशुओं के लिए चारे का अभाव होने लगता है जबकि हिमालय के दक्षिण में स्थित शिवालिक पहाड़ियों में बर्फ न होने के कारण उनके पशुओं को पर्याप्त मात्रा में चारा उपलब्ध हो जाता है। सर्दियों के समाप्त होने के साथ ही अप्रैल माह में यह समुदाय अपने काफिले को लेकर उत्तर की ओर चलना शुरू कर देते हैं। पंजाब के दरों को पार करके जब ये समुदाय कश्मीर की घाटी में पहुँचते हैं तब तक गर्मी के कारण बर्फ पिघल चुकी होती है तथा चारों तरफ नई घास उगने लगती है। सितम्बर के महीने तक ये इस घाटी में ही डेरा डालते हैं और सितम्बर महीने के अंत में पुनः दक्षिण की ओर लौटने लगते हैं। (UPBoardSolutions.com) इस प्रकार यह समुदाय प्रति वर्ष दो बार स्थानांतरण करता है। हिमालय पर्वत में ये ग्रीष्मकालीन चरागाहें, 2,700 मीटर से लेकर 4,120 मीटर तक स्थित हैं। (3) गद्दी समुदाय – हिमाचल प्रदेश के निवासी गद्दी समुदाय के लोग बकरवाल समुदाय की तरह अप्रैल और सितम्बर के महीने में ऋतु परिवर्तन के साथ अपना निवास स्थान परिवर्तित कर लेते हैं। सर्दियों में जब ऊँचे क्षेत्रों में बर्फ जम जाती है, तो ये अपने पशुओं के साथ शिवालिक की निचली पहाड़ियों में आ जाते हैं। मार्ग में वे लाहौल और स्पीति में रुककर अपनी गर्मियों की फसल को काटते हैं तथा सर्दियों की फसल की बुवाई करते हैं। अप्रैल के अंत में वे पुनः लाहौल और स्पीति पहुँच जाते हैं और अपनी फसल काटते हैं। (UPBoardSolutions.com) इसी बीच बर्फ पिघलने लगती है और दरें साफ हो जाते हैं इसलिए गर्मियों में अपने पशुओं के साथ ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में पहुँच जाते हैं। गद्दी समुदाय में भी पशुओं के रूप में भेड़ तथा बकरियों को ही पाला जाता है। प्रश्न
5. (2) सीमाओं का निर्धारण – औपनिवेशिक शासन से पूर्व मासाई चरवाहों पर कोई क्षेत्रीय प्रतिबंध नहीं था। वे अपने रेवड़ के साथ भोजन तथा पानी की खोज में कहीं भी आ-जा सकते थे। परंतु अब सभी चरवाहा समुदायों को भी विशेष आरक्षित इलाकों की सीमाओं में कैद कर दिया गया। अब ये समुदाय इन आरक्षित इलाकों की सीमाओं के पार आ-जा नहीं सकते थे। वे विशेष पास लिए बिना अपने जानवरों को लेकर बाहर नहीं जा सकते थे। लेकिन परमिट (पास) हासिल करना भी कोई आसान काम नहीं था। इसके लिए उन्हें तरह-तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता था और उन्हें तंग किया जाता था। अगर कोई नियमों का पालन नहीं करता था तो उसे कड़ी सजा दी जाती थी। (3) सूखा तथा अकाल की विषम स्थिति – औपनिवेशिक शासन से पूर्व कम वर्षा अथवा अकाल की स्थिति में चरवाहा समुदाय स्थान परिवर्तन के द्वारा इस प्राकृतिक आपदा का सामना सफलतापूर्वक कर लेते थे परंतु चरागाह समुदायों की सीमाओं का निर्धारण हो जाने के पश्चात् सूखे की आशंका सदा बनी रहती थी। (4) शिकार के लिए चराई क्षेत्र को आरक्षण – मासाइयों के विशाल चराई क्षेत्र पर औपनिवेशिक शासकों ने पशुओं के शिकार के लिए पार्क बना दिए। इन पार्को में कीनिया के मासाई मारा तथा सांबू नेशनल पार्क तथा तंजानिया का सेरेंगेटी नेशनल पार्क के नाम लिए जा सकते हैं। सेरेंगेटी नेशनल पार्क 14,760 किमी से भी अधिक क्षेत्र पर बनाया
गया था। मासाई लोग इन पार्को में न तो पशु चरा (UPBoardSolutions.com) सकते थे और न ही शिकार कर सकते थे। (5) चरागाहों का कम होना – औपनिवेशिक शासन से पहले मासाई लैंड का इलाका उत्तरी कीनिया से लेकर तंजानिया के घास के मैदानों (स्टेपीज) तक फैला हुआ था। उन्नीसवीं सदी के आखिर में यूरोप की साम्राज्यवादी ताकतों ने अफ्रीका में कब्जे के लिए मारकाट शुरू कर दी और बहुत सारे इलाकों को छोटे-छोटे उपनिवेशों में तब्दील करके अपने-अपने कब्जे में ले लिया। 1885 ई० में ब्रिटिश, कीनिया और जर्मन के बीच एक अंतर्राष्ट्रीय टंगानयिका सीमा खींचकर मासाई लैंड के दो बराबरबराबर टुकड़े कर दिए गए। बाद के सालों में सरकार ने गोरों को बसाने के लिए बेहतरीन चरागाहों को अपने कब्जे में ले लिया। मासाईयों को दक्षिणी कीनिया और उत्तरी तंजानिया के छोटे से इलाके में समेट दिया गया। औपनिवेशिक शासन से पहले मासाईयों के पास जितनी (UPBoardSolutions.com) जमीन थी उसका लगभग 60 फीसदी हिस्सा उनसे छीन लिया गया। उन्हें ऐसे सूखे इलाकों में कैद कर दिया गया जहाँ न तो अच्छी बारिश होती थी और न ही हरे-भरे चरागाह थे। (6) कृषि क्षेत्रों का विस्तार – ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने पूर्वी अफ्रीका में स्थानीय किसानों को कृषि क्षेत्र का विस्तार करने के लिए प्रेरित किया। कृषि क्षेत्र बढ़ाने के लिए चरागाहों को कृषि-खेतों में बदला गया जिसके कारण चरागाह क्षेत्र बहुत तेजी से कम होने लगे। Hope given UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 5 are helpful to complete your homework. If you have any doubts, please comment below. UP Board Solutions try to provide online tutoring for you. औपनिवेशिक सरकार ने अफ्रीकी चरवाहों पर कौन से प्रतिबंध लगाए थे?1880 के दशक तक आते-आते सरकार ने अपने कारिंदों के माध्यम से सीधे चरवाहों से ही कर वसूलना शुरू कर दिया ।
Q 3 औपनिवेशिक समय में अफ्रीका के चरवाहों पर क्या क्या प्रभाव पड़े?चरवाहे अपने पशुओं को अब निश्चित चरागाहों में ही चराते थे जिससे चारा कम पड़ने लगा। चारे की कमी के कारण पशुओं की सेहत और संख्या घटने लगी। चरागाहों का आकार सिमटकर बहुत छोटा रह गया। बचे हुए चरागाहों पर पशुओं का दबाव बहुत अधिक बढ़ गया।
चारागाहों के जीवन में औपनिवेशिक शासन के दौरान बहुत बदलाव आए ये बदलाव क्या है?चरवाहे अपने पशुओं को अब निश्चित चरागाहों में ही चराते थे जिससे चारा कम पड़ने लगा। चारे की कमी के कारण पशुओं की सेहत और संख्या घटने लगी। चरागाहों का आकार सिमटकर बहुत छोटा रह गया। बचे हुए चरागाहों पर पशुओं का दबाव बहुत अधिक बढ़ गया।
घुमन्तू चरवाहे कौन है उनके द्वारा पाले जाने वाले चार पशुओं का उल्लेख कीजिए?इसे सुनेंरोकेंयहाँ के चरवाहे गाय, बैल, ऊँट, बकरी, भेड़ व गधे पालते हैं। ये लोग दूध, मांस, पशुओं की खाल व ऊन आदि बेचते हैं। कुछ चरवाहे व्यापार और यातायात संबंधी काम भी करते हैं।
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