अंतरिक्ष विज्ञान से क्या तात्पर्य है? - antariksh vigyaan se kya taatpary hai?

वर्तमान में दो अंतरिक्ष स्टेशन अंतरिक्ष में काम कर रहे हैं, जिनमें से एक को अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ और जापान के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) कहा जाता है। दूसरा अंतरिक्ष स्टेशन चीन का है, इसका नाम तियांगोंग-2 है, लेकिन केवल आईएसएस ही पूरी तरह से सक्रिय है।

अंतरिक्ष स्टेशन लो अर्थ ऑर्बिट-एलईओ में स्थापित है। इस कक्षा की सीमा पृथ्वी से 2000 किमी तक है। अंतरिक्ष यात्री स्टेशन पर रहते हैं और जीव विज्ञान, चिकित्सा, खगोल विज्ञान, मौसम विज्ञान आदि में विभिन्न विषयों से संबंधित प्रयोग करते हैं। आमतौर पर ऐसे प्रयोग पृथ्वी पर संभव नहीं होते हैं क्यों कि उन्हें विशेष वातावरण की आवश्यकता होती है। साथ ही ऐसे स्टेशन अंतरिक्ष के गहन अध्ययन के लिए भी उपयोगी होते हैं।

इसरो की अंतरिक्ष स्टेशन योजना:

  • गगनयान मिशन के बाद, इसरो सरकार को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपेगा कि वह अंतरिक्ष स्टेशन कैसे स्थापित करना चाहता है। इसरो वर्तमान में मानता है कि अंतरिक्ष स्टेशन की अवधारणा को तैयार करने में पांच से सात साल लगेंगे।
  • भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन, अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की तुलना में बहुत छोटा होगा और इसका उपयोग फिलहाल माइक्रोग्रैविटी प्रयोग (अंतरिक्ष पर्यटन के लिए नहीं) के लिए किया जाएगा।
  • अंतरिक्ष स्टेशन के लिए प्रारंभिक योजना अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में 20 दिनों तक अधिवासन की है, और यह परियोजना गगनयान मिशन का विस्तार होगी।
  • इसरो ‘स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (स्पैडेक्स)’ पर काम कर रहा है, जो एक ऐसी तकनीक है जो अंतरिक्ष स्टेशन को क्रियाशील बनाने के लिए महत्वपूर्ण है। स्पेस डॉकिंग एक ऐसी तकनीक है जो इंसानों को एक अंतरिक्ष यान से दूसरे अंतरिक्ष यान में स्थानांतरित करने की अनुमति देती है।

अंतरिक्ष स्टेशन का महत्व:

  • विशेष रूप से जैविक प्रयोगों के लिए सार्थक वैज्ञानिक डेटा एकत्र करने के लिए अंतरिक्ष स्टेशन आवश्यक है।
  • अन्य अंतरिक्ष वाहनों की तुलना में अधिक संख्या में वैज्ञानिक अध्ययनों के लिए एक मंच प्रदान करना। (जैसा कि गगनयान मनुष्यों और माइक्रोग्रैविटी के प्रयोगों को कुछ दिनों तक ही वहन कर पाने में सक्षम है )।
  • यह खगोल विज्ञान, सामग्री विज्ञान, अंतरिक्ष चिकित्सा और अंतरिक्ष मौसम जैसे विविध क्षेत्रों में विभिन्न माइक्रोग्रैविटी विज्ञान प्रयोगों में मदद करेगा।
  • अंतरिक्ष स्टेशनों का उपयोग मानव शरीर पर लंबी अवधि की अंतरिक्ष उड़ान के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए भी किया जाता है।

चुनौतियां:

  • भारत में अक्सर ऐसे कार्यक्रमों के लिए धन की कमी होती है, इसलिए अंतरिक्ष स्टेशन बनाना बहुत मुश्किल हो सकता है। ज्ञात हो कि आईएसएस के निर्माण में 160 अरब डॉलर की लागत आई है। हालांकि आईएसएस का वजन प्रस्तावित भारतीय स्टेशन से 20 गुना ज्यादा है, फिर भी भारत को एक बड़े फंड की जरूरत होगी।
  • भारत स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल कर स्पेस स्टेशन बनाना चाहता है। ऐसे में यह कार्य भारत के लिए और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है। भले ही भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में कई कीर्तिमान स्थापित किए हों, लेकिन भारत के लिए ऐसी तकनीक का निर्माण करना अभी भी जटिल है। यदि परियोजना अपने निर्धारित समय से आगे बढ़ती है, तो समय के साथ इससे जुड़ी तकनीक में बदलाव करना मुश्किल हो जाता है। यह तकनीकी परिवर्तन न केवल निर्माण स्तर पर, बल्कि स्टेशन को बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है।
  • भारत की योजना 20 टन का स्टेशन बनाने की है। लेकिन भारत की भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इसका आकार बढ़ाना जरूरी होगा। भारत को भविष्य में इस तरह के बदलावों को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक योजना बनानी होगी।

भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में अनुसंधान की शुरुआत के बाद से छोटी अवधि और सीमित संसाधनों में कई रिकॉर्ड हासिल किए हैं। वर्तमान भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो कम लागत में जटिल कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। भारत की यह विरासत भारत को भविष्य में अंतरिक्ष के क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों का समाधान करने में सक्षम बनाती है। ऐसे में भारत अपने सीमित संसाधनों का कुशल उपयोग करके और सही तकनीकों का निर्माण करके अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण में आने वाली चुनौतियों से निपट सकता है।

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विगत 70 वर्षों में अनेकों अंतरिक्ष अन्वेषण हुए ताकि खगोल विज्ञान, ताराभौतिकी, ग्रहीय विज्ञान एवं भू विज्ञान, वायुमंडलीय विज्ञान एवं सैद्धांतिक भौतिक विज्ञान जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान किया जा सके। इस लेख में हमने बताया है की अंतरिक्ष मलबा क्या होता है, इनका निर्माण कैसे होता है तथा इनको ट्रैक करने और मापने के लिए उपकरण कौन-कौन से हैं।

अंतरिक्ष विज्ञान से क्या तात्पर्य है? - antariksh vigyaan se kya taatpary hai?

What is space debris and its cause? HN

अंतरिक्ष यात्रा या अंतरिक्ष अन्वेषण ब्रह्माण्ड की खोज और उसका अन्वेषण अंतरिक्ष की तकनीकों का उपयोग करके करने को कहते हैं। अंतरिक्ष का शारीरिक तौर पर अन्वेषण मानवीय अंतरिक्ष उड़ानों व रोबोटिक अंतरिक्ष यानो द्वारा किया जाता है। विगत 70 वर्षों में अनेकों अंतरिक्ष अन्वेषण हुए ताकि खगोल विज्ञान, ताराभौतिकी, ग्रहीय विज्ञान एवं भू विज्ञान, वायुमंडलीय विज्ञान एवं सैद्धांतिक भौतिक विज्ञान जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान किया जा सके।

अंतरिक्ष मलबा क्या होता है

मलबे से तात्पर्य यह है कि कुछ ऐसा अवशेष जो नष्ट हो गया हो या टूट गया हो। जब अंतरिक्ष मलबे की बात आती है, तो यह सौर मंडल के खगोलीय पिंड जैसे क्षुद्रग्रह, धूमकेतु, और उल्कापिंड (बाहरी अंतरिक्ष में एक छोटी चट्टानी या धातु निकाय) में पाए जाने वाले प्राकृतिक मलबे को संदर्भित करता है। लेकिन आज के सन्दर्भ में ये अंतरिक्ष के मलबे में खंडित और पुराने उपग्रहों और रॉकेट के अवशेषों को भी शामिल किया जाता है क्योंकी यह अवशेष भी पृथ्वी के कक्ष में गुरुत्वाकर्षण बल के कारण घूमतें रहतें हैं और एक दुसरे से टकराते रहते हैं तथा मलबे पैदा करते हैं। इनकी संख्या अंतरिक्ष में दिन-प्रतिदिन बढती ही जा रही है।

विश्व के अंतरिक्ष अन्वेषण मिशनों की सूची

अंतरिक्ष में मलबा होने के क्या कारण है?

अंतरिक्ष मलबे में न केवल क्षुद्रग्रहों, धूमकेतु, और उल्कापिंडों के टुकड़े टुकड़े होते हैं बल्कि पुराने उपग्रहों के टुकड़े, रॉकेट ईंधन, पेंट फ्लेक्स, जमे हुए तरल शीतलक भी शामिल हैं।

दुसरे शब्दों में कहे तो, ये मानव निर्मित मलबे हैं जो अंतरिक्ष में पृथ्वी का चक्कर लगा रहे होते हैं और जो उपयोगी नहीं रह गए हैं।

संयुक्त राज्य स्पेस सर्विलांस नेटवर्क के अनुसार, अंतरिक्ष में 10 सेंटीमीटर (या चार इंच के बराबर) से बड़े 23000, एक सेंटीमीटर से बड़े 500,000 तथा एक मिलीमीटर से बड़े 100,00,000 अंतरिक्ष मलबे बिखरे पड़े हैं।

दरअसल लगभग 1800 से अधिक मानव निर्मित उपग्रह हमारी पृथ्वी का चक्कर लगा रहे हैं। अपना कार्य समाप्त करने के पश्चात ये सभी पृथ्वी पर वापस नहीं आने वाले हैं। पृथ्वी पर स्थित अंतरिक्ष केंद्रों से संपर्क टूटने के पश्चात भी ये पृथ्वी का चक्कर लगा रहे होंगे और एक-दूसरे से टकराकर छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित होते रहेंगे।

अंतरिक्ष का मलबा कैसे परिचालन उपग्रहों के साथ-साथ पृथ्वी के वायुमंडल के लिए खतरनाक है?

अंतरिक्ष में मौजूद मलबों की गतिज ऊर्जा बहुत ज़्यादा होती है तथा उनकी गति लगभग 8 कि.मी प्रति सेकंड की होती है जो सैटेलाईटों को भारी क्षति पहुंचा सकते हैं और कई सेंटीमीटर बड़े टुकड़े तो पूरे स्पेस स्टेशन या शटलयान को हिला कर रख सकते हैं। अधिकांश मलबे भूमध्य रेखा से ऊपर भूगर्भीय कक्षा में पाया जाता है।

सौर मंडल के सबसे गर्म और ठन्डे ग्रहों की सूची

टकराव का खतरा तब अस्तित्व में आया जब परिचालन उपग्रह और अंतरिक्ष मलबे का एक टुकड़ा यूरोपीय एरियान रॉकेट के ऊपरी चरण से एक टुकड़ा से 24 जुलाई 1996 को सेरीज़ (फ्रेंच माइक्रोसाइटेटेलाइट) से टकरा गया था। यह टक्कर आंशिक रूप से सेरीज़ को नुकसान तो पहुचाया लेकिन अभी भी वो कार्यात्मक है। असली खतरा तब प्रकाश में आया जब इरिडियम 33 (अमेरिकी कंपनी मोटोरोला के स्वामित्व वाले संचार उपग्रह) का कॉसमॉस 2251 से टक्कर हुई थी जिसकी वजह से परिचालन उपग्रह पूरी तरह से नष्ट हो गया था।

परिचालन उपग्रह के खतरे के अलावा, यह पृथ्वी के वायुमंडल के लिए भी खतरा है। चूंकि अधिकांश मलबे भूमध्य रेखा के ऊपर भूगर्भीय कक्षा में पाया जाता है तो अगर ये मलबा पृथ्वी के वायुमंडल के संपर्क में आते ही जलने लगता है और ये जलते हुए पृथ्वी की सतह गिरा तो जान-माल का कितना नुकसान हो सकता है इसका अंदाज़ा हम बिलकुल नहीं लगा सकते है।

अंतरिक्ष मलबे को ट्रैक करने और मापने के लिए उपकरण

अंतरिक्ष मलबे को ट्रैक करने के लिए लिडार (रडार और ऑप्टिकल डिटेक्टर का संयोजन) नामक उपकरण का निर्माण किया गया है। हाल ही में, नासा ऑर्बिटल डेब्रिस वेधशाला ने तरल दर्पण पारगमन दूरबीन नामक यंत्र का निर्माण किया है जो 3 मीटर (10 फीट) तक के आकार वाले अंतरिक्ष मलबे का पता लगा सकता है। अभी हाल में ही ये पता लगाया गया है की एफएम रेडियो तरंगों की मदद से भी अंतरिक्ष में मलबे का पता लगाया जा सकता है।

अंतरिक्ष से क्या तात्पर्य है?

अंतरिक्ष - वह विस्तार है जो पृथ्वी से परे और आकाशीय पिंडों के बीच मौजूद है। बाहरी स्थान पूरी तरह से खाली नहीं है - यह एक कठोर निर्वात है जिसमें कणों का कम घनत्व होता है, मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम का एक प्लाज्मा, साथ ही विद्युत चुम्बकीय विकिरण, चुंबकीय क्षेत्र, न्यूट्रिनो, धूल और ब्रह्मांडीय किरणें।

अंतरिक्ष विज्ञान के जनक कौन है?

डॉ विक्रम साराभाई को देश के महान वैज्ञानिक और अंतरिक्ष कार्यक्रमों के जनक के तौर पर जाना जाता है।

अंतरिक्ष विज्ञान के अध्ययन को क्या कहते हैं?

अंतरिक्ष विज्ञान को स्पेस साइंस और एस्ट्रोनॉमी भी कहते हैं। ये ब्रह्मांड की खोजबीन से जुड़ा विज्ञान है। इसमें वायुमंडल के बाहर होने वाले गतिविधियों और निर्माण जैसी चीजों से संबंधित प्रक्रियाओं में रिसर्च और अध्ययन किया जाता है।

अंतरिक्ष वैज्ञानिक कौन है?

विक्रम ए साराभाई और सतीश धवन, दोनों ही भारत के महान रॉकेट साइंटिस्ट थे जिनके प्रयोसों की बदौलत ही इसरो आज 'नासा' के बाद स्पेस साइंस के क्षेत्र में सबसे बड़ी और विश्वसनीय एजेंसी है।