काशी विश्वनाथ की कहानी क्या है? - kaashee vishvanaath kee kahaanee kya hai?

ज्ञानवापी मस्जिद के कारण आज काशी का विश्वनाथ मंदिर हर जगह चर्चा का विषय बना हुआ है। बताया जा रहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद काशी विश्वनाथ का ही एक हिस्सा है, जिसको मुगलों ने तोड़कर मस्जिद बना दिया था। कहा जाता है कि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजमान है और यह भगवान शिव का सबसे प्रिय स्थान है। काशी भारत का सबसे पुराना शहर और गंगा के तट पर स्थित है। यहां भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक स्थिति है, जिसे काशी विश्वनाथ के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचकर आत्मा शुद्ध हो जाती है और जीवन के रहस्यों के बारे में जानकारी मिलती है। इसलिए देश विदेश से लाखों लोग काशी पहुंचते हैं। इस मंदिर की आध्यात्मिक महिमा की जानकारी सभी धर्मग्रंथों में मिलती है। काशी में काशी विश्वनाथ के अलावा अन्नपूर्णा देवी मंदिर, गंगा घाट, भैरों मंदिर आदि के होने से इस जगह का आध्यात्मिक महत्व और बढ़ जाता है। आइए जानते हैं भगवान शिव काशी कैसे पहुंचे…

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शिवजी को पसंद आई काशी नगरी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती विवाह के बाद से कैलाश पर्वत पर रहते थे। एक दिन माता पार्वती ने कहा कि जिस तरह सभी देवी-देवताओं के अपने घर हैं, उस तरह हमारा घर क्यों नहीं है। रावण ने तो लंका को ले लिया है इसलिए हमको दूसरी जगह के बारे में सोचना चाहिए। शिवजी को दिवोदास की नगरी काशी बहुत पसंद आई। निकुंभ नामक शिवगण ने भगवान शिव के लिए शांत जगह के लिए काशी नगरी को निर्मनुष्य कर दिया। ऐसा करने से राजा को बहुत दुख पहुंचा।

काशी विश्वनाथ की कहानी क्या है? - kaashee vishvanaath kee kahaanee kya hai?

विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में हो गए स्थापित
राजा ने ब्रह्माजी की तपस्या की और उनको इस बारे में जानकारी देकर दुख दूर करने की प्रार्थना की। दिवोदास ने बोला कि देवता देवलोक में रहें, पृथ्वी तो मनुष्यों के लिए है। ब्रह्माजी के कहने पर शिवजी काशी को छोड़कर मंदराचल पर्वत पर चले गए लेकिन काशी नगरी के लिए अपना मोह नहीं त्याग सके। तब भगवान विष्णु ने राजा को तपोवन में जाने का आदेश दिया। उसके बाद काशी महादेवजी का स्थाई निवास हो गया और यहां आकर भगवान शिव विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए।

काशी को लेकर एक और मान्यता
काशी को लेकर एक मान्यता भी है। एक बार भगवान शिव ने अपने भक्त को सपने में दर्शन दिए और कहा कि तुम जब सुबह गंगा में स्नान करोगे, तब तुमको दो शिवलिंगों के दर्शन होंगे। उन दोनों शिवलिंगों को तुम्हे जोड़कर स्थापित करना होगा तब दिव्य शिवलिंग की स्थापना होगी। तब से ही भगवान शिव माता पार्वतीजी के साथ यहां विराजमान हैं।

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भगवान विष्णु ने की थी तपस्या
काशी को सृष्टि की आदिस्थली भी कहा जाता है। एक मत के अनुसार, भगवान विष्णु ने इसी स्थान पर सृष्टि की कामना के लिए काशी में तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने भगवान विष्णु को दर्शन दिए और सृष्टि के निर्माण और संचालन के लिए कुछ उपाय भी बताए। जहां भगवान शिव प्रकट हुए वहां आज भी शिवलिंग की पूजा की जाती है।

काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर पिछले कई हजार वर्षों से वाराणसी में स्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्‍ट स्‍थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ, गोस्‍वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ है। यहीं पर सन्त एकनाथजी ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पूरा किया और काशीनरेश तथा विद्वतजनों द्वारा उस ग्रन्थ की हाथी पर धूमधाम से शोभायात्रा निकाली गयी। महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि में प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभा यात्रा ढोल नगाड़े इत्यादि के साथ बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर तक जाती है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दृढ़ संकल्प से काशी कारीडोर के अन्तर्गत काशी विश्वनाथ जी के मंदिर का विस्तार किया गया जो अद्भुत अकल्पनीय साथ ही आश्चर्य जनित भी है प्रत्येक काशी वासियों ने ऐसी परिकल्पना भी नहीं की होगी |माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने 8 मार्च 2019 को काशी विश्वनाथ कारीडोर का शिलान्यास किया गया लगभग 32 महिनों के अनवरत निर्माण कार्य के बाद 13 दिसम्बर 2021 मोदी जी द्वारा लोकार्पण किया गया | ललिता घाट के रास्ते प्रथम भारत माता के दर्शन होते हैं फिर अहिल्या बाई की मूर्ति है आगे चलकर ज्ञानवापी में नंदी जी के दर्शन एवं स्पर्श करने की सुविधा है जो आज के पूर्व संभव नहीं था वही दूसरी ओर काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा विभिन्न प्रकार की सुविधाएं प्राप्त करने हेतु सुगम दर्शन से लेकर रुद्राभिषेक विभिन्न आरती इत्यादि के लिए शुल्कों का प्रावधान कर जिस तरह से जन साधारण विशेष कर नित्य पूजार्चन करने वालों के लिए यह कष्टप्रद है किसी भी ज्योतिर्पिठ का व्यवसायी करण उचित नहीं है|बाबा विश्वनाथ जी के गर्भ गृह में प्रधानमंत्री जी की प्रेरणा से 60 कि. ग्रा.भार के सोने से गर्भ गृह में पत्तर चढ़ाने का कार्य किया गया है वर्तमान समय में ज्ञान वापी कूप नंदी बहुत चर्चा में हैं| [1]

वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा सन् 1780 में करवाया गया था।[2]. बाद में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा 1853 में 1000 कि.ग्रा शुद्ध सोने द्वारा बनवाया गया था।[3].

काशी विश्वनाथ का इतिहास[संपादित करें]

उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित भगवान शिव का यह मंदिर हिंदूओं के प्राचीन मंदिरों में से एक है, जोकि गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान है।

जब देवी पार्वती अपने पिता के घर रह रही थीं जहां उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था. देवी पार्वती ने एक दिन भगवना शिव से उन्हें अपने घर ले जाने के लिए कहा. भगवान शिव ने देवी पार्वती की बात मानकर उन्हें काशी लेकर आए और यहां विश्वनाथ-ज्योतिर्लिंग के रूप में खुद को स्थापित कर लिया.

जिसका जीर्णोद्धार 11 वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने करवाया था और वर्ष 1194 में मुहम्मद गौरी ने ही इसे तुड़वा दिया था। जिसे एक बार फिर बनाया गया लेकिन वर्ष 1447 में पुनं इसे जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया।

हिन्दू धर्म में कहते हैं कि प्रलयकाल में भी इसका लोप नहीं होता। उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। यही नहीं, आदि सृष्टि स्थली भी यहीं भूमि बतलायी जाती है। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होने सारे संसार की रचना की। अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्रीवशिष्ठजी तीनों लोकों में पुजित हुए तथा राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाये।

धर्म नगरी काशी और सबसे बड़ी बात की आदि देव शंकर की बसायी नगर काशी में सावन महीने का अलग ही महत्व है। यहां सावन महीने में कांवरियों का सैलाब उमड़ता है। सर्वप्रथम काशी के यदुवंशी (Yadav) "चंद्रवंशी गोप सेवा समिति" अपने प्रिय देव बाबा विश्वनाथ के शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। ये परंपरा करीब 90 साल पुरानी है। पहली बार इस परंपरा की शुरूआत 1932 में हुई जो अब तक निर्विवाद् रूप से जारी है। पिछले दो वर्ष कोरोना संक्रमण के चलते चंद्रवंशी गोप सेवा समिति ने सांकेतिक रूप से ही सही पर परंपरा को जीवित रखा और सीमित संख्या में ही बाबा का जलाभिषेक किया। चंद्रवंशी गोप सेवा समिति के प्रदेश अध्यक्ष लालजी यादव बताते हैं कि सन 1932 में पड़े अकाल के समय बाबा विश्वनाथ के जलाभिषेक की परम्परा शुरू हुई थी। तब से अब तक इस परम्परा का निर्वहन निरंतरत जारी है। मान्यता है कि यादव(Ahir) बंधुओं के जलाभिषेक से बाबा प्रसन्न होते हैं फिर वर्षा होती है। पूरा साल धन-धान्य से परिपूर्ण होता है। भारत में वर्ष 1932 में घोर अकाल के दौरान यहां के यदुवंशियों ने बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक किया था। जलाभिषेक होते ही वर्षा शुरू हुई और लगातार तीन दिनों तक होती रही। तभी से हर वर्ष यदुवंशी (यादव) समाज को ही सावन के पहले सोमवार को सर्वप्रथम बाबा का जलाभिषेक करने का अधिकार प्राप्त है।

सर्वतीर्थमयी एवं सर्वसंतापहारिणी मोक्षदायिनी काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है। भगवान भोलानाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे वह आवगमन से छुट जाता है, चाहे मृत-प्राणी कोई भी क्यों न हो। मतस्यपुराण का मत है कि जप, ध्यान और ज्ञान से रहित एवंम दुखों परिपीड़ित जनों के लिये काशीपुरी ही एकमात्र गति है। विश्वेश्वर के आनंद-कानन में पांच मुख्य तीर्थ हैं:-

काशी का रहस्य क्या है?

पुराणों के अनुसार पहले यह भगवान विष्णु की पुरी थी, जहां श्रीहरि के आनंदाश्रु गिरे थे, वहां बिंदु सरोवर बन गया और प्रभु यहां 'बिंधुमाधव' के नाम से प्रतिष्ठित हुए। महादेव को काशी इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने इस पावन पुरी को विष्णुजी से अपने नित्य आवास के लिए मांग लिया। तब से काशी उनका निवास स्थान बन गई।

काशी विश्वनाथ की उत्पत्ति कैसे हुई?

वहीं देवी पार्वती अपने पिता के घर रह रही थीं जहां उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था. देवी पार्वती ने एक दिन भगवना शिव से उन्हें अपने घर ले जाने के लिए कहा. भगवान शिव ने देवी पार्वती की बात मानकर उन्हें काशी लेकर आए और यहां विश्वनाथ-ज्योतिर्लिंग के रूप में खुद को स्थापित कर लिया.

काशी विश्वनाथ भगवान कौन है?

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर यह भगवान शिव को समर्पित है तथा स्वर्ण मंदिर के रूप में भी जाना जाता है. भगवान् शिव का काशी से विशेष महात्य है. इन्हें काशी के नाथ देवता भी कहा जाता है कि जिस बिंदु पर पहले ज्योतिर्लिंग, जो दिव्या प्रकाश में स्थित शिव का प्रकाश है.

काशी विश्वनाथ की क्या मान्यता है?

मान्यता है कि जब तक काशी नगरी है उसमें भगवान भोलेनाथ विराजमान है तब तक सृष्टि का अंत नहीं होगा। यहां बाबा विश्वनाथ के दो मंदिर बेहद खास हैं। पहला विश्वनाथ मंदिर जो 12 ज्योतिर्लिंगों में नौवां स्थान रखता है, वहीं दूसरा जिसे नया विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है। बाबा विश्वनाथ भक्तों के सभी कष्ट हरने वाले माने जाते हैं।