अनुशासन से आप क्या समझते हैं स्वयं के विकास हेतु अनुशासन का महत्व लिखिए? - anushaasan se aap kya samajhate hain svayan ke vikaas hetu anushaasan ka mahatv likhie?

अनुशासन से आप क्या समझते हैं स्वयं के विकास हेतु अनुशासन का महत्व लिखिए? - anushaasan se aap kya samajhate hain svayan ke vikaas hetu anushaasan ka mahatv likhie?

अनुशासन एक महत्वपूर्ण साधन है। इससे आचरण तथा गुणों का सुविकास होता है।

अनुशासन का अर्थ

अनुशासन शब्द अंग्रेजी के शब्द Discipline का हिन्दी रूपान्तरण है। इस शब्द की व्युत्पत्ति Discipline शब्द से मानी जाती है। इसका अर्थ है शिष्य, छात्र या शिक्षक का अनुगामी। 

अनुशासन की परिभाषा

वैज्ञानिकों ने अनुशासन की परिभाषा इस प्रकार है -

नन् क शब्दों में - ‘‘अपनी भावनाओं और शक्तियों को नियंत्रण के अधीन करना जो अव्यवस्था को व्यवस्था प्रदान करता है’’। इस कथन से स्पष्ट है कि अनुशासन के अंतर्गत व्यक्ति को अपनी मुक्त भावनाओं एवं शक्तियों को किसी निर्धारित नियन्ण द्वारा नियमित तथा नियंत्रित करना होता है। अनुशासन समाज में व्यवस्था बनाए रखने में सहायक है।

एच. मारटिन के अनुसार - ‘‘अनुशासन का अर्थ है, व्यवहार के कुछ निश्चित नियमों का पालन करना, सीखना। अुशासन का अनिवार्य गुण आज्ञाकारिता है अर्थात् नियमों एवं अधिकारियों के प्रति आज्ञाकारिता होनी चाहिए’’। डी.वी. के अनुसार - जॉन डी.वी. ने नियन्त्रण की क्षमता के रूप में परिभाषित किया।

बोर्ड ऑफ एजुकेशन के अनुसार - ‘‘अनुशासन वह साधन है, जिसके द्वारा बच्चों की व्यावसायिक, उत्तम आचरण और उत्तम निहित सर्वोत्तम गुणों की आदत को प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है’’।

अनुशासन के प्रकार 

अनुशासन के प्रकार है, अनुशासन कितने प्रकार के होते हैं

  1. प्राकृतिक अनुशासन 
  2. अधिकारिक अनुशासन 
  3. वैयक्तिक अनुशासन 
  4. सामाजिक अनुशासन 

1. प्राकृतिक अनुशासन

प्राकृतिक अनुशासन के अंतर्गत किसी प्रकार के बाहरी दबाव अथवा नियन्त्रण को लागू नहीं किया जाता।

2. अधिकारिक अनुशासन

अधिकारिक अनुशासन में किसी प्रकार की स्वतंत्रता नहीं दी जाती है। हर प्रकार से अपने बड़ों के नियन्त्रण तथा अधिकार में रहना होता है। अपनी इच्छा से सामान्य रूप से कोई भी कार्य करने की छूट नहीं होती। इस प्रकार के अनुशासन में बड़ों के आदर्शो एवं निर्देशों का सर्वाधिक महत्व हा हेता है। घर पर अपने अभिभावकों का तथा स्कूल में शिक्षकों का हर आदेश मानना चाहिये। 

इस प्रकार स्पष्ट होता है कि अधिकारिक अनुशासन बाहर से थोपा जाने वाला अनुशासन होता है।

3. वैयक्तिक अनुशासन

इस प्रकार का नियन्त्रण परिपक्व व्यक्तियों के लिए होता है। जब व्यक्ति में समुचित विवेक का विकास हो जाता है तब उसे स्वयं ही मालूम हो जाता है कि क्या उचित है और क्या अनुचित है, क्या नियमित है और क्या अनियमित है। वह स्वयं ही उचित तथा नियमित का चुनाव करता है। 

इस नियन्त्रण में किसी प्रकार का बाहरी दबाव अथवा नियन्त्रण नहीं थोपा जाता। इसलिए इसे ‘‘आत्म अनुशासन’’ या ‘‘आत्म-नियन्त्रण’’ कहते हैं। इस प्रकार के अनुशासन में व्यक्ति की अपनी संकल्प शक्ति विशेष रूप से सहायक होती है।

4. सामाजिक अनुशासन

अनुशासन का एक अन्य स्वरूप ‘‘सामाजिक अनुशासन’’ है। इस अनुशासन का निर्धारण सामाजिक मान्यताओं द्वारा होता है। प्रत्येक समाज का यह नियम है कि सामाजिक मान्यताओं के अनुसार कार्य करने पर समाज व्यक्ति की प्रशंसा करता है और सामाजिक मान्यता के विपरीत निन्दा की जाती है। इसी प्रशंसा तथा निन्दा के माध्यम से सामाजिक अनुशासन लागू किया जाता है। सामान्य रूप से सामाजिक अनुशासन लागू किया जाता है। 

सामान्य रूप से प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक निन्दा से बचना चाहता है तथा यह चाहता है कि उसके कार्यों की प्रशंसा की जाये। इसी धारणा से सामाजिक अनुशासन बना रहता है।

अनुशासन के सिद्धांत

  1. अनुशासन का दमनात्मक सिद्धांत
  2. प्रभावात्मक अनुशासन सिद्धांत
  3. मुक्त्यात्मक अनुशासन सिद्धांत 

1. अनुशासन का दमनात्मक सिद्धांत

इस सिद्धांत के अनुसार हर बात को आदेश समझकर मानना अनिवार्य है चाहे वह उचित हो या अनुचित।

i. दमनात्मक अनुशासन के पक्ष में तर्क  - 

  1. दमनात्मक अनुशासन समर्थकों का विचार है कि बिना भय के अुशासन स्थापित नहीं हो सकता, इसलिये भय होना अनिवार्य है।
  2. ज्ञान प्राप्त करने के लिये आदेशों का पालन करना आवश्यक है। आदेशों का पालन तभी हो सकता है स्वतन्त्र का दमन करें, इसलिये अनुशासन दमनात्मक ही होना चाहिये।
  3. इस प्रकार के अनुशासन के समर्थकों का मानना है कि दमन एवं शारीरिक दण्ड से इन्हें नियंचित किया जा सकता है।
  4. प्रवृतियों को नियंत्रित करने के लिये शारीरिक दण्ड सर्वोत्तम साधन है। पाशविक प्रवृत्तियों को नियंत्रित कर लिया जाये, तो स्वयं ही कार्य में संलग्न हो जाता है। 
  5. अुचित व्यवहार की आशंका को समाप्त करने के लिये दमनात्मक अनुशासन को बनाये रखना चाहिये।

ii. दमनात्मक अनुशासन के विपक्ष में तर्क - 

  1. आधुनिक मनोवैज्ञानिक अध्ययनों ने सिद्ध कर दिया है कि दमनात्मक अनुशासन बाल-मनोविज्ञान के विरुद्ध एवं अनुचित है।
  2. मनोवैज्ञानिक अध्ययनों ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि कठोर नियंत्रण तथा निरंतर प्रताड़ना से बच्चों में विभिन्न प्रकार की ग्रन्थियाँ उत्पन्न हो जाती हैं और बच्चों में हीन भावना तथा विभिन मानसिक असामान्यतायें विकसित हो जाती है, जो बाद में गम्भीर समस्या का रूप ग्रहण कर लेती है।
  3. दमन पर आधारित अनुशासन स्थायी नहीं होता है। दमन क द्वारा बालकों से कुछ समय तक तो आदेशों का पालन कराया जा सकता है, लेकिन उनमें स्थायी सद्गुणों का विकास नहीं किया जा सकता।
  4. दमनात्मक अनुशासन मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। दमन तथा प्रताड़ना से बच्चों को स्वास्थ्य गिरने लगता है और व्यक्तित्व का सामान्य विकास भी कुण्डित हो जाता है।
  5. विभिन्न मनोवैज्ञानिक परीक्षणों से अब यह सिद्ध हो गया है कि भय का वातावरण सीखने की प्रक्रिया के लिये प्रतिकूल होता है।

2. प्रभावात्मक अनुशासन सिद्धांत 

इस सिद्धांत के अनुसार अनुशासन की स्थापना तो दबाव द्वारा और न ही प्रताड़ना द्वारा ही हो सकती है, बल्कि अनुशासन स्थापित करने के लिये व्यक्ति का प्रभाव सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन होता है। योग्य, चरित्रवान और आदर्श व्यक्तित्व वाला होना चाहिये। इस सिद्धांत के अनुसार यह सुझाव दिया जाता ह कि यदि कभी अनुशासन भंग होने का अवसर आ भी जाये, तो प्रेम तथा सहानुभूति से सुधार का प्रयास करना चाहिये न कि दण्ड द्वारा दमन करना चाहिये।

i. प्रभावात्मक अनुशासन के पक्ष में तर्क

  1. प्रभावात्मक अनुशासन एक आदर्श अनुशासन है। इसमें मध्य मधुर सम्बन्ध प्रेम तथा सहानुभूति का वातावरण होता है।
  2. इस प्रकार के अनुशासन में उच्च चरित्र पर विशेष बल दिया जाता है। 
  3. प्रभावात्मक अनुशासन न तो अधिक दमन या कठोरता की प्रकृति है और न ही पूर्ण स्वतन्त्रता है। इसलिये इसमें अनुशासन एवं स्वतन्त्रता के समन्वित किया गया है। 
  4. प्रभावात्मक अनुशासन में प्रतिष्ठा-सुझाव को विशेष महत्व प्रदान किया जाता है। 

ii. प्रभावात्मक अनुशासन के विपक्ष के तर्क 

  1. प्रभावात्मक अनुशासन में व्यक्तित्व को अधिक महत्व प्रदान किया जाता है, इसलिये इस व्यवस्था में रुचियों, योग्यताओं, इच्छाओं तथा आवश्यकताओं की प्राय: उपेक्षा की जाती है। इस दशा में व्यक्तित्व का समुचित विकास नहीं हो पाता।
  2. प्रभावात्मक अनुशासन में अनुकरण के सिद्धांत को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है और यह स्वीकार किया जाता है कि व्यक्तित्व तथा आचरण का अुकरण करके अपने आचरण और व्यक्तित्व का विकास करते है। इसलिये गुणों एवं अवगुणों दोनों का ही विकास होने लगता है।
  3. प्रभावात्मक अनुशासन में स्वतन्त्र व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता। वह केवल प्रतिलिपि ही बन पाता है, लेकिन वास्तव में प्रत्येक  स्वतन्त्र ‘व्यक्तित्व’ होना चािहये।
  4. इस सिद्धांत में स्वतन्त्र विचार, तर्क तथा निर्णय आदि के लिये कोई स्थान नहीं है। इसलिये स्वतन्त्र विचार शक्ति तथा निर्णय लेने की योग्यता का विकास नहीं हो पाता, इसलिये व्यक्तित्व का समुचित विकास नहीं होता।

3. मुक्त्यात्मक अनुशासन सिद्धांत 

अनुशासन के इस सिद्धांत क अनुसार शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्तित्व का स्वतन्त्र विकास करना है। इस उद्देश्य के लिये मुक्त्यात्मक अनुशासन ही उचित है। इस सिद्धांत के अनुसार कार्य करने तथा अपना विकास करने की स्वतन्त्रता होनी चाहिये। इस सिद्धांत में किसी भी प्रकार के दबाव, नियन्त्रण अथवा मदन का विरोध किया गया है।

i. मुक्त्यात्मक अनुशासन के पक्ष में तर्क 

  1. मुक्त्यात्मक सिद्धांत में इच्छाओं को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया जाता है तथा अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने के स्वतन्त्रता दी जाती है। इससे समुचित विकास सम्भव होता है।
  2. इस सिद्धांत में किसी भी प्रकार के दमन या कठोरता का समावेश नहीं है, इसलिये व्यक्तित्व का विकास कुण्ठित नहीं होगा।
  3. दमन या नियन्त्रण न होने के कारण किसी प्रकार की मानसिक ग्रन्थियाँ, विकार या हीन भावना के विकास के अवसर नहीं आ पाते हैं, इसलिये इस प्रकार की व्यवस्था में स्वस्थ मानसिक एवं शारीरिक विकास होता है।
  4. यह व्यवस्था वास्तव में आत्म-अनुशासन तथा आत्म-नियन्त्रण की व्यस्था है तथा इस व्यवस्था को हर प्रकार से उत्तम स्वीकार किया जाता है। 

  ii. मुक्त्यात्मक अनुशासन के विपक्ष में तर्क

  1. हर बालक में जन्म के साथ ही कुछ हद तक पाशविक प्रवृत्तियाँ भी होती है। यदि बच्चों पर किसी प्रकार का नियन्त्रण नहीं लगाया जाता, तो ये पाशविक प्रवृत्तियाँ अधिक विकसित हो सकती है। इसलिये पूरी तरह स्वतन्त्रता देने वाला सिद्धांत सही नहीं लगता। यदि पूरी स्वतन्त्रता प्रदान कर दी जाये, तो अनेक बालकों के समाज-विरोधी बने की सम्भावना रहती है।
  2. पर्याप्त बौद्धिक विकास होने तथा विचार तथा विवेक शक्ति के विकास न होने के कारण अनेक बातों के लिये बच्चों को कुशल निर्देशन की आवश्यकता होती है और यह निर्देशन शिक्षक के आदेश के रूप में होना चाहिये। मुक्त्यात्मक अनुशासन में इस प्रकार के निर्देशन का कोई स्थान नहीं है, इसलिये इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
  3. अनुशासन का मुक्त्यात्मक सिद्धांत पूरी स्वतन्त्रता का समर्थन करता है तथा इस स्थिति में अनुशासन तथा अव्यवस्था को कैसे लागू किया जा सकता है ?
  4. बालक स्वभाव से आत्म-नियन्त्रण तथा आत्म-अनुशासन के विरुद्ध होते हैं तथा ऐसा करना उनके लिय कठिन भी होता है। अतएव इस सिद्धांत को कैसे लागू किया जा सकता है।
  5. स्वतन्त्रता देने से बालक अपने अधिकारों की ओर अधिक आकांक्षा रखने लगते हैं, लेकिन वे अपने कर्तव्यों के प्रति बिल्कुल ध्यान नहीं देते।

Tags: discipline ki paribhasha, discipline kya hai, discipline kya hota hai, discipline meaning in education, discipline meaning in hindi, type of discipline, what are the type of discipline, what are the types of discipline,  anushasan ka arth, anushasan ke prakar, anushasan ki paribhasha, anushasan kise kahate hain, anushasan kya hai, anushasan kya hota hai, anushasan se aap kya samajhte hain, अनुशासन का अर्थ, अनुशासन का अर्थ और परिभाषा, अनुशासन का अर्थ क्या है, अनुशासन की परिभाषा, अनुशासन के प्रकार, अनुशासन क्या है, अनुशासन से आप क्या समझते हैं।

अनुशासन से आप क्या समझते हैं इसके महत्व की विवेचना करें?

अनु उपसर्ग है जो शासन से जुड़ा है और जिससे अनुशासन शब्द निर्मित हुआ है। जिसका अर्थ है- किसी नियम के अधीन रहना या नियमों के शासन में रहना। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन आवश्यक है। पारिवारिक और सामाजिक जीवन में तो कहीं ज्यादा अनुशासन की आवश्यकता होती है।

स्व अनुशासन क्या है in Hindi?

स्वअनुशासन का अर्थ खुद के जीवन में अपनाये जाने वाले नियम होते हैं। हर व्यक्ति के जीवन के कुछ लक्ष्य होते हैं और उन्हें पाने और अपने समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाने के लिये यह आवश्यक होता है। यह एक ऐसी आदत है जो मनुष्य को सदैव जीवन में आगे बढ़ने में मददगार साबित होती है।

अनुशासन क्या है और अनुशासन के प्रकार?

प्रो० ए०डी० के अनुसार, "आधुनिक सन्दर्भ में अनुशासन का तात्पर्य है बालक–बालिकाओं को प्रजातन्त्र के लिए तैयार करना, अनुशासन का उद्देश्य है व्यक्तियों का ज्ञानार्जन, शक्तियों, आदतों, रुचियों तथा आदर्शों के विकास में सहयोग देना जिससे वह स्वयं का, अपने साथियों का व सम्पूर्ण समाज के उत्थान हेतु कार्य कर सके।”

विद्यालय में अनुशासन का क्या महत्व है?

विद्यालयों का सुचारु रूप से संचालन अनुशासन पर ही निर्भर करता है। ' सुचारु रूप से संचालन' का तात्पर्य विद्यालय में ऐसी स्थिति बनाए रखना है, जिससे शिक्षा तथा शिक्षणेतर अनेकानेक कार्य-कलाप सुचारु रूप से चलते रहें । इसके लिए व्यवस्थापकों, अध्यापकों तथा विद्यार्थियों, सभी के सहयोग की आवश्यकता है।