अंगूर का जन्म स्थान कौन सा है? - angoor ka janm sthaan kaun sa hai?

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संज्ञा पुल्लिंग[सम्पादन]

अंगुर का मड़वा / अंगुर की टट्टी[सम्पादन]

  1. अंगुर की बेल के चढ़ने और फैलने के लिये बाँस की खपचियों का बना हुआ मंडप
  2. एक प्रकार की आतिशबाजी जिससे अंगुर के गुच्छे के समान चिनगारियां निकलती हैं

अन्य भाषा में[सम्पादन]

वर्णक्रम सहचर[सम्पादन]

👉 अंगूर फल स्वाद के साथ साथ यह सेहत के लिए बहुत ही लाभदायक माना जाता है। इस फल को हर कोई खाना पसंद करता है। अंगूर फल में पाए जाने वाले पोषक तत्व हमारे शरीर के लिए बेहद गुणदायक माने जाते है। अंगूर फल में विटामिन सी, विटामिन ए, विटामिन बी, पोटेशियम और कैल्शियम भी अधिक मात्रा में पाए जाते है। इसमें फ्लेवोनॉयड्स और शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट तत्व पाए जाते है, जो हमारे शरीर की कई समस्याओं से अंगूर फल बचाने में लाभदायक माने जाते है। और इतना ही इसमें पर्याप्त मात्रा में फाइबर, कैलोरी, मैग्नीशियम, ग्लूकोज या साइट्रिक एसिड जैसे कई पोषक पाये जाते है।

इसे सुनेंरोकेंअंगूर का परंपरागत इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना मनुष्य का। बाइबिल से ज्ञात होता है कि नोआ ने अंगूर का उद्यान लगाया था। होमर के समय में अंगूरी मदिरा यूनानियों के दैनिक प्रयोग की वस्तु थी। इसका उत्पत्ति स्थान काकेशिया तथा कैस्पियन सागरीय क्षेत्र से लेकर पश्चिमी भारतवर्ष तक था।

अंगूर ठंडा होता है क्या?

इसे सुनेंरोकेंअंगूर की तासीर ठंडी होती है इसलिए इस फल को गर्मियों के मौसम में खाया जाता है। इसका सेवन करने से शरीर में शीतलता रहती है।

अंगूर की तासीर क्या है?

इसे सुनेंरोकेंअंगूर की तासीर गर्म होती है और बहुत ज्यादा अंगूर खाना हानिकारक हो सकता है।

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अंगूर का जन्म स्थान कहाँ पर है?

इसे सुनेंरोकेंअंगूर सबसे पहले रूस में कैस्पियन सागर के पास आर्मेनिया में उत्पन्न हुए थे। Explanation: अंगूर का जन्म स्थान है। – अंगूर सबसे पहले रूस में कैस्पियन सागर के पास आर्मेनिया में उत्पन्न हुए थे।

अंगूर खाने का सही समय क्या है?

इसे सुनेंरोकेंअंगूर के सेवन को लेकर मानना है कि सुबह खाली पेट अंगूर खाना शरीर को सबसे ज्यादा लाभ पहुंचाता है। अंगूर में पानी की भरपूर मात्रा होती है। ऐसे में अंगूर शरीर में पानी का लेवल बनाए रखता है। इसके अलावा अंगूर दोपहर के वक्त भी खाने से पहले सेहत के लिए अच्छा होता है।

अंगूर में कौन सा एसिड होता है?

इसे सुनेंरोकेंटार्टरिक अम्ल (Tartaric acid) एक कार्बनिक अम्ल है जो सफेद, क्रिस्टलीय होता है। यह प्राकृतिक रूप से अनेकों फलों (जैसे अंगूर, केला, इमली आदि) में पाया जाता है।

मध्यप्रदेश में अंगूर की छंटाई का उत्तम समय क्या है?

इसे सुनेंरोकेंइस चरण के दौरान, आमतौर पर फलों के शर्करा में वृद्धि और अम्ल में कमी होती है। सामान्य तौर पर, उत्तरी गोलार्ध में, अधिकांश किस्में अगस्त से नवंबर तक पकती हैं, जबकि दक्षिणी गोलार्ध में मार्च से अगस्त तक।

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अंगूर कब नहीं खाने चाहिए?

इसे सुनेंरोकेंअंगूर मीठे होने की वजह से पेट से जुड़ी समस्याएं पैदा करता है. इसलिए कहा जाता है कि पेट खराब होने पर ज्यादा मात्रा में अंगूर का सेवन नहीं करना चाहिए. 3- किडनी से जुड़ी समस्या- डायबिटीज और किडनी से जुड़ी समस्या वाले लोगों को ज्यादा अंगूर नहीं खाने चाहिए. इससे क्रोनिक किडनी डिजीज होने का खतरा बढ़ जाता है.

अंगूर खाने से क्या नुकसान होता है?

वजन बढ़ता है- ज्यादा अंगूर खाने से मोटापा बढ़ सकता है.

  • डायरिया- जो लोग जरूरत से ज्यादा अंगूर खाते हैं उन्हें डायरिया होने का खतरा बढ़ जाता है.
  • किडनी से जुड़ी समस्या- डायबिटीज और किडनी से जुड़ी समस्या वाले लोगों को ज्यादा अंगूर नहीं खाने चाहिए.
  • 1 दिन में कितना अंगूर खाना चाहिए?

    इसे सुनेंरोकेंअंगूर खाते वक्त कुछ सावधानी का रखना है ध्यान इसलिए, एक दिन में आपको 8 से 10 अंगूर खाना चाहिए. अंगूर आम तौर से सुरक्षित होते हैं. उसमें शानदार पोषक तत्व भी पाए जाते हैं.

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    अंगूर कहाँ पाया जाता है?

    इसे सुनेंरोकेंवैसे तो देश के कई हिस्सों में अंगूर की खेती की जाती है, लेकिन महाराष्ट्र का नासिक जिला अंगूर की खेती के लिए सबसे परफेक्ट प्लेस है. नासिक में इतनी ज्यादा अंगूर की खेती की जाती है कि माना जाता है कि देश का 70 फीसदी अंगूर नासिक में ही होता है.

    अंगूर की खेती कौन से राज्य में होती है?

    इसे सुनेंरोकेंआज महाराष्ट्र में सबसे अधिक क्षेत्र में अंगूर की खेती की जाती है तथा उत्पादन की दृष्टि से यह देश में अग्रणी है। भारत में अंगूर की उत्पादकता Grapes Crop पूरे विश्व में सर्वोच्च है।

    अंगूर (अंग्रेजी नाम:Grape वानस्पतिक नाम: वाइटिस विनिफेरा प्रजाति वाइटिस; जाति: विनिफेरा; कुल: वाइटेसी) एक लता का फल है। इस कुल में लगभग 40 जातियाँ हैं जो उत्तरी समशीतोष्ण कटिबंध में पाई जाती है। अंगूर का परंपरागत इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना मनुष्य का। बाइबिल से ज्ञात होता है कि नोआ ने अंगूर का उद्यान लगाया था। होमर के समय में अंगूरी मदिरा यूनानियों के दैनिक प्रयोग की वस्तु थी। इसका उत्पत्ति स्थान काकेशिया तथा कैस्पियन सागरीय क्षेत्र से लेकर पश्चिमी भारतवर्ष तक था। यहाँ से एशियामाइनर, यूनान तथा सिसिली की ओर इसका प्रसार हुआ। ई.पू. 600 में यह फ्रांस पहुँचा।

    चित्र:Grapes.jpg

    अंगूर बहुत स्वादिष्ट फल है। इसे लोग बहुधा ताजा ही खाते हैं। सुखाकर किशमिश तथा मुनक्का के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है। रोगियों के लिए ताजा फल अत्यंत लाभदायक है। किशमिश तथा मुनक्के का प्रयोग अनेक प्रकार के पकवान, जैसे खीर, हलवा, चटनी इत्यादि, तथा औषधियों में भी होता है। अंगूर में चीनी की मात्रा लगभग 22 प्रतिशत होती है। इसमें विटामिन बहुत कम होता है, परंतु लोहा आदि खनिज पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। भारतवर्ष में इसकी खेती नहीं के बराबर है। यहां इसकी सबसे उत्तम खेती बंबई राज्य में होती है। अंगूर उपजाने वाले मुख्य देश फ्रांस, इटली, स्पेन, संयुक्त राज्य अमरीका, तुर्की, ग्रीस ईरान तथा अफगानिस्तान है। संसार में अंगूर की जितनी उपज होती है उसका 80 प्रतिशत मदिरा बनाने में प्रयोग किया जाता है।

    अंगूर प्रधानत: समशीतोष्ण कटिबंध का पौधा है, परंतु उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में भी इसकी सफल खेती की जाती है। इसके लिए अधिक दिनों तक मध्यम से लेकर उष्ण तक का ताप और शुष्क जलवायु अत्यंत आवश्यक है। ग्रीष्म ऋतु शुष्क तथा शीतकाल पर्याप्त ठंडा होना चाहिए। फूलने तथा फल पकने के समय वायुमंडल शुष्क तथा गरम रहना चाहिए। इस बीच वर्षा होने से हानि होती है। बलूचिस्तान में ग्रीष्म ऋतु में ताप 100° से 115° फा. तक पहुँचता है, जो अंगूर के लिए लाभप्रद सिद्ध हुआ है। बंबई में अंगूर जाड़े में होता है। दोनों स्थानों में भिन्न-भिन्न जलवायु होते हुए भी फल के समय ऋतु गरम तथा शुष्क रहती है। यही कारण है कि अंगूर की खेती दोनों स्थानों में सफल हुई है, यद्यपि जलवायु में बहुत भिन्नता है। सुषुप्तिकाल में पाले से अंगूर की लता को कोई हानि नहीं होती, परंतु जब फल लगने वाली डालें बढ़ने लगती हैं उस समय पाला पड़े तो हानि होती है, पौधे के इन जलवायु संबंधी गुणों में अंगूर की किस्मों के अनुसार न्यूनाधिक परिवर्तन हो जाता है। अंगूर की सफल खेती के लिए वह मिट्टी सर्वोत्तम है जिसमें जल निकास (ड्रेनेज) का पूर्ण प्रबंध हो। रेतीली दुमट इसके लिए सबसे उत्तम मिट्टी है।

    अंगूर की अनेक किस्में हैं। विभिन्न देशों में सब मिलाकर लगभग 200 किस्में होंगी। व्यावसायिक अभिप्राय के अनुसार इन सबका वर्गीकरण किया गया है। इस आधार पर इन्हें चार भागों में विभाजित करते हैं।

    (1) सुरा अंगूर इसमें मध्यम मात्रा में चीनी तथा अधिक अम्ल होता है। इस वर्ग के अंगूर मदिरा बनाने के लिए प्रयुक्त होते हैं।

    (2) भोज्य अंगूर इसमें चीनी की मात्रा अधिक तथा अम्ल को होते हैं। इस वर्ग के अंगूरों के पके फल खाए जाते हैं, इसलिए इसका रंग, रूप तथा आकार चित्ताकर्षक होना आवश्यक है। यदि फल बीजरहित (बेदाना) हों तो अति उत्तम है।

    (3) शुष्क अंगूर:इनमें चीनी की मात्रा अधिक तथा अम्ल कम होता है। इनका बीजरहित होना विशेष गुण है। इन्हें सुखाकर किशमिश तथा मुनक्का बनाते हैं।

    (4) सरस अंगूर: इनमें मध्यम चीनी, अधिक अम्ल तथा सुगंध होती है। इनसे पेय पदार्थ बनाए जाते हैं।

    भारतवर्ष में कषि योग्य किस्में अग्रलिखित हैं: ‘मोकरी’ बंबई में, ‘द्रक्षाई’ तथा ‘पचाई’ मद्रास में, ‘बँगलोर ब्ल्यू’ तथा ‘औरंगाबाद’ मैसूर में, और ‘सहारनपुर नंबर 1’ या ‘बेदाना’, ‘सहारनपुर नंबर 2’, ‘मोतिया’, ‘ब्लैक कार्निकान’ तथा ‘रोज ऑव पेन’ इत्यादि, जो सहारनपुर राजकीय उद्यान में उपजाई जाती है।


    अंगूर से तैयार होने वाली वस्तुएँ ये हैं: किशमिश, मुनक्का, संरक्षित रस, मदिरा, सिरका तथा जेली। प्रथम दोनों वस्तुओं की माँग भारतवर्ष में अधिक है। पके फल अधिक समय तक साधारण ताप पर नहीं टिकते, परंतु । ३२ डिग्री फा. ताप पर शत संग्रहागार (कोल्ड स्टोरेज) में वे अधिक समय तक ताजे रखे जा सकते हैं।

    रासायनिक विश्लेषण

    रासायनिक विश्लेषण के अनुसार अंगूर में 08 प्रतिशत प्रोटीन, 01 वसा, 10.2 प्रतिशत कार्बोहाइडरेट, 0.02 प्रतिशत कैल्सियम, 0.02 प्रतिशत फॉस्फोरस, 1.3 से 1.5 मि.ग्रा. प्रति 100 ग्राम लोहा होता है। इसके अतिरिक्त इसमें अनेक विटामिन भी होते हैं जिनकी मात्रा प्रति १०० ग्राम अंगूर में इस प्रकार होती है--विटामिन ए, 15 यूनिट; विटामिन सी, 10 मि.ग्रा.। अंगूर की प्रति 100 ग्राम मात्रा के सेवन से 45 कैलॉरी ऊर्जा उत्पन्न होती है। अंगूर में मौलिक टारटैरिक तथा रेसीनिक अम्ल होते हैं। अंगूर में ग्लूकोज शर्करा पर्याप्त मात्रा में विद्यमान होती है। विभिन्न किस्मों के अंगूरों में शर्करा की मात्रा 11 से 22 प्रतिशत तक पाई जाती है तथा किन्हीं खास जातियों की अंगूरों में तो यह पचास प्रतिशत तक पाई जाती है। अंगूर में जल तथा पोटैशियम लवण की समुचित मात्रा होती है। एलबूमिन तथा सोडियम क्लोराइड भी अल्प मात्रा में होता है।

    गुण

    भारतीय चिकित्साशास्त्र के प्राचीन आचार्य वाण्भट्ट के अनुसार अंगूर का रस आँतों तथा गुर्दों की कार्यक्षमता बढ़ाता है। इसलिए कोष्ठबद्धता एवं मूत्रकृच्छ में लाभकर है। सुश्रुत संहिता में इसे बहुत पुष्टिकर माना गया है तथा क्षय रोग का निवारण करने वाला बताया गया है। अतिसार के रोगियों के लिए भी यह बहुत लाभदायक है। अंगूर के अधिकांश विटामिन और खनिज लवण इसके ऊपरी छिलके में होते हैं। अत: इसके छिलके समेत सेवन से ओतों को बल एवं सक्रियता प्राप्त होती है। यह कब्ज को दूर करने में सहायक होता है। रक्त निर्माण में अंगूर का रस महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कछ वर्ष पहले शिकागो के तीन डॉक्टरों ने बताया कि दस आैंस अंगूर के रस का सेवन किया जाए तो इससे रक्ताल्पता (एनीमिया) रोग कछ दिनों में दूर हो जाता है। अंगूर के सेवन से चेहरे पर लालिमा, कांति और ओज आ जाता है। अंगूर की शर्करा (ग्लूकोज) पचापचाया भोजन है इसलिए इसके सेवन के थोड़ी ही देर बाद शरीर को शक्ति, स्फूर्ति मिल जाती है।

    टीका टिप्पणी और संदर्भ

    सं. ग्रं. __ पी. वियाला और बी. वमौरे: खेत्रे जनरा द वितिकुल्तूर आंपेलैरफी (1909); कार्ल म्यूलर: वाइनवाउ-लेक्सिकन (1930)। (ज.रा. सि.)|

    अंगूर का जन्म स्थान क्या है?

    अंगूर का परंपरागत इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना मनुष्य का। बाइबिल से ज्ञात होता है कि नोआ ने अंगूर का उद्यान लगाया था। होमर के समय में अंगूरी मदिरा यूनानियों के दैनिक प्रयोग की वस्तु थी। इसका उत्पत्ति स्थान काकेशिया तथा कैस्पियन सागरीय क्षेत्र से लेकर पश्चिमी भारतवर्ष तक था।

    अंगूर का मूल देश कौन सा है?

    इतिहास अंगूर की खेती का प्रारंभ अाज से ५०००-८००० साल पहले भारत से हुआ था।

    अंगूर कहाँ पाया जाता है?

    आज महाराष्ट्र में सबसे अधिक क्षेत्र में अंगूर की खेती की जाती है तथा उत्पादन की दृष्टि से यह देश में अग्रणी है।

    अंगूर का कुल नाम क्या है?

    अंगूर का वानस्पतिक नाम Vitis vinifera Linn। (वाइटिस वाइनिफेरा) है और यह Vitaceae (वाइटेसी) कुल का पौधा है।