आचरण का विकास जीवन का परम उद्देश्य है समझाइए - aacharan ka vikaas jeevan ka param uddeshy hai samajhaie

व्यक्ति के जीवन में आचरण का विशेष महत्व है

व्यक्ति के जीवन में आचरण का विशेष महत्व है। श्रेष्ठ आचरण से व्यक्ति का बहुमुखी विकास होता है। अच्छा इंसान बनने के साथ-साथ वह भगवद् प्राप्ति की तरफ अग्रसर हो सकता है। मानव योनि में जन्म मिलना भी तभी संभव होता है जब परमात्मा की अनंत कृपा होती है। इसे

व्यक्ति के जीवन में आचरण का विशेष महत्व है। श्रेष्ठ आचरण से व्यक्ति का बहुमुखी विकास होता है। अच्छा इंसान बनने के साथ-साथ वह भगवद् प्राप्ति की तरफ अग्रसर हो सकता है। मानव योनि में जन्म मिलना भी तभी संभव होता है जब परमात्मा की अनंत कृपा होती है। इसे व्यर्थ नहीं गंवाएं। खाली हाथ मनुष्य इस संसार में आता है और रोता बिलखता, खाली हाथ ही चला भी जाता है। उसका सारा ताना-बाना यहीं रखा का रखा रह जाता है।
पापों की गठरी इतनी भारी हो जाती है कि एक दिन जब काल सामने होता है तो उसके पास पश्चाताप के अतिरिक्त और कुछ नहीं रह जाता है। इसलिए समय रहते ही अपने आचरण को ठीक करने के लिए सद्गुणों को बढ़ाने का प्रयास करें ताकि इस संसार से विदा होने के बाद भी लोग सूरदास, तुलसी, कबीर और मीरा की तरह आपको याद करें। बुद्ध, नानक और महावीर आज अपने सद्कर्र्मो की वजह से आज भी अमर हैं। इन सबने सबसे पहले अपने अंदर सदाचरण का बीज बोया। अपने आचार-विचार को ठीक किया और साबित कर दिया कि सदाचरण के सहारे व्यक्ति जीवन में ऊंचाई की तरफ सहज ही अग्रसर हो सकता है। समय कभी रुकता नहीं है और मृत्यु अटल है। इसलिए अपने इस अमूल्य जीवन की सार्थकता को समङों। जो सदाचारी है वह ईमानदारी और मेहनत से कमाई करता है। ध्यान रहे, यह शरीर एक मंदिर है। इसलिए इसे बुरे व्यसनों से बचाते हुए इसकी देख-रेख बढ़िया ढंग से करें। यह शरीर मानव सेवा और समाज सेवा में लगा रहे, इसके लिए अस्वास्थ्यकर पदार्थो का सेवन कर इसे बर्बाद न करें।
जो विवेकी लोग होते हैं, वे अपनी शक्ति और धन को भले कार्यो में लगाते हैं। माना कि इस संसार में व्यक्ति को अपना जीवन आनंदपूर्वक जीना चाहिए, प्रकृति प्रदत्त सुख-सुविधाओं का लाभ भी उठाना चाहिए। लेकिन भूलकर भी जीवन में कुत्सित विचारों और विषय-वासनाओं को पनपने नहीं देना चाहिए। जो जीवन को धैर्य और संयम के साथ जीते हैं और जिनके विचार और चिंतन शुभ होते हैं वे एक न एक दिन परमात्मा की शरण में पहुंच जाते हैं। जो भी सत्ता, संपत्ति, सत्कार जीवन में मिलता है, उसे देने वाला एक न एक दिन जरूर वापस ले लेता है। इससे दुखी नहीं होना चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि यही अंतिम सत्य है। यदि कुछ रह जाता है तो आपके किए हुए शुभ कर्म और आपका सदाचरण। जिसका आचरण जितना अच्छा है, वह परमात्मा के उतना ही करीब है।

Edited By: Preeti jha

विषयसूची

  • 1 आचरण की मुख्य विशेषता क्या है?
  • 2 आचरण की सभ्यता में भाषा कैसे होती है?
  • 3 आचरण की सभ्यता निबंध के माध्यम से समाज को क्या संदेश दिया गया है?
  • 4 आचरण की सभ्यता निबन्ध के माध्यम से लेखक समाज को क्या सन्देश देना चाहते हैं?
  • 5 आचरण की मौन भाषा किसे कहते हैं और उसका क्या महत्व है?
  • 6 क्या आचरण का विकास जीवन का परम उद्देश्य है समझाइए?

आचरण की मुख्य विशेषता क्या है?

इसे सुनेंरोकेंआचरण में वह अपूर्व शक्ति है, जो व्यक्ति को कुछ से कुछ बना देती है ।। यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन में आचरण का पालन करता हो और कला, साहित्य व संगीत में भी रुचि रखता हो तो मात्र आचरण की पवित्रता के कारण ही उसे इन कलाओं में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त हो जाती है ।।

आचरण की सभ्यता में भाषा कैसे होती है?

इसे सुनेंरोकेंप्रेम की भाषा शब्दरहित है। नेत्रों की, कपोलों की, मस्तक की भाषा भी शब्दरहित है। जीवन को तत्त्व भी शब्द से परे है। सच्चा आचरण-प्रभाव, शील, अचल-स्थित संयुक्त आचरण- न तो साहित्य के लंबे व्याख्यानों से गठा जा सकता है; न वेद की श्रुतियों के मीठे उपदेश से; न इंजील से; न कुरान से; न धर्मचर्चा से; न केवल सत्संग से।

आचरण की सभ्यता निबंध के माध्यम से समाज को क्या संदेश दिया गया है?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: सरदार पूर्ण सिंह ने ‘आचरण की सभ्यता’ निबंध में विद्या, कला, कविता, साहित्य, धन, और राजस्व सभी से अधिक शुद्ध आचरण को महत्व दिया है। इसके लिए लेखक ने नम्रता, दया, प्रेम और उदारता को हृदय में स्थान देना आवश्यक बताया है। अच्छे आचरण वाले व्यक्ति के प्रेम और धर्म से सारे जगत का कल्याण होता है।

सरदारपुर जी का जन्म कब हुआ था?

इसे सुनेंरोकेंसरदार पूर्ण सिंह (अंग्रेज़ी: Sardar Puran Singh, जन्म- 17 फ़रवरी, 1881, एबटाबाद; मृत्यु- 31 मार्च, 1931, देहरादून) भारत के विशिष्ट निबंधकारों में से एक थे। ये देशभक्त, शिक्षाविद, अध्यापक, वैज्ञानिक एवं लेखक भी थे।

व्यवहार और आचरण में क्या अंतर है?

इसे सुनेंरोकें” आचरण ” से अभिप्राय उस क्रियाकलाप और मनोवृत्ति से है, जो हम अपने प्रति अपनाते हैं और ” व्यवहार ” वह है , जो हम किसी दूसरे व्यक्ति के प्रति करते हैं । यदि हम अपने कर्तव्य का पालन उचित ढंग से कर रहे हैं तो हम श्रेष्ठ का आचरण कर रहे हैं ।

आचरण की सभ्यता निबन्ध के माध्यम से लेखक समाज को क्या सन्देश देना चाहते हैं?

आचरण की मौन भाषा किसे कहते हैं और उसका क्या महत्व है?

इसे सुनेंरोकेंमृदु वचनों की मिठास में आचरण की सभ्यता मौन रूप से खुली हुई है। नम्रता, दया, प्रेम और उदारता सबके सब सभ्यताचरण की भाषा के मौन व्याख्यान हैं। मनुष्य के जीवन पर मौन व्याख्यान का प्रभाव चिरस्थायी होता है और उसकी आत्मा का एक अंग हो जाता है।”

क्या आचरण का विकास जीवन का परम उद्देश्य है समझाइए?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: विद्या, कला, कविता, साहित्‍य, धन और राजस्‍व से भी आचरण की सभ्‍यता अधिक ज्‍योतिष्‍मती है। आचरण की सभ्‍यता को प्राप्‍त करके एक कंगाल आदमी राजाओं के दिलों पर भी अपना प्रभुत्‍व जमा सकता है। इस सभ्‍यता के दर्शन से कला, साहित्य, और संगीत को अद्भुत सिद्धि प्राप्‍त होती है।

आचरण की सभ्यता किसकी रचना?

इसे सुनेंरोकेंसरदार पूर्ण सिंह ने ‘आचरण की सभ्यता’ निबंध में विद्या, कला, कविता, साहित्य, धन, और राजस्व सभी से अधिक शुद्ध आचरण को महत्व दिया है। इसके लिए लेखक ने नम्रता, दया, प्रेम और उदारता को हृदय में स्थान देना आवश्यक बताया है।

क्या आचरण का विकास जीवन का परम उद्देश्य हैं समझाइए?

Answer: विद्या, कला, कविता, साहित्‍य, धन और राजस्‍व से भी आचरण की सभ्‍यता अधिक ज्‍योतिष्‍मती है। आचरण की सभ्‍यता को प्राप्‍त करके एक कंगाल आदमी राजाओं के दिलों पर भी अपना प्रभुत्‍व जमा सकता है। इस सभ्‍यता के दर्शन से कला, साहित्य, और संगीत को अद्भुत सिद्धि प्राप्‍त होती है।

आचरण क्या है समझाइये?

पारस्परिक क्रियाएं, जिनका संबंध भावना, संवेग, इच्छा आदि से न होकर विशुद्ध विवेक से होता है और ये क्रियाएं प्रत्यक्ष या परोक्ष, तत्काल या तदोपरांत, अच्छे या बुरे रूप में व्यक्तित्व को प्रभावित करती हैं, जिन्हें आचरण कहा जाता है।

आचरण की सभ्यता भाषा का स्वरूप क्या है?

आचरण की सभ्‍यतामय भाषा सदा मौन रहती है. इस भाषा का निघण्‍टु शुद्ध श्‍वेत पत्रों वाला है. इसमें नाममात्र के लिए भी शब्‍द नहीं. यह सभ्‍याचरण नाद करता हुआ भी मौन है, व्‍याख्‍यान देता हुआ भी व्‍याख्‍यान के पीछे छिपा है, राग गाता हुआ भी राग के सुर के भीतर पड़ा है.

आचरण कब प्रकट होता है?

जीवन के अरण्य में धंसे हुए पुरुष के हृदय पर प्रकृति और मनुष्य के जीवन के मौन व्याख्यानों के यत्न से सुनार के छोटे हथौड़े की मंद-मंद चोटों की तरह आचरण को रूप प्रत्यक्ष होता है।