2. हूल दिवस कब मनाया जाता है? - 2. hool divas kab manaaya jaata hai?

जिस दिन झारखंड के आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाया था यानी विद्रोह किया था, उस दिन को 'हूल क्रांति दिवस' के रूप में मनाया जाता है। इस युद्ध में करीब 20 हजार आदिवासियों ने अपनी जान दे दी थी...आजादी की पहली लड़ाई
हालांकि आजादी की पहली लड़ाई तो सन 1857 में मानी जाती है लेकिन झारखंड के आदिवासियों ने 1855 में ही विद्रोह का झंडा बुलंद कर दिया था। 30 जून, 1855 को सिद्धू और कान्हू के नेतृत्व में मौजूदा साहेबगंज जिले के भगनाडीह गांव से विद्रोह शुरू हुआ था। इस मौके पर सिद्धू ने नारा दिया था, 'करो या मरो, अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो'

आंदोलन का कारण
मौजूदा संथाल परगना का इलाका बंगाल प्रेसिडेंसी के अधीन पहाड़ियों एवं जंगलों से घिरा क्षेत्र था। इस इलाके में रहने वाले पहाड़िया, संथाल और अन्य निवासी खेती-बाड़ी करके जीवन-यापन करते थे और जमीन का किसी को राजस्व नहीं देते थे। ईस्ट इंडिया कंपनी ने राजस्व बढ़ाने के मकसद से जमींदार की फौज तैयार की जो पहाड़िया, संथाल और अन्य निवासियों से जबरन लगान वसूलने लगे। लगान देने के लिए उनलोगों को साहूकारों से कर्ज लेना पड़ता और साहूकार के भी अत्याचार का सामना करना पड़ता था। इससे लोगों में असंतोष की भावना मजबूत होती गई। सिद्धू, कान्हू, चांद और भैरव चारों भाइयों ने लोगों के असंतोष को आंदोलन में बदल दिया।

आंदोलन की शुरुआत
30 जून, 1855 को 400 गांवों के करीब 50 हजार आदिवासी भगनाडीह गांव पहुंचे और आंदोलन की शुरुआत हुई। इसी सभा में यह घोषणा कर दी गई कि वे अब मालगुजारी नहीं देंगे। इसके बाद अंग्रेजों ने, सिद्धू, कान्हू, चांद तथा भैरव- इन चारों भाइयों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। जिस दरोगा को चारों भाइयों को गिरफ्तार करने के लिए वहां भेजा गया था, संथालियों ने उसकी गर्दन काट कर हत्या कर दी। इस दौरान सरकारी अधिकारियों में भी इस आंदोलन को लेकर भय पैदा हो गया था।

आंदोलन का परिणाम
आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों ने इस इलाके में सेना भेज दी और जमकर आदिवासियों की गिरफ्तारियां की गईं और विद्रोहियों पर गोलियां बरसने लगीं। आंदोलनकारियों को नियंत्रित करने के लिए मार्शल लॉ लगा दिया गया। आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी के लिए अंग्रेज सरकार ने पुरस्कारों की भी घोषणा की थी। बहराइच में अंग्रेजों और आंदोलनकारियों की लड़ाई में चांद और भैरव शहीद हो गए। प्रसिद्ध अंग्रेज इतिहासकार हंटर ने अपनी पुस्तक 'एनल्स ऑफ रूलर बंगाल' में लिखा है, 'संथालों को आत्मसमर्पण की जानकारी नहीं थी, जिस कारण डुगडुगी बजती रही और लोग लड़ते रहे।' जब तक एक भी आंदोलनकारी जिंदा रहा, वह लड़ता रहा। इस युद्ध में करीब 20 हजार आदिवासियों ने अपनी जान दी थी। सिद्धू और कान्हू के करीबी साथियों को पैसे का लालच देकर दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया गया और फिर 26 जुलाई को दोनों भाइयों को भगनाडीह गांव में खुलेआम एक पेड़ पर टांगकर फांसी की सजा दे दी गई। इस तरह सिद्धू, कान्हू, चांद और भैरव, ये चारों भाई सदा के लिए भारतीय इतिहास में अपना अमिट स्थान बना गए।

Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप

लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें

30 जून को संताल हूल दिवस है. यह हूल, जिसका केंद्र झारखंड का संताल परगना था, 1855-56 में वीर सिदो-कान्हू के नेतृत्व में हुआ था. जल, जंगल जमीन और आदिवासी अस्मिता की रक्षा के लिए संताल जनजाति के प्रतिरोध की यह सबसे बड़ी घटना थी.

By Prabhat khabar Digital

Updated Date Thu, Jun 30, 2022, 10:20 AM IST

हूल क्रांति दिवस 30 जून को मनाया जाता है. इसे संथाल विद्रोह भी कहा जाता है. आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के खिलाफ जम के लड़ने वाले आदिवासियों की संघर्ष गाथा और उनके बलिदान को याद करने का यह खास दिन है. संयुक्त किसान मोर्चा (Farmers protest) के सभी सदस्य जो तीन कृषि कानूनों के खिलाफ धरने पर बैठे हैं इसी 'आजादी की पहली लड़ाई' को माना रहे हैं.

अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की पहली लड़ाई

आजादी की पहली लड़ाई सन 1857 में मानी जाती है, लेकिन झारखंड के आदिवासियों ने 1855 में ही अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद कर दिया था. 30 जून, 1855 को सिद्धू और कान्हू के नेतृत्व में मौजूदा साहिबगंज जिले के भगनाडीह गांव से विद्रोह शुरू हुआ था. इस मौके पर सिद्धू ने नारा दिया था, 'करो या मरो, अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो.'

हूल क्रांति का मतलब

संथाली भासा में हूल का अर्थ होता है विद्रोह. 30 जून, 1855 को झारखंड के आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया और 400 गांवों के 50,000 से अधिक लोगों ने भोलनाडीह गांव पहुंचकर जंग का ऐलान कर दिया. यहां आदिवासी भाई सिद्धू-कान्हू की अगुवाई में संथालों ने मालगुजारी नहीं देने के साथ ही अंग्रेज हमारी माटी छोड़ो का ऐलान किया. इससे घबरा कर अंग्रेजों ने विद्रोहियों को रोकना शुरू कर दिया.

अंग्रेज सरकार की ओर से आए जमीदारों और सिपाहियों का संथालों ने डटकर मुकाबला किया. इस बीच इन्हे रोकने के लिए अंग्रेजों ने क्रूरता की सभी हदें पार कर दीं. सिद्धू और कान्हू को अंग्रेजों ने पकड़ लिया और उन्हें भोगनाडीह गांव में पेड़ से लटका कर 26 जुलाई, 1855 को फांसी दे दी. इन्हीं शहीदों की याद में हर साल 30 जून को हूल क्रांति दिवस मनाया जाता है. इस महान क्रांति में लगभग 20,000 लोगों ने शहादत दी थी.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

क्विंट हिंदी पर लेटेस्ट न्यूज और ब्रेकिंग न्यूज़ पढ़ें, news और india के लिए ब्राउज़ करें

२ हूल दिवस कब मनाया जाता है?

संथाल की माटी के इन्हीं शहीदों की याद में हर साल 30 जून को हूल दिवस मनाया जाता है। एक अंग्रेज इतिहासकार हंटर ने लिखा है कि इस महान क्रांति में लगभग 20000 आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया गया।

Hull दिवस कब मनाया जाता है?

क्यों मनाया जाता है हूल दिवस 30 जून को हूल दिवस के अवसर पर 1855 के हूल क्रांति के जनक सिद्धो-कान्हू को याद किया जाता है। इस दिन हजारों आदिवासियों ने सिद्धो-कान्हू के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका था।

हूल क्रांति क्या है?

हूल का संथाली अर्थ है विद्रोह। 1855 में आज ही दिन भोलनाडीह गांव के सिद्धू-कान्हू की अगुवाई में झारखंड के आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया और 400 गांवों के 50,000 से अधिक लोगों ने पहुंचकर जंग का ऐलान कर दिया और हमारी माटी छोड़ो का ऐलान कर दिया।

संथाल हूल कब शुरू हुआ था?

विद्रोह ३० जून १८५५ को आरम्भ हुआ था