वर्तमान समय में भारत-पाक संबंधों का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए - vartamaan samay mein bhaarat-paak sambandhon ka sankshipt vishleshan keejie

भारत-पाक वार्ता का नवीनतम दौर पिछले साल की शुरुआत में हुआ था, जब भारत और पाकिस्तान के डीजीएमओ ने 2003 के युद्धविराम समझौते को बनाए रखने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.

पाकिस्तान (Pakistan) के लाहौर में व्यापारियों की बैठक में एक पाकिस्तानी उद्योगपति की टिप्पणी से यह संकेत मिला है कि भारत और पाकिस्तान (India- Pakistan) के बीच बैक-चैनल वार्ता का एक नया दौर तेजी से चल रहा है. मियां मोहम्मद मंशा ने कहा कि बैक-चैनल वार्ता की वजह से एक महीने के अंदर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) पाकिस्तान के दौरे पर जा सकते हैं. लेकिन ये फिलहाल साफ नहीं है कि मोहम्मद मंशा ने यह जानकारी किन सूत्रों की सूचना के आधार पर दी है. पढ़िए केवी रमेश और जहांगीर अली की रिपोर्ट…

हालांकि उनकी बातों को खारिज भी नहीं किया जा सकता है क्योंकि वे पाकिस्तान में देश के सबसे बड़े उद्योगपति हैं. साथ ही लगभग तीन दशक से ज्यादा समय से उनके संबंध पाकिस्तान में सत्ता के गलियारों के बड़े नेताओं के साथ काफी सौहार्दपूर्ण रहे हैं. मियां मोहम्मद मंशा की टिप्पणियों से यह स्पष्ट होता है कि कुछ बैक-चैनल वार्ताएं चल रही हैं. लेकिन उपमहाद्वीप की क्षेत्रीय राजनीति के जानकारों के मुताबिक, उनके लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है. 1947 के बाद से, दोनों देशों के बीच बाकी मुद्दों को सुलझाने के लिए लगातार संपर्क होते रहे हैं. हालांकि इन तमाम मुलाकातों से कोई खास प्रगति अब तक नहीं हो पाई है, लेकिन दोनों देशों ने कई बार सहमत होने के लिए हामी भरी है.

संयुक्त राष्ट्र ने की युद्दविराम की मध्यस्थता

गौरतलब है कि भाषा, संस्कृति, खान-पान, क्रिकेट के प्रति प्रेम, सामाजिक तौर-तरीकों और यहां तक कि अपशब्दों सहित कई समानताओं के बावजूद 75 सालों से दोनों देश बंटे हुए हैं. जब संयुक्त राष्ट्र ने दोनों देशों के बीच युद्दविराम की मध्यस्थता की थी, तब 1949 में दोनों देशों ने पहली बार एक समझौता किया था. 1947 में पाकिस्तान के नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविन्स के हथियारबंद कबाईलियों ने जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) में घुसपैठ की और दो साल तक वहां लूटपाट और हिंसा को अंजाम दिया. ये एक ऐसा आक्रमण था जिसे पाकिस्तानी सेना द्वारा नियोजित और क्रियान्वित किया गया था.

संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में दोनों देश शामिल थे. इस प्रस्ताव में कहा गया था कि पाकिस्तान जम्मू और कश्मीर से पूरी तरह से अपनी सेना वापस ले लेगा और भारतीय सेना राज्य में एक जनमत संग्रह के पूरा होने तक रहेगी. ये जनमत संग्रह राज्य के लोगों को ये इजाजत देगा कि वो ऐसा फैसला ले सकें कि वे भारत के साथ रहेंगे या पाकिस्तान के साथ या फिर अपने लिए स्वतंत्रता का विकल्प चुनेंगे. पाकिस्तान ने आज तक उन इलाकों से अपनी सेना नहीं हटाई है. नतीजतन, संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को लागू नहीं किया जा सका.

सिंधु नदी के जल बंटवारे को लेकर हुई संधि

साल 1960 में विश्व बैंक ने सिंधु नदी के पानी के बंटवारे पर दोनों देशों के बीच एक संधि करवाई थी. ये संधि आज तक कायम है. तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने उस साल 19 सितंबर को कराची में संधि पर दस्तखत किए थे. चार साल बाद अप्रैल 1964 में शेख अब्दुल्ला को रिहा किया गया था, जिन्हें नौ साल पहले जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री के पद से हटाए जाने के बाद जेल में डाल दिया गया था. अगले महीने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें पाकिस्तान भेजा. शेख अब्दुल्ला के पास राष्ट्रपति अयूब खान के लिए निमंत्रण था और संभवत: नेहरू की वापसी यात्रा की भी बात हुई थी.

ये सभी कवायद कश्मीर मुद्दे को हल करने के लिए किए जा रहे थे. शेख अब्दुल्ला उस वक्त पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) के मुजफ्फराबाद में थे, जब नेहरू का 27 मई 1964 को निधन हो गया. इसलिए, दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू करने की ये कोशिश नाकामयाब रही. 1965 के युद्ध के बाद, रूस ने जनवरी 1966 में ताशकंद में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और अयूब खान के बीच बातचीत शुरू करवाई. 10 जनवरी को, शास्त्री और खान ने सैनिकों को सितंबर 1965 की स्थिति में वापस लाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते में तय हुआ कि दोनों देश एक दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे और द्विपक्षीय संबंधों को बहाल और सुधारने पर जोर दिया जाएगा.

ताशकंद में हार्ट अटैक से लाल बहादुर शास्त्री का निधन

अगले दिन ताशकंद में ही शास्त्री जी की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई और एक बार फिर दोनों देशों के रिश्तों में बर्फ जम गई. फिर 1971 के युद्ध के बाद, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके पाकिस्तानी समकक्ष जुल्फिकार अली भुट्टो ने शिमला में मुलाकात की और 2 जुलाई 1972 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते के तहत दोनों पक्षों ने कश्मीर मुद्दे को आपसी बातचीत के जरिए हल करने पर खुद को प्रतिबद्ध किया. बहरहाल, भारत आज तक अपने इस वादे पर कायम है जबकि पाकिस्तान इससे मुकर गया. इसके बाद से दोनों देशों के बीच अशांत संबंध रहे हैं. लेकिन सरकार, व्यापार और नागरिक समाज के स्तर पर करीबन दो दर्जन से अधिक दौर की बातचीत हुई.

इन वार्ताओं से तनाव को काफी हद तक कम किया जा सका और उपमहाद्वीप में सकारात्मकता और आशा के माहौल की शुरुआत भी की जा सकी. जब भी दोनों देशों ने नेताओं के बजाय बंदूकों के जरिए बातचीत की है तो जम्मू-कश्मीर की सरजमीं पर इसका विनाशकारी प्रभाव पड़ा है. खासतौर पर सीमावर्ती इलाकों में. कूटनीतिक संवाद की कमी से नियंत्रण रेखा और अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर तैनात भारत-पाक सेनाओं के बीच हिंसा भड़कती है. इस हिंसा से इलाके में पलायन, स्कूली बच्चों के शिक्षा में व्यवधान के अलावा हजारों सीमावर्ती निवासियों की आजीविका भी प्रभावित होती है.

NSA डोभाल ने की पाकिस्तानी समकक्ष से बातचीत 

भारत-पाक वार्ता का नवीनतम दौर पिछले साल की शुरुआत में हुआ था, जब भारत और पाकिस्तान के डीजीएमओ ने 2003 के युद्धविराम समझौते को बनाए रखने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. ये समझौता राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और उनके पाकिस्तानी समकक्ष मोईद यूसुफ के बीच महीनों की बातचीत के बाद ही संभव हो सका. रिपोर्ट के मुताबिक, डोभाल और यूसुफ बातचीत के दौरान एक दूसरे से सीधे और खुफिया समुदाय के वार्ताकारों के माध्यम से लगातार संपर्क में रहे.

दुनिया की नजरों से हटकर, दोनों तरफ के वार्ताकारों के बीच बैक-चैनल वार्ता हो रही है. ये वार्ता आधिकारिक तौर पर तो नहीं हो रही लेकिन दोनों तरफ के अधिकारियों की जानकारी में रहती है कि बातचीत हो रही है. इस तरह की बातचीत दोनों सरकारों को राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा करने और एक-दूसरे के दिलो-दिमाग को टटोलने का अवसर भी देती है. इसके साथ ही अगर कोई असहज सूचना लीक भी हो जाए तो उसे अनधिकृत निजी इंटरप्राईज के तौर पर खारिज करने का अवसर होता है.

कश्मीर मुद्दे के समाधान पर अंतिम मसौदा 

2005 और 2008 के बीच, परवेज मुशर्रफ के विश्वासपात्र तारिक अजीज और भारतीय राजनयिक सतिंदर लांबा ने विभिन्न देश की राजधानियों में कम से कम एक दर्जन बार गुप्त रूप से मुलाकात की. इन मुलाकातों के दौरान एक हजार पन्नों के दस्तावेज और ‘गैर-कागजात’ (जिन पर कोई राजनयिक मुहर नहीं होती और इसलिए इनकार करने योग्य होता है) तैयार किए गए ताकि दोनों देशों के नेताओं के बीच बातचीत का एक और दौर शुरू किया जा सके. मैराथन कवायद के बाद भारतीय पक्ष ने पाकिस्तान को कश्मीर समस्याओं के समाधान पर एक अंतिम मसौदा पेश किया. लेकिन, वकीलों के आंदोलन से पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बना और पाकिस्तान अपनी टिप्पणियों के साथ मसौदे को वापस न कर सका.

2009-10 में, भारत और पाकिस्तान के सात पूर्व विदेश मंत्रियों ने मौजूदा समस्याओं के समाधान खोजने के लिए एक पहल की शुरूआत की. इसमें भारत की तरफ से जसवंत सिंह, नटवर सिंह और मणीशंकर अय्यर थे जबकि पाकिस्तान की तरफ से खुर्शीद अहमद कसूरी, सरताज अजीज, अब्दुल सत्तार और गोहर अयूब खान थे. उन्होंने चर्चा करने के लिए साल में एक या दो बार मिलने की योजना बनाई, लेकिन उस पहल को भी अमली जामा नहीं पहनाया जा सका.

ऐतिहासिक संधियां

लेकिन दोनों देशों के बीच अन्य समझौते भी हैं, जो दुर्भाग्य से दोनों मुल्कों के बीच चल रही दुश्मनी के शिकार हो गए हैं. अक्सर ही भारत सबसे पहले पीछे हटता रहा है. भारत का आरोप रहा है कि कश्मीर घाटी में आतंकवाद को बढ़ावा देने में पाकिस्तान की अहम भूमिका रहती है. मिसाल के तौर पर कश्मीर के दो हिस्सों के बीच व्यापार के लिए सड़क मार्गों को खोलने और एलओसी के दोनों तरफ यात्रा की सुविधा होने से दोनों देश के लोगों के बीच संपर्क बढ़ाया जा सकता है. लेकिन इन दोनों उपायों को समय से पहले ही समाप्त कर दिया गया, जब नई दिल्ली ने आरोप लगाया कि जम्मू और कश्मीर में हथियारों और ड्रग्स की तस्करी के लिए इन सड़कों का इस्तेमाल किया जा रहा था. पिछले साल, संयुक्त अरब अमीरात ने दोनों देशों के बीच बातचीत कराने की कोशिश की. लेकिन ये प्रयास विफल रहा. भारत-पाक संबंध आज ठंडे बस्ते में हैं क्योंकि हाल ही में आई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस्लामाबाद अब वाशिंगटन को दक्षिण एशिया के अशांत क्षेत्र में दखलअंदाजी की विनती कर रहा है.

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वर्तमान में भारत और पाकिस्तान के संबंध कैसे हैं?

दोनों देशों के मध्य व्यापारिक रिश्ते पूरी तरफ ढप हैं. प्राणरक्षक दवाइयों के अतिरिक्त अन्य किसी तरह के उत्पादों पर आयात पर पाकिस्तान सरकार द्वारा पूरी तरह से रोक लगाई गई हैं. जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35A की बर्खास्तगी और दो बड़े आतंकवादी हमलों के बाद दोनों देशों के रिश्ते सामान्य नहीं हो पाए हैं.

भारत और पाकिस्तान संबंध क्या है?

भारत और पाकिस्तान में सम्बन्ध हमेशा से ही ऐतिहासिक और राजनैतिक मुद्दों कि वजह से तनाव में रहे हैं। इन देशों में इस रिश्ते का मूल कारण भारत के विभाजन को देखा जाता है। कश्मीर विवाद इन दोनों देशों को आज तक उलझाए है और दोनों देश कई बार इस विवाद को लेकर सैनिक समझौते व युद्ध कर चुके हैं।

भारत और पाकिस्तान के संबंधों को कैसे सुधारा जा सकता है?

भारत और पाकिस्तान के रिश्ते सुधारने की एकमात्र उपाय है कि धारा ३९० तथा ३५-ए समाप्त करके कश्मीर को भी भारत का एक सामान्य राज्य बना दिया जाये तथा अन्य प्रदेशों के लोगों को यहाँ लाकर बसा दिया जाये जिससे कि स्थानीय मुस्लिम आबादी का तनुकरण (dilution) हो जाये।

भारत पाकिस्तान संबंधों को प्रभावित करने वाले मुख्य मुद्दे कितने हैं?

आज़ादी मिलने के बाद कई अन्य मुद्दों की तरह भारत - पाकिस्तान के बीच पानी के मुद्दे को लेकर भी विवाद शुरू हो गया था। भारत से पकिस्तान जाने वाले इन छः नदियां - झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलज को लेकर विवाद चल रहा था।