वीर कुंवर सिंह ने क्या-क्या सामाजिक कार्य किए ? - veer kunvar sinh ne kya-kya saamaajik kaary kie ?

इसे सुनेंरोकेंवीर कुँवर सिंह के सामाजिक कार्य थे- कुँवर सिंह अपने पिता की तरह ही वीर, स्वाभिमानी और उदार थे। कुँवर सिंह कुशल योद्धा के साथ साथ सामाजिक कार्य भी करते थे। कुँवर सिंह ने अपने समय में निर्धनों की सहायता की, कुएं खुदवाये, तालाब बनवाये। वे अत्यंत उदार एवं संवेदनशील व्यक्ति थे।

कुंवर सिंह का जन्म कब और कहां हुआ था?

13 नवंबर 1777, जगदीशपुरकुँवर सिंह / जन्म की तारीख और समय

कुंवर सिंह कौन थे उनकी मृत्यु कैसे हुई?

इसे सुनेंरोकेंVeer Kunwar Singh Death – वीर कुंवर सिंह इस दौरान घायल हो गए और एक गोली उनके बांह में लगी। 23 अप्रैल 1858 को वे अपने महल में वापिस आए। लेकिन आने के कुछ समय बाद ही 26 अप्रैल 1858 को उनकी मृत्यु हो गयी।

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कुंवर सिंह कहाँ के रहने वाले थे?

इसे सुनेंरोकेंकुंवर सिंह (1777 – 26 अप्रैल 1858) 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान एक उल्लेखनीय नेता थे। वह वर्तमान में जगदीसपुर के शाही उज्जैनिया (पंवार) राजपूत घर से संबंधित थे, वर्तमान में भारत के बिहार, भोजपुर जिले का हिस्सा है।

कुंवर सिंह की मृत्यु कब हुई?

26 अप्रैल 1858कुँवर सिंह / मृत्यु तारीख

बसुरिया बाबा कौन थे?

इसे सुनेंरोकेंजगदीशपुर के जंगलों में ‘बासुरिया बाबा’ नाम के एक सिद्ध संत रहते थे। उन्होंने ही कुँवर सिंह में देशभक्ति एवं स्वाधीनता की भावना उत्पन्न की थी। उन्होंने बनारस, मथुरा, कानपुर, लखनऊ आदि स्थानों पर जाकर विद्रोह की सक्रिय योजनाएँ बनाईं।

वीर कुँवर सिंह के व्यक्तित्व की कौन कौन सी विशेषताओ ने आपको प्रभावित किया?

इसे सुनेंरोकें(ii) साहसी – वीर कुँवर सिंह एक साहसी व्यक्ति थे। इनका साहस ही था कि उन्होंने अंग्रेज़ों के दाँत खट्टे कर दिए थे। (iii) बुद्धिमान एंवम चतुर – कुँवर सिंह एक बुद्धिमान एवम्‌ चतुर व्यक्ति थे अपनी चतुरता व सूझबूझ के कारण ही एक बार कुँवर सिंह जी को गंगा पार करनी थी पर अंग्रेज़ी सरकार उनके पीछे लगी थी।

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कुंवर सिंह की मृत्यु कब हुई थी?

कुंवर सिंह कौन थे उनकी मृत्यु कब हुई?

इसे सुनेंरोकें1857 की क्रांति में भी इन्होंने सम्मिलित होकर अपनी शौर्यता का प्रदर्शन किया। इनके चरित्र की सबसे बड़ी ख़ासियत यही थी कि इन्हें वीरता से परिपूर्ण कार्यों को करना ही रास आता था। बाबू कुंवर सिंह (जन्म- 1777 ई., बिहार; मृत्यु- 23 अप्रैल, 1858 ई.) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सैनिकों में से एक थे।

वीर कुंवर का जन्म कब हुआ?

13 नवंबर 1777कुँवर सिंह / जन्म तारीख

बाबु कुंवर सिंह ने रियासत की जिम्मेदारी कब संभाली?

इसे सुनेंरोकेंबाबू कुँवर सिंह ने अपने पिता की मृत्यु के बाद सन् 1827 में अपनी रियासत की ज़िम्मेदारी संभाली। उन दिनों ब्रिटिश हुकूमत का अत्याचार चरम सीमा पर था। आज़ाद कर दिया। 27 जुलाई 1857 को कुंवर सिंह ने आरा पर विजय प्राप्त की।

कुंवर सिंह (13 नवंबर 1777 - 26 अप्रैल 1858) सन 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम] के सिपाही और महानायक थे। अन्याय विरोधी व स्वतंत्रता प्रेमी बाबू कुंवर सिंह कुशल सेना नायक थे। इनको 80 वर्ष की उम्र में भी लड़ने तथा विजय हासिल करने के लिए जाना जाता है।[1]

वीर कुंवर सिंह का जन्म 13 नवम्बर 1777 को बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव के एक क्षत्रिय जमीनदार परिवार में हुआ था। इनके पिता बाबू साहबजादा सिंह प्रसिद्ध परमार राजपूत शासक राजा भोज के वंशजों में से थे। उनके माताजी का नाम पंचरत्न कुंवर था. उनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह एवं इसी खानदान के बाबू उदवंत सिंह, उमराव सिंह तथा गजराज सिंह नामी जागीरदार रहे तथा अपनी आजादी कायम रखने के खातिर सदा लड़ते रहे। [2] [3]

1857 के संग्राम में बाबू कुंवर सिंह[संपादित करें]

1857 में अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर कदम बढ़ाया। मंगल पांडे की बहादुरी ने सारे देश में विप्लव मचा दिया।[4] बिहार की दानापुर रेजिमेंट, बंगाल के बैरकपुर और रामगढ़ के सिपाहियों ने बगावत कर दी। मेरठ, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, झांसी और दिल्ली में भी आग भड़क उठी। ऐसे हालात में बाबू कुंवर सिंह ने अपने सेनापति मैकु सिंह एवं भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया।[5]

27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ आरा नगर पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने कब्जा कर लिया। अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर लंबे समय तक स्वतंत्र रहा। जब अंग्रेजी फौज ने आरा पर हमला करने की कोशिश की तो बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में घमासान लड़ाई हुई। बहादुर स्वतंत्रता सेनानी जगदीशपुर की ओर बढ़ गए। आरा पर फिर से कब्जा जमाने के बाद अंग्रेजों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया। बाबू कुंवर सिंह और अमर सिंह को जन्म भूमि छोड़नी पड़ी। अमर सिंह अंग्रेजों से छापामार लड़ाई लड़ते रहे और बाबू कुंवर सिंह रामगढ़ के बहादुर सिपाहियों के साथ बांदा, रीवां, आजमगढ़, बनारस, बलिया, गाजीपुर एवं गोरखपुर में विप्लव के नगाड़े बजाते रहे। ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने उनके बारे में लिखा है, 'उस बूढ़े राजपूत ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अद्भुत वीरता और आन-बान के साथ लड़ाई लड़ी। यह गनीमत थी कि युद्ध के समय कुंवर सिंह की उम्र अस्सी के करीब थी। अगर वह जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता।'[6]

इन्होंने 23 अप्रैल 1858 में, जगदीशपुर के पास अंतिम लड़ाई लड़ी। ईस्ट इंडिया कंपनी के भाड़े के सैनिकों को इन्होंने पूरी तरह खदेड़ दिया। उस दिन बुरी तरह घायल होने पर भी इस बहादुर ने जगदीशपुर किले से "यूनियन जैक" नाम का झंडा उतार कर ही दम लिया। वहाँ से अपने किले में लौटने के बाद 26 अप्रैल 1858 को इन्होंने वीरगति पाई।[7]

वीर कुंवर सिंह ने क्या क्या सामाजिक कार्य किया?

उन्होंने बनारस , मथुरा , कानपुर , लखनऊ आदि स्थानों पर जाकर विद्रोह की सक्रिय योजनाएँ बनाईं। वे 1845 से 1846 तक काफ़ी सक्रिय रहे और गुप्त ढंग से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़ विद्रोह की योजना बनाते रहे। उन्होंने बिहार के प्रसिद्ध सोनपुर मेले को अपनी गुप्त बैठकों की योजना के लिए चुना।

1 वीर कुंवर सिंह ने क्या क्या काम किए?

वह बिहार में अंग्रजों के खिलाफ लड़ाई के मुख्य महानायक थे। उन्हें वीर कुंवर सिंह के नाम से जाना जाता है। वीर कुंवर सिंह ने बिहार में वर्ष 1857 के भारतीय विद्रोह का नेतृत्व किया। वह तब लगभग 80 वर्ष के थे जब उन्हें हथियार उठाने के लिये बुलाया गया और उनका स्वास्थ्य भी खराब था।

वीर कुंवर सिंह की कौन कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया है लिखिए?

(ii) साहसी - वीर कुँवर सिंह एक साहसी व्यक्ति थे। इनका साहस ही था कि उन्होंने अंग्रेज़ों के दाँत खट्टे कर दिए थे। (iii) बुद्धिमान एंवम चतुर - कुँवर सिंह एक बुद्धिमान एवम्‌ चतुर व्यक्ति थे अपनी चतुरता व सूझबूझ के कारण ही एक बार कुँवर सिंह जी को गंगा पार करनी थी पर अंग्रेज़ी सरकार उनके पीछे लगी थी।

वीर कुंवर सिंह पाठ से हमें क्या सीख मिलती है?

वीर कुंवर सिंह के जीवन से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि यदि मनुष्य के मन में किसी भी कार्य को करने की दृढ इच्छा हो तो कोई भी बाधा उसे आगे बढ़ने से रोक नहीं सकती है। उनका जीवन हमें देश के लिए त्याग, बलिदान एवं संघर्ष करने की प्रेरणा देता है। उससे हमें परोपकारी बनने की प्रेरणा भी मिलती है।