उत्तर :हल करने का दृष्टिकोण: Show
पूंजीवाद को एक ऐसी आर्थिक प्रणाली के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें उत्पादन, व्यापार और उद्योग के साधनों पर स्वामित्व एवं नियंत्रण निजी व्यक्तियों या निगमों द्वारा किया जाता है। इसके अलावा इसे मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था के रूप में जाना जाता है। समाजवादी अर्थव्यवस्था को एक ऐसी अर्थव्यवस्था के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें संसाधनों का स्वामित्व, प्रबंधन और विनियमन राज्य द्वारा किया जाता है। इस तरह की अर्थव्यवस्था का आशय यह है कि संसाधनों पर सभी लोगों का समान अधिकार है, अत: प्रत्येक व्यक्ति को उत्पादन में हिस्सा मिलना चाहिये। औद्योगीकरण का पूंजीवादी पैटर्न: पूंजीवाद का उदय दुनिया के इतिहास में औद्योगीकरण के साथ हुआ, साथ ही नए आर्थिक संस्थान (जैसे- बैंकिंग, बीमा) और दुनिया को बदलने वाली नई तकनीक भी आई। सत्रहवीं शताब्दी में यूरोप में पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप, विज्ञान, दर्शन और व्यापार के तरीके उपयोगितावादी दृष्टिकोण से लागू किये जा रहे थे। यूरोपीय देशों ने नए बाज़ारों की खोज की और औद्योगिक क्रांति (जिससे भारी मशीनरी का प्रयोग होने लगा एवं श्रम आधारित अर्थव्यवस्था कमज़ोर हुई) का नेतृत्व किया। औद्योगिक क्रांति के दौरान बड़े पैमाने पर उत्पादन किया गया। हालाँकि उत्पादन के इस पूंजीवादी तरीके के कारण दुनिया भर में अलग-अलग वर्गों के बीच असमानता उत्पन्न हुई और साम्राज्यवादी व्यवस्था का विस्तार हुआ। इसके कारण कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंजेल्स ने पूंजीवाद का विरोध शुरू कर दिया। हालाँकि वर्ष 1919 में रूसी क्रांति और तत्कालीन सोवियत संघ (अब रूस) की स्थापना के बाद समाजवाद अस्तित्व में आया। औद्योगीकरण का समाजवादी पैटर्न औद्योगीकरण का समाजवादी पैटर्न सहकारी उद्यम और सामुदायिक उद्यम के विभिन्न रूपों पर ज़ोर देता है, जिसमें जनता समग्र रूप से लाभान्वित होती है। समाजवादी पैटर्न के कारण ट्रेड यूनियनों और लेबर सिंडिकेट की सहायता से या उनकी सहायता के बिना भी राजनीतिक दल मज़बूत हुए। राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था के साथ सरकारें मज़बूत हुईं। इन सरकारों ने जनकल्याण को लक्षित करते हुए अर्थव्यवस्था को नियोजित किया। इस तरह की परिपक्व अर्थव्यवस्था को नियोजित अर्थव्यवस्था कहा जाता था। हालाँकि अधिकांश समाजवादियों को डर था कि इस तरह की अर्थव्यवस्था में शोषण के समाधान के बजाय राज्य प्रायोजित शोषण और अधिक बढ़ सकता है, साथ ही राज्य का अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण बढ़ सकता है। निष्कर्ष पूंजीवाद पूंजी को बढ़ावा देता है लेकिन इससे बुर्जुआ और सर्वहारा वर्ग के बीच खाई बढ़ती जाती है। समाजवाद अमीर और गरीब के बीच की खाई को पाटता है लेकिन यह लोगों की कड़ी मेहनत और प्रतिस्पर्धा की भावना को कम करता है, जिसके कारण देश का सकल घरेलू उत्पाद नीचे गिर सकता है और प्रति व्यक्ति आय कम हो सकती है। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, अतः यह कहना बहुत मुश्किल है कि कौन सा तरीका दूसरे से बेहतर को सकता है। चर्चा में क्यों?कोविड 19 महामारी से उत्पन्न चुनौतियों ने राज्य की लोक कल्याणकारी भूमिका में वृद्धि की है I जिससे समाजवाद को लेकर नये सिरे से चिन्तन मनन प्रारंभ कर दिया है I पृष्ठभूमिसमाजवाद आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक समानता का पक्षधर है I राज्य की सक्रीय भूमिका के द्वारा समाज में यह समानता लाई जा सकती है I इस प्रकार समाजवाद जन कल्याण को केंद्र में रखते हुए व्यक्तिगत हितों को संदर्भित करता है I समाजवाद-साम्यवाद में समानता-
समाजवाद-साम्यवाद में असमानता-
समाजवाद के विचार की उत्पत्तिभारत में समाजवाद प्राचीन काल से ही विभिन्न रूपों में रहा है I हिन्दू धर्म में आश्रम व्यवस्था के अंतर्गत ‘धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष’ की अवधारणा के माध्यम से सभी चार स्तम्भों के मध्य संतुलन स्थापित किया गया था, जो धन के अतिकेंद्रीकरण (पूंजीवादी विचार) के विचार के विपरीत है I बौद्ध और जैन धर्म का अस्तेय आवश्यकता से अधिक संसाधनों के एकत्रीकरण का विरोध करता है, जो समाजवाद की अवधारणा के अनुकूल है I अशोक के शिलान्यासों से लोक कल्याणकारी राज्य के संदर्भ में जानकारी प्राप्त होती हैं I वहीं रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख सुदर्शन झील के निर्माण के संदर्भ में प्रमाण देता है I इसी प्रकार मध्यकाल में फिरोजशाह तुगलक द्वारा नहरों का निर्माण, बेरोजगारों के लिए पेंशन जैसी समाजवादी योजनाओं की जानकारी प्राप्त होती है I इस प्रकार भारतीयों के लिए समाजवाद की अवधारणा बिल्कुल नई नहीं थी I गांधी का समाजवाद – गांधी जी ने मध्यमार्ग अपनाते हुए वर्ग संघर्ष के स्थान पर वर्ग समंवय पर बल दिया I ट्रस्टीशिप का सिद्धांत इसी समन्वय का परिणाम था I ट्रस्टीशिप का सिद्धांत के अनुसार अमीर वर्ग अपनी आवश्यकतानुसार धन संपत्ति सहज कर, अन्य संसाधनों का जरुरतमंदों में वितरण कर दे I अमीर वर्ग स्वयं को सम्पत्ति का संरक्षक समझें, सम्पत्ति का स्वामी नहीं I गांधी जी के इस सिद्धांत ने पूंजीवाद को नैतिक आधार प्रदान किया I जिससे समाजवाद पूंजीवाद के मध्य दूरी कम हुई I स्वतंत्रता पश्चात् नेहरु की समाजवादी नीतियों ( जैसे- मिश्रित अर्थव्यवस्था- राज्य और निजी क्षेत्र की समान भागीदारी ) पर गांधीवादी समाजवाद का प्रभाव परिलक्षित होता है I भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में समाजवाद की भूमिका1917 में रूस में बोल्शेविक क्रांति सम्पन्न हुई, जिसने कार्ल मार्क्स द्वारा दिए गये साम्यवाद के सिद्धांत को वास्तविक रूप प्रदान किया I इस क्रांति से भारत में समाजवाद की भावना का प्रसार हुआ I इसी कालखण्ड में गांधी जी के नेतृत्त्व में कांग्रेस किसानों, मजदूरों के मध्य जनाधार बढ़ाने के लिए उनकी समस्याओं को उठाकर चंपारण, अहमदाबाद मिल हड़ताल और खेड़ा सत्याग्रह जैसे आन्दोलन कर रही थी जो समाजवाद की भावना के अनुरूप थे I 1920 में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना एक व्यवस्थित प्रयास था मजदूरों के हितों के अनुरूप श्रम सुधारों को लागू करवाने के लिए I भारतीय क्रांतिकारियों के द्वितीय चरण में चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह जैसे क्रांतिकारियों पर स्पष्ट रूप से समाजवाद का प्रभाव था I इन दोनों के प्रयासों से 1928 में दिल्ली में हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन का नाम बदलकर ‘हिंदुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन’कर दिया गया I भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में जवाहरलाल और सुभाषचंद्र बोस जैसे युवा नेता भी समाजवाद में गहरी रूचि रखते थे I 1931 के कराची अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने समाजवाद की ओर स्पष्ट रुझान प्रदर्शित किया I कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी- 1934 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समाजवादी धड़े ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अंदर एक कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की I जिसमें जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेंद्र देव, राममनोहर लोहिया, विनोभा भावे, कमलादेवी चटोपाध्याय जैसे नेताओं की अहम भूमिका थी I कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य गांधी जी की समझौतावादी,घोर अहिंसक नीतियों के विरोधी थे, वे सुभाषचंद्र बोस की आवश्यकता पड़ने पर सशस्त्र क्रांति का समर्थन करते थे I 1936 के बाद जवाहरलाल नेहरु और सुभाषचंद्र बोस के हाथों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कमान आने के बाद समाजवादी विचारों का महत्व बढ़ गया I सुभाषचंद्र बोस ने 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध के अवसर का लाभ अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्ति में लगाने हेतु करने का प्रस्ताव रखा जिसे गांधी जी ने ख़ारिज कर दिया I सुभाषचंद्र ने कांग्रेस से अलग होकर ‘कम्युनिस्ट ब्लॉक’ ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ की स्थापना की I अंतत: सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिन्द फ़ौज का गठन कर अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया I 1942 के भारत छोडो आन्दोलन के दौरान ‘कांग्रस सोशलिस्ट दल’ के नेताओं जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, बीजू पटनायक और अरुणा आसफ अली ने भूमिगत रहकर कार्य किया I समाजवाद को बढ़ावा देने में आचार्य नरेंद्र देव की भूमिका1934 में कांग्रेस सोशलिस्ट दल की स्थापना में राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण और आचार्य नरेंद्र देव की महत्वपूर्ण भूमिका रही I आचार्य नरेंद्र देव जी की अध्यक्षता में कांग्रेस सोशलिस्ट दल का पहला अधिवेशन संपन्न हुआ I 1948 में कांग्रेस से सोशलिस्ट दल पूर्णतया अलग हो गया I इसका प्रथम अधिवेशन पटना में आचार्य नरेंद्र देव की अध्यक्षता में ही संपन्न हुआ I समाजवाद,साम्यवाद और पूंजीवाद में अंतर
राजनीतिक विचारकों/चिंतकों का एक वर्ग इस बात पर सहमत है कि 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद विचारधाराओं में कठोरतापूर्ण विभाजन आज के वैश्वीकृत विश्व में अव्यवहारिक है I अमेरिका जैसा पूंजीवादी देश समाजवादी योजना (ओबामा हेल्थ केयर, कोविड महामारी के दौरान आर्थिक पैकेज ) को लागू कर रहा हैI वहीं चीन जैसा साम्यवादी देश राज्य प्रायोजित पूंजीवाद के माध्यम से विश्व व्यापार के समक्ष चुनौती उत्पन्न कर रहा हैI भारतीय संविधान में समाजवादभारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘’सामाजिक आर्थिक राजनीतिक न्याय” जैसे मूलभूत समाजवादी तत्व उपस्थित थे I साथ ही भाग 4 में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अंतर्गत निम्नलिखित समाजवादी प्रावधानकिये गये हैं I
वर्ष 1976 में 42वें संविधान संशोधन द्वारा समाजवाद शब्द को भारतीय संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा गया I सर्वोच्च न्यायालय ने समाजवाद को संविधान की आधारभूत ढाँचे का भाग माना है I किन्तु सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में वर्णित समाजवाद किसी राजनीतिक विचारधारा से नहीं, अपितु लोककल्याणकारी राज्य को संदर्भित करता है I गरीबी और असमानता को कम करने में समाजवाद की भूमिकासमाजवाद में राज्य की अर्थव्यवस्था में सक्रीय भूमिका रहती है I स्वतंत्रता से लेकर 1991 के उदारीकरण पूर्व दौर तक भारतीय अर्थव्यवस्था का झुकाव समाजवाद की ओर था I इस दौर में भारत की आर्थिक विकास दर काफी कम रही I जिसके लिए विदेशी निवेश की कमी, भारत में अवसंरचनात्मक ढाँचे का अभाव, लाल फीताशाही, भारत में निजी क्षेत्र की सीमित भूमिका, गरीबी, अशिक्षा, अकुशल श्रमिक, निम्न पूंजी उत्पाद अनुपात, भूमि और श्रम सुधारों का आभाव उत्तरदायी था I लाल फीताशाही, अफसरशाही, भ्रष्टाचार, राज्य प्रायोजित समाजवाद की खामियां हैं जो गरीबी को कम करने में बहुत सफ़ल नहीं हुई I समसामायिक भारतीय राजनीति में समाजवादकोरोना काल में भारत जैसे लोक कल्याणकारी राज्य की भूमिका में वृद्धि हुई है I राज्य ने सभी व्यक्तियों को मुफ्त टीकाकरण करवाने का लक्ष्य निर्धारित किया I जन वितरण प्रणाली के अंतर्गत 80 करोड़ जनता को मुफ्त राशन दिया गया I मनरेगा जैसी समाजवादी योजनाओं में धन आवंटन बढ़ाया गया I राज्य ने स्वास्थ्य, शिक्षा और लोककल्याण पर खर्च में वृद्धि की I कोविड महामारी ने समाज में व्याप्त आर्थिक असमानता को उजागर कर दिया I लॉकडाउन के कारण करोड़ों बच्चे शिक्षा से वंचित हो गये I डिजिटल डिवाइड (डिजिटल असमानता) जैसी नई असमानताओं के चलते राज्य की भूमिका में महत्वपूर्ण रूप से वृद्धि हुई I आपदा से, असमानता से निपटने हेतु सरकार ने निजी क्षेत्र पर विनियामन में थोड़ी सी वृद्धि करने के साथ ही सरकार ने सक्रीय भूमिका निभा कर असमानता को कम करने का प्रयास किया, जो समाजवादी राज्य के अनुकूल है I भारतीय मिश्रित अर्थव्यवस्थास्वतंत्र भारत में नेहरूवियन आर्थिक मॉडल को अपनाते हुए ‘मिश्रित अर्थव्यवस्था’ का मॉडल अपनाया I जिसमें राज्य प्रायोजित अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र को भागीदार बनाया गया I संसाधनों के तर्क संगत उपयोग, विकास में क्षेत्रीय असमानता को कम करने, जन हित के कार्यों (जैसे आवास, बिजली आपूर्ति, पेयजल, स्वास्थ्य शिक्षा)को बढ़ावा देने को प्राथमिकता दी I लेकिन निजी क्षेत्र की सीमित भूमिका, सीमित वित्तीय संसाधन, मांग और आपूर्ति के बीच सामंजस्य का अभाव, अकुशल प्रबंधन, प्रौद्योगिकी और निवेश की कमी राज्य नियोजित ( मिश्रित ) अर्थव्यवस्था की सीमा है I आगे की राहआक्सफेम की ‘असमानता का वायरस' (इनइक्वलिटी वायरस) नामक रिपोर्ट में बताया गया है कि लॉकडाउन के दौरान भारत के अरबपतियों की संपत्ति में करीब 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि 84 प्रतिशत परिवारों की आमदनी घटी हैI सिर्फ अप्रैल, 2020 महीने में ही हर घंटे करीब 1.7 लाख लोगों की नौकरी गई है I कोविड 19 महामारी से उत्पन्न आर्थिक सामाजिक चुनौतियों से निपटने के लिए राज्य को लोक कल्याणकारी भूमिकाओं में वृद्धि करने की आवश्यकता है I सरकार को संविधान के भाग 4 में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अनुरूप योजनायें बनानी चाहिए I राज्य के सीमित संसाधन इस लक्ष्य की पूर्ति में बाधक हैं I ऐसे में निजी क्षेत्र का सहयोग और भागीदारी अति आवश्यक है I राज्य और निजी क्षेत्र अपने संबंधो को पुनर्परिभाषित कर लोक कल्याण को बढ़ावा देना चाहिए I सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1
विकास में समाजवादी मॉडल का क्या अर्थ है?समाजवाद (Socialism) एक आर्थिक-सामाजिक दर्शन है। समाजवादी व्यवस्था में धन-सम्पत्ति का स्वामित्व और वितरण समाज के नियन्त्रण के अधीन रहते हैं। आर्थिक, सामाजिक और वैचारिक प्रत्यय के तौर पर समाजवाद निजी सम्पत्ति पर आधारित अधिकारों का विरोध करता है।
समाजवादी अर्थव्यवस्था मॉडल क्या है?Socialist Economy Features Characteristics Countries In Hindi Socialist Economy In Hindi: अर्थ और परिभाषा–समाजवादी अर्थव्यवस्था से अभिप्राय एक ऐसी आर्थिक प्रणाली से है, जिसमे उत्पति के सभी साधनों पर सरकार द्वारा अभिव्यक्त सम्पूर्ण समाज का स्वामित्व होता है. तथा आर्थिक क्रियाओं का संचालन एक केन्द्रीय सता द्वारा सामूहिक ...
साम्यवादी मॉडल क्या है?साम्यवाद, सामाजिक-राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत एक ऐसी विचारधारा के रूप में वर्णित है, जिसमें संरचनात्मक स्तर पर एक समतामूलक वर्गविहीन समाज की स्थापना की जाएगी। ऐतिहासिक और आर्थिक वर्चस्व के प्रतिमान ध्वस्त कर उत्पादन के साधनों पर समूचे समाज का स्वामित्व होगा।
समाजवाद क्या है और इसकी विशेषताएं?वेकर कोकर के अनुसार - ''समाजवाद वह नीति या सिद्धांत है जिसका उद्देश्य एक लोकतांत्रिक केन्द्रीय सत्ता द्वारा प्रचलित व्यवस्था की अपेक्षा धन का श्रेष्ठ कर वितरण और उसके अधीन रहते हुए धन का श्रेृठतर उत्पादन करना है।'' बर्नार्ड शॉ के अनुसार - ''समाजवाद का अभिप्राय संपत्ति के सभी आधारभूत साधनों पर नियंत्रण से है।
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