उत्तराखंड में परमार वंश का संस्थापक कौन था? - uttaraakhand mein paramaar vansh ka sansthaapak kaun tha?

परमार वंश - उत्तराखंड का इतिहास (भाग -1)

उत्तराखंड का इतिहास

History of Uttarakhand

भाग -1

परमार वंश का इतिहास उत्तराखंड में सर्वाधिक विवादित और मतभेद पूर्ण रहा है। जो परमार वंश के इतिहास को कठिन बनाता है परंतु विभिन्न इतिहासकारों की पुस्तकों का गहन विश्लेषण करके तथा पुस्तक उत्तराखंड का राजनैतिक इतिहास (अजय रावत) को मुख्य आधार मानकर परमार वंश के संपूर्ण नोट्स प्रस्तुत लेख में तैयार किए गए हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 688 ईसवी से 1947 ईसवी तक शासकों ने शासन किया है (बैकेट के अनुसार)। गढ़वाल में परमार वंश का शासन सबसे अधिक रहा। जिसमें लगभग 12 शासकों का अध्ययन विस्तारपूर्वक दो भागों में विभाजित करके करेंगे और अंत में लेख से संबंधित प्रश्नों का भी अध्ययन करेंगे।

परमार वंश (गढ़वाल मंडल)

(भाग -1)

छठी सदी में हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात संपूर्ण उत्तर भारत में भारी उथल-पुथल हुई । देश में कहीं भी कोई बड़ी महाशक्ति नहीं बची थी । जो सभी प्रांतों पर नियंत्रण स्थापित कर सके। बड़े-बड़े जनपदों के साथ छोटे-छोटे प्रांत भी स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे। कन्नौज से सुदूर उत्तर में स्थित उत्तराखंड की पहाड़ियों में भी कुछ ऐसा ही हुआ। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में छोटे-छोटे प्रांत (गढ़) की स्थापना होने लगी। जिन पर ठकुराईयों ने शासन स्थापित किया। 

जब हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात संपूर्ण भारत में अशांति और अव्यवस्था फैल गई । तब राजनीतिक अस्थिरता के कारण उत्तराखंड का गढ़वाल मंडल में 52 गढ़ों में विभाजित हो गया। उस बिखराव के मध्य एक महत्वपूर्ण राजनीतिक इकाई चांदपुर गढ़ (चमोली) में राजा भानु प्रताप का शासन स्थापित किया । भानुप्रताप को सोनपाल के नाम से भी जाना जाता है। यह 52 गढ़ों में सर्वाधिक शक्तिशाली गढ़ था। 

परमार वंश (पंवार) का उदय

परमार वंश को पंवार वंश के नाम से भी जाना जाता है। परमार वंश के संस्थापक कनकपाल को कहा जाता है । कनकपाल सन 688 ईसवी (विक्रम संवत 745 ई.) में गद्दी पर बैठता है। कनकपाल गुर्जर प्रदेश के किसी क्षेत्र से हरिद्वार व पर्वतीय क्षेत्र के पवित्र स्थानों की यात्रा हेतु आए थे। चांदपुर गढ़ (चमोली) की यात्रा के दौरान उनकी मुलाकात सोनपाल से होती हैै। सोनपाल मालवा (गुर्जर प्रदेश) के राजकुमार सेे अत्यधिक प्रभावित  होता हैं। अपनी पुत्री का कनकपाल से विवाह कर देता है। दहेज के रूप में चांदपुर का परगना (गढ़) प्रदान करता है और स्वयं बद्रीकाश्रम चले जाता है। यहीं सेे कनकपाल परमार वंश को आगे बढ़ाता है। 

गुर्जर प्रदेश के अंतर्गत राजस्थान , महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश का एक भाग मालवा तथा गुजरात का संपूर्ण क्षेत्र आता है। इन क्षेत्रों में राजपूत राजाओं का शासन था। ऐसा माना जाता है - राजपूतों की उत्पत्ति आबू पर्वत के अग्निकांड से हुई थी ।  इतिहासकार सुदर्शन शाह ने "सभासार ग्रंथ" में कनकपाल को परमार वंश का संस्थापक बताया है। 

(कनकपाल को गद्दी में बैठने लेकर अत्यधिक मतभेद हैं। कुुछ इतिहासकार 888 ईस्वी मानते हैं तो कुछ कनकपाल को धारानगरी से जोड़ते तो कुछ मालवा से । लेकिन उचित प्रमाण न मिलने के  कारण इनको सही नहीं माना गया है। लेकिन यह बात सत्य है की कनकपाल सातवीं या आठवीं सदी में उत्तराखंड आया था जिसका उल्लेख 'आदि बद्री' में किया गया है। पातीराम ने अपनी पुस्तक गढ़वाल एंड सेंट एंड मॉडर्न में लिखा है कि कनकपाल मालवा से आया था )

कनकपाल के बाद के राजा

कनकपाल के बाद उत्तराखंड के गढ़वाल पर स्थापित परमार वंश के 35 राजाओं के बारे में कोई भी विस्तृत जानकारी नहीं मिलती है । हालांकि बाद में कुछ साक्ष्यों से प्राप्त हुआ है कि परमार वंश के 24वें राजा सोनपाल (सुवर्णपाल) ने खसों को हराकर भिलंग घाटी पर अधिकार कर के  राज्य का विस्तार किया था । और भिलंग घाटी का अपने  दूसरे पुत्र को राजा बनाया और नई राजधानी बनाकर सोनवंशीय वंश की स्थापना की । जबकि पहले पुत्र ने चांदपुरगढ़ को राजधानी बनाकर शासन व्यवस्था बनाए रखा। भिलंग घाटी को सोनी भिलंग भी कहा जाता है। 

परमार वंश का 28 वां राजा लखणदेव के नाम की मुद्राएं प्राप्त हुई है। यह गढ़वाल का प्रथम स्वतंत्र शासक था और इसका पुत्र अनंतपाल द्वितीय 29 वां राजा बना। जिसका वर्णन मंदाकिनी नदी के पास धारशिला गांव (चमोली) से शिलालेख प्राप्त हुआ है। इसके अतिरिक्त जगतपाल जोकि गढ़वाल के वंश का 34वां राजा था । देवप्रयाग के रघुनाथ मंदिर में इसका ताम्रपत्र प्राप्त हुआ है और इस ताम्र पत्र में इसने खुद को 'रजवार' कहा है। 

इनके अलावा अभी तक 2 से 36 तक के राजाओं की कोई खास जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। गढ़वाल के परमार वंश का 37 वां राजा अजयपाल को बताया गया है इसका विस्तृत वर्णन मिलता है - अजयपाल को परमार वंश का वास्तविक संस्थापक भी कहा जाता है।

अजयपाल (1490 ईस्वी - 1519 ईस्वी )

परमार वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक अजयपाल था। यह गढ़वाल वंश का 37 वां राजा था। जो वर्ष 1490 में राजा बना। इसने सबसे पहले 52 गढ़ों में विभाजित सभी गढों पर एकछत्र शासन स्थापित करके गढ़वाल राज्य की स्थापना की। और 1512 ईसवी में चांदपुरगढ़ से राजधानी देवलगढ़ स्थानांतरित की। लेकिन देवलगढ़ से ठीक से संचालन ना होने के कारण एक बार पुनः 1515 ईस्वी में अपनी राजधानी श्रीनगर में स्थापित की। अजय पाल कृष्ण की भांति चतुर , युधिष्ठिर की भांति संयमशील,  भीम की भांति बलवान,  कुबेर एवं इंद्र की भांति दानवीर और पराक्रमी था। इसलिए कवि भरत ने अपनी पुस्तक "मानोदय" में अजय पाल की इन सब से तुलना की है। अजयपाल अफगान शासक सिकंदर  लोदी के समकालीन था। 1491 ईस्वी में कुमाऊं क शासक कीर्तिचंद ने गढ़वाल पर आक्रमण कर  राजा अजय पाल को पराजित कर दिया था । कीर्ति चंद गढ़वाल के राजा अजय पाल से संधि करने वाला पहला चंद्र शासक कहलाया।                     

अजय पाल ने जब देवलगढ़ को राजधानी स्थापित की थी । और अपनी कुलदेवी नंदा देवी राजराजेश्वरी मंदिर का निर्माण देवलगढ़ में कराया । अजयपाल को भी अशोक की भांति युद्धों से विरक्ति हो गई थी । जब इसने 52 गढ़ों पर विजय प्राप्त कर ली। अंत में वह "गोरखनाथ संप्रदाय" का अनुयायी बन गया। इसलिए अजयपाल की सम्राट अशोक से भी तुलना की जाती है। अजय पाल ने ब्राह्मणों के उत्थान के लिए "सरोला ब्राह्मण प्रथा" शुरू की थी। और भूमि की पैमाइश के लिए "धूली पाथा पैमाना" की विधि अपनाई । "सांभरी ग्रंथ" में अजयपाल को "आदिनाथ " के नाम से संबोधित किया गया है। अजय पाल की मृत्यु 1519 ईस्वी में हुई।

सहजपाल (42 वां शासक )

सहजपाल दिल्ली के सुल्तान अकबर के समकालीन था । देवप्रयाग के रघुनाथ मंदिर से सहजपाल से संबंधित पांच अभिलेख प्राप्त हुए हैं । जिसमें कहा गया है कि इसने देवप्रयाग के रघुनाथ मंदिर में 1561 ईसवी में 1 घंटी का चढ़ावा किया था "मानोदय काव्य" में इसे राजनीति में कुशल व रणभूमि में शत्रु का विनाश करने वाला कहा है। इतिहासकारों ने इसके काल को चरमोत्कर्ष पर काल कहा है। इसके शासनकाल को लेकर काफी मतभेद है लेकिन प्रमाणित तथ्य के आधार पर यह माना जाता है कि 1548 से 1575 के बीच सतपाल ने गढ़वाल पर शासन किया था।

बलभद्र शाह (43 वां शासक )

सहजपाल के पश्चात गढ़वाल के शासन पर बलभद्र शाह आसीन हुए बलभद्र शाह परमार वंश का 43 वां शासक था। जिसने सर्वप्रथम "शाह" की उपाधि धारण की थी। शाह की उपाधि दिल्ली के सुल्तान लोदी वंश के शासक बहलोल लोदी ने परमार वंश के शासकों को दी थी। बलभद्र शाह चंद्र शासक रुद्र चंद्र के समकालीन था। जिनके बीच बांधवगढ़ व ग्वालदम का युद्ध हुआ। और इस युद्ध में कत्यूरी शासक सुखलदेव की सहायता लेकर रुद्र चंद को पराजित किया। 

मान शाह (44 वां शासक )

मानशाह ने लगभग 1591 ईसवी से 1611 ईसवी तक गढ़वाल में शासन किया । मान शाह चंद्र वंश के शासक लक्ष्मीचंद के समकालीन था। जबकि दिल्ली सल्तनत में सम्राट अकबर विराजमान था। लक्ष्मीचंद ने मान शाह के शासनकाल में 7 बार आक्रमण किया । जिनमें हर बार वह पराजित हुआ बल्कि मान शाह के सेनापति "नंदी" ने कुमाऊं की राजधानी चंपावत पर अधिकार कर लिया था। इन सब घटनाओं वर्णन मान शाह के राजकवि  भरतकवि ने अपनी रचना "मानोदय" में वर्णन किया है। इसके अतिरिक्त ब्रिटिश लेखक विलियम फिंच ने "अर्ली ट्रेवल इन इंडिया" में भी मानशाह का विवरण किया है। भरतकवि गढ़वाल नरेश मान शाह के दरबार के राजकवि थे। जिन्होंने परमार वंश के अनेक राजाओं का वर्णन व उनके जीवन में घटित घटनाएं और युद्ध का वर्णन अपनी पुस्तक में किया है।

श्यामशाह (45 वां शासक)

श्याम शाह का शासन लगभग 1611 से 1630 ईसवी तक माना जाता है । श्याम शाह मुगल बादशाह जहांगीर के समकालीन में थे । जहांगीरनामा में श्याम शाह का विवरण मिलता है। जहांगीरनामा के अनुसार जहांगीर ने श्याम शाह को एक घोड़ा एक हाथी उपहार स्वरूप भेंट किया था। सन 1615 ईसवी के एक  ताम्रपत्र से जानकारी मिलती है कि श्री श्याम शाह ने  "सिलासारी" नामक ग्राम में भूमि का एक अंश शिवनाथ जोगी को दान किया था। और इसके अतिरिक्त श्याम शाह ने श्रीनगर में "श्यामशाही बागान" का निर्माण कराया था

श्याम शाह के समय वास्तु शिरोमणि ग्रंथ की रचना हुई जिसके रचनाकार कवि शंकरदेव थे। ऐसा माना जाता है कि श्याम शाह के समय सती प्रथा प्रचलित थी ।

परमार वंश से संबंधित प्रश्न

Best uttrakhand quiz 

(1) कनकपाल के समय गढ़वाल कितने गढ़ों में विभाजित था?

(a) 92

(b) 52

(c) 62

(d) 40

(2) किस शासक को गढ़वाल में परमार वंश का संस्थापक कहा जाता है ?

(a) सोनपाल

(b) कनकपाल

(c) अजयपाल

(d) सहजपाल

(3) अजयपाल युद्ध से विरक्ति होकर किस संप्रदाय का अनुयायी बन गया था ?

(a) गोरखनाथ संप्रदाय

(b) दशनामी संप्रदाय

(c) वैष्णव संप्रदाय

(d) सौर संप्रदाय

(4) अपने नाम के पीछे "शाह" लगाने वाला प्रथम परमार शासक कौन था ?

(a) फतेह शाह

(b) महीपत शाह

(c) बलभद्र शाह

(d) श्याम शाह

(5) अजयपाल ने चांदपुरगढ़ से सर्वप्रथम अपनी राजधानी कहां स्थानांतरित की थी ?

(a) देवलगढ़

(b) श्रीनगर

(c) चंपावत

(d) भिलंग घाटी

(6) गढ़वाल के परमार वंश का 37 वां राजा कौन था ?

(a) कनकपाल

(b) सहजपाल

(c) अजय पाल

(d) सोनपाल

(7) अजयपाल ने देवलगढ़ से राजधानी कहां स्थापित की?

(a) चांदपुरगढ़

(b) श्रीनगर

(c) देवप्रयाग

(d) आलमनगर

(8) गढ़वाल के पवार शासकों को किसने 'शाह' की उपाधि प्रदान की थी

(a) सिकंदर लोदी

(b) अकबर

(c) बहलोल लोदी

(d) शाहजहां

(9) अजयपाल के समकालीन कुमाऊं में किस चंद शासक का शासन था ?

(a) गरूड़ ज्ञान चंद

(b) बाज बहादुर चंद

(c) भारती चंद

(d) कीर्ति चंद

(10) पंवार वंश में 'गढ़वाल का अशोक' किस राजा को कहा जाता है ?

(a) सोनपाल

(b) विजयपाल

(c) अजयपाल

(d) कनकपाल

(11) देवप्रयाग के रघुनाथ मंदिर से किस पवार शासक के पांच ताम्रलेख मिले हैं ?

(a) लाखन देव

(b) जगतपाल

(c) शुवर्ण पाल

(d) सहजपाल

(12) "धूली पाथा पैमाने" की शुरुआत गढ़वाल के किस परमार शासक द्वारा शुरू की गई थी?

(a) श्याम शाह

(b) मान शाह

(c) अजय पाल

(d) सोनपाल

(13)  गढ़वाल में परमार वंश का वास्तविक संस्थापक किसे कहा जाता है?

(a) अजयपाल 

(b) कनकपाल

(c) सहजपाल

(d) महिपति शाह

(14) "मानोदय काव्य" पुस्तक की रचना किसके द्वारा की गई थी ?

(a) सुदर्शन शाह

(b) कल्हण

(c) भरतकवि

(d) कालिदास

(15) "सभासार ग्रंथ" के रचनाकार कौन थे ?

(a) कल्हण

(b) बाणभट्ट

(c) सुदर्शन शाह

(d) नरहरि

(16) श्रीनगर में "श्यामशाही बागान" का निर्माण गढ़वाल की किस पर शासन द्वारा कराया गया ?

(a) महीपत शाह

(b) श्याम शाह

(c) मान शाह

(d) बलभद्र शाह

Answer - (1)b,  (2)b,  (3)a,. (4)c,. (5)a,. (6)c. (7)b. (8)c. (9)d. (10)c. (11)d. (12)c. (13)a. (14)c. (15)c. (16)b

यदि आपको हमारे द्वारा तैयार किए गए नोट्स पसंद आते हैं तो अधिक से अधिक लोगों को शेयर कीजिए। और संपूर्ण उत्तराखंड के इतिहास को जानने के लिए हमारी वेबसाइट देवभूमिउत्तराखंड.com को फॉलो कीजिए। यहां पर उत्तराखंड की best Uttarkhand quiz तैयार की जाती है। जिनकी संभावना प्रतियोगी परीक्षाओं में आने की सदैव बनी रहती है। नई पोस्ट प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम चैनल से भी जुड़ सकते हैं - 

Sources : उत्तराखंड का राजनीतिक इतिहास (अजय रावत)

उत्तराखंड में परमार वंश के संस्थापक कौन थे?

परमार परिवार की मुख्य शाखा आठवीं शताब्दी के प्रारंभिक काल से मालवा में धारा को राजधानी बनाकर राज्य करती थी और इसका प्राचीनतम ज्ञात सदस्य उपेन्द्र कृष्णराज था। इस वंश के प्रारंभिक शासक दक्षिण के राष्ट्रकूटों के सामन्त थे

पंवार वंश का दूसरा नाम क्या है?

परमार या पंवार वंश | Parmar or Panwar Dynasty. चांदपुर में परमार वंश या पंवार वंश की नींव पड़ी। चांदपुर गढ़ का प्रतापी शासक भानुप्रताप था। परमार वंश का संस्थापक कनकपाल था।

परमार वंश का प्रथम राजा कौन था?

परमार वंश के संस्थापक उपेन्द्रराज थे। परमार वंश की प्राचीन राजधानी उज्जैन थी बाद में राजधानी परिवर्तित कर धार नगर कर दी गई थी जो मध्य प्रदेश में स्थित है। परमार वंश का शासनकाल 800 से 1327 ईस्वी तक थापरमार वंश के सर्वाधिक शक्तिशाली शासक राजा भोज थे।

परमार वंश की कुलदेवी कौन सी है?

परमार या पंवार वंश की कुलदेवी श्री सचियाय माता है। सच्चियाय माता का भव्य मंदिर जोधपुर से लगभग 60 कि. मी. की दूरी पर ओसियां में स्थित है इसी लिये इनको ओसियां माता भी कहा जाता है , ओसियां पुरातत्विक महत्व का एक प्राचीन नगर है , ओसियां शहर कला का एक महत्वपूर्ण केन्द्र होने के साथ ही धार्मिक महत्व का क्षेत्र रहा है।