सब्सक्राइब करे youtube चैनल Show cold war in hindi what is definition reasons effects शीत युद्ध किसे कहते हैं शीत युद्ध की परिभाषा क्या है , उत्पत्ति के कारण , विशेषता प्रभाव | शीतयुद्ध: अभिप्राय, प्रतिमान और आयाम उद्देश्य प्रस्तावना
द्वितीय विश्वयुद्ध की विभिषिका तथा उसमें हुए असीम जान-माल के नुकसान ने विश्व को शांति और सुरक्षा स्थापित करने के लिए प्रेरित किया तथा विश्व में फिर से ऐसी स्थिति फिर से न हो। इसको पुनिश्चित एवं सुरक्षित बनाने हेतु एक विश्व संगठन की स्थापना की गयी। इस विश्व संगठन को संयुक्त राष्ट्र संगठन या संयुक्त राष्ट्र का नाम दिया गया। दोनों महाशक्तियों ने उच्च परिष्कृत विध्वंसात्मक हथियारों को प्राप्त किया। यूरोप संयुक्त राज्य अमरीका पर निर्भर हो गया। उपनिवेशवाद का विखंडन एक वास्तविकता में बदल गया। इन सबसे ऊपर जनमत किसी भी प्रकार के विश्वव्यापी विध्वंस के पक्ष में न था। लेकिन ये परिवर्तन स्थानीय या विभिन्न देशों में गृहयुद्ध तथा दोनों महाशक्तियों को विश्व पर सर्वोच्चता स्थापित करने के लिए तनावग्रस्त प्रतियोगिता से रोकने में असफल रहे। इस तरह से यह शत्रुतापूर्ण प्रतियोगिता शीतयुद्ध में बदल गई। शीतयुद्ध का अर्थ बोध प्रश्न 1 बोध प्रश्न 1
उत्तर शीतयुद्ध का उद्गम बोध प्रश्न 2 बोध प्रश्न 2 उत्तर इस संकट का समाधान ढूँढने के लिए 1947 के प्रारंभ में एक सम्मेलन आयोजित किया गया। जिसमें चार बड़ी शक्तियाँ सोवियत संघ, अमरीका, ब्रिटेन तथा फ्रांस शामिल थी। इसमें ब्रिटेन तथा अमरीका ने जर्मनी के आर्थिक एकीकरण पर बल दिया। परन्तु सोवियत संघ तथा फ्रांस ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया। इस तरह से संकट का समाधान ढूँढे बगैर ही यह सम्मेलन समाप्त हो गया। इसी बीच संयुक्त राज्य अमरीका ने समी नियमों का उल्लंघन करते हुए मार्च, 1947 में यूनान के गृहयुद्ध में हस्तक्षेप किया। इस हस्तक्षेप को जायज ठहराते हुए अमरीकी राष्ट्रपति ट्रमैन ने 12 मार्च, 1947 को अमरीकी कांग्रेस को सम्बोधित करते हुए अपना पक्ष स्पष्ट किया और यूनान में हस्तक्षेप को उचित ठहराया तथा यूनान एवं टर्की में साम्यवादियों के नेतृत्व में लड़े जा रहे गृहयुद्ध का दमन करने के लिए इन देशों को वित्तीय सहायता देने हेतु कांग्रेस में जिन सिद्धांतों, का प्रतिपादन ट्रमैन ने किया उनको टूमैन सिद्धांत के नाम से जाना गया और इसको उचित ठहराने के लिए यह मूल तर्क दिया कि साम्यवाद के प्रसार को रोकने के लिए संयुक्त राज्य अमरीका को कहीं भी हस्तक्षेप करने का अधिकार था। ट्रमैन सिद्धांत शीतयुद्ध को फैलाने के लिए एक नंगा दस्तावेज था जिसमें यह स्पष्ट अभिव्यक्ति की गई थी। 1950 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में शीतयुद्ध और गहरा हो गया। अमरीका ने दिसम्बर 1951 में यूरोप के पुनर्विकास का कार्यक्रम रखा। इसको मार्शल योजना के नाम से जाना जाता है और यह ट्रमैन के सिद्धांत का आर्थिक प्रतिपक्ष था क्योंकि ट्रमैन का सिद्धांत मौलिक तौर पर एक राजनीतिक योजना थी। यद्यपि संयुक्त राज्य अमरीका ने घोषणा की थी कि इस योजना का लक्ष्य केवल युद्ध द्वारा बर्बाद किये गए यूरोप का पुनर्निर्माण करना है, लेकिन सामान्यतः यह साम्यवादियों के बढ़ते प्रभाव से यूरोप को सुरक्षित करने का एक-मात्र प्रयास था, क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध के तत्काल बाद संपूर्ण यूरोप में आंदोलनों का एक व्यापक उभार आ गया था। पश्चिमी यूरोप के सभी देश मार्शल योजना के अंतर्गत अमरीकी सहायता को स्वीकार करने के लिए तैयार थे। इसके साथ ही पूर्वी यूरोप के देशों पर यह आरोप लगाया गया कि सोवियत संघ के राजनीतिक तंत्र के कारण उन्होंने इस सहायता को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। सोवियत संघ ने तुरन्त कोंसिल फार म्यूचल इकॉनामिक एसीसटेंट की स्थापना कर दी। जिसको मोलोतोब योजना के नाम से जाना गया। इस प्रकार हम देखते हैं कि यूरोप दो गुटों में विभाजित हो गया और इन गुटों ने उस समय औपचारिक स्वरूप प्राप्त कर लिया जब सुरक्षा संधियों के होते हुए ये दोनों गुट खुल कर सामने आये। संपूर्ण यूरोप में साम्यवादी आंदोलन के उभार के कारण जहाँ सोवियत संघ तथा अमरीका के मध्य तनाव में वृद्धि हुई वहीं अमरीका ने पश्चिमी शक्तियों के साथ सुरक्षात्मक गठबंधन करने का प्रस्ताव किया। इस प्रकार अप्रैल, 1949 में नॉर्थ अटलांटिक संधि पर हस्ताक्षर कर नॉर्ट अटलांटिक ट्रिटी आर्गेनाइजेशन (नाटो) की स्थापना की। इस संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देश थे – संयुक्त राज्य अमरीका, कनाडा, फ्रांस, ब्रिटेन, बेल्जियम, नीद्रलैंड, लुक्जेम्बर्ग, इटली, पुर्तगाल, डेनमार्क, आइसलैंड तथा नार्वे। आगे चलकर पश्चिमी जर्मनी, यनान तथा टर्की भी इस संधि में शामिल हो गये। इस संधि के अनुसार, यदि संधि पर हस्ताक्षर करने वाले एक या एक से अधिक यूरोप, उत्तरी अफ्रीका या उत्तरी अमरीका के देशों पर सशस्त्र आक्रमण होता है तब उसको सभी हस्ताक्षर करने वाले देशों के विरुद्ध उपक्रमण माना जायेगा। नाटो के उत्तर में सोवियत संघ ने भी पूर्वी यूरोप के समाजवादी देशों के साथ वार्सा संधि की। इसकी शर्ते एवं धाराएं नाटों के समान ही थी। इन घटनाक्रमों (अर्थात् यूरोप का आर्थिक एवं सैन्य दो गुटों में विभाजन) ने शीतयुद्ध को और तीव्र कर दिया था। बोध प्रश्न 3 बोध प्रश्न 3 उत्तर सुदूर पूरब में शीतयुद्ध बोध प्रश्न 4 बोध प्रश्न 4 उत्तर शीतयुद्ध में कमी कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यदि दोनों महाशक्तियों के पास हाइड्रोजन बम न होते तो हो सकता है आगामी वर्षों में दोनों के बीच विध्वंसकारी स्थिति उत्पन्न हो गयी होती। उससे दोनों महाशक्तियों के बीच वास्तविकता में युद्ध शुरू हो सकता था। इस प्रसंग में वे क्यूबा संकट का दृष्टांत देते हैं। 1960 के दशक के प्रारंभ में क्यूबा में साम्यवादी सरकार की स्थापना हो गई थी जिसके कारण एक संकटकालीन स्थिति पैदा हुई। साम्यवादी क्यूबा को डेमोक्लेस की तलवार के रूप में समझा गया जो अमरीका के हृदय में चुभी जा रही थी इसलिए अमरीका इस शीशु साम्यवादी राज्य का दमन करना चाहता था। लेकिन सोवियत संघ ने क्यूबा की रक्षा के लिए मिसाइलों को भेजकर जो तुरन्त कार्यवाही की उससे अमरीका के आक्रामक रूप में कमी आयी। इस संकट ने दोनों महाशक्तियों को युद्ध के कगार पर ला खड़ा किया था, किन्तु रूस के कड़े रुख ने युद्ध को पनपने नहीं दिया। इसलिए क्यूबा के प्रति संयुक्त राज्य अमरीका के दृष्टिकोण में कुछ नम्रता आयी थी। तब सोवियत संघ ने अपने मिसाइलों को वापस बुला लिया। इस प्रकार क्यूबा के संकट को रूस ने शांति से हल करने में अपनी शक्ति का उपयोग किया था। क्यूबा के संकट के अंत का अनुसरण करते हुए दोनों महाशक्तियों ने नाभिकीय हथियारों के उत्पादन को कम करने के लिए कई समझौते किये। 1963 में जिन देशों के पास पहले से ही नाभिकीय हथियार थे उनको छोड़ कर आगे नाभिकीय हथियारों का उत्पादन न करने के लिए संधि पर हस्ताक्षर किये गये। समुद्र तथा दूसरी जगहों पर नाभिकीय हथियारों के अभिस्थापन तथा जैविक हथियारों के प्रयोग पर 1971 में संधियों के हस्ताक्षर पर रोक लगायी गयी। इस तरह से हम कह सकते हैं कि सामूहिक रूप में इन समझौतों ने शीतयुद्ध के तनावों में कमी की। इसी दौरान यूरोप ने स्वयं को युद्ध के खतरों से अपने आपको उबार लिया। पुनर्स्थापित यूरोप ने अमरीकी अर्थव्यवस्था से प्रतियोगिता प्रारंभ कर दी। इसी दौरान फ्रांस ने चार्ल्स डीगॉल के नेतृत्व में अमरीका पर निर्भर बने रहने से इंकार कर दिया। जर्मनी भी शीघ्र संभल गया। अखंड अंतर्राष्ट्रीय साम्यवादी आंदोलन को विभाजन का सामना करना पड़ा। चीन तथा सोवियत संघ एक प्रकार के शीतयुद्ध में फंस गये। इन घटनाओं के कारण शीतयुद्ध के तनावों में काफी कमी आयी। बोध प्रश्न 5 बोध प्रश्न 5 उत्तर शीतयुद्ध का पुनर्जन्म बोध प्रश्न 6 बोध प्रश्न 6 उत्तर शीतयुद्ध का ढाँचा एवं आयाम लेकिन शीतयुद्ध के लिए साम्यवाद एकमात्र मुद्दा न था। संघर्षरत राष्ट्रों के राष्ट्रीय हितों ने भी शीतयुद्ध को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। चीन, सोवियत संघ के टकराव में राष्ट्रीय हितों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इसमें धर्म भी एक मुद्दा बना था। शिया और सुन्नी के झगड़ों, हिन्दू मुस्लिम धार्मिक मुददों ने क्रमशः ईरान-इराक तथा भारत पाकिस्तान के बीच तनाव पैदा करके शीतयुद्ध में वृद्धि की दक्षिण एशिया में भारत-पाकिस्तान के मध्य शीतयुद्ध के प्रसार में धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र तथा राष्ट्रवाद जैसे मुददों का विशेषकर योगदान रहा है। काश्मीर के सवाल को लेकर भारत-पाकिस्तान के मध्य अंतविहीन संघर्ष जारी है। भारत का दावा है कि वह एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है इसलिए इस देश में विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ सद्भावपूर्ण वातावरण में रह सकते हैं। काश्मीर भारतीय धर्मनिरपेक्षता के लिए एक परीक्षण मैदान है। यह शीतयुद्ध केवल महाशक्तियों तक ही सीमित न था। शीतयुद्ध के बहुत से आयाम थे। एक ओर यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दो महाशक्तियों के मध्य संघर्ष था। दूसरी ओर क्षेत्रीय स्तर पर क्षेत्रीय शक्तियों के बीच शीतयुद्ध लड़ा जा रहा था। 1970 के दशक में, ईरान तथा इराक के बीच शीतयुद्ध चला था, सीमा के प्रश्नों को लेकर चीन तथा सोवियत संघ के बीच शीतयुद्ध शुरू हो गया। काश्मीर के प्रश्न पर भारत तथा पाकिस्तान के बीच शीतयुद्ध चल रहा है। पाकिस्तान ने इस समस्या का सैनिक बल से समाधान करना चाहा था किन्तु उसे असफलता हाथ लगी और मुंह की खानी पड़ी। इस तरह से यह क्षेत्र शीतयुद्ध की चपेट में आ गया। यद्यपि द्वितीय विश्वयुद्ध के समापन से लेकर सोवियत संघ के विखंडन तक के समय को शीतयुद्ध का युग कहा गया है, लेकिन यह एक सतत विशेषता नहीं थी और न ही समस्याएँ समान थी। शीतयुद्ध ने विश्व शांति को अनेक चरणों में भंग किया, जो सामयिक रूप से चलती रही है। इस तरह हम कह सकते हैं कि पूरे शीतयुद्ध के दौरान न समस्याएँ ही समान थी और न ही समय और काल समान था। प्रथम जर्मन संकट एक समस्या थी, फिर कोरिया का युद्ध अफगान संकट सामने आया, स्टार युद्ध एक भयानक कार्यक्रम था जो इस दिशा में संयुक्त राज्य अमरीका का निर्णय आदि ने शीतयुद्ध की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने एवं उसको गति देने में विशेषरूप से सहायता की । थी। इस प्रकार शीतयुद्ध का ढाँचा एवं आयाम विभिन्न प्रकार के थे जिनके प्रभाव बहुमुखी थे। बोध प्रश्न 7 बोध प्रश्न 7 उत्तर शीतयुद्ध का अंत लेकिन 20वीं सदी के 9वें दशक के अंत से तथा 10वें दशक के प्रांरभ से स्थिति में परिवर्तन आना शुरू हुआ। मध्य अमरीका में सेण्डिनिस्ता सरकार का पतन हो गया। 1980 के दशक के पूर्वी यूरोप तथा सोवियत संघ जिस आर्थिक संकट की चपेट में आये उसका समाधान राजनीतिक उदारीकरण एवं बाजार अर्थव्यवस्था की नीतियों को अपनाकर खोजने की कोशिश की गयी। सोवियत संघ में पेरीस्ट्रोयिका तथा ग्लासनोस्ट ने गोर्बाचोव की नीतियों को लागू किया। सोवियत संघ की गृह एवं विदेश, दोनों नीतियों में क्रांतिकारी बदलाव आया। इन सब नीतियों के परिणामस्वरूप पूर्वी यूरोप में एक-एक कर साम्यवादी सरकारों का पतन होने लगा। पूर्वी जर्मनी के राज्य का अंत हो गया तथा संपूर्ण जर्मनी का एकीकरण हो गया। बदनाम बर्लिन दीवार को गिरा दिया गया। और इस तरह से सोवियत संघ का बिखराव हो गया। एक महाशक्ति के पतन के साथ शीतयुद्ध का अन्त हुआ। सोवियत संघ के बिखराव के साथ ही रूस ने अपने महाशक्ति के स्तर को खो दिया। शीतयुद्ध के खंडहरों पर बनी संयुक्त राज्य अमरीका की बेलगाम सर्वोच्चता स्थापित हो चुकी है। अब विश्व एक ध्रुवीय बन चुका है। शीत युद्ध किसी न किसी रूप में चार दशकों तक जारी रहा, लेकिन विश्व दो महाशक्तियों के प्रत्यक्ष विश्वव्यापी संघर्ष से मुक्त बना रहा परन्तु दीर्घकालिक गृहयुद्धों या क्षेत्रीय युद्धों को रोकने में ये असफल हो गए। शीतयुद्ध के दौरान अधिकतर स्थानीय क्षेत्र या गृहयुद्ध राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष के लिए थे। शीतयुद्ध काल में विश्व का गैर-औपनिवेशीकरण हुआ। अफ्रीका, एशिया तथा लैटिन अमरीका के दो देश सदियों से यूरोपीय औपनिवेशिक शासन से पीड़ित थे, शीतयुद्ध के अंत ने स्थानीय या गृहयुद्धों को समाप्त नहीं किया। लेकिन अब स्थानीय या गृहयुद्ध राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन नहीं रह गये हैं। वे अधिकतर ऐसे भ्रातघातक युद्ध हैं जो संकीर्ण उपलब्धियों के लिए लड़े जा रहे हैं। बोध प्रश्न 8 बोध प्रश्नों के उत्तर बोध प्रश्न 8 सारांश शब्दावली कुछ उपयोगी पुस्तकें शीत युद्ध की प्रकृति क्या है?नव- शीत युद्ध की प्रकृति (Nature of the New Cold War) : नव शीत युद्ध की प्रकृति कुछ महत्त्वपूर्ण अर्थों में मूल शीत युद्ध से भिन्न थी। जहां मूल शीत युद्ध मुख्य रूप से पूंजीवाद और साम्यवाद के मध्य वैचारिक संघर्ष पर आधारित था, वहां नव-शीत युद्ध वास्तव में शक्ति संतुलन के लिए संघर्ष था यह राष्ट्रीय हितों का संघर्ष था।
शीत युद्ध से आप क्या समझते हैं इसकी प्रकृति और प्रभाव का?साम्यवादी सोवियत संघ तथा पूंजीवादी अमेरिका ने मैत्री के बंधन में बंध कर फासिस्ट तानाशाही को पराजित करने का संकल्प कर लिया। इन दोनों ने ब्रिटेन, फ्रांस, चीन तथा अन्य मित्र राष्ट्रों के साथ मिलकर नात्सी- फासिस्ट धुरी को पराजित कर दिया, परंतु इस युद्ध के दौरान ही मित्र राष्ट्रों में आपस में दरार पड़ गई थी।
शीत युद्ध से क्या तात्पर्य है इसके विभिन्न चरणों का वर्णन करें?शीत युद्ध (Cold War) क्या है? शीत युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ एवं उसके आश्रित देशों (पूर्वी यूरोपीय देश) और संयुक्त राज्य अमेरिका एवं उसके सहयोगी देशों (पश्चिमी यूरोपीय देश) के बीच भू-राजनीतिक तनाव की अवधि (1945-1991) को कहा जाता है।
शीत युद्ध का अर्थ क्या होता है?द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के काल में संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत रूस के बीच उत्पन्न तनाव की स्थिति को शीत युद्ध के नाम से जाना जाता है।
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