श्री कृष्ण किस उद्देश्य से हस्तिनापुर गए थे और धृतराष्ट्र की सभा में क्या कहा? - shree krshn kis uddeshy se hastinaapur gae the aur dhrtaraashtr kee sabha mein kya kaha?

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 26

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण किस उद्देश्य से हस्तिनापुर गए थे?
उत्तर:
श्रीकृष्ण शांति वार्तालाप करने के उद्देश्य से हस्तिनापुर गए थे।

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण को दुःशासन के महल में क्यों ठहराया गया था?
उत्तर:
श्रीकृष्ण को दुःशासन के महल में इसलिए ठहराया गया था क्योंकि यह महल दुर्योधन के महल से ऊँचा और सुंदर था। धृतराष्ट्र के आदेशानुसार उन्हें उसी भवन में ठहराया गया था।

प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण ने धृतराष्ट्र की सभा में क्या कहा?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने धृतराष्ट्र की सभा में पांडवों की माँग रखने के बाद उन्होंने धृतराष्ट्र की ओर देखकर कहा- राजन! पांडव शांतिप्रिय हैं। लेकिन वे युद्ध के लिए भी तैयार हैं। पांडव आपको पिता स्वरूप मानते हैं। ऐसा उपाय करें जिससे आप भाग्यशाली बनें।

प्रश्न 4.
भोजन का निमंत्रण मिलने पर श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से क्या कहा?
उत्तर:
भोजन का निमंत्रण मिलने पर श्रीकृष्ण ने कहा- राजन जिस उद्देश्य को लेकर यहाँ आया हूँ, वह पूरा हो जाए, तब मुझे भोजन का निमंत्रण देना उचित होगा।

प्रश्न 5.
दुःशासन का भवन कैसा था?
उत्तर:
दुःशासन का भवन दुर्योधन के भवन से अधिक ऊँचा और सुंदर था।

प्रश्न 6.
विदुर को किस बात का भय था?
उत्तर:
विदुर दुर्योधन के स्वभाव से भली-भाँति परिचित थे। उन्हें डर था कि श्रीकृष्ण के वहाँ जाने पर वह कोई न कोई कुचक्र रचकर उनकी प्राणों को नुकसान पहुँचाने का प्रयास करेगा। इसलिए उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा कि उनकी सभा में आपका जाना उचित नहीं है।

प्रश्न 7.
रास्ते में श्रीकृष्ण ने कहाँ रात का विश्राम किया?
उत्तर:
रास्ते में श्रीकृष्ण ने कुशस्थल नामक स्थान पर एक रात को विश्राम किया।

प्रश्न 8.
श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को क्या समझाया?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को समझाया कि मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि पांडवों को आधा राज्य लौटा दो और उनके साथ संधि कर लो। यदि यह बात हो गई तो स्वयं पांडव तुम्हें युवराज और धृतराष्ट्र को महाराज के रूप में सहर्ष स्वीकार कर लेंगे।

प्रश्न 9.
गांधारी को सभा में क्यों बुलाया गया?
उत्तर:
गांधारी को सभा में दुर्योधन को समझाने के लिए बुलाया गया क्योंकि धृतराष्ट्र यह जानते थे कि गांधारी की समझ बहुत स्पष्ट है। वह दूर की सोचती है। हो सकता है, उनकी बातें दुर्योधन मान ले।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कुंती ने कर्ण से क्या कहा?
उत्तर:
कुंती ने गदगद स्वर में कर्ण को रहस्य बताते हुए कहा- ‘कर्ण! यह न समझो कि तुम केवल सूत-पुत्र ही हो। न तो राधा तुम्हारी माँ है। न ही अधिरथ तुम्हारे पिता। तुम राजकुमारी पृथा के कोख से उत्पन्न सूर्य के अंश हो। तुम दुर्योधन के पक्ष में होकर अपने भाइयों से शत्रुता कर रहे हो। तुम अर्जुन के साथ मिल जाओ, बहादुरी के साथ लड़ो और राज्य करो। धृतराष्ट्र के लड़कों के अधीन रहना तुम्हारे लिए अपमान की बात है।

प्रश्न 2.
कर्ण ने कुंती से क्या कहा?
उत्तर:
कर्ण माता कुंती की बात सुनकर बोला- माँ यदि इस समय मैं दुर्योधन का साथ छोड़कर पांडवों की तरफ़ चला गया तो लोग मुझे कायर कहेंगे। आज जब युद्ध होना निश्चित हो गया है तो मेरा कर्तव्य हैं कि मैं पांडवों के विरुद्ध लड़ें। मैं असत्य नहीं बोलूँगा। अतः तुम मुझे क्षमा कर दो। लेकिन हाँ मैं तुम्हारी बात को भी एकदम व्यर्थ नहीं जाने दूंगा। मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि अर्जुन को छोड़कर किसी पांडव के प्राण नहीं लूंगा। युद्ध में या तो अर्जुन मारा जाएगा या तो मैं मारा जाऊँगा। तुम्हारे लिए पाँच पुत्र हर हालत में रहेंगे। अतः तुम चिंता न करो।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 26

श्रीकृष्ण सात्यकि के साथ शांति की बातचीत करने के उद्देश्य से हस्तिनापुर आए। यह समाचार सुनकर कि श्रीकृष्ण आए हैं धृतराष्ट्र ने उनके स्वागत की भव्य तैयारियाँ करवाईं। दुःशासन का भवन दुर्योधन के भवन से भी ऊँचा था। अतः श्रीकृष्ण को वहीं ठहरने की व्यवस्था की गई। श्रीकृष्ण धृतराष्ट्र से मिलकर विदुर के घर गए। वहाँ कुंती भी श्रीकृष्ण के इंतजार में बैठी थी। श्रीकृष्ण ने कुंती को सांत्वना दी और वे दुर्योधन के पास गए। दुर्योधन ने उनका शानदार स्वागत किया और उनको भोजन का निमंत्रण दिया।

श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा- राजन् जिस उद्देश्य से मैं यहाँ आया हूँ वह बिना पूरा हुए भोजन का न्यौता देना उचित नहीं है। ऐसा कहकर श्रीकृष्ण विदुर के पास चले गए। वहीं पर उन्होंने भोजन और विश्राम किया।

इसके बाद विदुर ने श्रीकृष्ण को अगाह करते हुए कहा कि कौरवों की सभा में आपका जाना उचित नहीं। श्रीकृष्ण ने कहा- आप मेरे प्राणों की चिंता मत कीजिए। श्रीकृष्ण विदुर के साथ धृतराष्ट्र के भवन में गए और बड़ों को प्रणाम करके आसन पर बैठ गए। इसके बाद श्रीकृष्ण ने पांडवों की माँग रखी। उन्होंने बताया कि राजन पांडव शांति प्रिय हैं लेकिन युद्ध के लिए भी तैयार हैं। पांडव आपको पिता स्वरूप मानते हैं। ऐसा उपाय करें जिससे आप भाग्यशाली बने।

यह सुनकर धृतराष्ट्र सभासदों से बोले-मैं तो यही चाहता हूँ जो श्रीकृष्ण को प्रिय है। इस पर श्रीकृष्ण दुर्योधन से बोले-“मैं चाहता हूँ कि पांडवों का आधा राज्य लौटा दो और उनके साथ समझौता कर लो। अगर ऐसा होगा तो पांडव स्वयं तुम्हें युवराज और धृतराष्ट्र को महाराज के रूप में स्वीकार कर लेंगे।

सारी सभा ने दुर्योधन को समझाना चाहा। युद्ध के भयावह परिणामों का वर्णन किया। दुर्योधन द्वारा पांडवों पर किए गए अत्याचारों का स्मरण दिलाया। यह देखकर दुःशासन ने कहा- भाई, ये लोग आपको बंदी बनाना चाहते हैं। अतः आप यहाँ से निकल चलें। दुर्योधन भाइयों के साथ सभा भवन से निकल गया।

इसी बीच धृतराष्ट्र ने सभा में गांधारी को बुलाया। दुर्योधन को भी सभा में दुबारा बुलाया। गांधारी ने दुर्योधन को कई तरीके से समझाने की कोशिश किया, किंतु उसने माँ की एक भी बात नहीं सुनी और पुनः सभा से बाहर निकल गया। बाहर निकलकर दुर्योधन अपने मित्रों के साथ मिलकर राजदूत कृष्ण को पकड़ने का कुचक्र करने लगा, किंतु सफलता न मिली। सभा से निकलकर श्रीकृष्ण कुंती के पास पहुंचे और उनको सभा का सारा हाल सुनाया।

युद्ध की आशंका से कुंती काफ़ी चिंतित हो गई और वह सीधे कर्ण के पास गई। कर्ण जब मध्याह्न के बाद पूजा से उठा ही था तो कुंती को देखकर आश्चर्य चकित हो गया। पूछा- आज्ञा दीजिए, मैं आपकी क्या सेवा करूँ। कुंती ने कर्ण को असलियत बताते हुए कहा- तुम अधिरथ के पुत्र नहीं बल्कि राजकुमारी पृथा की कोख से पैदा हुआ है। तुम्हारे पिता सूर्य हैं। तुम दुर्योधन के पक्ष में होकर अपने भाइयों से ही शत्रुता कर रहे हो। तुम अर्जुन के साथ मिलकर वीरता से लड़ो और राज्य करो। कर्ण माता कुंती की बात सुनकर बोला, माँ यदि इस समय मैं दुर्योधन का साथ छोड़कर पांडवों के साथ मिल गया तो लोग मुझे कायर कहेंगे।

कर्ण ने दुर्योधन का साथ देने की अपनी लाचारी कुंती को समझा दिया, किंतु कुंती को एक भरोसा भी दिया। उसने कहा, मैं, तुम्हारी बात को एकदम व्यर्थ नहीं जाने दूंगा। मैं आपको वचन देता हूँ कि अर्जुन को छोड़कर और किसी पांडव के प्राण नहीं लूँगा। इस युद्ध में या तो मैं मारा जाऊँगा या अर्जुन मारा जाएगा। तुम्हारे पाँच पुत्र हर हालत में रहेंगे। अतः तुम चिंता न करो। शेष चारों पांडव मुझे चाहे जितना तंग करें मैं उनको नहीं मारूँगा। माँ तुम्हारे तो पाँच पुत्र हर हाल में रहेंगे। चाहे मैं मर जाऊँ, चाहे अर्जुन ! हम दोनों में से एक बचेगा और बाकी चार तो रहेंगे ही। तुम चिंता न करो।

कुंती कर्ण की बातें सुनकर विचलित हो गई। इसके बाद उन्होंने गले से लगाते हुए बोली, तुम्हारा कल्याण हो। कर्ण को आशीर्वाद देकर कुंती महल में चली गई।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-65- उद्देश्य – लक्ष्य, विश्राम – आराम, ठहरना – रुकना, प्रतीक्षा – इंतज़ार।
पृष्ठ संख्या-66- स्मरण – याद, सांत्वना – ढांढस, कुचक्र – षड्यंत्र, स्वीकृत – मान्य, आग्रह – निवेदन, सर्वनाश – पूरा नाश, वक्तव्य – बात।
पृष्ठ संख्या-67- कल्पना – अनुमान, आरूढ़ – चढ़कर बैठकर, कुलनाशी – कुल का नाश करने वाला, मध्याह्न – दोपहर, उत्तरीय – पुरुषों द्वारा कंधों से कमर तक ओढ़ा जाने वाला वस्त्र, शिष्टतापूर्वक – शालीनता से, पृथा कुंती, आश्रित – अधीन, मझधार – बीच में।

श्री कृष्ण हस्तिनापुर क्यों गए उनके साथ कौन थे?

मित्र! श्रीकृष्ण पांडवों का शांति प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर गए थे। वह चाहते थे कि पांडवों और कौरवों के मध्य संधि हो जाए और युद्ध की स्थिति टल जाए। श्रीकृष्ण जानते थे कि यदि यह प्रयास नहीं किया गया, तो भयंकर विनाश होगा।

श्री कृष्ण ने सभा में धृतराष्ट्र के सामने क्या प्रस्ताव रखा?

धृतराष्ट्र कौरव सत्यवती से शांतनु के दो पुत्र हुए - चित्रांगद और विचित्रवीर्य | शांतनु के देहावसान पर चित्रांगद हस्तिनापुर के सिंहासन पर बैठे और उनके युद्ध में मारे जाने पर विचित्रवीर्य | विचित्रवीर्य की दो रानियाँ थीं- अंबिका और अंबालिका । सत्यवती के पुत्र चित्रांगद बड़े ही वीर, परंतु स्वेच्छाचारी थे।

श्री कृष्ण हस्तिनापुर क्यों जाना चाहते थे class 7?

श्रीकृष्ण हस्तिनापुर क्यों जाना चाहते थे ? 3- श्रीकृष्ण पांडव और कौस्व दोनों के समान रूप से हितैषी थे । वे दोनों ही पक्षों को युद्ध से बचाकर उनमें संधि कराना चाहतें थे। वे धृतराष्ट्र और दुर्योधन दोनों कों भावी युद्ध के परिणाम से अवगत करातें हुए यह समझाना चाहते थे कि दुर्योधन पांडवों का राज्य वापस कर दें ।

श्री कृष्ण ने सभा में क्या कहा?

श्रीकृष्ण ने धृतराष्ट्र की सभा में क्या कहा? उत्तर: श्रीकृष्ण ने धृतराष्ट्र की सभा में पांडवों की माँग रखने के बाद उन्होंने धृतराष्ट्र की ओर देखकर कहा- राजन! पांडव शांतिप्रिय हैं।