साये में धूप कौन सी विधा है? - saaye mein dhoop kaun see vidha hai?

                
                                                                                 
                            करुणा और ओज के कवि दुष्यंत कुमार का जन्म 1 सितम्बर 1933 को बिजनौर उत्तरप्रदेश में हुआ। ग़ज़ल विधा को हिन्दी में लोकप्रिय बनाने में दुष्यंत कुमार का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उनकी कई रचनाएं जीवन में आशा और उत्साह का संचार करती हैं। निधन 30 दिसंबर 1975 को हुआ। 
                                                                                                
                                                     
                            

  कुछ प्रमुख कृतियां- सूर्य का स्वागत; आवाज़ों के घेरे; जलते हुए वन का वसन्त (सभी कविता संग्रह)। साये में धूप (ग़ज़ल संग्रह)। एक कण्ठ विषपायी (काव्य-नाटिका)

  हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गांव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए

साभार: कविता कोश

5 years ago

साए में धूप रचना की विधा क्या है?

साये में धूप दुष्यंत कुमार द्वारा रचित प्रसिद्ध ग़ज़ल संग्रह है। यह उस दौर की रचना है, जब देश कुछ दशक पहले ही आज़ाद हुआ था, लेकिन राजनीति के प्रति निराशा समाज में और फिर साहित्य में साफ़ झलकने लगी थी। कुछ ऐसी ही भावना अज्ञेय जी के डायरी अंशों के संकलन 'कवि-मन' में भी देखने को मिली थी, लेकिन अज्ञेय जी वहाँ अधिक मुखर थे।

साये में धूप कौन सा संग्रह है?

यहाँ दुष्यंत की जो गज़ल दी गई है, वह उनके गज़ल संग्रह साये में धूप ली गई है। गज़लों में शीर्षक देने का कोई चलन नहीं है, इसीलिए यहाँ कोई शीर्षक नहीं दिया जा रहा है। कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए, कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए। न हो कमीज़ तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे, ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए।

दरख्तों के साये में धूप से क्या अभिप्राय है?

चिराग किसे मयस्सर नहीं है- 10.

साये में धूप के रचनाकार का नाम क्या है?

साए में धूप दुष्यंत कुमार की रचना है। इसका रचना वर्ष 1975 ईस्वी है