‘संवैधानिक अधिकार बचाओ’ आन्दोेलन को समर्थन दीजिये। एक संवैधानिक अधिकार एक अधिकार या स्वतंत्रता है जो उस देश के संविधान द्वारा नागरिकों को दी जाती है । [1] में संयुक्त राज्य अमेरिका संवैधानिक अधिकारों की गारंटी कर रहे हैं संयुक्त राज्य अमेरिका संविधान । इनमें से ज्यादातर अधिकार बिल ऑफ राइट्स , अमेरिकी संविधान में पहले दस संशोधनों में निहित हैं । [2] Show
उदाहरण के लिए , दुनिया के सभी देशों में से लगभग आधे लोगों के पास अपने देश के संविधान द्वारा संरक्षित स्वास्थ्य देखभाल के अधिकार की गारंटी है । [३] हालाँकि, संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वास्थ्य देखभाल का अधिकार संवैधानिक अधिकार नहीं है। [३] अमेरिका के अलावा, ग्वाटेमाला , हैती , मैक्सिको , बोलीविया , कोस्टा रिका , कोलम्बिया , होंडुरास , निकारागुआ , और लाइबेरिया उन देशों में से हैं, जहाँ के नागरिकों के पास खुद की आग्नेयास्त्रों का संवैधानिक अधिकार है । [4]लेकिन केवल ग्वाटेमाला के अधिकार संयुक्त राज्य अमेरिका में द्वितीय संशोधन के अधिकारों के समान व्यापक हैं । [५] लगभग १ countries२ देशों के गठन कुछ प्रकार के धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं । [6] संवैधानिक द्वारा प्रदान किए गए अधिकार पहले संशोधन सहित, प्रेस की स्वतंत्रता , अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता , याचिका का अधिकार और एकत्र होने की स्वतंत्रता , संयुक्त राज्य अमेरिका के लगभग अद्वितीय हैं। संवैधानिक अधिकार और कर्त्तव्यों की व्यवस्था
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में संवैधानिक अधिकार और कर्त्तव्यों की व्यवस्था पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं। संदर्भकिसी भी लोकतांत्रिक देश की संवैधानिक व्यवस्था में नागरिकों और व्यक्तियों के सर्वांगीण विकास के लिये कुछ मूलभूत अधिकारों की व्यवस्था की गई है। स्वतंत्रता से पूर्व औपनिवेशिक शासन के दौरान भारतीय लोगों के साथ किया गया अमानवीय व्यवहार, भारत में जातिगत व्यवस्था के अंतर्गत व्याप्त भेदभाव तथा स्वतंत्रता के दौरान होने वाले धार्मिक दंगों ने मानवीय गरिमा को छिन्न-भिन्न कर दिया था। प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखने लगा था। ऐसी स्थिति में संविधान निर्माताओं के समक्ष देश की एकता-अखंडता, मानवीय गरिमा को स्थापित करने तथा लोगों में परस्पर विश्वास बहाल करने की चुनौती थी। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए संविधान निर्माताओं ने सार्वभौमिक अधिकारों की व्यवस्था की। संविधान के भाग-3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक उपलब्ध अधिकारों को मूल अधिकारों की संज्ञा दी गई। प्रारंभ में संविधान के अंतर्गत नागरिकों के लिये मूल कर्त्तव्यों की व्यवस्था नहीं की गई थी, परंतु समय के साथ समाज में असामाजिक व देश विरोधी तत्त्वों की गतिविधियों में वृद्धि हुई, परिणामस्वरूप ऐसी गतिविधियों के प्रति नागरिकों को जागरूक करने तथा उनमें कर्त्तव्यबोध की भावना का प्रसार करने के लिये वर्ष 1976 में संविधान के भाग-4 क में अनुच्छेद-51 क के अंतर्गत मूल कर्त्तव्यों की व्यवस्था की गई। हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन-2020 में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने मूल कर्त्तव्यों पर सभी का ध्यान आकर्षित किया और इस विषय को चर्चा के केंद्र में ला दिया। मूल अधिकार से तात्पर्य
संविधान में प्रदत्त मूल अधिकार
मूल अधिकारों की विशेषताएँ
मूल अधिकारों का महत्त्व
आलोचना के बिंदु
वस्तुतः अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन-2020 में अधिकारों और कर्त्तव्यों के विषय पर चर्चा करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का भी मत था कि लोगों द्वारा कर्त्तव्यों का निर्वाह किये बिना सिर्फ अधिकारों की मांग करना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। मूल कर्त्तव्य नागरिकों को नैतिक उत्तरदायित्व का बोध भी कराते हैं। अधिकार एवं कर्तव्य एक-दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। वर्ष 1976 में सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा मूल कर्त्तव्यों की व्यवस्था की गई। 42वाँ संविधान संशोधन अधिनियम
मूल कर्त्तव्य से तात्पर्य
मूल कर्त्तव्यों की सूची
मूल कर्त्तव्यों की विशेषताएँ
मूल कर्त्तव्यों का महत्त्व
मूल कर्त्तव्यों की आलोचना
मूल अधिकार और कर्त्तव्य एक-दूसरे के पूरक
निष्कर्षअधिकारों से अभिप्राय है कि मनुष्य को कुछ स्वतंत्रताएँ प्राप्त होनी चाहिये, जबकि कर्त्तव्यों से तात्त्पर्य है कि व्यक्ति पर समाज के कुछ ऋण हैं। समाज का उद्देश्य किसी एक व्यक्ति का विकास न होकर सभी मनुष्यों के व्यक्तित्व का समुचित विकास है। इसलिये प्रत्येक व्यक्ति के अधिकार के साथ कुछ कर्त्तव्य जुड़े हुए हैं जिन्हें पूर्ण करने के लिये प्रत्येक व्यक्ति को अपना उत्तरदायित्व समझना चाहिये। मौलिक अधिकार जहाँ हमें देश में कहीं भी स्वतंत्र रूप से रहने-बसने की स्वतंत्रता देते हैं तो वहीं मौलिक कर्त्तव्य हमें देश के प्रति हमारे दायित्व को निभाने का आदेश देते हैं। प्रश्न: भारतीय संविधान में मूल अधिकारों तथा मूल कर्त्तव्यों की उपस्थिति एक संतुलनकारी समन्वय है। टिप्पणी करें। संवैधानिक अधिकार कितने प्रकार के होते हैं?संविधान द्वारा मूल रूप से सात मूल अधिकार प्रदान किए गए थे- समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धर्म, संस्कृति एवं शिक्षा की स्वतंत्रता का अधिकार, संपत्ति का अधिकार तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
संवैधानिक अधिकार में क्या है?कानूनी अधिकार। 'पूरी दुनिया' के खिलाफ अपने कानूनी और वैध दावों या हितों (जैसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता) की प्राप्ति या रक्षा में कानूनी इकाई के लिए कानूनी रूप से गारंटीकृत शक्तियां उपलब्ध हैं।
भारत के 6 मौलिक अधिकार कौन कौन से हैं?मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण. समानता का अधिकार : अनुच्छेद 14 से 18 तक।. स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद 19 से 22 तक।. शोषण के विरुध अधिकार : अनुच्छेद 23 से 24 तक।. धार्मिक स्वतंत्रता क अधिकार : अनुच्छेद 25 से 28 तक।. सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बंधित अधिकार : अनुच्छेद 29 से 30 तक।. संवैधानिक उपचारों का अधिकार : अनुच्छेद 32.. संवैधानिक दायित्व क्या है?यदि संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है तो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करने का दायित्व भी है। जहाँ एक ओर धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है, तो वहीं दूसरी ओर सर्वधर्म समभाव और संस्कृति की गौरवशाली परंपरा के परिरक्षण का भी दायित्व है।
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