स्थाई बंदोबस्त क्या था इसका किसानों पर क्या प्रभाव पड़ा? - sthaee bandobast kya tha isaka kisaanon par kya prabhaav pada?

स्थाई बंदोबस्त क्या था इसका किसानों पर क्या प्रभाव पड़ा? - sthaee bandobast kya tha isaka kisaanon par kya prabhaav pada?

बंगाल में स्थायी बन्दोबस्त लागू करने वाले रौशन उर्फ रेक्स

वारेन हेस्टिंग्ज द्वारा बंगाल में स्थापित कर संग्रहण की ठेकेदारी व्यवस्था से किसानों की स्थिति सोचनीय हो गयी थी। इस स्थिति में सुधार के लिए कंपनी सरकार ने लार्ड कार्नवालिस को स्थायी सुधार के लिए नियुक्त किया।स्थायी बंदोबस्त अथवा इस्तमरारी बंदोबस्त ईस्ट इण्डिया कंपनी और बंगाल के जमींदारों के बीच कर वसूलने से सम्बंधित एक स्थाई व्यवस्था हेतु सहमति समझौता था जिसे बंगाल में लार्ड कार्नवालिस[1] द्वारा 22 मार्च, 1793 को लागू किया गया। इसके द्वारा तत्कालीन बंगाल और बिहार में भूमि कर वसूलने की जमींदारी प्रथा को आधीकारिक तरीका चुना गया। बाद में यह कुछ विनियामकों द्वारा पूरे उत्तर भारत में लागू किया गया।[1]

उसने सबसे पहले बंगाल में प्रचलित भू राजस्व व्यवस्था का पूरा अध्ययन किया। उसके समक्ष तीन प्रमुख प्रश्न थे-

१)जमींदार या कृषक में से किसके साथ व्यवस्था की जाए।

२)कंपनी की भूमि की उपज में क्या भाग होना चाहिए?

३) भूमि व्यवस्था अस्थाई होनी चाहिए यह 10 वर्षों के लिए होनी चाहिए।

उपरोक्त प्रश्नों के हल के लिए राजस्व बोर्ड के प्रधान सर जॉन शार और अभिलेख पाल(Record keeper) जेम्स ग्रांट के साथ लॉर्ड कार्नवालिस का लंबा वाद विवाद हुआ। लॉर्ड कार्नवालिस ने जमींदारों को भूमि का स्वामी मान लिया और 1790 ईस्वी में उनसे 10 वर्षीय व्यवस्था की। 1793 ई. में उसने इस व्यवस्था को स्थाई बना दिया। इस व्यवस्था के अंतर्गत जमींदारों को एक निश्चित राशि पर भूमि दे दी गई। जमींदार की मृत्यु के पश्चात उसके उत्तराधिकारी को भूमि का स्वामित्व प्राप्त हो जाता था। जमींदारों को यह निश्चित राशि एक निश्चित समय को सूर्यास्त के पहले चुका देनी पड़ती थी नहीं तो उनकी जमीन नीलाम कर दी जाती थी इस कानून को सूर्यास्त कानून कहा जाता था।

इस बंदोबस्त के अन्य दूरगामी परिणाम भी हुए और इन्ही के द्वारा भारत में पहली बार आधिकारिक सेवाओं को तीन स्पष्ट भागों में विभक्त किया गया और राजस्व, न्याय और वाणिज्यिक सेवाओं को अलग-अलग किया गया।

जमींदारी व्यवस्था अंग्रेजो की देन थी इसमें कई आर्थिक उद्देश्य निहित थे इस पद्दति को जांगीरदारी, मालगुजारी, बिसवेदारी, इत्यादि भिन्न भिन्न नामों से भी जाना जाता था

पृष्ठभूमि[संपादित करें]

इससे पहले बंगाल, बिहार और ओडिशा के ज़मीनदारों ने बंगाल में मुगल सम्राट और उनके प्रतिनिधि दीवाण की तरफ से राजस्व एकत्र करने का अधिकार ग्रहण किया था। दीवान ने यह सुनिश्चित करने के लिए ज़मीनदारों की देखरेख की कि वे न तो ढीला और न ही कड़े कड़े थे। जब ईस्ट इंडिया कंपनी को 1764 में बक्सर की लड़ाई के बाद साम्राज्य द्वारा दिवाणी या बंगाल की अधिपति से सम्मानित किया गया था, तो यह खुद को प्रशिक्षित प्रशासकों की कमी पाया, विशेष रूप से स्थानीय प्रथा और कानून से परिचित लोगों को। नतीजतन, भूमिधारकों को भ्रष्ट और आलोक अधिकारियों के बारे में बताया गया इसका नतीजा यह था कि भविष्य की आय या स्थानीय कल्याण के लिए बिना कमाई निकाली गई। इसमें जमींदारों को कर संग्रह कि कुल राशि का 89 प्रतिशत कंपनी को देना पडता था और 11 प्रतिशत अपने पास रखना होता था।ज़मींदारों पे सूर्यास्त कानून लागू किया गया

स्थायी बन्दोबस्त के गुण[संपादित करें]

१) इस व्यवस्था से कंपनी को प्रथम लाभ यह हुआ कि कंपनी की आय निश्चित हो गई। उसे एक निश्चित तिथि को एक निश्चित राशि प्राप्त हो जाती थी। अतः कंपनी का बजट तैयार करने में सुविधा होती थी

२) अब कंपनी को प्रत्येक किसान से भूमि राजस्व वसूल करने के उत्तरदायित्व से मुक्ति मिल गई। अब कंपनी को अपने साम्राज्य का विस्तार तथा व्यापार के विस्तार का समय मिल गया।

३) अब जमींदार कंपनी के स्वामी भक्त बन गए और ब्रिटिश विरोधी जो आंदोलन हुए उसमें उन्होंने कंपनी के सहायता की। इन जमींदारों ने तन मन से अंग्रेजों की सेवा की।

४) स्थाई बंदोबस्त बंगाल के जमींदारों के लिए एक वरदान सिद्ध हुआ। अब कंपनी ने उन्हें भूमि का स्वामी स्वीकार कर लिया। जमींदारों को पूरा भरोसा गया कि जब तक वह निश्चित राशि कंपनी को चुकाते रहेंगे तब तक वह भूमि के स्वामी बने रहेंगे। अब उन्हें और किसी प्रकार का कर नहीं चुकाना पड़ता था।

५) स्थायी बंदोबस्त से यह भी लाभ हुआ कि कृषि में उत्पादन बहुत अधिक बढ़ गया। इसके फलस्वरूप बंगाल शीघ्र ही भारत का सबसे समृद्ध प्रांत बन गया। इसे व्यापार और उद्योग को भी बढ़ावा मिला।[2]

स्थायी बंदोबस्त के दोष तथा सीमाएं-[संपादित करें]

१) राजस्व की राशि इतनी अधिक निर्धारित की गई थी कि बहुत से जमीदारी से निर्धारित समय पर कर चुका नहीं पाए जिसके कारण उन्हें भूमि के स्वामित्व से वंचित होना पड़ा।

२)निलामी के समय अधिक भूमि शहर के धनी वर्ग के लोगों ने ले लिया जिन्हें कृषि का कोई अनुभव ही नहीं था यह लोग किसानों से बहुत अधिक राजस्व लेते थे।

३) इस व्यवस्था की सबसे बड़ी त्रुटि थी कि किसान पूर्ण रूप से जमींदारों की दया पर आश्रित हो ग‌ए। जमींदार को जमीन का मालिक और किसान को उनका रैयत बना दिया। किसानों का जमीन पर से सभी मालिकाना हक छीन लिया गया। इसके घातक परिणाम हुए इसे कृषि उपज कम हो गई।

४) स्थाई बंदोबस्त से ईट ईस्ट इंडिया कंपनी पर भी बुरा प्रभाव पड़ा। कंपनी की आमदनी तो स्थाई हो गई लेकिन उसके खर्च में बढ़ोतरी होती ग‌ई। इस कारण कंपनी को आर्थिक संकट से जूझना पड़ा।

५) जमींदारों से केवल संपर्क होने के कारण आम लोगों के बारे में कंपनी को जानकारी नहीं रही। इसी कारण इतिहासकार होमलेस ने इस व्यवस्था को दुखद मुर्खता भरी भूल (Sad blunder) कहा है।[3]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. ↑ अ आ "Cornwallis Code". Encyclopedia Britannica. 4 February 2009. मूल से 8 जनवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 February 2017.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 24 जनवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 जुलाई 2020.
  3. "संग्रहीत प्रति". मूल से 24 सितंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 जुलाई 2020.

स्थाई बन्दोबस्त का मॉडल सर जॉन शोर ने दिया था। इसे बंगाल,बिहार,उडीसा,बनारस एवं मद्रास के उत्तरी जिलों में लागू की गई थी|

स्थाई बंदोबस्त से क्या समझते हैं बताइए?

स्थायी बंदोबस्त अथवा इस्तमरारी बंदोबस्त ईस्ट इण्डिया कंपनी और बंगाल के जमींदारों के बीच कर वसूलने से सम्बंधित एक स्थाई व्यवस्था हेतु सहमति समझौता था जिसे बंगाल में लार्ड कार्नवालिस द्वारा 22 मार्च, 1793 को लागू किया गया।

स्थाई बंदोबस्त से आप क्या समझते हैं इसके लाभ एवं हानियों का वर्णन करें?

स्थायी बंदोबस्त से सबसे ज्यादा लाभ जमींदारों को हुआ. वे जमीन के वास्तविक स्वामी बन गए और उनका यह अधिकार वंशानुगत था. यह वर्ग भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ को मजबूत करने में सहयोग करने लगे. दूसरी ओर भूमि पर स्थाई स्वामित्व ही जाने से वे कृषि विकास के कार्य में रूचि लेने लगे जिससे उत्पादन में वृद्धि होने लगी.

स्थाई बंदोबस्त की विशेषता क्या है?

स्थाई बंदोबस्त की विशेषताएँ जमींदारों को लगान वसूली के साथ-साथ भ-ू स्वामी के अधिकार भी प्राप्त हुये। सरकार को दिये जाने वाले लगान की राशि को निश्चित कर दिया गया, जिसे अब बढ़ाया नहीं जा सकता था। जमींदारों द्वारा किसानों से एकत्र किये हुये भूमि कर का 10/11 भाग सरकारी को देना पड़ता था। शेष 1/11 अपने पास रख सकते थे।

स्थायी बंदोबस्त क्यों किया गया?

स्थायी बंदोबस्त या इस्तमरारी व्यवस्था इन भू-राजस्व नीतियों में सबसे महत्त्वपूर्ण थी। यह एक दीर्घकालिक (सामान्यत: 10 वर्ष) व्यवस्था थी। इसमें लगान की दर ज़मींदारों और उनके उत्तराधिकारियों के लिये निश्चित कर दी गई, जो भविष्य में बदली नहीं जा सकती थी।