सातुड़ी तीज को क्या कहते हैं? - saatudee teej ko kya kahate hain?

10 अगस्त को सातुड़ी तीज है। रक्षाबंधन के तीसरे दिन आने वाला ये त्यौहार सुहागिनों और कुंवारी कन्याओं के बीच धार्मिक उल्लास लेकर आता है। सातुड़ी तीज को देश के कई हिस्सों में सौंधा के नाम से भी जाना जाता है।

दरअसल इस मौसम में तीज व्रत मनाने का अवसर तीन बार आता है। पहले हरियाली तीज मनाई जाती है, जो इस बार 26 जुलाई को थी। फिर 10 अगस्त माने गुरुवार को सातुड़ी तीज मनाई जा रही है। सबसे आखिर में 24 अगस्त को हरितालिका तीज मनाई जाएगी।

तो चलिए आपको बताते है कि असल में क्या है ये सातुड़ा तीज का त्यौहार और इसे क्यों मनाया जाता है। सातुड़ी तीज को कजली तीज और बड़ी तीज भी कहते है। इस पर्व पर सत्तु के बने विशेष व्यंजनों का आदान-प्रदान होता है।

इस दिन नीम की पूजा की जाती है। कन्याएं व सुहागिनें व्रत रखकर संध्या को नीमड़ी की पूजा करती हैं। कन्याएं सुन्दर,सुशील वर तथा सुहागिनें पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। वे तीज माता की कथा सुनती हैं। मन्दिरों में देवों के दर्शन करती हैं।

यह उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। जिस तरह पंजाब में करवा चौथ के दिन सुबह सरगी की जाती है इसके बाद कुछ नहीं खाया जाता और दिन भर व्रत चलता है उसी प्रकार इस व्रत में भी एक समय आहार करने के पश्चात दिन भर कुछ नहीं खाया जाता है। शाम को चंद्रमा की पूजा कर कथा सुनी जाती है। नीमड़ी माता की पूजा करके नीमड़ी माता की कहानी सुनी जाती है।

यह व्रत सिर्फ पानी पीकर किया जाता है। चांद उदय होते नहीं दिख पाए तो चांद निकलने का समय टालकर आसमान की ओर अर्घ्य देकर व्रत खोल सकते हैं। गर्भवती स्त्री फलाहार कर सकती हैं। इस तरह तीज माता की पूजा सम्पन्न होती है।

नीमड़ी माता की कहानी – सातुड़ी तीज के उद्यापन की विधि – सातुड़ी तीज के उद्यापन की विधि – 25 अगस्त – 2021 चन्द्रोदय: 20-43

रक्षा बंधन के दो दिन बाद भाद्रपद कृष्ण तृतीया को कजली तीज, बड़ी तीज या सातुड़ी तीज का त्यौहार व्यापक रूप से मनाया जाता है।

व्रत के पूर्व की तैयारी

बड़ी तीज के एक दिन पूर्व सिर धोकर , चारों हाथ पैरों के मेहंदी लगाई जाती है। सवा किलो या सवा पाव चने की दाल को सेक कर और पीस कर उसमें पिसी हुई शक्कर और घी मिला कर सातू तैयार किया जाता है। सातू जौ, गेहूं, चावल या चने आदि का भी मनाया जा सकता है।

पूजन सामग्री – एक छोटा सातू का लड्डू, नीम के पेड़ की एक छोटी टहनी, दीपक, केला, अमरुद, ककड़ी, दूध मिश्रित जल, कच्चा दूध, मोती की लड़, पूजा की थाली व जल का कलश।

पूजन की तैयारी – मिट्टी व गोबर से दीवार के सहारे एक छोटा सा ढेर बनाकर उसके बीच में नीम के पेड़ की टहनी रोप देते हैं। इस नीम की टहनी के चारों तरफ कच्चा दूध मिश्रित जल डाल देते हैं। इसके पास एक दीपक जलाकर रख देते हैं।

पूजा विधान – इस दिन पूरे दिन उपवास किया जाता है और शाम को नीमडी माता का पूजन किया जाता हैं सर्वप्रथम नीमडी माता के जल के छींटे , फिर रोली के छींटे दें और चाँवल चढ़ाएँ। इसके बाद पीछे दीवार पर रोली, मेहंदी और काजल की तेरह बिंदियाँ अपनी अंगुली से लगायें। फिर नीमडी माता के मोली चढ़ाएं, मेहंदी, काजल और वस्त्र भी चढ़ाएं। दीवार पर लगायी गयी बिंदियों पर भी मेहंदी की सहायता से लच्छा चिपका दें। फिर नीमडी माता के ऋतु फल दक्षिणा चढ़ाएं। पूजन करके कथा या कहानी सुननी चाहिये। रात को चाँद उगने पर उसकी तरफ जल के छींटे देवें फिर चाँदी की अंगूठी व गेहूं हाथ में लेकर जल से चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। ( इस दिन चँद्रमा के उगने का समय ऊपर दिया हुआ है।) इसके बाद व्रत खोला जाता है।

एक साहूकार था ,उसके सात बेटे थे। उसका सबसे छोटा बेटा पांगला (पाव से अपाहिज़) था। वह रोजाना एक वेश्या के पास जाता था। उसकी पत्नी बहुत पतिव्रता थी। खुद उसे कंधे पर बिठा कर वेश्या के यहाँ ले जाती थी। बहुत गरीब थी। जेठानियों के पास काम करके अपना गुजारा करती थी।

भाद्रपद के महीने में कजली तीज के दिन सभी ने तीज माता के व्रत और पूजा के लिए सातु बनाये।

छोटी बहु गरीब थी उसकी सास ने उसके लिए भी एक सातु का छोटा पिंडा बनाया। शाम को पूजा करके जैसे ही वो सत्तू पासने लगी उसका पति बोला मुझे वेश्या के यहाँ छोड़ कर आ

हर दिन की तरह उस दिन भी वह पति को कंधे पैर बैठा कर छोड़ने गयी , लेकिन वो बोलना भूल गया की तू जा।

वह बाहर ही उसका इंतजार करने लगी इतने में जोर से वर्षा आने लगी और बरसाती नदी में पानी बहने लगा । कुछ देर बाद नदी आवाज़ से

आवाज़ आई “आवतारी जावतारी दोना खोल के पी। पिव प्यारी होय” आवाज़ सुनकर उसने नदी की तरफ देखा तो दूध का दोना नदी में तैरता हुआ आता दिखाई दिया। उसने दोना उठाया और सात बार उसे पी कर दोने के चार टुकड़े किये और चारों दिशाओं में फेंक दिए।

उधर तीज माता की कृपा से उस वेश्या ने अपना सारा धन उसके पति को वापस देकर सदा के लिए वहाँ से चली गई।

पति ने सारा धन लेकर घर आकर पत्नी को आवाज़ दी ” दरवाज़ा खोल ” तो उसकी पत्नी ने कहा में दरवाज़ा नहीं खोलूँगी। तब उसने कहा कि अब में वापस नहीं जाऊंगा। अपन दोनों मिलकर सातु पासेगें।

लेकिन उसकी पत्नी को विश्वास नहीं हुआ, उसने कहा मुझे वचन दो वापस वेश्या के पास नहीं जाओगे। पति ने पत्नी को वचन दिया तो उसने दरवाज़ा खोला और देखा उसका पति गहनों और धन माल सहित खड़ा था। उसने सारे गहने कपड़े अपनी पत्नी को दे दिए। फिर दोनों ने बैठकर सातु पासा।

सुबह जब जेठानी के यहाँ काम करने नहीं गयी तो बच्चे बुलाने आये काकी चलो सारा काम पड़ा है। उसने कहा अब तो मुझ पर तीज माता की पूरी कृपा है अब मै काम करने नहीं आऊंगी। बच्चो ने जाकर माँ को बताया की आज से काकी काम करने नहीं आएगी उन पर तीज माता की

कृपा हुई है वह नए – नए कपडे गहने पहन कर बैठी है और काका जी भी घर पर बैठे है। सभी लोग बहुत खुश हुए।

हे! तीज माता! जैसे आप उस पर प्रसन्न हुई वैसे ही वैसी ही सब पर प्रसन्न होना, सब के दुःख दूर करना। बोलो तीज माता की जय!

सातुड़ी तीज के उद्यापन की विधि

चार बड़े पिंडे सातु के बनाएँ एक सासू का , एक मंदिर का , एक पति का , एक खुद का

सातु के सत्रह पिंडे सवा पाव -सवा पाव के बनाये ( सोलह सुहागन के लिए , एक सांख्या के लिए

सत्रह स्टील के प्याले मंगवा ले।

पिंडों को प्लेटो में रख कर,  कुमकुम टीका करे और सब पर लच्छा, सुपारी, सिक्का, गिट लगाये। चाहें तो साथ में बिंदी का एक पत्ता भी रख सकते है।

अब ये सातु पिंड वाली प्लेट एक एक करके सोलह सुहागनों को दे दें ।

एक बड़े पिंडे पर बेस (साड़ी ब्लाउज), सुहाग का सामान (काजल , बिंदी ,चूड़ी आदि ) और रूपये रख कर (51 ,101 इच्छानुसार) कलपना निकाले व सासु जी को दें और पाँव छू कर आशीर्वाद लें। ये कलपना या बयाना होता है। इसे सासू न हो तो ननद को या किसी बुजुर्ग स्त्री को जिसने आपके साथ पूजा की हो उसे दे सकते है। इसे सबसे पहले करके बाद में सोलह सुहागन को सातु दिया जा सकता है।

एक बड़ा पिंडा मंदिर में दे दें।
एक बड़ा पिंडा पति को झिला दें।
एक पिंडा खुद के लिए रख लें।

अब संखिया (देवर या घर का कोई भी लड़का जैसे भांजा , भतीजा जा आपसे उम्र में छोटा हो –सगे भाई के अलावा) को टावेल या पेंट शर्ट व सातु वाली प्लेट , कुछ पैसे इच्छानुसार दे और कान में धीरे से बोले मेरी बड़ी तीज का उद्यापन की हामी भरना, मैने उद्यापन किया है मान लेना।

सातुड़ी तीज क्या होती है?

सातुड़ी तीज को कजली तीज और बड़ी तीज भी कहते है। सातुड़ी तीज की पूजा करते है। सातुड़ी तीज की कथा, नीमड़ी माता की कथा, गणेश जी की कथा और लपसी तपसी की रोचक कहानी सुनते हैं। इस पर्व पर सत्तु के बने विशेष व्यंजनों का आदान प्रदान होता है।

सातुड़ी तीज की पूजा कैसे करते हैं?

नीबू, ककड़ी, केला, सेब, सातु, रोली, मौली, अक्षत आदि थाली में रख लें। एक छोटे लोटे में कच्चा दूध लें। इस दिन पूरे दिन सिर्फ पानी पीकर उपवास किया जाता है और सुबह सूर्य उदय से पहले धमोली की जाती है इसमें सुबह मिठाई,फल आदि का नाश्ता किया जाता है। सुबह नहा धोकर महिलाएं सोलह बार झूला झूलती हैं, उसके बाद ही पानी पीती है।

तीज का दूसरा नाम क्या है?

इस प्रकार से कठिन तप और व्रत के पुण्य से माता पार्वती को मनचाहे वर की प्राप्ति हुई. इस वजह से हर साल युवतियां मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए हरतालिका तीज व्रत करने लगीं. इस तरह से इस व्रत का नाम हरतालिका तीज पड़ा.

सातुड़ी तीज कब है 2022?

इस साल कजरी तीज व्रत (Kajari Teej Vrat) कल यानी 14 अगस्त 2022 दिन रविवार को है. इसे कजली तीज या सातुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है.