संत सुजान सिंह जी इंटरनेशनल स्कूल की स्थापना 5 अप्रैल 1999 के शुभ दिन पर की गई थी। इसकी स्थापना संत गुरुमुख सिंह जी ने एक नेक कार्य के लिए की थी और अपने पूजनीय पिता की स्मृति को बनाए रखने के लिए, एक प्रतिष्ठित संत के रूप में जाना जाता था, जिन्हें सन्त सुजान सिंह जी महरजत्ता संस्थान के रूप में जाना जाता है, जो मममा जी (श्रीमती प्रभजोत कौर) से बहुत प्यार और स्नेह करते हैं। जहां हम गतिशील योजना के आधार पर भविष्य के लिए कल की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गतिशील भविष्य के आधार पर एक € ightbright भविष्य का लक्ष्य रखते हैं। € ™ हम प्रतिभा और सभी प्रकार की योग्यता की तलाश करते हैं और उत्कृष्टता के मानकों के लिए उन्हें बढ़ावा देते हैं। यह हमारे बच्चों के बौद्धिक और निर्माण की क्षमता का दोहन करने का हमारा निरंतर और अटूट प्रयास है। कई क्षेत्रों में फैले नैतिकता, चरित्र, अनुशासन, शैक्षणिक और वैज्ञानिक ज्ञान के संदर्भ में एक युवा बच्चे के विकास के लिए अच्छी शिक्षा अत्यंत आवश्यक है, बौद्धिक संकाय को बढ़ाने के लिए एक समर्पण और एक प्रोत्साहन और कैरियर के लिए एक पेशेवर योग्यता का निर्माण करना। वह रेखा जो प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वाद और अंतर्निहित वृत्ति के अनुसार एक विकासशील व्यक्तित्व की भावनाओं और तंत्रिकाओं में सन्निहित होता है। इस उद्देश्य और मिशन को ध्यान में रखते हुए, हमारा स्कूल बच्चे को कठिन और कठिन कार्य के लिए तैयार करता है। इस तरह भविष्य का रास्ता आसान हो जाता है और लक्ष्य प्राप्त होते हैं। दोहे का हिंदी मीनिंग: यदि किसी व्यक्ति (नुगरे व्यक्ति को जो ईश्वर को नहीं मानता है ) सच्चा गुरु मिल जाए तो वह चारों खानी से व्यक्ति को छुड़ा सकता है। अच्छे और ज्ञानी गुरु की संगत से बुरा व्यक्ति भी नेक राह पर चलकर सुजान बन सकता है। क्योंकि गुरु उसे 'राम नाम' नाम का मन्त्र देता है जिससे वह चारों खानी (समस्त दुखों और संकटों ) से मुक्ति मिल जाती है। गुरु की पहचान के विषय में कबीर साहेब ने विस्तृत रूप से वर्णन किया है। गुरु सो ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजये दान। Guru So Gyaan Ju Leejiye, Sees Deejaye Daan. गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय। Guru Kee Aagya Aavai, Guru Kee Aagya Jaay. गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त। Guru Paaras Ko Antaro, Jaanat Hain Sab Sant. दोहे का हिंदी मीनिंग: गुरु और पारस पत्थर में बहुत ही अंतर् होता है। जैसे पारस पत्थर अपने संपर्क में आने वाले पत्थर को सोने में बदल देता है, वैसे गुरु अपने संपर्क में आने वाले शिष्य को अपने समान कर लेता है। यह दोनों में मूल अंतर् होता है। अतः गुरु तो पारस पत्थर से भी श्रेष्ठ होता है। नुगरा के अंग :टेक न कीजै बाबरे, टेक माहि है हानि। साकट ते संत होत है जो गुरु मिले सुजान हिंदी मीनिंग Saakat Te Sant Hot Hain Hindi Meaning कबीर दोहे व्याख्या हिंदी में कबीर साहेब इन इस दोहे में स्वंय / आत्मा का परिचय देते हुए स्पष्ट किया है की मैं कौन हूँ, जाती हमारी आत्मा, प्राण हमारा नाम। अलख हमारा इष्ट, गगन हमारा ग्राम।। जब आत्मा चरम रूप से शुद्ध हो जाती है तब वह कबीर कहलाती है जो सभी बन्धनों से मुक्त होकर कोरा सत्य हो जाती है। कबीर को समझना हो तो कबीर को एक व्यक्ति की तरह से समझना चाहिए जो रहता तो समाज में है लेकिन समाज का कोई भी रंग उनकी कोरी आत्मा पर नहीं चढ़ पाता है। कबीर स्वंय में जीवन जीने और जीवन के उद्देश्य को पहचानने का प्रतिरूप है। कबीर का उद्देश्य किसी का विरोध करना मात्र नहीं था अपितु वे तो स्वंय में एक दर्शन थे, उन्होंने हर कुरीति, बाह्याचार, मानव के पतन के कारणों का विरोध किया और सद्ऱाह की और ईशारा किया। कबीर के विषय में आपको एक बात हैरान कर देगी। कबीर के समय सामंतवाद अपने प्रचंड रूप में था और सामंतवाद की आड़ में उनके रहनुमा मजहब के ठेकेदार अपनी दुकाने चला रहे थे। जब कोई विरोध का स्वर उत्पन्न होता तो उसे तलवार की धार और देवताओं के डर से चुप करवा दिया जाता। तब भला कबीर में इतना साहस कहाँ से आया की उन्होंने मुस्लिम शासकों के धर्म में व्याप्त आडंबरों का विरोध किया और सार्वजनिक रूप से इसकी घोषणा भी की। कबीर का यही साहस हमें आश्चर्य में डाल देता है। जहाँ एक और कबीर ने हर आडंबर और बाह्याचार का विरोध किया वहीँ तमाम तरह के अत्याचार सहने के बावजूद कबीर की वाणी में प्रतिशोध और बदले की भावना कहीं नहीं दिखती है। कबीर साहेब ने आम आदमी को धर्म को समझने की राह दिखलाई। जहाँ धर्म वेदों के छंदों, क्लिष्ट श्लोकों, वृहद धार्मिक अनुष्ठान थे जिनसे आम जन त्रस्त था, वही कबीर ने एक सीधा सा समीकरण लोगों को समझाया की ईश्वर ना तो किसी मंदिर विशेष में है और ना ही ईश्वर किसी मस्जिद में, ना तो वो काबे तक ही सीमित है और ना ही कैलाश तक ही, वह तो हर जगह व्याप्त है। आचरण की शुद्धता और सत्य मार्ग का अनुसरण करके कोई भी जीवन के उद्देश्य को पूर्ण कर सकता है। यही कारण है की कबीर साहेब ने किसी भी पंथ की स्थापना नहीं की, यह एक दीगर विषय है की आज कुछ लोग अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए कबीर साहेब के बताये मार्ग का अनुसरण नहीं कर रहे हैं और वास्तव में उसके विपरीत कार्य कर रहे हैं जो की एक गंभीर विषय है। कबीर साहेब के विषय में एक बात और है जो गौरतलब है उनका ख़ालिश सत्य के साथ होना, उसमे हिन्दू मुस्लिम, बड़े छोटे का कोई भेद नहीं था। जहाँ एक और विदेशी शासकों के मुस्लिम धर्म में व्याप्त अंधविश्वास और स्वार्थ जनित रीती रिवाजों का विरोध कबीर साहेब ने किया वहीँ उन्होंने हिन्दू धर्म में व्याप्त पोंगा पंडितवाद, धार्मिक भाह्याचार, कर्मकांड, अंधविश्वास, चमत्कार, जाति प्रथा का भी मुखर विरोध किया। वस्तुतः कबीर आम जन, पीड़ित, शोषित, लोगों की जबान थे और इन लोगों ने कबीर के पथ का अनुसरण भी किया। उल्लेखनीय है की कबीर साहेब ने ईश्वर को लोगों तक पहुंचाया। वेदों की भारी भरकम ऋचाएं, संस्कृत की क्लिष्टता को दूर करते हुए कबीर साहेब ने लोगो को एक ही सूत्र दिया की ईश्वर किसी ग्रन्थ विशेष, स्थान विशेष तक ही सिमित नहीं है, वह हर जगह व्याप्त है। कोई भी व्यक्ति सत्य को अपनाकर ईश्वर की प्राप्ति बड़ी ही आसानी से कर सकता है। मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे कबीर साहेब ने अपने अंतिम समय के लिए 'मगहर' को क्यों चुना ? Why Kabir went to 'Magahar' in his Last Time : कबीर साहेब ताउम्र लोगों के अंधविश्वास के खंडन करते रहे और अपने अंतिम समय में भी उन्होंने 'मगहर को चुना जिसके माध्यम से वे लोगों में व्याप्त एक और अंध प्रथा का खंडन करना चाहते थे। काशी या वाराणशी को लोग बहुत ही पवित्र और मोक्षदायिनी मानते थे जबकि इसके विपरीत मगहर के विषय में प्रचलित मान्यता यह थी की यदि कोई मगहर में अपने प्राणों का त्याग करता है तो वह अगले जन्म में गधा बनेगा या फिर नरक का भागी होगा। कबीर ने इस विषय पर लोगो को समझाया की स्थान विशेष का पुनर्जन्म से कोई सीधा सबंध नहीं है। यदि व्यक्ति सद्कर्म करता है और ईश्वर की प्राप्ति हेतु सत्य अपनाता है तो भले ही वह मगहर में अपने प्राण त्यागे उसका जीवन सफल होता है। ‘क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा क्या कबीर साहेब विवाहित थे : जिस प्रकार से कबीर साहेब के माता पिता के सबंध में अनेकों विचार प्रसिद्द हैं तो एक दुसरे से मुख्तलिफ हैं, वैसे ही उनके परिवार के विषय में कोई भी एक मान्य राय की सुचना उपलब्ध नहीं है। कबीर को जहाँ कुछ लोग अविवाहित मानते हैं वही कुछ लोग कबीर का भरा पूरा परिवार बताते हैं। इन्ही मान्यताओं के आधार पर ऐसा माना जाता है की कबीर साहेब की पत्नि का नाम लोई था। कबीर पंथ के विद्वान व्यक्ति कहते हैं की कबीर ब्रह्मचारी थे और वे नारी को साधना में बाधक मानते थे। नारी कुण्ड नरक का, बिरला थंभै बाग। कोई साधू जन ऊबरै, सब जग मूँवा लाग॥ साकट ते संत होत है जो गुरु मिले सुजान हिंदी मीनिंग Saakat Te Sant Hot Hain Hindi Meaning कबीर दोहे व्याख्या हिंदी में पहलो कुरूप, कुजाति, कबीर साहेब के पुत्र का नाम कमाल माना जाता है। बूडा़ वंश कबीर का, उपजा पूत कमाल। कबीर के विचार जो बदल सकते हैं आपका जीवन / Kabir Thoughts Can Change Your Life :
कबीर के गुरु कौन थे Who Was Kabir's Guru : मान्यता है की कबीर साहेब के गुरु का नाम रामानंद जी थे। "काशी में परगट भये , रामानंद चेताये " हालाँकि कबीर साहेब के जानकारों की एक अलाहिदा राय है की कबीर साहेब स्वंय परमब्रह्म थे और उनका कोई गुरु नहीं था। कबीर साहेब का जन्म कहाँ हुआ : When was Kabir Born : महान संत और आध्यात्मिक कबीर दास का जन्म वर्ष 1440 में और मृत्यु वर्ष 1518 में हुई थी। इस्लाम के अनुसार ‘कबीर’ का अर्थ महान होता है। क्या कबीर साकार ईश्वर को मानते थे What are the ideas of Kabir on God : कबीर साहेब परम सत्ता को एक ही मानते थे उनके अनुसार लोगों ने उसका अपनी सुविधा के अनुसार नामकरण मात्र किया है जबकि वह एक ही है और सर्वत्र विद्यमान हैं। राम-रहीम एक है, नाम धराया दोय। कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परौ मति कोय।। वह किसी स्थान विशेष का मोहताज नहीं है, वह सर्वत्र विद्यमान है और वह घर पर भी है उसे ढूंढने के लिए किसी भी यात्रा की जरूरत हैं है। जो भी सत्य है वह ईश्वर ही है। कबीर साहेब ने तात्कालिक मूर्तिपूजा का घोर खंडन करते हुए ईशर को निराकार घोषित किया। कबीर साहेब ने मानव देह कब छोड़ी Where did Sant Kabir die? : कबीर साहेब ने जीवन भर लोगो को शिक्षाएं दी जो आज भी प्रसंगिक हैं और उन्होंने अपनी मृत्य को भी लोगो के समक्ष एक शिक्षा के रूप में रखा। उस समय मान्यता थी की यदि कोई काशी में मरता है तो स्वर्ग और मगहर में यदि कोई मरता है तो वह गधा बनता है, इसी रूढ़ि को तोड़ने के लिए कबीर साहेब ने मगहर को चुना। क्या कबीर सूफी संत थे Was Kabir a Sufi saint? : कबीर के विचार स्वतंत्र थे, निष्पक्ष थे और आडंबरों से परे थे, यही बात कबीर साहेब को अन्य पंथ और मान्यताओं से अलग करती है। कबीर साहेब सूफी संत नहीं थे लेकिन यह एक दीगर विषय है की बाबा बुल्ले शाह के विचार कबीर साहेब से बहुत मिलते जुलते हैं, मसलन- मक्का गयां गल मुकदी नाहीं, भावें सो सो जुम्मे पढ़ आएं कबीर साहेब ने किस भाषा में लिखा है In which language Kabir Das wrote : गौरतलब है की कबीर साहेब ने स्वंय कुछ भी नहीं लिखा है। जो भी लिखित है वह उनके समर्थक /अनुयायिओं के द्वारा कबीर साहेब की वाणी को सुन कर लिखा गया है। “मसि कागद छूऔं नहीं, कलम गहौं नहि हाथ चारों जुग कै महातम कबिरा मुखहिं जनाई बात” कबीर साहेब ने जो देखा वही कहा और यही कारण है की उनके अनुयायिओं के द्वारा विभिन्न भाषा / अपने क्षेत्र, अंचल की भाषा को काम में लिया गया जिसके कारन से हिंदी पंजाबी, राजस्थानी और गुजराती के शब्द हमें उनकी लेखनी में मिलते हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल इस इस मिलीजुली भाषा को सधुकड़ि भाषा का नाम दिया है। कबीर की जाति क्या थी? What is the Cast of Kabir, What is the Religion of Kabir Hindu or Muslim: वैसे तो यह सवाल ही अनुचित है की कबीर के जाति क्या थी क्योंकि कबीर ने सदा ही जातिवाद का विरोध किया। यह सवाल जहन में उठता है क्योंकि हम जानना चाहते हैं ! संत की कोई जाति नहीं होती और ना ही उसका कोई धर्म ! कबीर की जाति और धर्म जानने की उत्सुकता का कारन है की वस्तुतः हम मान लेते हैं की दलित साहित्य चिंतन और लेखन करने वाला दलित ही होना चाहिए। कबीर साहेब ने बरसों से चली आ रही सामजिक और जातिगत मान्यताओं को खारिज करते हुए मानव को मानव होने का गौरव दिलाया और घोषित किया कीएक बूंद एकै मल मूत्र, एक चम् एक गूदा। जातिगत और जन्म के आधार पर कबीर साहेब ने किसी की श्रेष्ठता मानने से इंकार किया। बहरहाल, क्या कबीर दलित थे ? मान्य चिंतकों और साहित्य की जानकारी रखने वाले विद्वानों के अनुसार कबीर साहेब दलित नहीं थे क्यों की समकालिक सामाजिक परिस्थितियों में दलितों को 'अछूत' माना जाता था। कबीर साहेब के विषय में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है। मान्यताओं के आधार पर कबीर साहेब जुलाहे (मुस्लिम जुलाहे ) से सबंध रखते थे और मुस्लिम समाज में अश्प्रश्य, छूआछूत जैसे कोई भी अवधारणा नहीं रही है, हाँ, गरीब और अमीर कुल का होना एक दीगर विषय हो सकता है। जाँति न पूछो साधा की पूछ लीजिए ज्ञान। इसके विपरीत आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी कबीर साहेब का जन्म ब्राह्मण जाती में होना बताते हैं और कबीर साहेब को 'नाथपंथी होना' बताते हैं। डॉक्टर धर्मवीर भारती जी के अनुसार कबीर साहेब मुस्लिम जुलाहे तो थे ही और अछूत भी थे जो कुछ समझ से परे की बात लगती है। कबीर साहेब दलित थे या नहीं यह विवाद का विषय हो सकता है लेकिन कबीर साहेब की दलित चेतना सभी को एक स्वर में मान्य है। kabir ke dohe pdf kabir ke dohe in english kabir ke dohe with meaning in hindi language kabir ke dohe song kabir ke dohe sakhi meaning in hindi kabir ke dohe audio kabir ke dohe class 10 kabir ke dohe videoसंत कबीर के दोहे कबीर के दोहे मीठी वाणी कबीर के दोहे साखी कबीर के दोहे डाउनलोड कबीर के दोहे mp3 कबीर के दोहे मित्रता पर कबीर के दोहे pdf कबीर के दोहे धर्म पर, कबीर साहेब के दलित चेतना पर विचार, कबीर साहेब के मूर्ति पूजा पर विचार, कबीर साहेब के धर्म पर विचार। kabir ke dohe pdf kabir ke dohe in english kabir ke dohe with meaning in hindi language kabir ke dohe song kabir ke dohe sakhi meaning in hindi kabir ke dohe audio kabir ke dohe class 10 kabir ke dohe videoसंत कबीर के दोहे कबीर के दोहे मीठी वाणी कबीर के दोहे साखी कबीर के दोहे डाउनलोड कबीर के दोहे mp3 कबीर के दोहे मित्रता पर कबीर के दोहे pdf कबीर के दोहे धर्म पर, कबीर साहेब के दलित चेतना पर विचार, कबीर साहेब के मूर्ति पूजा पर विचार, कबीर साहेब के धर्म पर विचार। Saroj Jangir : Lyrics Pandits |