नेपोलियन एक महान योद्धा विजेता था, ‘ग्रांड एंपायर’ का निर्माण उसके प्रयत्नों और प्रतिभा का परिणाम था। वह स्वयं में एक इतिहास था। उसका उत्कर्ष एक असाधारण घटना थी, परंतु उसका पतन भी कोई साधारण नहीं था। 1807 के बाद के वर्षों में उसकी एक के बाद एक पराजय ने उसको पतन के कगार पर खड़ा कर दिया। उसके पतन के लिए निम्न कारण उत्तरदायी थे— Show 1. नेपोलियन की महत्वाकांक्षा नेपोलियन एक महत्वकांक्षी व्यक्ति था। वह संपूर्ण यूरोप को अपने अधिकार में करना चाहता था। इसके लिए उसने अपने जीवन काल में लगभग 40 युद्ध लड़े और अधिकांश में सफलता प्राप्त की। उन सफलताओं में उसके सेनानायकों एवं सैनिकों का भी योगदान रहा परंतु सफलता का सारा श्रेय वह स्वयं लेने का प्रयास करता था, जिससे उसके कई विश्वस्त सेनानायक भी उससे रुष्ट रहने लगे, उसकी महत्वाकांक्षाओं के कारण उसकी सेना थक चुकी थी और उसके अधिकांश योग्य सेनापति भी समाप्त हो चुके थे। 2. राष्ट्रीयता का विकास विजित राष्ट्रों में राष्ट्रवाद की भावना का विकास नेपोलियन के पतन का प्रमुख कारण रहा। राष्ट्रवाद की भावना से प्रभावित होकर ही यूरोपीय देशों के लिए विदेशी शासन का विरोध करना उचित ही था। स्पेन, पुर्तगाल, आस्ट्रिया, रूस तथा प्रशा के निवासी राष्ट्रीय भावना से उत्प्रेरित होकर संघर्षरत हो गए। प्रबल राष्ट्रीय विरोध के आगे नेपोलियन की शक्ति टूटने लगी। क्रांतिकारी विचारधारा ने आत्म निर्णय के अधिकार के सिद्धांत को जन्म दिया था। धीरे-धीरे नेपोलियन के विरोध का स्वरूप राजनीतिक मात्र नहीं रह गया। भावनात्मक स्तर पर जुड़े राष्ट्र भर के लोग नेपोलियन के विरुद्ध अपने शासकों का समर्थन करने लग गए। 3. समय व्यर्थ व्यतीत करना नेपोलियन के दैनिक जीवन से ज्ञात होता है कि वह समय का बड़ा पाबंद था तथा समय कभी व्यर्थ व्यतीत नहीं करता था, परंतु उसने दो सैनिक अभियानों में समय व्यर्थ नष्ट किया। उनमें प्रमुख रूस का अभियान था। यदि वह रूस में व्यर्थ समय व्यतीत नहीं करता, तो उसकी शक्ति का विनाश नहीं होता। दूसरी घटना वाटरलू का युद्ध की है 18 जून, 1815 के वाटरलू युद्ध में नेपोलियन ने प्रातः काल के 4 घंटे व्यर्थ गंवा दिए। यदि वह 11:00 बजे आरंभ ना करके प्रातः 7:00 बजे आरंभ कर देता तो उसके जीतने की बहुत संभावना थी। यह 4 घंटे उसको सर्वदा के लिए ले बैठे और उसके भाग्य का सूर्य सदैव के लिए अस्त हो गया। 4. नौ—शक्ति की दुर्बलता नेपोलियन के पतन का एक प्रमुख कारण फ्रांस की नौ शक्ति की दुर्बलता था। उसने स्थल युद्धों में यूरोप के अधिकांश देशों को पराजित करने में सफलता प्राप्त की, परंतु वह इंग्लैंड को पराजित करने में सफल नहीं हुआ। इंग्लैंड ही का परम शत्रु था और वह ही नेपोलियन के विरुद्ध बार-बार गुटों का निर्माण करता रहा और गुट में सम्मिलित होने वाले देशों को सैनिक साज सामान से मदद करता था। इंग्लैंड के जहाजी बेड़े को परास्त करना आसान काम नहीं था क्योंकि इंग्लैंड की नौ शक्ति श्रेष्ठ थी। 5. भाई—भतीजावाद नेपोलियन का अपने संबंधियों के प्रति मोह भी उसके पतन का एक कारण रहा। वह जितना उनके प्रति दयालु था, वे उसके प्रति उतने ही कृतघ्न थे। नेपोलियन अपने भाइयों के व्यवहार से अत्यंत दु:खी था। 1810 में नेपोलियन ने मेटरनिख से एक बार शिकायत की थी, ”जितना लाभ मैंने अपने संबंधियों को पहुंचाया, उससे कहीं अधिक हानि उन्होंने मुझे पहुंचाई है।” संकट के समय किसी भी संबंधी ने उसकी सहायता नहीं। 6. महाद्वीपीय व्यवस्था नेपोलियन महाद्वीपीय नीति उसके लिए आत्मघाती सिद्ध हुई। नेपोलियन ने इंग्लैंड को परास्त करने के लिए एक ऐसे आर्थिक युद्ध का सहारा लिया, जिससे वह इंग्लैंड का प्रबल प्रतिद्वंदी बन गया, जो उस समय विश्व का एक शक्तिशाली राष्ट्र था। उसकी श्रेष्ठ नौसेना और विस्तृत औपनिवेशिक साम्राज्य उसकी शक्ति के आधार थे, जिन्हें नेपोलियन नहीं समझ सका। इंग्लैंड की विशेष भौगोलिक स्थिति ने उसे सदैव लाभ की स्थिति में रखा। इन्हीं कारणों से नेपोलियन की महाद्वीपीय व्यवस्था असफल हो गई। महाद्वीपीय नीति ने नेपोलियन को आक्रामक युद्धों की नीति में उलझा दिया। जिसके परिणाम नेपोलियन के लिए विनाशकारी साबित हुए। 7. स्पेन का राष्ट्रीय आंदोलन स्पेन का राजा नेपोलियन का घनिष्ठ मित्र था और उसने नेपोलियन को जन—धन और सामग्री से भरपूर सहायता भी दी थी, परंतु जब साम्राज्य लोलुप नेपोलियन ने उसे सिंहासनच्युत करके अपने भाई जोसेफ को स्पेन का राजा बना दिया, तो स्पेन की जनता उसके विरुद्ध उठ खड़ी हुई। स्पेन के राष्ट्रीय आंदोलन ने इंग्लैंड को यूरोप की धरती पर अपने पैर टिकाने का अवसर प्रदान कर दिया। स्पेन का आंदोलन उसके लिए एक नासूर सिद्ध हुआ। 8. पोप से शत्रुता जब पोप ने महाद्वीपीय व्यवस्था का पालन करने से इंकार कर दिया, तो नेपोलियन ने पोप का राज छीन लिया और पोप को ‘वेटिकन’ में बंदी बनाकर रखा गया। प्रत्युत्तर में पोप ने नेपोलियन को ईसाई समाज से बहिष्कृत कर दिया और समस्त निष्ठावान ईसाइयों से उसके विरुद्ध धर्म युद्ध करने की अपील की। परिणाम स्वरुप यूरोप का कैथोलिक समाज नेपोलियन का शत्रु बन गया। 9. स्वभावगत दोष नेपोलियन एक जिद्दी स्वभाव का महत्वाकांक्षी शासक था। सम्राट बनने के पश्चात् उसने अपने हितैषी सलाहकारों से राय लेना भी बंद कर दिया था। वह स्वयं द्वारा लिए गए निर्णयों को ही सर्वश्रेष्ठ मानने लगा। उन निर्णयों के विपरित किसी भी तरह की सलाह को वह स्वीकार नहीं करता था। 10. अधिनायकवादी सत्ता नेपोलियन ने गणतंत्र का गला घोंट निरकुंश राजतंत्र को पुन: प्रारम्भ कर दिया। उसने समाचार—पत्रों पर कठोर नियंत्रण लगा दिया। मजदूर संघटनों के बनने पर रोक लगा दी गई। उसने उस स्वतंत्रता का गला घोंट दिया जो फ्रांसिसी क्रांति से उद्भूत थी। क्रांतिकारी विचारधारा ने जनता के आत्मनिर्णय के अधिकार के सिद्धांत को जन्म दिया था मगर नेपोलियन ने सम्राट बन निरंकुश राजतंत्र के माध्यम से जनता के इस अधिकार को भी छीन लिया। राष्ट्रवाद के विकास में नेपोलियन प्रथम का क्या योगदान थे?- 1815 में, ब्रिटेन, रूस, प्रशा और ऑस्ट्रिया जैसी यूरोपीय शक्तियों जिन्होंने मिलकर नेपोलियन को हराया था के प्रतिनिधि यूरोप के लिए एक समझौता तैयार करने के लिए वियना में मिले।
राष्ट्रवाद से आप क्या समझते हैं तथा राष्ट्रवाद की पहली स्पष्ट अभिव्यक्ति किस क्रान्ति के साथ हुई?फ्रांसीसी क्रांति
राष्ट्रवाद की पहली अभिव्यक्ति: फ्रांस वह देश था जहाँ राष्ट्रवाद की पहली अभिव्यक्ति हुई। फ्रांसीसी क्रांति के परिणामस्वरूप फ्रांस की राजनीति और संविधान में कई बदलाव हुए। सन 1789 में सत्ता राजतंत्र से प्रजातांत्रिक संस्था के हाथों में चली गई। इस प्रजातांत्रिक संस्था का गठन नागरिकों द्वारा हुआ था।
नेपोलियन ने किन आर्थिक सुधारों की शुरुआत की?नेपोलियन ने उच्च शिक्षा, एक टैक्स कोड, सड़क और सीवर सिस्टम जैसे विभिन्न सुधारों की स्थापना की, और फ्रांसीसी इतिहास में पहला केंद्रीय बैंक, बांके डी फ्रांस की स्थापना की।
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