Show
भारत-दर्शन :: इंटरनेट पर विश्व की सबसे पहली ऑनलाइन हिंदी साहित्यिक पत्रिका Important Links
रसखान का जन्म सन् 1548 में हुआ माना जाता है। उनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था और वे दिल्ली के आस-पास के रहने वाले थे। कृष्ण-भक्ति ने उन्हें ऐसा मुग्ध कर दिया कि गोस्वामी विट्ठलनाथ से दीक्षा ली और ब्रजभूमि में जा बसे। सन् 1628 के लगभग उनकी मृत्यु हुई। सुजान रसखान और प्रेमवाटिका उनकी उपलब्ध कृतियाँ हैं। रसखान रचनावली के नाम से उनकी रचनाओं का संग्रह मिलता है। प्रमुख कृष्णभक्त कवि रसखान की अनुरक्ति न केवल कृष्ण के प्रति प्रकट हुई है बल्कि कृष्ण-भूमि के प्रति भी उनका अनन्य अनुराग व्यक्त हुआ है। उनके काव्य में कृष्ण की रूप-माधुरी, ब्रज-महिमा, राधा-कृष्ण की प्रेम-लीलाओं का मनोहर वर्णन मिलता है। वे अपनी प्रेम की तन्मयता, भाव-विह्नलता और आसक्ति के उल्लास के लिए जितने प्रसिद्ध हैं उतने ही अपनी भाषा की मार्मिकता, शब्द-चयन तथा व्यंजक शैली के लिए। उनके यहाँ ब्रजभाषा का अत्यंत सरस और मनोरम प्रयोग मिलता है, जिसमें ज़रा भी शब्दाडंबर नहीं है। Author's CollectionTotal Number Of Record :3 दोहे | रसखान के दोहेप्रेम प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोइ। कमल तंतु सो छीन अरु, कठिन खड़ग की धार। ... रसखान की पदावलियाँ | Raskhan Padawaliमानुस हौं तो वही रसखान बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन। रसखान के फाग सवैय्येमिली खेलत फाग बढयो अनुराग सुराग सनी सुख की रमकै। # खेलत फाग लख्यौ पिय प्यारी को ता मुख की उपमा किहीं दीजै। Total Number Of Record :3 सब्स्क्रिप्शनरसखान का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, कवि परिचय एवं भाषा शैली और उनकी प्रमुख रचनाएँ एवं कृतियाँ। “रसखान” का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय नीचे दिया गया है। जीवन परिचयरसखान सगुण काव्य-धारा की कृष्ण-भक्ति शाखा के कवि थे।
इनका वास्तविक नाम सैयद इब्राहीम था। ये दिल्ली के पठान सरदार कहे जाते हैं। कुछ विद्वान् इन्हें पिहानी का निवासी मानते हैं। किन्तु इस विषय में कोई प्रबल प्रमाण उपलब्ध नहीं है। वैसे रसखान किसी बादशाह के वंशज थे, ऐसा ‘प्रेमवाटिका’ की अधोलिखित पंक्तियों से स्पष्ट है- “देखि गदर हित साहिबी, दिल्ली नगर मसान। इनके जन्म के सम्बन्ध में मतभेद है। कुछ विद्वान इनका जन्म 1533 ई० मानते हैं। किन्तु मिश्रबन्धु ने 1548 ई० माना है। इनका जन्म दिल्ली में हुआ था। ये गुसाईं विट्ठलनाथ के शिष्य हो गये थे। इनका उपनाम रसखान ‘यथा नाम: तथा गुणः’ पर आधारित था, क्योंकि इनके एक-एक सवैये वास्तव में रस के खान हैं। सन् 1618 ई० के लगभग इनकी मृत्यु हुई। साहित्यिक परिचयरसखान आरम्भ से ही बड़े प्रेमी व्यक्ति थे। इनका लौकिक प्रेम भगवान् कृष्ण के प्रति अलौकिक प्रेम-भाव में परिवर्तित हो गया था। ये जितना कृष्ण के रूप-सौन्दर्य पर मुग्ध थे, उतना ही उनकी लीला-भूमि ब्रज के प्राकृतिक सौन्दर्य पर भी। कृष्ण के प्रति इनके प्रेम-भाव में बड़ी तीव्रता, गहनता और आवेशपूर्ण तन्मयता मिलती है। इसी कारण इनकी रचनाएँ हृदय पर मार्मिक प्रभाव डालती हैं। अपनी भाव-प्रबलता तथा सरलता के कारण इनकी रचनाएँ बड़ी लोकप्रिय हो गयी हैं। रचनाएँरसखान की दो पुस्तकें प्रसिद्ध हैं, ‘सुजान रसखान‘ और ‘प्रेमवाटिका‘। ‘सुजान रसखान’ की रचना कवित्त और सवैया छन्दों में हुई है तथा ‘प्रेमवाटिका’ की दोहा छन्द में। ‘सुजान रसखान’ भक्ति और प्रेम-विषयक मुक्तक काव्य है तथा इसमें 139 भावपूर्ण छन्द हैं। ‘प्रेमवाटिका’ में 25 दोहों में प्रेम के स्वरूप का काव्यात्मक वर्णन है। भाषा शैलीअन्य कृष्ण भक्त कवियों की भाँति इन्होंने परम्परागत पद-शैली का अनुसरण नहीं किया। इनकी मुक्तक छन्द-शैली की परम्परा रीतिकाल तक चलती रही। रसखान ने ब्रज भाषा में काव्य-रचना की। इनकी भाषा मधुर एवं सरस है। उसका स्वाभाविक प्रवाह ही इनके काव्य को आकर्षक बना देता है। इन्होंने कहीं-कहीं पर यमक तथा अनुप्रास आदि अलङ्कारों का प्रयोग किया है जिससे भाषा-सौन्दर्य के साथ भाव-सौन्दर्य की भी वृद्धि हुई है। सवैये मानुष हों तो वही रसखानि, बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन। आजु गई हुती भोर ही हौं, रसखानि रई वहि नंद के भौनहिं।। धूरि भरे अति सोभित स्यामजू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी। जा दिन तें वह नंद को छोहरा, या बन धेनु चराइ गयौ है। कान्ह भए बस बाँसुरी के, अब कौन सखी, हमकों चहिहै। मोर-पखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी। कवित्त गोरज बिराजै भाल लहलही बनमाल ‘रसखानि-ग्रन्थावली’ से हिन्दी के अन्य जीवन परिचयहिन्दी के अन्य जीवन परिचय देखने के लिए मुख्य प्रष्ठ ‘Jivan Parichay‘ पर जाएँ। जहां पर सभी जीवन परिचय एवं कवि परिचय तथा साहित्यिक परिचय आदि सभी दिये हुए हैं।
रसखान की प्रमुख रचनाएं कौन कौन सी है?कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ. मानुस हौं तो वही / रसखान. या लकुटी अरु कामरिया / रसखान. सेस गनेस महेस दिनेस / रसखान. धूरि भरे अति सोहत स्याम जू / रसखान. कानन दै अँगुरी रहिहौं / रसखान. मोरपखा मुरली बनमाल / रसखान. कर कानन कुंडल मोरपखा / रसखान. मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं / रसखान. रसखान का जीवन परिचय कैसे लिखें?रसखान का जन्म सन् 1548 में हुआ माना जाता है। उनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था और वे दिल्ली के आस-पास के रहने वाले थे। कृष्ण-भक्ति ने उन्हें ऐसा मुग्ध कर दिया कि गोस्वामी विट्ठलनाथ से दीक्षा ली और ब्रजभूमि में जा बसे। सन् 1628 के लगभग उनकी मृत्यु हुई।
रसखान की दो रचनाएं क्या है?बोधा और आलम भी इसी परम्परा में आते हैं। सय्यद इब्राहीम "रसखान" का जन्म अन्तर्जाल पर उपलब्ध स्रोतों के अनुसार सन् 1533 से 1558 के बीच कभी हुआ था। कई विद्वानों के अनुसार इनका जन्म सन् 1548 ई.
रसखान का पूरा नाम क्या था उनकी किन्हीं दो रचनाओं का उल्लेख कीजिए?Answer: रसखान का पूरा नाम सैय्यद इब्राहिम 'रसखान' था । 'सुजान रसखान' और 'प्रेमवाटिका' इनके दो प्रमुख रचनाएँ है।
|