रामवृक्ष बेनीपुरी की रचना में बुधिया कौन है? - raamavrksh beneepuree kee rachana mein budhiya kaun hai?

रामवृक्ष बेनीपुरी की रचना में बुधिया कौन है? - raamavrksh beneepuree kee rachana mein budhiya kaun hai?

रामवृक्ष बेनीपुरी
रामवृक्ष बेनीपुरी की रचना में बुधिया कौन है? - raamavrksh beneepuree kee rachana mein budhiya kaun hai?
जन्म 1899
मुजफ्फरपुर
मृत्यु 1968
मुजफ्फरपुर
नागरिकता भारत, ब्रिटिश राज, भारतीय अधिराज्य
व्यवसाय लेखक, पत्रकार, कवि
राजनैतिक पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

रामवृक्ष बेनीपुरी (२३ दिसंबर, १८९९ - ७ सितंबर, १९६८) भारत के एक महान विचारक, चिन्तक, मनन करने वाले क्रान्तिकारी साहित्यकार, पत्रकार, संपादक थे। वे हिन्दी साहित्य के शुक्लोत्तर युग के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। आपने गद्य-लेखक, शैलीकार, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी, समाज-सेवी और हिंदी प्रेमी के रूप में अपनी प्रतिभा की अमिट छाप छोड़ी है। राष्ट्र-निर्माण, समाज-संगठन और मानवता के जयगान को लक्षय मानकर बेनीपुरी जी ने ललित निबंध, रेखाचित्र, संस्मरण, रिपोर्ताज, नाटक, उपन्यास, कहानी, बाल साहित्य आदि विविध गद्य-विधाओं में जो महान रचनाएँ प्रस्तुत की हैं, वे आज की युवा पीढ़ी के लिए भी प्रेरणास्रोत हैं।

परिचय

इनका जन्म २३ दिसंबर, १८९९ को उनके पैतृक गाँव मुजफ्फरपुर जिले (बिहार) के बेनीपुर गाँव के एक भूमिहर ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उसी के आधार पर उन्होंने अपना उपनाम 'बेनीपुरी' रखा था। बचपन में ही माता-पिता के देहावसान हो जाने के कारण आपका पालन पोषण ननिहाल में हुआ। उनकी प्राथमिक शिक्षा भी ननिहाल में हुई। उनकी भाषा-वाणी प्रभावशाली थी। उनका व्यक्तित्त्व आकर्षक एवं शौर्य की आभा से दीप्त था। वे एक सफल संपादक के रूप में भी याद किये जाते हैं।[1] वे राजनीतिक पुरूष न थे, पक्के देशभक्त थे। इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आठ वर्ष जेल में बिताये थे।[2][3] ये हिन्दी साहित्य के पत्रकार भी रहे और इन्होंने कई समाचारपत्र जैसे युवक (१९२९) आदि भी निकाले। इसके अलावा ये कई राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता संग्राम संबंधी कार्यों में संलग्न रहे।[4]

मैट्रिक की परीक्षा पास करने से पहले 1920 ई. में वे महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय सेनानी के रूप में आपको 1930 ई. से 1942 ई. तक का समय जेल में ही व्यतीत करना पड़ा। इसी बीच आप पत्रकारिता एवं साहित्य-सर्जना में भी जुड़े रहे। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन को खड़ा करने में आपने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वाधीनता-प्राप्ति के पश्चात् आपने साहित्य-साधना के साथ-साथ देश और समाज के नवनिर्माण कार्य में अपने को जोड़े रखा।

७ सितंबर, १९६८ को वे इस संसार से विदा हो गये।

रचनाएँ

रामवृक्ष बेनीपुरी की आत्मा में राष्ट्रीय भावना लहू के संग लहू के रूप में बहती थी जिसके कारण आजीवन वह चैन की साँस न ले सके। उनके फुटकर लेखों से और उनके साथियों के संस्मरणों से ज्ञात होता है कि जीवन के प्रारंभ काल से ही क्रान्तिकारी रचनाओं के कारण बार-बार उन्हें कारावास भोगना पड़ा। सन् १९४२ में अगस्त क्रांति आंदोलन के कारण उन्हें हजारीबाग जेल में रहना पड़ा। जेलवास में भी वह शान्त नहीं बैठे सकते थे। वे वहाँ जेल में भी आग भड़काने वाली रचनायें लिखते थे। जब भी वे जेल से बाहर आते उनके हाथ में दो-चार ग्रन्थों की पाण्डुलिपियाँ अवश्य होती थीं, जो आज साहित्य की अमूल्य निधि बन गईं हैं। उनकी अधिकतर रचनाएं कारावास की कृतियाँ हैं।

सन् १९३० के कारावास काल के अनुभव के आधार पर पतितों के देश में उपन्यास का सृजन हुआ। इसी प्रकार सन् १९४६ में अंग्रेज भारत छोड़ने पर विवश हुए तो सभी राजनैतिक एवं देशभक्त नेताओं को रिहा कर दिया गया। उनमें रामवृक्ष बेनीपुरी जी भी थे। कारागार से मुक्ति की पावन पवन के साथ साहित्य की उत्कृष्ट रचना माटी की मूरतें रेखाचित्र और आम्रपाली उपन्यास की पाण्डुलिपियाँ उनके उत्कृष्ट विचारों को अपने अन्दर समा चुकी थीं। उनकी अनेक रचनायें जो यश कलगी के समान हैं उनमें जय प्रकाश, नेत्रदान, सीता की माँ, 'विजेता', 'मील के पत्थर', 'गेहूँ और गुलाब' शामिल हैं। 'शेक्सपीयर के गाँव में' और 'नींव की ईंट'; इन लेखों में भी रामवृक्ष बेनीपुरी ने अपने देश प्रेम, साहित्य प्रेम, त्याग की महत्ता, साहित्यकारों के प्रति सम्मान भाव दर्शाया है वह अविस्मरणीय है।[1]

इंगलैंड में शेक्सपियर के प्रति जो आदर भाव उन्हें देखने को मिला वह उन्हें सुखद भी लगा और दु:खद भी। शेक्सपियर के गाँव के मकान को कितनी संभाल, रक्षण-सजावट के साथ संभाला गया है। उनकी कृतियों की मूर्तियों बनाकर वहाँ रखी गई है, यह सब देख कर वे प्रसन्न हुए। पर दुखी इस बात से हुए कि हमारे देश में सरकार भूषण, बिहारी, सूरदास, जायसी आदि महान साहित्यकारों के जन्म स्थल की सुरक्षा या उन्हें स्मारक का रूप देने का प्रयास नहीं करती। उनके मन में अपने प्राचीन महान साहित्यकारों के प्रति अति गहन आदर भाव था। इसी प्रकार 'नींव की ईंट' में भाव था कि जो लोग इमारत बनाने में तन-मन कुर्बान करते है, वे अंधकार में विलीन हो जाते हैं। बाहर रहने वाले गुम्बद बनते हैं और स्वर्ण पत्र से सजाये जाते हैं। चोटी पर चढ़ने वाली ईंट कभी नींव की ईंट को याद नहीं करती।[1]

रामवृक्ष बेनीपुरी की रचना में बुधिया कौन है? - raamavrksh beneepuree kee rachana mein budhiya kaun hai?

बेनीपुरी जी पत्रकारिता जगत से साहित्य-साधना के संसार में आए। छोटी उम्र से ही आप पत्र-पत्रिकाओं में लिखने लगे थे। आगे चलकर आपने 'तरुण भारत', 'किसान मित्र', 'बालक', 'युवक', 'कैदी', 'कर्मवीर', 'जनता', 'तूफान', 'हिमालय' और 'नई धारा' नामक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया। आपकी साहित्यिक रचनाओं की संख्या लगभग सौ है, जिनमें से अधिक रचनाएँ 'बेनीपुरी ग्रंथावली' नाम से प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी कृतियों में से 'गेहूँ और गुलाब' (निबन्ध और रेखाचित्र), 'वन्दे वाणी विनायकौ (ललित गद्य), 'पतितों के देश में (उपन्यास), 'चिता के फूल' (कहानी संग्रह), 'माटी की मूरतें (रेखाचित्र), 'अंबपाली (नाटक) विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। उनकी रचनाओं का विस्तृत विवरण निम्नलिखित है-

नाटक

  • अम्बपाली -1941-46
  • सीता की माँ -1948-50
  • संघमित्रा -1948-50
  • अमर ज्योति -1951
  • तथागत
  • सिंहल विजय
  • शकुन्तला
  • रामराज्य
  • नेत्रदान -1948-50
  • गाँव के देवता
  • नया समाज
  • विजेता -1953.
  • बैजू मामा, नेशनल बुक ट्र्स्ट, 1994
  • शमशान में अकेली अन्धी लड़की के हाथ में अगरबत्ती - 2012

सम्पादन एवं आलोचन

  • विद्यापति की पदावली
  • बिहारी सतसई की सुबोध टीका

जीवनी

  • जयप्रकाश नारायण

संस्मरण तथा निबन्ध

  • पतितों के देश में -1930-33
  • चिता के फूल -1930-32
  • लाल तारा -1937-39
  • कैदी की पत्नी -1940
  • माटी -1941-45
  • गेहूँ और गुलाब - 1948–50
  • जंजीरें और दीवारें
  • उड़ते चलो, उड़ते चलो
  • मील के पत्थर

ललित गद्य

  • वन्दे वाणी विनायक −1953-54.

ग्रन्थावली

  • Collected Works of Rambriksh Benipuri, 8 volumes, Radhakrishna Prakashan
  • रामकृष्ण बेनीपुरी रचना संचयन, साहित्य अकादमी

सम्मान

रामवृक्ष बेनीपुरी की रचना में बुधिया कौन है? - raamavrksh beneepuree kee rachana mein budhiya kaun hai?

रामवृक्ष बेनीपुरी के सम्मान में भारत सरकार ने १९९९ में एक डाक टिकट जारी किया।

दिनकर जी ने एक बार बेनीपुरी जी के विषय में कहा था, "स्वर्गीय पंडित रामवृक्ष बेनीपुरी केवल साहित्यकार नहीं थे, उनके भीतर केवल वही आग नहीं थी जो कलम से निकल कर साहित्य बन जाती है। वे उस आग के भी धनी थे जो राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों को जन्म देती है, जो परंपराओं को तोड़ती है और मूल्यों पर प्रहार करती है। जो चिंतन को निर्भीक एवं कर्म को तेज बनाती है। बेनीपुरी जी के भीतर बेचैन कवि, बेचैन चिंतक, बेचैन क्रान्तिकारी और निर्भीक योद्धा सभी एक साथ निवास करते थे।" १९९९ में भारतीय डाक सेवा द्वारा बेनीपुरी जी के सम्मान में भारत का भाषायी सौहार्द मनाने हेतु भारतीय संघ के हिन्दी को राष्ट्र-भाषा अपनाने की अर्ध-शती वर्ष में डाक-टिकटों का एक सेट जारी किया।[5] उनके सम्मान में बिहार सरकार द्वारा वार्षिक अखिल भारतीय रामवृक्ष बेनीपुरी पुरस्कार दिया जाता है।

इन्हें भी देखिये

  • हिन्दी गद्यकार
  • हिंदी साहित्य
  • हिन्दी गद्यकार

सन्दर्भ

  1. ↑ अ आ इ कपूर, मस्तराम (१५). रामवृक्ष बेनीपुरी रचना संचयन (सजिल्द). साहित्य अकादमी. पपृ॰ ७९८. डीओआइ:ISBN 81-260-1027-4 .
  2. राय, राम वचन (१९९५). रामवृक्ष बेनीपुरी. साहित्य अकादमी. पृ॰ ६६. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7201-974-2.
  3. "स्पेशल पोस्टेज स्टैम्प्स ऑन लिन्गुइस्टिक हार्मनी ऑफ इण्डिया". लेटेस्ट पीआईबी रिलीज़ेज़. प्रेस इन्फ़ॉर्मेशन ब्यूरो, भारत सरकार. १९९९. मूल से 24 अक्तूबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २६ सितंबर २००८.
  4. दास, शिशिर कुमार (२००६). अ हिस्ट्री ऑफ इण्डियन लिट्रेचर. साहित्य अकादमी. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788172017989.
  5. "स्पेशल पोस्टेज स्टैम्प ऑन लिंग्विस्टिक हार्मनी ऑफ इण्डिया". लेटेस्ट PIB रिलीज़. १९९९. मूल से 24 अक्तूबर 2008 को पुरालेखित.

बाहरी कड़ियाँ

  • बिहार की साहित्यिक पत्रकारिता - साहित्य और साहित्यिकार
  • रामवृक्ष बेनीपुरी की पुस्तकें। भारतीय साहित्य संग्रह पर

रामवृक्ष बेनीपुरी की रचना में बुधिया कौन थी?

'बुधिया' शीर्षक रेखाचित्र एक सामान्य स्त्री का बचपन, जवानी और बुढ़ापे का मार्मिक चित्रण है। बचपन की बुधिया चंचल और चुलबुली हैं, तो जवानी में हजारों जवानों की दिल की धड़कन है। लेखक बुधिया के बारे में कहते हैं- “वृंदावन में एक गोपाल और हजार गोपियाँ थी, यहाँ एक गोपी और हजार गोपाल है।

रामवृक्ष बेनीपुरी जी की मृत्यु कब हुई थी?

9 सितंबर 1968रामवृक्ष बेनीपुरी / मृत्यु तारीखnull

10 रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म कब और कहां हुआ था?

रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर के बेनीपुर गाँव में 23 दिसंबर 1902 को हुआ था। इनके पिता श्री फूलवंत सिंह एक साधारण किसान थे। बचपन में ही इनके माता-पिता का देहांत हो गया था। इनकी मौसी ने इनका लालन-पालन किया था

लेखक बेनीपुरी जी की रजिया से अचानक भेंट कहाँ हुई?

इसका पता उस दिन चला, जब बहुत दिनों पर उससे अचानक पटना में भेंट हो गई।